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December 8, 2025

पुतिन की भारत यात्रा- भारत-रूस रिश्तों में नया अध्याय, नतीजों पर विश्व की नजर !

The CSR Journal Magazine

 

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा सिर्फ एक औपचारिक कूटनीतिक दौरा नहीं थी, यह वैश्विक राजनीति, व्यापार, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों में बदलते समीकरणों का संकेत देने वाली ऐतिहासिक घटना साबित हुई। ऐसे समय में जब दुनिया भू-राजनीतिक तनावों, आर्थिक प्रतिस्पर्धा और गठबंधनों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है, पुतिन का भारत आना कई स्तरों पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत आगमन

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 4–5 दिसंबर 2025 के बीच भारत का दौरा किया। यह 23वां वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन था। इस दौरान पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कई दौर की वार्ताएं हुईं, कुछ औपचारिक, तो कुछ निजी और सामरिक स्वरूप की। सिर्फ राष्ट्रपति का आना ही नहीं, बल्कि इतने बड़े मंत्रियों, अफसरों और व्यापारिक प्रतिनिधियों का साथ आना दिखाता है कि यह दौरा शिखर स्तर का था, महज़ औपचारिकता नहीं। इससे भारत-रूस सहयोग के कई आयाम खुल सकते हैं, सिर्फ रक्षा/ऊर्जा ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, नए उद्योग, नौकरियां, टेक्नोलॉजी, इत्यादि। यह भारत की विदेश नीति की “स्वतंत्रता” को दिखाता है कि भारत अपने हितों के आधार पर रूस से जुड़े, चाहे ग्लोबल परिदृश्य कैसा भी हो। यह यात्रा इस बात का प्रतीक है कि भारत अपनी “रणनीतिक स्वायत्त विदेश नीति” के रास्ते पर कायम है, जहां अमेरिका, यूरोप और रूस तीनों के साथ भारत संतुलन बनाए रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।

पुतिन के साथ आए ताकतवर प्रतिनिधिमंडल की सूची

पुतिन इस यात्रा पर अकेले नहीं आए। उनके साथ रूस के शीर्ष स्तर के राजनैतिक, रक्षा, आर्थिक और  व्यापारिक विशेषज्ञों की टीम थी। यह प्रतिनिधि मंडल बताता है कि यह दौरा “जीवन्त साझेदारी” के पुनर्निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम है। पुतिन के साथ शामिल प्रतिनिधि मंडल- मंत्रियों के नाम-

Andrei Belousov- रक्षा मंत्री

Belousov, रूस के रक्षा मंत्रालय के प्रमुख हैं। इस दौरे में उनकी उपस्थिति इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि रक्षा-संबंधित समझौते, हथियार, मिसाइल सिस्टम (जैसे S-400 / S-500), लड़ाकू विमान, और “संयुक्त रक्षा उत्पादन” इस यात्रा के एजेंडे में थे। उनकी मौजूदगी से संकेत मिलता है कि रूस भारत के साथ रक्षा साझेदारी को निखारने, तकनीकी हस्तांतरण करने, और संभवतः संयुक्त निर्माण/को-डेवलपमेंट की दिशा में काम करना चाहता है।

Anton Siluanov- वित्त मंत्री / आर्थिक-वित्तीय मामलों के प्रभारी

Siluanov रूस की सरकार में वित्त विभाग संभालते हैं, और मुद्रा, भुगतान, विदेशी व्यापार वित्तपटल और आर्थिक नीतियों से जुड़े रहते हैं। इस दौरे में उनकी भागीदारी इसलिए है क्योंकि आर्थिक और वित्तीय सहयोग, निवेश, व्यापार समझौते, भुगतान तंत्र आदि चर्चा का महत्वपूर्ण हिस्सा बने। वित्त मंत्री के रूप में उनका लक्ष्य दोनों देशों के बीच व्यापार को सुचारू करना, निवेश आकर्षित करना और संभवतः पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच आर्थिक संबद्धता को मजबूत करना हो सकता है।

