गुजरात का पालीताणा, भारत का पहला ‘शुद्ध शाकाहारी’ शहर ! जैन धर्म की आस्था और स्थानीय जनआंदोलन से मिली प्रेरणा ! पालीताणा ने यह सिद्ध कर दिया है कि धार्मिक आस्था, सामाजिक सहमति और प्रशासनिक इच्छाशक्ति के मेल से कोई भी शहर अपनी पहचान को नए रूप में गढ़ सकता है। आज पालीताणा भारत के “आध्यात्मिक पर्यटन” का केंद्र बन चुका है, जहां श्रद्धा के साथ-साथ पर्यावरण और नैतिक जीवनशैली का संदेश भी दिया जाता है। अब अन्य शहरों में भी उठने लगी है मांस पर प्रतिबंध लगाने की मांग
शुद्ध शाकाहारी क्षेत्र पालीताणा बन रहा रोल मॉडल
पालीताणा भारत की सभ्यता का मूल सूत्र हमेशा से “अहिंसा परमो धर्मः” रहा है। यह केवल एक धार्मिक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक गहन दृष्टि है। जब गुजरात के पालीताणा शहर ने स्वयं को “शुद्ध शाकाहारी नगर” घोषित किया, तो यह कदम केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं था। यह उस भारतीय आत्मा की पुनःस्थापना थी जो करुणा, संयम और सहअस्तित्व में विश्वास रखती है। भारत में पहली बार किसी शहर ने आधिकारिक रूप से “शुद्ध शाकाहारी नगर” का दर्जा हासिल किया है। गुजरात के भावनगर जिले में स्थित पालीताणा शहर ने यह ऐतिहासिक पहचान 2014 में पाई थी, जब यहां मांस, मछली और अंडे की बिक्री, खरीद व सेवन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। अब दस साल बाद, पालीताणा का यह मॉडल देश के अन्य हिस्सों में भी चर्चा का विषय बन गया है, और कई नगरपालिकाएं इस दिशा में कदम बढ़ाने पर विचार कर रही हैं।
कैसे बना पालीताणा ‘शुद्ध शाकाहारी’ शहर’
पालीताणा जैन धर्म का विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यहां शत्रुंजय पर्वत पर 900 से अधिक जैन मंदिर स्थित हैं, जिनमें से कई 11वीं सदी के हैं। जैन साधुओं और श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है। वर्ष 2014 में लगभग 200 जैन साधु-संतों ने 200 किलोमीटर की ‘आस्था यात्रा’ की और शासन से मांग की कि इस पवित्र स्थल पर मांसाहार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। उनकी मांग पर स्थानीय प्रशासन ने जनभावनाओं को देखते हुए पालीताणा नगर पालिका क्षेत्र में मांस, मछली और अंडे की बिक्री, वध और सेवन पर स्थायी रोक लगा दी। इस निर्णय के बाद यहां के होटल, ढाबे और रेस्तरां केवल शाकाहारी भोजन परोसते हैं। यहां तक कि अंडे का उपयोग करने वाले व्यंजन भी नहीं बनाए जाते।
स्थानीय लोगों का समर्थन और विरोध
शुरुआत में कुछ मछुआरे समुदायों और गैर-शाकाहारी परिवारों ने विरोध किया, क्योंकि उनकी आजीविका मछली और मांस की बिक्री पर निर्भर थी। हालांकि प्रशासन ने उन्हें वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराए और समय के साथ शहर ने इस निर्णय को अपनी पहचान बना लिया। पालीताणा ने इस चुनौती का समाधान वैकल्पिक रोजगार देकर किया। मछुआरों और मांस विक्रेताओं को सब्जी, डेयरी, हस्तशिल्प और तीर्थ-पर्यटन से जोड़ा गया। इससे शहर में न केवल धार्मिक पर्यटन बढ़ा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा मिली। आज पालीताणा न केवल जैनों का तीर्थस्थल है बल्कि “शुद्ध शाकाहारी जीवनशैली” का प्रतीक भी बन गया है।
वैकल्पिक रोज़गार की मुख्य पहलें
पालीताणा में डेयरी उत्पादन और दुग्ध वितरण को बढ़ावा दिया गया। फल, सब्जी और अनाज मंडियों का विस्तार किया गया। स्थानीय युवाओं को “तीर्थ पर्यटन गाइड” और “शाकाहारी होटल प्रबंधन” में प्रशिक्षण दिया गया। कुछ ने हस्तशिल्प और धार्मिक स्मृति चिह्नों के कारोबार में कदम रखा।परिणामस्वरूप, आज पालीताणा की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा तीर्थ पर्यटन और शाकाहारी आतिथ् य उद्योग से संचालित होता है।
देश के अन्य स्थान जहां मांस पर आंशिक या पूर्ण प्रतिबंध है
1. हरिद्वार (उत्तराखंड): गंगा तट पर बसे हरिद्वार में नगर निगम सीमा के भीतर मांस और शराब की बिक्री पर प्रतिबंध है। यह नियम धार्मिक नगरी की पवित्रता बनाए रखने के लिए लागू किया गया है।
