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August 2, 2025

पुणे में डॉक्टरों ने दुर्लभ सर्जरी कर कछुए की बचाई जान, निकाले चार अंडे

The CSR Journal Magazine
पुणे स्थित स्मॉल अ‍ॅनिमल क्लिनिक के डॉक्टरों ने एक अनोखा और जटिल ऑपरेशन करके एक मादा कछुए की जान बचा ली। “श्री” नाम की यह रेड-ईयर्ड स्लाइडर प्रजाति की कछुआ लंबे समय से एग-बाइंडिंग सिंड्रोम से पीड़ित थी। सर्जरी के जरिए उसके पेट से चार अंडे सुरक्षित निकाले गए। यह सर्जरी भारत में अब तक किए गए गिने-चुने लेप्रोस्कोपिक कछुआ ऑपरेशनों में से एक है।

लेप्रोस्कोपिक तकनीक से बिना खोल काटे हुआ ऑपरेशन, देश में गिने-चुने मामलों में शामिल

श्री पिछले दो महीनों से सुस्त हो गई थी, खाना नहीं खा रही थी और लगातार अंडे देने की कोशिश कर रही थी। लेकिन अंडे बाहर नहीं आ रहे थे जिससे वह शारीरिक रूप से कमजोर होती जा रही थी। उसे सोमाटणे गांव के मिस्टर और मिसेज नामदेव क्लिनिक लेकर पहुंचे। जांच में सामने आया कि कछुए के पेट में अंडे फंसे हुए हैं, उसका लिवर बढ़ गया है और खून में हीमोग्लोबिन की भी भारी कमी है।

लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से मिली राहत

पशु सर्जन डॉ. नरेंद्र परदेशी के नेतृत्व में 21 जुलाई 2025 को श्री का ऑपरेशन किया गया। उन्होंने बताया कि पहले दवा देकर अंडे बाहर निकालने की कोशिश की गई, लेकिन जब इससे राहत नहीं मिली, तब लेप्रोस्कोपिक तकनीक से सर्जरी का निर्णय लिया गया। डॉ. परदेशी ने कहा, “हमने उसके पीछे के पैर के पास छोटा सा चीरा लगाकर पेट के अंदर फंसे चार अंडे निकाले। अच्छी बात यह रही कि हमें उसका शेल (कवच) काटना नहीं पड़ा, जिससे उसकी रिकवरी तेज हुई।”

तकनीकी बारीकियां, सटीक निगरानी और सुरक्षित ऑपरेशन

ऑपरेशन के दौरान श्री को सावधानीपूर्वक एनेस्थीसिया दिया गया। उसका वजन 1.5 किलोग्राम था, और शरीर के महत्वपूर्ण संकेतों को BP डॉप्लर और SPO2 सेंसर से मॉनिटर किया गया। शरीर का तापमान बनाए रखने के लिए उसके नीचे हीटिंग पैड भी लगाया गया। डॉक्टरों ने विशेष ध्यान रखा कि कोई इन्फेक्शन न हो और सर्जरी के तुरंत बाद वह होश में आ गई।

शेल कटने से बची, संक्रमण का खतरा टला

डॉ. परदेशी ने बताया, “आमतौर पर ऐसी स्थिति में शेल काटना पड़ता है जो जोखिम भरा होता है क्योंकि शेल को ठीक होने में 6-8 महीने लग जाते हैं। इस दौरान पानी में रहने वाले कछुए के लिए यह स्थिति संक्रमण की आशंका बढ़ा देती है। लेकिन हमारी सर्जरी में यह समस्या नहीं आई।”

इलाज के बाद ‘श्री’ की वापसी, भावुक हुए मालिक

ऑपरेशन के बाद श्री को 3 से 5 दिनों तक इंजेक्शन और दवाएं दी गईं। अब वह पूरी तरह स्वस्थ है, खाना खा रही है, टैंक में घूम रही है और एक्टिव हो गई है। श्री की मालकिन मिसेज नामदेव ने भावुक होते हुए कहा, “उसे दर्द में देखना और उसे ठीक से खाना या चलना न आते देखना हमारे लिए बहुत डरावना था। क्लिनिक की टीम ने हर चीज हमें समझाकर बहुत ही सहानुभूति से इलाज किया। अब वह फिर से खाने लगी है, ऐसा लग रहा है जैसे हमारी श्री वापस लौट आई है।” उनके पति ने कहा, “श्री हमेशा हमारी फैमिली का हिस्सा रही है। हम डॉ. परदेशी और उनकी टीम के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने श्री को नई जिंदगी दी।”

क्या होता है एग-बाइंडिंग सिंड्रोम? क्यों खास है यह ऑपरेशन?

Egg Binding Syndrome एक गंभीर स्थिति होती है, जब मादा कछुआ अंडे देने में असमर्थ होती है। यह स्थिति हार्मोनल असंतुलन, कैल्शियम की कमी, तापमान में बदलाव, तनाव या डाइट की गड़बड़ी से हो सकती है। यदि समय रहते इलाज न किया जाए तो यह जानलेवा बन सकती है। भारत में कछुए पर की गई गिनी-चुनी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में से एक, शेल को काटे बिना सफल ऑपरेशन, पोस्ट-ऑपरेटिव रिकवरी तेज, इन्फेक्शन का खतरा न के बराबर, वन्य जीव चिकित्सा की दिशा में नई मिसाल

पशु चिकित्सकों के लिए बड़ी उपलब्धि

इस ऑपरेशन ने पशु चिकित्सा क्षेत्र में माइक्रो सर्जरी और लेप्रोस्कोपी की उपयोगिता को सिद्ध किया है, विशेषकर उन जानवरों में जिनकी शारीरिक संरचना जटिल होती है। यह घटना पशु चिकित्सकों और पशु प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा बन सकती है। यह कहानी हमें बताती है कि चिकित्सा विज्ञान और मानवीय संवेदना मिलकर हर जीव की जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं – फिर चाहे वह एक छोटा कछुआ ही क्यों न हो। श्री की कहानी एक संदेश है हर जीवन कीमती है।
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