Maxim Reshetnikov- आर्थिक विकास मंत्री / व्यापार व निवेश प्रोत्साहन

Reshetnikov को रूस सरकार में “Economic Development / Economic Cooperation” क्षेत्र का प्रभारी मंत्री माना जा रहा है। उनकी भूमिका है द्विपक्षीय व्यापार, निवेश, आर्थिक साझेदारी, व्यापार नीतियों तथा आर्थिक साझेदारी के नए आयाम। उनकी मौजूदगी इस बात की ओर संकेत देती है कि भारत-रूस साझेदारी अब सिर्फ ऊर्जा और रक्षा तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि व्यापार, निवेश, औद्योगिक सहयोग और दीर्घकालीन आर्थिक विकास को लेकर नए कदम उठा रहे हैं।

Oksana Lut- कृषि मंत्री / कृषि व खाद्य-सहयोग

Lut को रूस की कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई है। भारत के साथ खेती, खाद्य आपूर्ति, उर्वरक, कृषि तकनीक, कृषि निर्यात/आयात जैसे क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं पर उनकी उपस्थिती प्रासंगिक है। यह संकेत है कि भारत रूस से न सिर्फ ऊर्जा/रक्षा, बल्कि खाद्य और कृषि सहयोग के जरिए खाद्य सुरक्षा, उर्वरक आपूर्ति, कृषि-उद्योग, ट्रेड आदि को भी मजबूत करना चाहता है।

Mikhail Murashko- स्वास्थ्य मंत्री / स्वास्थ्य-चिकित्सा सहयोग प्रभारी

Murashko रूस के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े मंत्री हैं। उनकी मौजूदगी बताती है कि भारत-रूस समझौते सिर्फ रक्षा, ऊर्जा या व्यापार तक सीमित नहीं, स्वास्थ्य, दवाइयां, मेडिकल टेक्नोलॉजी, फार्मा या चिकित्सा सहयोग जैसे क्षेत्रों में भी विस्तार किया जा रहा है। इसका मतलब है कि भविष्य में भारत-रूस साझेदारी में स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र, दवा उत्पाद, अनुसंधान आदि भी शामिल हो सकते हैं, जो भारत के लिए दीर्घकालीन व्यावहारिक लाभ वाला है।

Roman Nikitin  Andrey/Andrey Nikitin)- परिवहन / ट्रांसपोर्ट मंत्री / लॉजिस्टिक एवं कनेक्टिविटी प्रभारी

Nikitin की जिम्मेदारी रूस में परिवहन, राजमार्ग/शिपिंग या लॉजिस्टिक नेटवर्क के क्षेत्रों में हो सकती है। उनके आने का उद्देश्य भारत-रूस के बीच माल, ऊर्जा व अन्य वस्तुओं की आवाजाही, शिपिंग, ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर, और कनेक्टिविटी को मजबूत करना हो सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक व व्यापार समझौते सिर्फ कागज़ों पर नहीं रहेंगे, बल्कि सूचनात्मक/भौतिक कनेक्टिविटी, लॉजिस्टिक सपोर्ट व मार्गों (Maritime/Land/Rail) के माध्यम से व्यवहारिक रूप लेंगे।

Vladimir Kolokoltsev- गृह मंत्री / आंतरिक सुरक्षा एवं प्रशासन सम्बंधित मंत्री

Kolokoltsev रूस के आंतरिक मामलों, सुरक्षा, कस्टम्स-इमिग्रेशन, Borders/Immigration, पुलिस या सुरक्षा सेवाओं से जुड़े होंगे। उनकी मौजूदगी इस लिए है कि सबसे बड़े द्विपक्षीय समझौतों और लोगों की आवाजाही, ऊर्जा-आयात/निर्यात, व्यापार, निवेश के लिए सुरक्षा, कस्टम्स, इमिग्रेशन, लॉजिस्टिक सुरक्षा आदि सुनिश्चित किया जा सके। यह रूस की ओर से यह भरोसा दिलाता है कि न केवल बड़े पैमाने पर राजनीतिक और आर्थिक समझौते होंगे, बल्कि सुरक्षा, प्रक्रिया और अनुपालन (Compliance), कस्टम्स, प्रवासन (vVsa/Immigration) जैसे व्यावहारिक पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाएगा, ताकि सहयोग सफल और दीर्घकालीन हो।