2. ऋषिकेश (उत्तराखंड): ऋषिकेश को भी “शाकाहारी और मद्यनिषेध” क्षेत्र घोषित किया गया है। यहां किसी भी प्रकार के मांसाहारी व्यंजन, मछली, अंडे और मदिरा की बिक्री या परोसना गैरकानूनी है।
3. पुष्कर (राजस्थान): भगवान ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर होने के कारण पुष्कर में भी मांस और शराब की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित है।
4. वृंदावन और मथुरा (उत्तर प्रदेश): श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन और मथुरा में नगर निगम की सीमा के भीतर मांस और मदिरा की बिक्री पर रोक है।
5. श्रीनगर का अमरनाथ क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर): अमरनाथ यात्रा मार्ग पर भी मांसाहारी भोजन की बिक्री या सेवन की अनुमति नहीं है।
भारत में शाकाहारी आबादी की स्थिति
भारत दुनिया का सबसे बड़ा शाकाहारी देश है। 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की लगभग 38 फ़ीसदी आबादी शाकाहारी है। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में शाकाहारी जीवनशैली प्रमुख है। शाकाहारी जीवनशैली केवल धार्मिक नहीं, वैज्ञानिक भी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मांस की अत्यधिक खपत हृदय रोग, कैंसर और मोटापे जैसे रोगों से जुड़ी है। वहीं शाकाहार न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहतर है। एक रिपोर्ट बताती है कि 1 किलो गोमांस तैयार करने में लगभग 15,000 लीटर पानी लगता है, जबकि 1 किलो गेहूं के लिए मात्र 1,500 लीटर। पालीताणा का शाकाहारी मॉडल इस दृष्टि से जल-संरक्षण और पर्यावरण-संतुलन दोनों का उदाहरण है।
पालीताणा मॉडल – आध्यात्मिकता और पर्यावरण का संगम
पालीताणा का मॉडल अब भारत के अन्य पवित्र नगरों के लिए प्रेरणा बन गया है। राजस्थान के पुष्कर और उत्तराखंड के ऋषिकेश-हरिद्वार जैसे नगर पहले ही इस दिशा में अग्रसर हैं। मध्यप्रदेश के महाकालेश्वर उज्जैन और उत्तर प्रदेश के वृंदावन-मथुरा में भी ऐसे प्रस्तावों पर चर्चा चल रही है। यदि यह मॉडल सावधानीपूर्वक लागू किया जाए, स्थानीय समुदाय की भागीदारी और वैकल्पिक रोजगार के साथ, तो भारत एक ऐसे “आध्यात्मिक हरित पर्यटन” की दिशा में बढ़ सकता है जो विश्व के लिए आदर्श बने। पालीताणा का शुद्ध शाकाहारी मॉडल केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि पर्यावरणीय रूप से भी सराहा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि मांस उत्पादन में पानी, भूमि और ऊर्जा की भारी खपत होती है, जबकि शाकाहारी जीवनशैली पर्यावरण के अनुकूल है। यह मॉडल बताता है कि जब स्थानीय समुदाय किसी विचार को अपनाता है, तो उसे कानून से ज़्यादा समाज का समर्थन मजबूती देता है। पालीताणा के नागरिक अब इसे अपने गौरव का विषय मानते हैं, न कि प्रतिबंध का बोझ। पालीताणा के उदाहरण से प्रेरणा लेकर अब महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश की कुछ नगरपालिकाएं भी शाकाहारी क्षेत्र घोषित करने पर विचार कर रही हैं।
नैतिकता की नई परिभाषा
पालीताणा ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या सभ्यता का मापदंड केवल तकनीकी प्रगति है, या फिर करुणा और संवेदनशीलता भी उसका हिस्सा होनी चाहिए। जब दुनिया Sustainability और Climate Change की चिंता कर रही है, तब यह छोटा शहर एक बड़ा संदेश देता है कि नैतिकता और पर्यावरण का संगम ही मानवता का भविष्य है।
पालीताणा की कहानी हमें सिखाती है कि परिवर्तन हमेशा किसी आंदोलन या विरोध से नहीं, बल्कि आस्था, संवाद और सामूहिक संकल्प से भी संभव है। एक ऐसा शहर जिसने अहिंसा को शासन, शाकाहार को संस्कृति और करुणा को नीति बना दिया, वह वास्तव में आधुनिक भारत का एक उज्जवल प्रतीक है। भारत के हर धार्मिक नगर को पालीताणा से प्रेरणा लेनी चाहिए कि आध्यात्मिकता केवल मंदिरों की दीवारों में नहीं, बल्कि जीवन के हर कण में बस सकती है, यदि समाज उसे अपनाने को तैयार हो।
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