सरकारी बैंकों यानी Public Sector Banks (PSBs) में लगातार बढ़ रहे Loan Write Off ने एक बार फिर गंभीर बहस छेड़ दी है। पुणे के बिजनेसमैन प्रफुल्ल सारडा ने संसद में पेश ताज़ा आंकड़ों और अपनी RTI के आधार पर बड़े पैमाने पर हो रहे कर्ज राइट-ऑफ को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि अगर इतनी बड़ी रकम Write-Off हो रही है, तो इसका जवाब कौन देगा?
PSBs ने 6.15 लाख करोड़ रुपये का कर्ज राइट-ऑफ किया
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच वित्तीय वर्षों और FY 2025–26 के सिर्फ पहले छह महीनों में PSBs ने कुल ₹6,15,647 करोड़ का कर्ज राइट-ऑफ कर दिया। यह रकम इतनी बड़ी है कि इससे कई राज्यों का वार्षिक बजट तैयार हो सकता है। आम भाषा में समझें तो Write-Off का मतलब है कि बैंक उस कर्ज को अपनी बुक से हटा देते हैं, लेकिन वसूली की कोशिश जारी रहती है।
RTI में चौंकाने वाला खुलासा
सारडा को मिली RTI जानकारी के अनुसार, 2014 से सितम्बर 2024 के बीच PSBs, निजी बैंकों और सहकारी बैंकों ने मिलकर ₹16.61 लाख करोड़ का कर्ज राइट-ऑफ किया। हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी रकम में से वसूली हुई सिर्फ ₹2,68,795 करोड़, यानी अब भी करीब ₹13,92,495 करोड़ बैंक वसूल नहीं कर पाए हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि Banking Sector में NPA Crisis कितना गहरा हो चुका है।
सारडा बोले–बिना जवाबदेही के Write-off जनता के साथ धोखा
प्रफुल्ल सारडा ने कहा कि जब तक बैंक अधिकारियों की जिम्मेदारी तय नहीं की जाएगी, तब तक ये Write-Off और बढ़ते ही रहेंगे। उनका कहना है कि लापरवाही, गलत निर्णय या जानबूझकर किए गए गलत कर्ज अनुमोदनों की कीमत देश की जनता क्यों चुकाए? उन्होंने मांग की कि ऐसे नियम बनाए जाएं कि देश के बड़े Defaulters जैसे नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, ललित मोदी और विजय माल्या विदेश न भाग सकें।
किसानों को कर्ज माफी मुश्किल, कॉरपोरेट्स के लिए आसान?
सारडा ने सरकार पर सीधा सवाल उठाते हुए कहा कि एक किसान अगर ₹50,000 की कर्ज माफी के लिए तरसता है, संघर्ष करता है, तो बड़े कॉरपोरेट्स के ₹50,000 करोड़ तक के कर्ज कैसे आसानी से माफ हो जाते हैं? उन्होंने कहा कि यह दोहरी नीति न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि जनता का विश्वास भी तोड़ने वाली है। यह मामला अब तेजी से National Debate का हिस्सा बन रहा है और लोग जानना चाहते हैं कि आखिर ये विशाल रकम गई कहां, और कब तक बैंकिंग व्यवस्था ऐसे ही चलता रहेगा।
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