Elvira Nabiullina- सेंट्रल बैंक प्रमुख / वित्तीय नियामक (Central Bank Governor / Financial-regulation authority)

हालांकि मूल “7 मंत्री” की सूची में उनका हमेशा उल्लेख नहीं हुआ है, लेकिन कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि केंद्रीय बैंक की प्रमुख Elvira Nabiullina भी इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं, तो इसका मतलब यह है कि दोनों देशों के वित्तीय/बैंकिंग तंत्र, मुद्रा लेन-देन, भुगतान प्रणाली, वित्तीय नियमन आदि पर समझौतों की संभावना है, जो कि द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग के लिए बुनियादी और महत्वपूर्ण है।

इस तरह के प्रतिनिधिमंडल क्यों भेजे जाते हैं?

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ आया यह प्रतिनिधिमंडल सिर्फ औपचारिक निमंत्रण या सत्कार का नहीं, बल्कि हर क्षेत्र (रक्षा, ऊर्जा, अर्थव्यवस्था, कृषि, स्वास्थ्य, लॉजिस्टिक, वित्त, सुरक्षा) को ध्यान में रखकर बहु-आयामी साझेदारी की तैयारी है।मंत्रियों की विशेषज्ञता यह सुनिश्चित करती है कि समझौते (MoUs / Deals) सिर्फ घोषणा नहीं, बल्कि क्रियान्वयन योग्य हों, चाहे वो रक्षा उत्पादन हो, ऊर्जा आपूर्ति हो, निवेश व व्यापार ढांचा हो, बैंकिंग/भुगतान व्यवस्था हो, या कृषि व स्वास्थ्य सहयोग हो। साथ ही, केंद्रीय बैंक प्रमुख या वित्त मंत्री जैसी सहभागिता इस बात का संकेत देती हैं कि रूस चाहता है कि भारत-रूस आर्थिक साझेदारी बंदिशों एवं पश्चिमी प्रतिबंधों से प्रभावित न हो, यानी आर्थिक व वित्तीय लेन-देन सुरक्षित, योजना बद्ध और स्थायी हों। आंतरिक सुरक्षा, कस्टम्स, इमीग्रेशन आदि से जुड़े मंत्री होने का मतलब है कि निवेश, व्यापार, ऊर्जा व रक्षा परियोजनाओं के लिए प्रशासनिक व कानूनी समर्थन सुनिश्चित किया जाएगा, ताकि दोनों देशों के बीच व्यावहारिक काम सुचारु रूप से हो सके। इसके अलावा, रूस के शीर्ष रक्षा उद्योगों, ऊर्जा कंपनियों और व्यापारिक समूहों के CEO भी इस यात्रा का हिस्सा थे।

वार्ता के प्रमुख विषय और महत्वपूर्ण समझौते

मीटिंग्स और चर्चाओं का मुख्य ध्यान बहु-क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने पर था। लगभग 19 से 25 समझौते साइन किए गए। प्रमुख क्षेत्र:

रक्षा सहयोग और संयुक्त उत्पादन

भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र में लंबे समय से भरोसेमंद साझेदारी रही है। इस दौरे में दोनों देशों ने, संयुक्त हथियार उत्पादन, सैन्य तकनीक साझा करने और भविष्य के रक्षा सौदों की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमति जताई। इस सहयोग के तहत भारत में रूसी तकनीक की मदद से उन्नत हथियार प्रणालियों और हेलिकॉप्टरों के निर्माण की संभावना मजबूत हुई है।

ऊर्जा और परमाणु परियोजनाएं

रूस भारत की परमाणु ऊर्जा योजनाओं में महत्वपूर्ण भागीदार है। इस दौरे में नए परमाणु संयंत्रों पर चर्चा, ऊर्जा सुरक्षा और दीर्घकालिक आपूर्ति समझौते शामिल थे। इसके अलावा, LNG सप्लाई और तेल खरीद पर भी निर्णायक वार्ताएं हुईं।

