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November 4, 2025

राज ठाकरे का अल्टीमेटम-‘मराठी युवाओं को रोजगार नहीं मिला तो तोड़ देंगे नवी मुंबई एयरपोर्ट का रनवे’

The CSR Journal Magazine
MNS प्रमुख ने दी बड़ी धमकी, कहा – महाराष्ट्र में मराठी के साथ अन्याय बर्दाश्त नहीं होगा। नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट का रनवे तोड़ने की दी धमकी! पहले भी हिंदी-विरोध और स्थानीय अधिकारों को लेकर कई बार उठाई आवाज !

फिर गरजे MNS प्रमुख राज ठाकरे

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने एक बार फिर अपने आक्रामक तेवर दिखाते हुए नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट (NMIA) के खिलाफ बड़ा बयान दिया है। राज ठाकरे ने चेतावनी दी है कि यदि इस परियोजना में स्थानीय मराठी युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता नहीं दी गई, तो उनकी पार्टी एयरपोर्ट का रनवे तक उखाड़ देगी।MNS प्रवक्ता गजानन काले ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “राजसाहेब के आदेश पर अगर स्थानीय मराठी युवाओं को नौकरी नहीं मिली तो हमारे कार्यकर्ताओं के लिए एयरपोर्ट की रनवे तोड़ना कोई मुश्किल काम नहीं होगा।”

मराठी मानुष के हक की लड़ाई में फिर उतरे राज ठाकरे

राज ठाकरे ने हमेशा से महाराष्ट्र में मराठी पहचान और स्थानीय अधिकारों की राजनीति को केंद्र में रखा है। नवी मुंबई एयरपोर्ट परियोजना CIDCO और Adani Group के संयुक्त सहयोग से बन रही है। MNS का आरोप है कि इस मेगा प्रोजेक्ट में करीब 1 लाख नौकरियां निकलेंगी, लेकिन उनमें से अधिकांश बाहरी राज्यों के लोगों को दी जा रही हैं। राज ठाकरे का कहना है कि जिन किसानों की ज़मीन लेकर यह एयरपोर्ट बना, उनके परिवारों और स्थानीय मराठी युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी, लेकिन अब तक उन्हें नजरअंदाज किया गया है।

राज ठाकरे का पुराना ‘हिंदी विरोध’ और ‘मराठी अस्मिता’ का मुद्दा

राज ठाकरे का हिंदी भाषियों के प्रति सख्त रुख कोई नया नहीं है। 2008 में उन्होंने मुंबई में उत्तर भारतीय ऑटो-टैक्सी चालकों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था, जिसमें “मराठी मानुष को प्राथमिकता” की मांग की गई थी। रेलवे भर्ती में उत्तर भारतीय उम्मीदवारों की भारी संख्या पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा था कि “महाराष्ट्र में पहले मराठी को नौकरी मिलनी चाहिए।” राज ठाकरे बार-बार यह कहते रहे हैं कि “हिंदी भाषा थोपना, महाराष्ट्र की संस्कृति और पहचान को कमजोर करता है।” उनके भाषणों में यह स्वर कई बार सुनाई दिया है कि “मुंबई महाराष्ट्र में है, भारत में नहीं” यानी महाराष्ट्र की अलग सांस्कृतिक पहचान को वे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति से ऊपर मानते हैं। इसलिए, नवी मुंबई एयरपोर्ट जैसे प्रोजेक्ट पर “मराठी युवाओं की अनदेखी” का मुद्दा उनकी पार्टी के लिए न केवल राजनीतिक बल्कि भावनात्मक लड़ाई भी बन गया है।

MNS की चेतावनी: CIDCO और प्रशासन को 15 दिन की मोहलत

MNS ने चेतावनी दी है कि यदि आने वाले 15 दिनों में CIDCO और प्रोजेक्ट संचालक कंपनियां स्थानीय युवाओं के लिए स्पष्ट आरक्षण नीति घोषित नहीं करतीं, तो पार्टी “जन आंदोलन” छेड़ देगी। MNS प्रवक्ता ने कहा, “हम केवल पोस्टर नहीं लगाते, काम करके दिखाते हैं। अगर मराठी लोगों को उनका हक नहीं मिला तो एयरपोर्ट की एक-एक ईंट उखाड़ दी जाएगी।”

पृष्ठभूमि: करोड़ों की परियोजना, लेकिन स्थानीयों में नाराज़गी

नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट, जो अगले साल तक चालू होने की संभावना है, महाराष्ट्र की सबसे बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं में से एक है। लेकिन इस निर्माण से जिन गांवों की ज़मीन अधिग्रहित हुई, जैसे दापोली, उलवे, पनवेल के आसपास के क्षेत्र, वहां के लोग आज भी रोजगार और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। MNS ने कहा कि CIDCO और Adani Group स्थानीयों से रोजगार व मुआवजे का वादा तो करते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं हो रहा।

