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September 7, 2025

नीरजा के जन्मदिन पर सुनिए कहानी उस हाईजैक की, जिसने उन्हें बनाया ’Heroin Of Hijack’

The CSR Journal Magazine
नीरजा भनोट एयरहोस्टेस थीं। उनका जन्म 7 सितंबर के दिन 1963 में हुआ था। जब पाकिस्तान के कराची शहर में न्यूयॉर्क जाने वाला विमान हाईजैक हुआ, तब अपने हौसले और वीरता से नीरजा ने आतंकियों का सामना किया और इमरजेंसी डोर खोलकर यात्रियों की जान बचाई। इस प्रयास में उनकी जान चली गई थी। 5 सितंबर 1986 को प्लेन हाईजैक के दौरान नीरजा भनोट ने असाधारण बहादुरी दिखाते हुए 300 से ज्यादा लोगों की जान बचाई। मॉडल और एयरहोस्टेस नीरजा को उनकी बहादुरी के लिए ‘Heroin Of Hijack’ के नाम से जाना जाता है। उनकी कहानी साहस और बलिदान का प्रतीक है।

5 सितंबर का कभी ना भूलने वाला इतिहास

5 सितंबर 1986, PAN M 73 फ्लाइट ने मुंबई से उड़ान भरी। फ्लाइट को न्यूयॉर्क जाना था, लेकिन पाकिस्तान का कराची शहर उसका पहला पड़ाव था। कराची के जिन्ना एयरपोर्ट पर फ्लाइट लैंड हुई, कुछ पैसेंजर उतरे तो कुछ आगे की यात्रा के लिए सवार हुए। पायलट ने टेकऑफ की तैयारी शुरू की। इसी बीच धड़धड़ाते हुए चार आतंकी विमान में दाखिल हो गए। यह सब इतनी जल्दी हो गया कि कोई कुछ समझ ही नहीं पाया। प्लेन हाईजैक हो चुका था, और उसकी मंजिल बदल चुकी थी!

4 आतंकी, 379 बंधक

प्लेन में चार आतंकी, 360 यात्री और क्रू मेंबर समेत 379 लोग सवार थे। इन्हीं क्रू मेंबरों में से एक थीं नीरजा भनोट! वही नीरजा भनोट, जिन्होंने महज 22 साल की उम्र में अपनी जान देकर 360 यात्रियों की जिंदगी बचाई थी। उनके इस हौसले पर भारत सरकार ने उन्हें अशोक चक्र से नवाजा था। वह भारत का प्रतिष्ठित सम्मान अशोक चक्र पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला थीं। नीरजा की बहादुरी से प्रभावित होकर अमेरिकी मीडिया की सुर्खियों में उन्हें Heroine Of Hijack का खिताब दिया गया था। हाईजैक की तारीख से ठीक दो दिन बाद 7 सितंबर को उनका जन्म दिन था।

आखिर क्या हुआ था उस दिन

जैसे ही आतंकी फ्लाइट में घुसे, फ्लाइट पर्सर नीरजा भनोट ने इसकी सूचना अपने कैप्टन को दे दी। फ्लाइट के कैप्टन को जैसे ही यह सूचना मिली वे कॉकपिट के छत में बनी एक आपातकालीन खिड़की (Overhead Hatch) से निकल भागे, जिसकी वजह से आतंकवादी फ्लाइट को अपनी इच्छानुसार साइप्रस की ओर नहीं ले जा पाए। इससे नाराज होकर आतंकवादियों ने यात्रियों को बंधक बना लिया और पूरे विमान में दहशत का माहौल बना दिया। अब सीनियर क्रू मेंबर नीरजा भनोट ही थीं। नीरजा के पास मौका था कि वह भाग सकें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। आतंकी अमेरिकी नागरिकों को ढूंढ रहे थे। उन्होंने नीरजा भनोट को अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट लाने के लिए कहा। यह आतंकी थे अबु निदान ऑर्गनाइजेशन के! जब नीरजा से पासपोर्ट इकट्ठे करने के लिए कहा तो नीरजा ने अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट छिपा दिए और बाकी आतंकियों को थमा दिए। जब आतंकियों ने देखा कि विमान में कोई अमेरिकी यात्री नहीं है तो उनका पारा चढ़ गया।