व्यापार, निवेश और आर्थिक सहयोग

भारत और रूस ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने का लक्ष्य तय किया। दूसरे शब्दों में, ध्यान सिर्फ हथियारों और तेल पर नहीं, बल्कि कृषि, स्वास्थ्य, IT और अंतरिक्ष सहयोग पर भी है।

समुद्री, ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क

दोनों देशों ने नए कारोबारी मार्गों और शिपिंग को आसान बनाने के लिए समझौते किए। यह भारत के लिए यूरोप और रूस तक सामान पहुंचाने का एक वैकल्पिक, किफायती रास्ता बन सकता है।

राजघाट पर पुतिन- संदेश दो देशों के रिश्तों के लिए

पुतिन ने अपनी यात्रा के दौरान राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी। यह एक शक्तिशाली प्रतीकात्मक संदेश था जो भारत की भावना और वैश्विक शांति की अवधारणा के प्रति सम्मान को दर्शाता है। इस तरह के कदम बताते हैं कि यह दौरा सिर्फ समझौतों का सेट नहीं, बल्कि भावनात्मक और ऐतिहासिक साझेदारी को और मजबूत करने का एक प्रयास था।

वैश्विक संदर्भ में क्यों अहम है यह यात्रा?

दुनिया आज तीन बड़े ध्रुवों में बंटी लगती है- अमेरिका और यूरोपीय ब्लॉक, चीन और रूस तथा दक्षिण के उभरते देश! ऐसे माहौल में भारत की नीति एकदम स्पष्ट दिखती है, “भारत किसी के दबाव में नहीं, बल्कि अपने हितों और रणनीतिक सोच के साथ आगे बढ़ता है।” पश्चिमी दबावों के बीच यह यात्रा भारत और रूस की पुरानी, भरोसेमंद और बहुआयामी साझेदारी को पुनः प्रमाणित करती है।

पुतिन दौरे का भारत के लिए लाभ- रणनीतिक और व्यावहारिक

ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security)

भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार ऊर्जा है, और रूस इस क्षेत्र में भारत का दीर्घकालिक तथा भरोसेमंद साझेदार बनकर उभर रहा है। रूस से रियायती दरों पर कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की उपलब्धता भारत को वैश्विक बाजार की अनिश्चितता और ऊंची कीमतों के प्रभाव से बचाती है। इसके साथ ही परमाणु ऊर्जा सहयोग, जैसे नए रिएक्टर और तकनीकी हस्तांतरण, भारत के ऊर्जा स्रोतों को विविध और स्थिर बनाता है। इससे भारत न केवल अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को सुरक्षित कर पाता है बल्कि भविष्य में स्वच्छ और किफायती ऊर्जा उत्पादन की दिशा में भी मजबूत कदम बढ़ा रहा है।

रक्षा आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता (Defence Modernisation & Atmanirbharta)

भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र में दशकों से भरोसेमंद संबंध रहे हैं, और यह यात्रा इस सहयोग को नई दिशा देती है। पहले जहां हथियारों की खरीदसीमा तक सीमित थी, अब सहयोग का केंद्र संयुक्त उत्पादन, तकनीक हस्तांतरण और स्थानीय निर्माण पर है। इसका सीधा लाभ यह है कि भारत अब केवल खरीददार नहीं, बल्कि उत्पादक और डेवलपर की भूमिका में आ रहा है। इससे भारतीय सेनाओं का आधुनिकीकरण तेज़ होगा, “Make in India” को बल मिलेगा और रक्षा क्षेत्र में विदेशी निर्भरता कम होगी। यह भारत की दीर्घकालिक रणनीतिक सुरक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

आर्थिक व व्यापारिक विस्तार (Trade Growth & New Economic Corridors)

भारत और रूस के बीच व्यापार केवल ऊर्जा और रक्षा तक सीमित नहीं है, यह यात्रा IT, फार्मा, कृषि, शिक्षा, और तकनीकी निवेश जैसे क्षेत्रों में नए अवसर खोलती है। रूस भारत के लिए कृषि निर्यात, फार्मास्यूटिकल्स और डिजिटल सेवाओं के बड़े बाज़ार के रूप में उभर सकता है। साथ ही, नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) और आर्कटिक सी रूट जैसे नए व्यापार मार्ग भारत को यूरोप और उत्तरी क्षेत्रों से जोड़ेंगे। इससे माल परिवहन सस्ता, तेज़ और अधिक रणनीतिक होगा जो भारत को वैश्विक सप्लाई चेन में एक निर्णायक और प्रमुख खिलाड़ी बना सकता है।