राजनीतिक मायने और असर

राज ठाकरे का यह बयान राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। एक ओर, शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) भी मराठी अस्मिता के मुद्दे पर मुखर है, जबकि दूसरी ओर MNS का यह कदम राज्य के मराठी वोट बैंक को फिर सक्रिय करने का प्रयास माना जा रहा है। राज ठाकरे के पिछले कुछ महीनों के बयानों से साफ है कि वे आगामी नगर निकाय और विधानसभा चुनावों में मराठी अधिकारों को मुख्य एजेंडा बनाने जा रहे हैं। राज ठाकरे की यह धमकी महज बयानबाज़ी नहीं मानी जा रही।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह MNS की खोई ज़मीन वापस पाने की कोशिश है। लेकिन इतना तो तय है कि नवी मुंबई एयरपोर्ट के उद्घाटन से पहले ही यह विवाद महाराष्ट्र की राजनीति को नई दिशा दे रहा है, जहां “मराठी बनाम बाहरी” की पुरानी बहस फिर से तेज़ होती दिखाई दे रही है।

मराठी अस्मिता बनाम विकास: राज ठाकरे की चेतावनी एक संकेत है या संकट?”

राज ठाकरे की आवाज़ जब उठती है, तो महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल होना तय है। नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की रनवे तोड़ने की धमकी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है- क्या स्थानीय अस्मिता का प्रश्न आज भी विकास से बड़ा है?
राज ठाकरे की राजनीति हमेशा से ‘मराठी मानुष’ की पहचान पर टिकी रही है। जब भी राज्य में कोई बड़ा उद्योग या परियोजना शुरू होती है, वे सबसे पहले यह सवाल उठाते हैं कि “स्थानीयों को उसका लाभ मिल रहा है या नहीं?” उनकी मांग का मूल होता है कि बाहरी लोगों को रोका जाए और मराठी युवाओं को प्राथमिकता दी जाए। लेकिन आज के औद्योगिक और वैश्विक युग में जब हर परियोजना में बाहरी तकनीक, विशेषज्ञता और निवेश की जरूरत होती है, तब सिर्फ स्थानीय पहचान की राजनीति कितना दूर तक जा सकती है, यह सवाल गंभीर है।

स्थानीय रोजगार: एक हक, न कि उपकार

राज ठाकरे का तर्क है कि जिन किसानों की ज़मीन एयरपोर्ट के लिए अधिग्रहित हुई, उनके परिवारों को रोजगार मिलना चाहिए। यह मांग अनुचित नहीं है। किसी भी बड़े प्रोजेक्ट का सामाजिक संतुलन तभी बना रह सकता है जब स्थानीय लोग खुद को उस विकास का हिस्सा समझें। अन्यथा वही विकास उनके लिए बेगानेपन का प्रतीक बन जाता है। लेकिन जब यह मांग धमकी और हिंसक चेतावनी में बदल जाती है, जैसे “रनवे तोड़ देंगे” या “विमान उड़ने नहीं देंगे” तब यह लोकतांत्रिक विमर्श से हटकर अराजकता की ओर बढ़ जाता है।

राज ठाकरे की राजनीति: अस्मिता या अस्तित्व की लड़ाई?

सच्चाई यह है कि महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे की पार्टी पिछले कुछ वर्षों में हाशिए पर चली गई है। भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और उद्धव ठाकरे गुट की तिकड़ी के बीच MNS की भूमिका सीमित हो गई है। ऐसे में “मराठी अधिकार” का मुद्दा उठाना राजनीतिक दृष्टि से भी उनके लिए वापसी की रणनीति हो सकता है। राज ठाकरे का हिंदी-विरोध, उत्तर भारतीयों पर टिप्पणियां, और अब एयरपोर्ट विवाद, ये सब उनकी राजनीतिक पहचान को जीवित रखने के तरीके हैं। मगर सवाल यह है कि क्या मराठी अस्मिता की राजनीति आज के महाराष्ट्र में वही असर रखती है जो 2008 में रखती थी?

विकास और पहचान के बीच पुल बनाना होगा

मराठी अस्मिता का मुद्दा महत्वपूर्ण है, लेकिन उसके लिए विकास को तोड़ना नहीं, उसे अपने साथ जोड़नाज़रूरी है। यदि एयरपोर्ट जैसी परियोजनाएं स्थानीयों के लिए नए अवसर खोलेंगी, तो यह अस्मिता और विकास दोनों का मेल होगा। राज्य सरकार और परियोजना प्रबंधकों को चाहिए कि वे रोजगार नीति में स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता देने की स्पष्ट घोषणा करें, ताकि संघर्ष की जगह संवाद बन सके।

आवाज़ सही, तरीका गलत

राज ठाकरे की चेतावनी यह याद दिलाती है कि विकास के केंद्र में स्थानीय लोगों की भागीदारी अनिवार्य है। परंतु धमकी, डर और हिंसक भाषा इस मुद्दे की गंभीरता को कमजोर कर देती है। महाराष्ट्र की जनता को ऐसी राजनीति चाहिए जो मराठी अस्मिता की रक्षा करे, लेकिन साथ ही राज्य को आगे भी बढ़ाए, क्योंकि पहचान और प्रगति, दोनों एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
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