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रांची में सीएसआर फंड से 500 आंगनबाड़ी केंद्र होंगे क्लिनिकल बेड से लैस

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रांची के दूरदराज इलाकों में अब महिलाओं की सेहत का ख्याल रखेगा सीएसआर, IRCTC अपने सीएसआर फंड से साढ़े 27 लाख रुपये खर्च करने जा रही है, IRCTC रांची के 500 आंगनबाड़ी केंद्रों को अपग्रेड करने के लिए पहल की है, जिसके तहत इन केंद्रों में क्लिनिकल्स बेड लगाए जायेंगे, इससे ना सिर्फ महिलाओं को फायदा होगा बल्कि नवजात शिशुओं की भी सेहत में सुधार होगा। दरअसल दूरदराज इलाकों में अस्पताल की कमी और प्रेग्नेंट महिलाओं को कोई असुविधा न हो इस लिहाज से सरकारों ने आंगनबाड़ियों में ही सामान्य स्वास्थ सेवाएं देती रही है।

IRCTC के सीएसआर से महिलाओं और बच्चों की जिंदगी सावरेंगी

लेकिन IRCTC के CSR फंड से 500 आंगनबाड़ी केंद्रों में क्लिनिकल बेड बेहद ही फायदेमंद होगा। आदर्श ग्रामीण स्वास्थ स्वच्छता एवं पोषण दिवस के उपरांत गर्भवती महिलाओं को बच्चे के जन्म की तैयारी के साथ साथ अपनी सेहत का ख्याल रखने और बच्चों के संपूर्ण टीकाकरण की जानकारी दी जाती है, साथ ही मां और बच्चों में कुपोषण की समस्या से निजात मिल सके इसपर भी बड़े पैमाने पर काम किया जाता है। इस दौरान आशा, आंगनबाड़ी वर्कर्स सहित गांव की महिलाएं मौजूद रहती है, सीएसआर की मदद से अब इन महिलाओं और बच्चों की जिंदगी भी सावरेंगी।

सीएसआर फंड की याेजनाओं की समीक्षा

रांची के डिप्टी कमिश्नर राय महिमापत रे ने सीएसआर के तहत मिलने वाले फंड से ली गई याेजनाओं की समीक्षा की। कलेक्ट्रेट में हुई बैठक में डिप्टी कमिश्नर ने ये जानकारी दी और अधिकारीयों को निर्देश भी दिया कि सीएसआर के तहत काम ऐसे हो जो आम लाेगाें काे सीधे लाभ मिले। The CSR Journal से ख़ास बातचीत करते हुए आईएएस उत्कर्ष गुप्ता ने बताया कि “IRCTC अपने सीएसआर फंड से साढ़े 27 लाख रुपये खर्च करने जा रही है, IRCTC रांची के 500 आंगनबाड़ी केंद्रों को अपग्रेड करने के लिए पहल की है, आंगनबाड़ियों में क्लिनिकल बेड होने से गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के स्वास्थ स्तर में बढ़ोतरी होगी।

कुपोषण की चपेट में झारखंड, सीएसआर से हो रहा है बदलाव

झारखंड राज्य में बड़े स्तर पर सीएसआर के अंतर्गत मिले फंड से पेयजल आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, स्किल डेवलपमेंट, सेनिटेशन में काम किया जा रहा है। बहरहाल हम आपको बता दें कि झारखंड खनिज संसाधनों से भरा पड़ा है। लेकिन इसकी गोद में कुपोषण है। खासकर आदिवासी आबादी इससे सबसे अधिक प्रभावित है। चिंता की बात तो यह है कि यह स्थिति तब है जब तीन-तीन विभाग इससे निपटने को योजनाएं संचालित करते हैं। राज्य में कुपोषण की स्थिति यह है कि यहां अभी भी पांच वर्ष आयु तक का हर दूसरा बच्चा अपनी उम्र की तुलना में नाटा है। दस में से तीन बच्चे अपनी लंबाई की तुलना में दुबले-पतले हैं। अभी भी 11.4 फीसदी बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण से ग्रसित हैं, जिनमें मौत का खतरा नौ से बीस गुना अधिक रहता है। ऐसे बच्चों की संख्या 5.8 लाख है। ऐसे में सीएसआर कहीं न कहीं ये तस्वीर बदलने की कोशिश कर रहा है।