Thecsrjournal App Store
Thecsrjournal Google Play Store
April 24, 2025

Pahalgam Attack: पाकिस्तान ने तोड़ा शिमला समझौता 

Pahalgam Attack: भारत के सिंधु जल संधि Indus Water Treaty रद्द करने के बदले पाकिस्तान ने शिमला समझौते से कदम वापस खींच लिए हैं। Shimla Agreement 1972: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध  के बाद 02 जुलाई 1972 के दिन हिमाचल प्रदेश के शिमला में इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। पाकिस्तान ने गुरुवार को भारत से जुड़े 1972 के शिमला समझौते को सस्पेंड कर दिया है। इसके साथ ही वाघा बॉर्डर बंद कर दिया गया है, भारत से आने-जाने वाली हर तरह की आवाजाही रोक दी गई है और भारतीय विमानों के लिए हवाई क्षेत्र भी बंद कर दिया गया है। ये सब फैसले तब लिए गए हैं जब भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए—जिसमें सबसे बड़ा फैसला था Indus Water Treaty को सस्पेंड करना।
Pahalgam Attack: पहलगाम में इस्लामी आतंकियों ने 26 निर्दोषों के खून से होली खेली। यह सबपाकिस्तान के इशारे पर हुआ। भारत ने इसका सबक सिखाने के लिए पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कुछ कड़े कदम उठाए, जिससे पाकिस्तान तिलमिला उठा है।

भारत ने रोका सिंधु जल समझौता

Pahalgam Attack: सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक (CCS Meeting) में फैसला लिया गया कि पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई Indus Water Treaty को सस्पेंड किया जाए।  भारत के इस कदम से पाकिस्तान में खलबली मची हुई है। जवाबी एक्शन में पाकिस्तान ने अपना Airspace भारतीय विमानों के लिए बंद कर दिया, वाघा बॉर्डर को आवाजाही के लिए बंद कर दिया और अब शिमला समझौता भी निरस्त कर दिया है। क्या शिमला समझौता तोड़ने से पाकिस्तान को फायदा होगा और भारत को नुकसान?

क्या है Shimla Agreement

Shimla Agreement 1972: 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भारत के शिमला में एक सन्धि पर हस्ताक्षर हुए। इसे शिमला समझौता कहते हैं। इसमें भारत की तरफ से इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की तरफ से ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो शामिल थे। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी। यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री  जुल्फ़िकार अली भुट्टो अपनी पुत्री बेनजीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला पधारे। ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजारो वर्ष तक युद्ध करने की कसमें खायी थीं। 28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई,  परन्तु किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके। इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी। तभी अचानक 2 जुलाई को लंच से पहले ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया, जबकि भुट्टो को उसी दिन वापस जाना था। इस समझौते पर पाकिस्तान की ओर से भुट्टो और भारत की ओर से इन्दिरा गांधी ने हस्ताक्षर किये थे। यह समझना कठिन नहीं है कि यह समझौता करने के लिए भारत के ऊपर किसी बड़ी विदेशी ताकत का दबाव था। अपना सब कुछ लेकर पाकिस्तान ने एक खोखला सा आश्वासन भारत को दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित जितने भी विवाद हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा। लेकिन इस इकलौते आश्वासन का भी पाकिस्तान ने सैकड़ों बार उल्लंघन किया है और कश्मीर विवाद को पूरी निर्लज्जता के साथ अनेक बार अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है। वास्तव में उसके लिए किसी समझौते का मूल्य उतना भी नहीं है, जितना उस कागज का मूल्य है, जिस पर वह समझौता लिखा गया है। इस समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच यह भी तय हुआ था कि 17 दिसम्बर 1971, अर्थात पाकिस्तानी सेनाओं के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनाएं जिस स्थिति में थीं, उस रेखा को ”वास्तविक नियन्त्रण रेखा“ माना जाएगा और कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेगा। लेकिन पाकिस्तान अपने इस वचन पर भी टिका नहीं रहा। सब जानते हैं कि 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सेना ने जानबूझकर घुसपैठ की और इस कारण भारत को कारगिल में युद्ध लड़ना पड़ा।

कब हुआ था शिमला समझौता

Shimla Agreement 1972: भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता 2 जुलाई, 1972 को हुआ था। इस पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों, क्रमशः इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। यह सिंधु जल समझौते के 12वें साल हुआ। सिंधु जल संधि 19 सितंबर, 1960 को विश्व बैंक (World Bank) की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान ने साइन किया था। सिंधु जल समझौता पाकिस्तान के कराची में तो शिमला समझौता भारत के हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हुआ था।