बहुध्रुवीय दुनिया में रणनीतिक स्वतंत्रता (Strategic Autonomy in Global Geopolitics)

आज की दुनिया में अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ के बीच शक्ति संतुलन और भू-राजनीतिक तनाव लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में भारत का रूस के साथ मजबूत संबंध यह संदेश देता है कि भारत किसी ब्लॉक राजनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि अपने हितों के अनुसार साझेदार चुनने वाला स्वतंत्र और उभरता शक्ति केंद्र है। यह न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत बनाता है, बल्कि भारत को वैश्विक वार्ताओं चाहे वह सुरक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष या व्यापार हो, में अधिक प्रभावशाली बनाता है। यह यात्रा इस बात को स्थापित करती है कि भारत वैश्विक राजनीति में “निर्धारक” (Decision-Making) राष्ट्र बन रहा है, न कि एक दर्शक।

विज्ञान, अंतरिक्ष और तकनीकी सहयोग (Science & Emerging Tech Cooperation)

रूस अंतरिक्ष अनुसंधान और मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी रहा है। इस यात्रा के दौरान विज्ञान और तकनीकी साझेदारी के लिए जिस तरह की सहमति बनी है, वह भारत के लिए भविष्य की तकनीकी क्रांति का आधार बन सकती है। रूस के साथ सहयोग के जरिए भारत AI, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष मिशनों, उच्च स्तर की इंजीनियरिंग और परमाणु विज्ञान जैसे क्षेत्रों में तेज़ी से प्रगति कर सकता है। इससे न सिर्फ भारतीय अनुसंधान को मजबूती मिलेगी, बल्कि भारत आने वाली तकनीकी प्रतिस्पर्धा में आत्मनिर्भर और अग्रणी स्थिति में होगा।

रोजगार और उद्योगों के लिए अवसर (Industrial Growth & Jobs)

जब रक्षा उत्पादन, ऊर्जा परियोजनाएं और तकनीकी उद्यम भारत में स्थापित होते हैं, तो उनका सबसे बड़ा लाभ भारतीय उद्योगों और युवाओं को मिलता है। रूस के साथ संयुक्त परियोजनाएं, भारतीय इंजीनियरों, स्टार्टअप्स, मजदूरों और MSME सेक्टर के लिए नए रोजगार, कौशल-विकास और उद्योग स्थापित करने का अवसर देती हैं। इससे स्थानीय विनिर्माण क्षमता बढ़ेगी, विदेशी निवेश आएगा और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

खाद्य सुरक्षा और कृषि सहयोग (Food & Agriculture Cooperation)

रूस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देशों में से एक है, और भारत के लिए कृषि सहयोग एक व्यावहारिक लाभ के रूप में उभर रहा है। रूस से खाद्य निर्यात, उर्वरक आपूर्ति और कृषि तकनीक प्राप्त होने से भारत की कृषि प्रणाली अधिक मजबूत होगी। इससे खाद्य कीमतों में स्थिरता आएगी और किसानों को बेहतर तकनीक और बाज़ार मिलेंगे।

व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा- रणनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक मोड़

पुतिन की भारत यात्रा केवल प्रतीकात्मक राजनयिक मुलाकात नहीं, बल्कि भारत के भविष्य के लिए रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से गहरी महत्ता रखने वाला मोड़ है। यह साझेदारी आज के भू-राजनीतिक माहौल में भारत को आत्मनिर्भरता, सुरक्षा, आर्थिक विस्तार और वैश्विक प्रभाव के नए आयाम प्रदान करती है। पुतिन की भारत यात्रा ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि भारत ना सिर्फ एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है बल्कि एक वैश्विक संतुलनकर्ता राष्ट्र भी है। यह दौरा भारत-रूस संबंधों के स्वर्णिम अध्याय का पुनर्लेखन है और वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका का प्रमाण भी!
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