A Sustainability Linked Loan (SLL) differs from ordinary green loans in the sense that they can be used for general corporate purposes rather than for a specific purpose
आखिरकार कृषि कानून को केंद्र सरकार ने वापस ले लिया है। गुरु नानक जयंती के ख़ास अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने का एक बड़ा फैसला लिया है। जिनकी वजह से लगभग साल भर से देश के कई हिस्सो में किसान प्रदर्शन कर रहे थे। उन्हीं कृषि कानूनों को सरकार ने निरस्त करने का फैसला ले लिया है। प्रदर्शनकारी किसानों के हक में लिए गए फैसले की जानकारी खुद प्रधानमंत्री ने दी है। देश के नाम संबोधन में शुक्रवार को पीएम मोदी ने देशवासियों से माफी मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया और कहा कि उनकी तपस्या में ही कुछ कमी रह गई होगी, जिसकी वजह से कुछ किसानों को उनकी सरकार समझा नहीं पाई और अंत में यह कानून वापस लेना पड़ा।
कृषि कानून रद्द, किसान संगठनों ने किया स्वागत, लेकिन आंदोलन नहीं हुआ खत्म
सरकार बड़ा दिल दिखाते हुए ये तो बात मान रही है कि उनकी सरकार ने किसानों को कृषि कानून की अच्छाईयां नहीं समझा पायी लेकिन विपक्ष सरकार की नाकामी और इलेक्शन से पहले इसे चुनावी स्टंट मान रही है वहीं किसान मोर्चा यह कह रही है कि जिस तरह से संसद में पास कर कृषि कानून को अमल में लाया गया था। ठीक उसी तरह इस कानून को रद्द करने के लिए संसद का रास्ता अपनाते हुए केंद्र सरकार को कानून रद्द करना चाहिए। पिछले 11 महीनों से लगातार किसान इस कृषि बिल को रद्द करने को लेकर आंदोलन कर रहे है। कई बार ये आंदोलन हिंसक भी रहा।
महीनों चला कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन, 700 किसानों की मौत, जिम्मेदार क्यों
कृषि कानून को रद्द करने के लिए किसान 11 महीने से आंदोलन कर रहे थे। एक आकड़ों की माने तो इस दौरान करीब 700 किसानों की मौत हो गई। 11 महीनों तक चलने वाले इतने बड़े पैमाने का आंदोलन देश ने पहली बार देखा। आम आदमी और एक आम किसान की एकजुटता और उनकी एकता के सामने केंद्र सरकार ने यू टर्न ले लिया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल कि उन 700 परिवारों का क्या होगा जो इस आंदोलन में अपनी जान गवां दी, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया। सरकार ने तो माफ़ी मान ली लेकिन सामाजिक जिम्मेदारी लेगा कौन।
कानून कई, समितियां कई, लेकिन किसान की हालत जस के तस
कृषि कानून को भले ही रद्द कर दिया गया लेकिन कई सवाल भी राजनीतिक पंडित पूछ रहे है। क्या यूपी चुनाव में हार के डर से फैसला लिया गया? क्या सरकार ने किसानों की सुध बहुत देर से ली? सरकार ने अपनी गलती को सुधारा या पीएम मोदी का ये कोई मास्टर स्ट्रोक है? यहां सामाजिक जिम्मेदारी फिक्स होनी चाहिए। सरकार की तरफ से भी और आंदोलनकारियों की भी तरफ से। बहरहाल कृषि कानून को जब लागू किया गया था तब इसकी खूबियां खुद सरकार और मंत्रिमंडल ने गिनवाए लेकिन ये कानून भी किसानों की भलाई नहीं कर पाया। किसानों की आय दोगुनी करने और उनके उत्थान के लिए कई कानून बनें, समितियां बनी, सिफारिशें आयी लेकिन किसान की हालात जस के तस है।