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March 31, 2025

मणिपुर – राजनीति का कुरूक्षेत्र..

इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली और तथाकथित सभ्य समाज की धज्जियां उड़ा देने वाली ऐसी हर घटना पर जब भी कुछ लिखा जाता है,पहली पंक्ति होती है,’देश उबल रहा है’,लेकिन इस बार ये पंक्ति भी मन का आक्रोश दिखाने के लिए काफ़ी नहीं है। चीखें गले में ही दम तोड़ रही हैं,लहू का उबाल रगों मे ही दफ़न हो रहा है। राजनीति का इतना विकृत रूप न कभी देखा था,न कभी ऐसी कल्पना की थी। अफवाहों की राजनीति मे नफरत के बीज बोकर सत्ता की बिसात पर जनता को मोहरा बनाकर खेल खेला जा रहा है । देश को विश्व गुरु और नेता को राजनेता बनाने के यज्ञ मे जनता की बलि दी जा रही है, जीने के अधिकार की आहुति डाली जा रही है। लोग या तो मृत हैं या मौन हैं।

एक अफवाह फैलाई गई की मैटई समुदाय की महिला की हत्या कर दी कूकी समुदाय के लोगों ने। हालांकि इस घटना की सच्चाई के कोई प्रमाण नहीं मिले ,पर इस अफवाह ने मणिपुर को सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंक दिया । ये अफवाह एक राजनीतिक चाल थी और इसका मनमाफिक नतीजा निकला जब मैटई और कूकी समुदाय के बीच दंगों ने मणिपुर मे घृणित रूप अख्तियार कर लिया । कूकी समुदाय की 2 महिलाओं को जबरन वस्त्रहीन कर उन्हें नग्नावस्था में हजारों की भीड़ के बीच सड़क पर परेड करवाने, उनकी नग्न देह के साथ सरेआम अभद्रता करने और दिनदहाड़े सामूहिक बलात्कार करने का खौफ़नाक वीडिओ सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। घटना 3-4 मई की बताई जा रही है। दिल्ली मे कूकी महिलाओं ने इस शर्मनाक घटना के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया। मीडिया में भी मुद्दा उठा, पर कार्यवाही अब 2 महीने बाद हो रही है। इसमे भी कोई राजनीतिक पेंच होगा, इस सच्चाई से हम सभी वाक़िफ़ हैं।

स्त्री को शक्ति स्वरूप मान कर पूजे जाने वाले देश में आखिर क्यूँ किसी स्त्री को देखते ही उसे निर्वस्त्र करने का खयाल आता है? क्या आपने कभी सुना कि सामाजिक या व्यक्तिगत बैर के चलते किसी पुरुष का दैहिक शोषण किया गया या उसे सरेआम वस्त्रहीन किया गया? नहीं। फिर क्यूँ एक स्त्री की देह को किसी वर्ग विशेष से बदला लेने का माध्यम बनाया गया?सड़क पर अपनी चीखें निगलती उस वस्त्रहीन महिला के नग्न शरीर पर उन्मादी भीड़ के रेंगते हाथ यदि हमें अपनी आत्मा पर महसूस नहीं होते, तो मर चुके हैं हम! स्त्री की खुली देह को खेल का साधन बनाती उस भीड़ पर क्रोध नहीं आता, तो मर चुके हैं हम! पिता और भाई की लाशों के सामने उन बेबस स्त्रियों के बलात्कार की आँखों देखी के बावजूद चैन से सो पा रहे हैं हम, तो वाकई मर चुके हैं हम! उन महिलाओं के घायल नग्न शरीरों पर राजनीति की बिसातें बिछी देखकर भी मौन है, तो मर चुका है ये समाज !

पिछले 3 महीनों से मणिपुर हिंसा की आग मे झुलस रहा है पर केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप करना जरूरी नहीं समझा। रोज हिंसा की, हत्या की, जन-धन हानि की खबरें आती रहीं पर शासन ने कोई कठोर कदम नहीं उठाया। हम अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाने मे इतने व्यस्त थे कि राष्ट्रीय आपदाओं पर ध्यान ही नहीं दे पाए। अब जाकर राजनेताओं की बयानबाजी का दौर शुरू हुआ है। हम भी खबरें पढ़ते हैं, आक्रोश भरी चर्चाएं करते हैं और भूल जाते हैं। पर क्या वे कूकी महिलाएं इस भयानक हादसे को भूल पायेंगी? क्या ये हादसे फिर नहीं दोहराए जाएंगे? मणिपुर की घटना भी तो दोहराव ही गयी है!आपसी रंजिशों का बदला स्त्रियों की आबरू से लेने की प्रथा का दोहराव!द्रौपदी का चीरहरण हो, कश्मीर मे नरसंहार के वक़्त स्त्रियों का सामूहिक बलात्कार हो या मणिपुर की घटना। सब समाज से या वर्ग विशेष से बदला लेने के तरीके ही हैं। हर बार औरत की आबरू, उसकी देह को जरिया बनाया गया। और ये उस समाज का सूरते-हाल है जहां सदियों से मान्यता रही है की , ’यत्र नारी पूजयनते, रमनते तत्र देवता‘।

मणिपुर में आग अब तक बुझी नहीं है। अभी मणिपुर मे नेताओं का दौरा बाकी है। पीड़ितों के घर वीवीआइपीs और मीडिया के जत्थे पहुँचने बाकी हैं। आश्वाशनों की गठरी धरी जानी बाकी है। ’देश की बेटियों‘ के लिए ‘चीत्कार’ करने वाले बयान बाकी हैं जो अब तक खामोश थे, जिन्होंने मणिपुर की जनता से शांति की एक अपील करना भी जरूरी नहीं समझा था! बहरहाल, मणिपुर की दुखद अमानवीय घटना के बीच एक अच्छी खबर ये है कि अमेरिकी खुफ़िया जांच एजेंसी सीआइए के चीफ विलियम जे बर्न्स ने कहा है कि भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को दी गई सलाह ‘युद्ध का युग नहीं‘ की वजह से परमाणु युद्ध का खतरा टल गया है। अमेरिकी सीआइए चीफ के इस बयान से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि और निखार गई है।

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