काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे कुछ गांव वालों के साथ दाह संस्कार में शामिल होने गंगा किनारे गए थे, जहां उन्हे बलुआ पत्थर से बनी अत्यंत दुर्लभ एकमुखी शिवलिंग मिला। अत्यंत कलात्मक इस मूर्ति में शिव की शांत मुद्रा, जटामुकुट, गोल कुंडल और सूक्ष्म नक्काशी देखने लायक है। मूर्ति का ऊपरी भाग गोलाकार लिंग रूप में है, जबकि सामने की दिशा में एक विशिष्ट मुख उकेरा गया है।
आस्था की नगरी में चमत्कार का संकेत
धर्मनगरी काशी में एक बार फिर चमत्कारिक घटना ने श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित किया है। गंगा नदी के किनारे एक दुर्लभ एकमुखी शिवलिंग मिलने की खबर से पूरे शहर में धार्मिक उत्साह फैल गया है। इस शिवलिंग की आकृति अत्यंत अनोखी बताई जा रही है, जिसमें भगवान शिव का चेहरा स्पष्ट रूप से उभरा हुआ है। यह शिवलिंग अस्सी घाट से लगभग दो किलोमीटर दूर नागवा क्षेत्र के पास गंगा किनारे मिट्टी में दबा हुआ मिला। शुक्रवार सुबह कुछ स्थानीय मछुआरे जब नदी के किनारे जाल डाल रहे थे, तब उन्हें एक पत्थर जैसी आकृति दिखाई दी। मिट्टी हटाने पर जब पूरा आकार सामने आया तो लोग आश्चर्यचकित रह गए. वह एक एकमुखी शिवलिंग था, जिसकी ऊंचाई लगभग 10 इंच और चौड़ाई 6 इंच बताई जा रही है।
भक्तों का सैलाब उमड़ा, प्रशासन ने बढ़ाई सुरक्षा व्यवस्था
शिवलिंग के दर्शन के लिए न केवल स्थानीय लोग, बल्कि आस-पास के जिलों से भी श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं। कई साधु-संतों ने भी स्थल पर पहुंचकर विशेष रुद्राभिषेक किया। घाट पर “हर हर महादेव” के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। पुलिस ने शिवलिंग स्थल के चारों ओर बैरिकेडिंग की है, ताकि किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो। काशी विद्वत परिषद के सदस्य पंडित विष्णुकांत शास्त्री के अनुसार, “एकमुखी शिवलिंग का मिलना अत्यंत शुभ संकेत है। यह केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण खोज है।”
आस्था और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक
काशी, जो स्वयं भगवान शिव की नगरी कही जाती है, वहां गंगा किनारे दुर्लभ एकमुखी शिवलिंग का मिलना केवल धार्मिक उत्साह की बात नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक चेतना और ऐतिहासिक विरासत का सजीव प्रतीक है। एकमुखी शिवलिंग अत्यंत दुर्लभ माने जाते हैं। शैवागम ग्रंथों के अनुसार, यह शिव का साकार रूप है। वह अवस्था, जिसमें ईश्वर ‘एक रूप में समस्त विश्व’ का प्रतीक बन जाते हैं। ऐसा शिवलिंग जहां प्रकट होता है, वहां “पंचतत्वों की ऊर्जा का संगम” माना जाता है। काशी जैसे आध्यात्मिक केंद्र में इसका मिलना इस विश्वास को और गहराई देता है कि यह भूमि स्वयं शिव की लीला-स्थली है। इस खोज ने एक बार फिर यह साबित किया है कि काशी केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि वह अध्यात्म का जीवंत केंद्र है जहां आस्था और इतिहास साथ-साथ सांस लेते हैं।
इतिहास और पुरातत्व का मेल
एकमुखी शिवलिंग का उल्लेख शिव महापुराण और लिंग पुराण में मिलता है। यह स्वरूप शिव के उस अद्वैत भाव का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें सृष्टि और सृजनकर्ता एक हो जाते हैं। धर्माचार्यों के अनुसार, जहां ऐसा शिवलिंग प्रकट होता है, वहां “शिवत्व की ऊर्जा” स्वतः जाग्रत होती है। काशीवासियों के लिए यह घटना केवल एक दैवी संकेत नहीं, बल्कि उनकी नित्य शिवभक्ति का प्रमाण है। पुरातत्वविदों का कहना है कि यह शिवलिंग संभवतः 10वीं से 12वीं शताब्दी के किसी प्राचीन मंदिर का हिस्सा रहा होगा। यह वह समय था जब काशी में मंदिर स्थापत्य की चरम कला देखने को मिली थी। पत्थर पर बारीक मूर्तिकला और नागर शैली के उत्कृष्ट उदाहरण उस युग की पहचान थे। यदि यह शिवलिंग उस काल का है, तो यह भारतीय शिल्पकला के एक अनमोल अध्याय को पुनः उजागर करेगा।
सामाजिक दृष्टि से अर्थपूर्ण घटना
इस खोज ने काशी के सामाजिक जीवन में भी नई ऊर्जा भर दी है। गंगा घाट पर उमड़ी भीड़ में साधु-संतों से लेकर युवाओं और पर्यटकों तक हर कोई “हर हर महादेव” के जयकारे में शामिल था। ऐसी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सामूहिक जुड़ाव और सांस्कृतिक स्मृति का माध्यम है। काशी, जो स्वयं भगवान शिव की नगरी कहलाती है, वहां गंगा किनारे एकमुखी शिवलिंग का मिलना श्रद्धा और अध्यात्म का नया अध्याय जोड़ रहा है। अब पुरातत्व विभाग की विस्तृत जांच और धार्मिक संस्थानों की सहमति के बाद यह तय किया जाएगा कि शिवलिंग को कहां स्थापित किया जाए।
विज्ञान और श्रद्धा का संतुलन जरूरी
हर धार्मिक खोज को केवल आस्था के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। यह आवश्यक है कि पुरातत्व और विज्ञान के सहारे इसकी सत्यता और ऐतिहासिकता की जांच हो। ऐसा करने से यह खोज केवल चमत्कार नहीं, बल्कि अध्ययन और संरक्षण का विषय बनेगी। काशी जैसी विरासत नगरी में ऐसे प्रयास ही भविष्य की पीढ़ियों को इतिहास से जोड़े रख सकते हैं। यदि पुरातत्व विभाग इसे प्रमाणिक ऐतिहासिक धरोहर मानता है, तो इसे सुरक्षित रखकर शोध और अध्ययन के लिए भी खोला जाना चाहिए।
काशी की अनश्वरता का प्रतीक
काशी में मिला यह एकमुखी शिवलिंग हमें याद दिलाता है कि आस्था की धारा कभी सूखती नहीं, वह बस नए रूप में प्रकट होती है। एकमुखी शिवलिंग का प्रकट होना काशी की उस अनंत परंपरा का प्रतीक है, जहां हर शिला, हर जलकण में शिव की उपस्थिति मानी जाती है। यह केवल एक धार्मिक खोज नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की अमरता और आध्यात्मिक चेतना की पुनःस्थापना है। यह खोज बताती है कि काशी का अस्तित्व केवल मंदिरों या घाटों में नहीं, बल्कि हर उस पत्थर में है जो शिवत्व का अनुभव कराता है। काशी फिर साबित कर रही है, यहां आस्था केवल देखी नहीं जाती, जी जाती है। काशी आज भी कह रही है, “मैं वही हूं, जहां हर धड़कन में महादेव बसते हैं।”
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