शिमला समझौते में क्या-क्या है

Shimla Agreement 1972: भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए शिमला समझौता किया। इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना और लोगों के कल्याण के लिए काम करना है। इस समझौते के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं…
इस समझौते में बनी आपसी सहमति के तहत भारत और पाकिस्तान ने तय किया कि उनके बीच कोई भी झगड़ा, जैसे कश्मीर का मसला, आपस में बातचीत से सुलझाया जाएगा। इसमें कोई तीसरा देश, जैसे अमेरिका या संयुक्त राष्ट्र, दखल नहीं देगा।
नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान
कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच एक लाइन है, जिसे नियंत्रण रेखा कहते हैं। दोनों देशों ने वादा किया कि इस लाइन को कोई एकतरफा नहीं बदलेगा और इसका सम्मान करेंगे।
शांति बनाए रखना
दोनों देशों ने कहा कि वे एक-दूसरे के खिलाफ हिंसा, युद्ध या गलत प्रचार नहीं करेंगे। दोनों शांति से रहेंगे और अपने रिश्ते बेहतर करेंगे।
बंदियों की रिहाई और जमीन वापसी
भारत ने पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों को छोड़ा और युद्ध में कब्जाई जमीन वापस की। बदले में उस समय पाकिस्तान ने भी भारत के कुछ सैनिकों को रिहा किया था।

क्यों खास है ये समझौता

Shimla Agreement 1972: इस समझौते ने कश्मीर को द्विपक्षीय मसला बनाया और कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों, जैसे संयुक्त राष्ट्र, पर ले जाने से रोका। भारत हमेशा कहता है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का आपसी मामला है। समझौते ने तत्काल सैन्य तनाव को कम करने और दक्षिण एशिया में स्थिरता को बढ़ावा देने में योगदान दिया। युद्धविराम व्यवस्था और नियंत्रण रेखा की स्थापना ने अनियोजित सैन्य वृद्धि को रोका। 1971 के युद्ध और शिमला समझौते ने भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया। इंदिरा गांधी की दृढ़ नेतृत्व ने भारत को वैश्विक मंच पर एक गंभीर खिलाड़ी के रूप में उभारा। पाकिस्तान ने अपने युद्धबंदियों और क्षेत्रों की वापसी हासिल की, लेकिन वह कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में असफल रहा। इसके अलावा, समझौते के प्रावधानों का बार-बार उल्लंघन, जैसे नियंत्रण रेखा पर संघर्ष और आतंकवाद को प्रायोजित करना, ने इसकी विश्वसनीयता को कमजोर किया।

तो भारत को ही होगा फायदा

Shimla Agreement 1972: कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय दबाव से मुक्ति: शिमला समझौता कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बनाए रखने का आधार है। यदि पाकिस्तान इसे रद्द करता है, तो भारत यह तर्क दे सकता है कि पाकिस्तान ने स्वयं समझौते को अमान्य कर दिया, जिससे भारत को कश्मीर पर अपनी नीतियों को और मजबूत करने की स्वतंत्रता मिलेगी। भारत यह दावा कर सकता है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है, और वह बिना किसी बाहरी दबाव के इस पर निर्णय ले सकता है।
कूटनीतिक अलगाव: समझौता रद्द करना पाकिस्तान की कूटनीतिक विश्वसनीयता को और कमजोर करेगा। वैश्विक समुदाय इसे एक गैर-जिम्मेदार कदम के रूप में देखेगा, जिससे पाकिस्तान का अंतरराष्ट्रीय अलगाव बढ़ सकता है। भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में और उजागर कर सकता है।
सैन्य और रणनीतिक स्वतंत्रता: शिमला समझौते ने नियंत्रण रेखा को एक स्थायी सीमा के रूप में मान्यता दी। यदि यह रद्द होता है, तो भारत इसे एक अवसर के रूप में देख सकता है और नियंत्रण रेखा के पार, विशेष रूप से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में, अधिक आक्रामक रणनीति अपना सकता है। भारत PoK में विकास परियोजनाओं को बढ़ावा दे सकता है या वहां के लोगों के साथ सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है।
चीन के साथ संबंधों पर प्रभाव: शिमला समझौता रद्द होने से भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) जैसे प्रोजेक्ट्स पर और सवाल उठाने का मौका मिलेगा, क्योंकि ये PoK से होकर गुजरते हैं। भारत इसे अपनी क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ एक कदम के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।

Latest News

Popular Videos