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November 5, 2025

POCSO अदालत का ऐतिहासिक फैसला- मां और प्रेमी को 12 वर्षीय बेटी के यौन शोषण मामले में सुनाई 180 साल की सज़ा

The CSR Journal Magazine
केरल मलप्पुरम की मंजेरी POCSO अदालत ने सुनाया कड़ा निर्णय, 12 वर्षीय बालिका के साथ कई बार दुष्कर्म में मां और प्रेमी दोषी पाए गए ! न्यायालय ने कहा “यह मानवता के विरुद्ध अपराध है”
POCSO का ऐतिहासिक फैसला
केरल की मंजेरी स्थित विशेष POCSO (Protection of Children from Sexual Offences)अदालत ने बुधवार को एक अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए एक मां और उसके प्रेमी को कुल 180 वर्ष की कैदकी सज़ा सुनाई है। दोनों को 12 वर्षीय नाबालिग बच्ची के साथ कई बार यौन शोषण करने का दोषी पाया गया। अदालत ने कहा कि यह अपराध “मां के मातृत्व और मानवता, दोनों पर कलंक” है। यह फैसला न केवल केरल बल्कि पूरे देश में बाल संरक्षण कानूनों की कठोरता का प्रतीक माना जा रहा है।

12 वर्षीय मासूम के साथ घटी भयावह घटना

मामला मलप्पुरम जिले के एक गांव का है, जहां एक 12 वर्षीय बच्ची के साथ उसकी ही मां और मां के प्रेमी ने लंबे समय तक यौन शोषण किया। अभियोजन के अनुसार, मां का प्रेमी अक्सर घर आता था और बच्ची को डर व धमकी देकर कई बार उसकी इज़्ज़त लूटी। मां ने न केवल इस पर चुप्पी साधी, बल्कि कई बार स्वयं भी इस अपराध में उसका साथ दिया। बालिका ने कुछ समय बाद स्कूल में अपने शिक्षक को सारी बात बताई। स्कूल प्रशासन ने तुरंत Childline और पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।

अदालत ने कहा-‘Rarest Of Rare’ मामला

जांच के दौरान, पुलिस ने चिकित्सा रिपोर्ट, बालिका का बयान, और डिजिटल सबूतों के आधार पर केस को मजबूत बनाया। अदालत ने दोनों आरोपियों को दोषी मानते हुए कहा कि यह मामला “अत्यंत क्रूर और असामान्य अपराध” की श्रेणी में आता है।विशेष न्यायाधीश ने कहा, “एक मां, जो अपने बच्चे की सुरक्षा की पहली दीवार होती है, वही यदि अपराध में शामिल हो जाए तो यह समाज के लिए सबसे बड़ा आघात है।”

180 साल की सज़ा कैसे तय हुई

अदालत ने दोनों को विभिन्न धाराओं के तहत सज़ा सुनाई-
POCSO Act की कई धाराओं,
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार),
धारा 506 (धमकी),
• तथा धारा 109 (सहायता व साजिश) के तहत दोषी ठहराया गया। हर अपराध के लिए अलग-अलग सज़ा तय की गई, जो मिलाकर कुल 180 वर्ष की कैद बनी। हालांकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि दोनों को आजीवन कारावास भुगतना होगा, अर्थात वे अपने जीवन का शेष भाग जेल में गुज़ारेंगे।

बालिका के पुनर्वास के लिए निर्देश

अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि पीड़िता को विशेष काउंसलिंग, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, और शिक्षा के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाए। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि समाज को ऐसी घटनाओं को केवल “समाचार” की तरह न देखकर, जागरूकता और रोकथाम की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

POCSO कानून की कठोरता का उदाहरण

POCSO कानून, जिसे 2012 में लागू किया गया था, का उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करना है। मंजेरी अदालत का यह फैसला इस बात का उदाहरण है कि जब अपराधी “परिवार के भीतर” से हो, तब भी कानून किसी को नहीं छोड़ता।बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह फैसला “न्यायपालिका की दृढ़ता और संवेदनशीलता” को दर्शाता है। केरल महिला आयोग ने इस सज़ा का स्वागत करते हुए कहा कि यह भविष्य में ऐसे मामलों के लिए कड़ा संदेश साबित होगा।

समाज के लिए संदेश

यह मामला केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि समाज के लिए चेतावनी है कि बाल संरक्षण केवल कानून की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है। शिक्षकों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों को ऐसे मामलों में सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि बच्चे अक्सर डर के कारण सच नहीं कह पाते। मंजेरी POCSO अदालत का यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में एक ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक निर्णयमाना जाएगा। यह केवल दो अपराधियों की सज़ा नहीं, बल्कि उस मौन समाज की चेतावनी है, जो अक्सर बच्चों की पीड़ा को अनदेखा कर देता है। जैसा कि न्यायाधीश ने कहा, “जब मां ही रक्षक की जगह भक्षक बन जाए, तब समाज का नैतिक दायित्व है कि वह हर बच्चे को अपनी संतान समझे।”

बचपन की रक्षा – “समाज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी”

केरल के मंजेरी में विशेष POCSO अदालत द्वारा एक मां और उसके प्रेमी को 180 वर्ष की सज़ा सुनाने का फैसला न केवल न्याय का उदाहरण है, बल्कि समाज के नैतिक पतन पर गहरी चोट भी है। यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब एक मां, जो अपने बच्चे की पहली संरक्षक होती है, वही अपराध में सहभागी बन जाए, तो हम किस दिशा में जा रहे हैं? बचपन हर समाज की सबसे बड़ी पूंजी है। लेकिन आज के समय में यह पूंजी लगातार असुरक्षित होती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि देश में हर घंटे किसी न किसी बच्चे के साथ यौन अपराध होता है। कई बार यह अपराध घर की दीवारों के भीतर, रिश्तों के नकली साये में छिपे होते हैं।

POCSO ने दी बच्चों को सुरक्षा की ढाल

POCSO कानून ने बच्चों को न्याय का अधिकार और सुरक्षा की ढाल दी है, परंतु केवल कानून पर्याप्त नहीं है। समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। शिक्षकों, पड़ोसियों, परिजनों और प्रशासन, सभी को यह जिम्मेदारी लेनी होगी कि कोई भी बच्चा भय, चुप्पी और शर्म के कारण पीड़ा में न रहे। यह भी जरूरी है कि हम बच्चों को ‘Good Touch- Bad Touch’, आत्मरक्षा और अपनी बात कहने का साहस सिखाएं। स्कूलों और परिवारों में संवाद की संस्कृति बने, ताकि बच्चा असुरक्षा महसूस करे तो तुरंत बोल सके। मंजेरी अदालत का यह फैसला उन तमाम अपराधियों के लिए चेतावनी है जो यह सोचते हैं कि बच्चों की आवाज़ कभी अदालत तक नहीं पहुंचेगी। न्याय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बचपन से बड़ा कोई कानून नहीं, और उसकी सुरक्षा से बड़ी कोई प्राथमिकता नहीं।
समय आ गया है कि हम सब मिलकर यह प्रतिज्ञा लें – ‘हर बच्चा सुरक्षित हो, हर मां सच में मां बनी रहे, और हर घर बच्चों के लिए एक आश्रय हो, न कि डर का अंधेरा !’
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