नीरजा ने खोला इमरजेंसी एग्जिट

Pan M फ्लाइट 73 के अपहरण के दौरान नीरजा भनोट को विमान की कमान संभालनी पड़ी क्योंकि पायलट कॉकपिट छोड़कर निकल चुके थे। अपहरणकर्ताओं ने कॉकपिट पर हमला कर दिया था और चालक दल के बाकी सदस्यों को घायल कर दिया था, जिससे उनके लिए विमान को नियंत्रित करना असंभव हो गया था। वरिष्ठ फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में नीरजा ने स्थिति को संभालने, यात्रियों की सुरक्षा करने और चालक दल व अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित करने में मदद की और इस संकट के दौरान उल्लेखनीय साहस और सूझबूझ का परिचय दिया। आतंकियों ने अथॉरिटी से बात करते हुए 17 घंटे बिताए। तब तक यात्रियों की सांस हलक में लटकी रही। प्लेन में कुछ बच्चे भी थे, जिनकी तबीयत लगातार बिगड़ रही थी। नीरजा भनोट ने मौका पाया और उन बच्चों को लेकर इमरजेंसी डोर की तरफ भागीं। आतंकियों ने जब ये देखा तो बच्चों पर बंदूक तान दी। नीरजा सामने आईं और अपनी पीठ पर आतंकियों की गोली खाई, घायल अवस्था में ही उन्होंने विमान का इमरजेंसी डोर खोल दिया।

इंसानियत का फ़र्ज़ निभाते दे दी जान

इमरजेंसी गेट से नीरजा यात्रियों को बाहर निकालती रहीं, आतंकियों ने भी गोलीबारी शुरू कर दी। इसमें 100 से अधिक लोग घायल हुए। 18-19 लोगों की मौत हो गई, लेकिन तकरीबन 360 लोग सकुशल बच गए। इसी आपाधापी के बीच आतंकी फरार हो गए। यह आतंकी FBI की हिटलिस्ट में हैं, जिन पर 50 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम है, हालांकि कभी ये आतंकी गिरफ्त में नहीं आए।

23वें जन्मदिन से 2 दिन पहले छोड़ दी दुनिया

नीरजा भनोट एक सक्सेसफुल मॉडल और एयरहोस्टेस थीं। 5 सितंबर 1986 में हुए प्लेन हाईजैक में उन्होंने बहादुरी का परिचय देते हुए 300 से ज्यादा लोगों की जान बचाई थी। उनका जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था। वह एक पंजाबी परिवार से थीं और उनके पिता हरीश भनोट पत्रकार थे। पत्रकार पिता की लाडली नीरजा खूबसूरत और चुलबुली थीं। जज्बे, हिम्मत और हौसले की मिसाल इस लड़की का नाम एविएशन हिस्ट्री में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। उन्हें ‘हीरोइन ऑफ हाईजैक’ के नाम से भी पहचान मिली। पढ़ाई, खेल और दिखने में 90 की दशक की अभिनेत्रियों को टक्कर देने वाली नीरजा हर मामले में अव्वल थीं। नीरजा भनोट के बलिदान के बाद भारत सरकार ने उनको सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अशोक चक्र’ प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को ‘तमगा-ए-इंसानियत’ प्रदान किया। नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की महानतम वीरांगना थीं। सन 2004 में नीरजा भनोट के सम्मान में डाक टिकट भी जारी हो चुका है। वर्ष 2005 में अमेरिका ने उन्हें ‘Justice For Crime Award’ दिया। उनकी कहानी पर आधारित 2016 में एक फिल्म भी बनी, जिसमें उनका किरदार सोनम कपूर ने अदा किया था।

नीरजा बनी प्रेरणा

नीरजा ने फ्लाइट में जिन बच्चों की जान बचाई, उनमें से एक 7 साल का बच्चा था, जो आगे चलकर एक प्रमुख विमान कंपनी का पायलट बना। उसने यह बयान दिया है कि उसकी जिंदगी का हर दिन नीरजा भनोट का शुक्रगुजार है। वह उन्हे अपनी प्रेरणा मानता है और उसकी को ध्यान में रखकर उसने अपना करियर चुना। नीरजा के बारे में कहा जाता है कि वह राजेश खन्ना की बहुत बड़ी फैन थीं और हमेशा उनके डायलॉग्स बोला करती थीं। अपनी मां को भेजे अपने आख़िरी संदेश में भी उन्होंने कहा था, ‘Pushpa, I Hate Tears.’
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