स्वीडन को दुनिया के सबसे साफ़-सुथरे और पर्यावरण के प्रति सजग देशों में गिना जाता है। इसी देश से जुड़ी एक खबर ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा, जिसमें दावा किया गया कि वहां कौओं को मशीनों की मदद से कचरा उठाने के बदले खाना दिया जा रहा है। इस विचार को लेकर सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हुई और कहा गया कि इससे शहर साफ़ हो गए। लेकिन इस ख़बर की सच्चाई कुछ और ही है।
स्वीडन में पर्यावरण के लिए अनोखी सोच, लेकिन पूरी कहानी जानना ज़रूरी
स्वीडन से जुड़ी एक अनोखी खबर ने दुनिया भर में चर्चा बटोरी। दावा किया गया कि वहां कौओं को मशीनों की मदद से सड़कों पर पड़ा कचरा उठाने के बदले खाना दिया जा रहा है और इससे शहर साफ़ हो गए हैं। इस खबर ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या भविष्य में इंसान के साथ-साथ जानवर भी शहरों की सफ़ाई में भूमिका निभा सकते हैं। दरअसल यह कहानी कौओं की असाधारण बुद्धिमत्ता से जुड़ी है। कौए चीज़ों को पहचानने, याद रखने और इनाम के बदले नया काम सीखने में माहिर माने जाते हैं। इसी गुण को ध्यान में रखते हुए यह विचार सामने आया कि अगर कौओं को सही तरीके से प्रशिक्षित किया जाए, तो वे छोटे कचरे, खासकर सिगरेट के टुकड़े, उठाकर एक विशेष मशीन में डाल सकते हैं।
A Swedish company is training crows to pick up cigarette ends, paying the birds with food
— Science girl (@sciencegirl) September 7, 2025
इंसानी सोच की पराकाष्ठा
इस योजना के तहत मशीनों में ऐसा इंतज़ाम सोचा गया था कि जैसे ही कौआ कचरा डाले, उसे खाने का छोटा हिस्सा मिल जाए। उद्देश्य यह था कि इससे सड़कों पर फैले छोटे-छोटे कचरे में कमी आए और सफ़ाई पर होने वाला खर्च भी घटे। हालांकि, यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि यह कोई पूरे देश या शहर में लागू की गई व्यवस्था नहीं थी। यह केवल एक सीमित स्तर का प्रयोग और प्रस्ताव था, जिसे बड़े पैमाने पर अमल में नहीं लाया गया। बावजूद इसके, इस विचार ने यह ज़रूर दिखा दिया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सोच कितनी अलग और रचनात्मक हो सकती है।
प्रकृति के साथ सहयोग या नई उलझन?
स्वीडन की कौओं वाली कहानी आज के समय की सोच को दर्शाती है, जहां इंसान पर्यावरण की समस्याओं का हल पारंपरिक तरीकों से बाहर निकलकर खोज रहा है। यह विचार अपने आप में आकर्षक है कि पक्षियों की बुद्धिमत्ता का उपयोग शहरों को साफ़ रखने के लिए किया जाए। यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति केवल समस्या नहीं, समाधान का हिस्सा भी हो सकती है। लेकिन हर नवाचार के साथ सवाल भी आते हैं। क्या जानवरों को इंसानी लापरवाही की कीमत चुकाने वाला बना देना सही है? क्या कचरे के संपर्क में आना उनके स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है? और क्या ऐसे प्रयोग भविष्य में व्यवहारिक और नैतिक दोनों स्तरों पर टिक पाएंगे?
सोशल मीडिया की नैतिकता पर सवाल
यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि सोशल मीडिया पर फैली हर चमकदार खबर पूरी तरह सच नहीं होती। विचार और प्रयोग के बीच, और प्रयोग व व्यवहारिक नीति के बीच बड़ा अंतर होता है। स्वीडन का उदाहरण एक सफल व्यवस्था से ज़्यादा एक चेतावनी है कि समाधान खोजते समय संतुलन और ज़िम्मेदारी बेहद ज़रूरी है। अंततः, असली सफ़ाई की शुरुआत मशीनों या पक्षियों से नहीं, बल्कि इंसान की आदतों से होती है। अगर हम कचरा फैलाना बंद कर दें, तो न कौओं को काम पर लगाना पड़ेगा और न ही प्रकृति को हमारे प्रयोगों का बोझ उठाना पड़ेगा।
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