Parth Ajit Pawar Land Scam: सत्ता, जमीन और सौदेबाज़ी की नई कहानी उजागर, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार के बेटे पार्थ पवार के जमीन घोटाले का क्या है मामला?
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर विवादों में है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे पार्थ पवार (Parth Pawar) पर अब सरकारी ज़मीन को सस्ते दाम पर खरीदने का आरोप लगा है। यह मामला पुणे के कोरेगांव पार्क और मुंधवा इलाके से जुड़ा है, जहां लगभग 40 एकड़ सरकारी जमीन सिर्फ ₹300 करोड़ में एक निजी कंपनी Amadeya Enterprises LLP को बेची गई। जबकि उसकी वास्तविक बाजार कीमत ₹1,804 करोड़ रुपये बताई जा रही है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस सौदे में ₹21 करोड़ रुपये की स्टाम्प ड्यूटी पूरी तरह माफ कर दी गई और कंपनी ने सिर्फ ₹500 रुपये देकर रजिस्ट्री पूरी कर ली।
कंपनी में पार्थ पवार भी भागीदार
Parth Pawar Company Amadeya Enterprises LLP: सूत्रों के मुताबिक, इस सौदे से जुड़ी कंपनी Amadeya Enterprises LLP में पार्थ पवार भी साझेदार हैं। दूसरे प्रमुख भागीदार का नाम दिग्विजय पाटिल बताया जा रहा है। यह कंपनी अप्रैल 2024 में बनी थी और उसके पास शुरुआत में सिर्फ ₹1 लाख की पूंजी थी। बावजूद इसके, कंपनी ने करोड़ों की जमीन के लिए प्रस्ताव दिया और मंजूरी भी हासिल कर ली।
21 करोड़ की स्टाम्प ड्यूटी ‘माफ’ कैसे हुई?
Pune Land Deal Parth Pawar Controversy: आरोप है कि स्टाम्प ड्यूटी माफ करने का आदेश सौदा होने के सिर्फ दो दिन बाद जारी किया गया। सरकारी फाइलें इतनी तेज़ी से आगे बढ़ीं कि विपक्ष ने इसे रॉकेट स्पीड पर मंजूर हुआ घोटाला कह दिया। RTI कार्यकर्ता विजय कुंभार ने खुलासा किया है कि 40 एकड़ ज़मीन पर सिर्फ 500 रुपये की स्टाम्प ड्यूटी ली गई, जबकि असल में सरकार को ₹21 करोड़ मिलने चाहिए थे।
सरकारी ज़मीन को निजी कंपनी को बेचने पर सवाल
राजस्व विभाग के दस्तावेज़ों के अनुसार, यह ज़मीन महार वतन के तहत दर्ज है यानी सरकारी स्वामित्व की। नियमों के मुताबिक, इस तरह की जमीन किसी निजी फर्म को नहीं बेची जा सकती। फिर भी यह डील न सिर्फ हुई, बल्कि रजिस्ट्री भी दर्ज कर ली गई।
Maharashtra CM Devendra Fadnavis ने दिए जांच के आदेश
Maharashtra Land Scam: मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे गंभीर मामला बताया है। उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया यह मामला बेहद गंभीर लगता है। मैंने राजस्व विभाग से पूरी रिपोर्ट मांगी है और जांच के आदेश दे दिए हैं। राजस्व विभाग ने अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास खरगे की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है, जो यह पता लगाएगी कि यह सौदा किन शर्तों पर किया गया और स्टाम्प ड्यूटी माफी कैसे दी गई।
Parth Ajit Pawar Land Scam: तहसीलदार सूर्यकांत येवले निलंबित
मामला उजागर होते ही पुणे के तहसीलदार सूर्यकांत येवले को निलंबित कर दिया गया है। पुलिस और राजस्व विभाग अब यह जांच कर रहे हैं कि क्या इस पूरे सौदे में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत थी। हालांकि, येवले का कहना है कि उन्हें अभी तक निलंबन का पत्र नहीं मिला है।
विपक्ष का हमला, पावर में बैठे लोग खुद नियम तोड़ रहे हैं
विपक्ष ने इस मामले में सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा कि अजित पवार किसानों को कहते हैं कि मुफ्तखोरी बंद करो, लेकिन उन्होंने अपने बेटे के लिए मुफ्त जमीन और टैक्स माफी सुनिश्चित की है। उन्होंने इस डील की न्यायिक जांच (Judicial Inquiry) की मांग की और कहा कि यह कानून के उल्लंघन का साफ मामला है। वहीं RTI कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने भी इस जमीन सौदे की शिकायत 11 नवंबर तक राजस्व मंत्री को देने की बात कही है। शिवसेना (UBT) का आरोप है कि एक लाख रुपये की पूंजी से 1800 करोड़ की डील कैसे हो सकती है। शिवसेना (UBT) नेता अंबादास दानवे ने आरोप लगाया कि कंपनी ने सिर्फ 27 दिनों में सौदा पूरा कर लिया, जबकि सामान्य प्रक्रिया में महीनों लगते हैं। कंपनी की पूंजी एक लाख रुपये थी, और उसने ₹1800 करोड़ की सरकारी जमीन खरीद ली यह सीधे-सीधे सत्ता का दुरुपयोग है।
Parth Ajit Pawar Land Scam: अब सबसे बड़ा सवाल, सत्ता के असर से हुआ फायदा?
पूरा मामला यह दिखाता है कि सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों के लिए सरकारी नियम कितने लचीले हो जाते हैं। सिर्फ 27 दिनों में फाइल पास होना, 21 करोड़ की ड्यूटी माफी, और सरकारी जमीन का निजी स्वामित्व में आना यह सब एक गंभीर Conflict of Interest को दर्शाता है। विपक्ष का कहना है कि अगर जांच निष्पक्ष हुई, तो यह मामला महाराष्ट्र का अगला बड़ा लैंड स्कैम साबित हो सकता है। महाराष्ट्र सरकार के लिए यह मामला केवल पार्थ पवार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह राजनीति, कारोबार और सत्ता की मिलीभगत की नई कहानी बन सकता है। अगर आरोप सही साबित होते हैं, तो यह सौदा राज्य की भ्रष्टाचार-रोधी नीति पर बड़ा सवाल खड़ा करेगा। फिलहाल जांच शुरू हो चुकी है — लेकिन महाराष्ट्र की जनता अब यही पूछ रही है: क्या सत्ता में बैठे लोग अपने प्रभाव से ज़मीन भी “सस्ता सौदा” बना सकते हैं?
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