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September 17, 2025

Slavery Remembrance Day- जब पहली बार सभ्‍य हुई मानवता, वर्षों पुरानी गुलामी प्रथा का हुआ अंत

The CSR Journal Magazine
Slavery Remembrance Day- UNESCO के सदस्य देश हर साल 23 अगस्त को खास कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिसमें युवाओं, शिक्षकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों से सक्रिय भागीदारी आमंत्रित की जाती है। इस दिन गुलामी के ‘ऐतिहासिक कारणों, तरीकों और परिणामों’ पर लोगों का ध्यान लाया जाता है।

आज है अमानवीय गुलामी प्रथा को याद करने का दिन

International Day for the Remembrance of the Slave Trade and its Abolition- दास व्यापार मानव इतिहास के सबसे क्रूर और अमानवीय अपराधों से एक है। 400 से अधिक वर्षों तक, अफ्रीका के 1.5 करोड़ से अधिक पुरुष, महिलाएं और बच्चे ट्रान्साटलांटिक दास व्यापार के शिकार थे। इस समय के दौरान लोगों को उनके मूल कबीले से ले जाया गया और बहुत कम या बिना वेतन के बेहद अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया गया। 1515 से लेकर 19वीं सदी के मध्य तक 1.25 करोड़ से ज्यादा अफ्रीकी लोगों की खरीद-फरोख्त हुई थी। इस दौरान अमेरिकी देशों को जाते वक्त रास्ते में ही करीब 20 लाख पुरुष, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई।

ग़ुलामी प्रथा के निषेध के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है Slavery Remembrance Day

गुलामों के व्यापार और उसके उन्मूलन को याद करने के लिए हर वर्ष 23 अगस्‍त को ‘गुलामों के व्‍यापार और उसके निषेध का अंतरराष्ट्रीय स्मरण दिवस मनाया जाता है। लंबे समय तक लोगों को खरीदना, बेचना और गुलाम बनाकर रखना आम बातें हुआ करती थीं। मानव सभ्‍यता ने गुलामी की प्रथा को खत्‍म कर सभ्‍य होने की दिशा में बड़ा कदम उठाया था। UNESCO के सदस्य देश हर साल इस तारीख को खास कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिसमें युवाओं, शिक्षकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों की भागीदारी को आमंत्रित किया जाता है। इंटरकल्चरल यूनेस्को प्रोजेक्ट, “The Slave Root” के लक्ष्य के तौर पर, इस दिन गुलामी के ‘ऐतिहासिक कारणों, तरीकों और परिणामों’ पर लोगों कर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसके अलावा यह बातचीत और संवाद के लिए मंच तैयार करता है ताकि उस कारण की पहचान की जा सके, जिसने अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका और कैरिबियन देशों में ट्रान्साटलांटिक मानव व्यापार को जन्म दिया।

क्‍या है इस दिन का इतिहास

22 से 23 अगस्त 1791 की रात को सेंट डोमिंगु में, रिपब्लिक ऑफ हाईटी में उस विद्रोह की शुरुआत हुई, जिसने आगे चलकर ट्रान्साटलांटिक गुलाम व्यापार के उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी के चलते इस दिन को ऐतिहासिक महत्‍व का दिन माना गया। हैती में पहली बार 23 अगस्त 1998 को, और सेनेगल के गोरी द्वीप में 23 अगस्त 1999 को यह दिन याद किया गया। आगे चलकर UNESCO ने इस दिन को अंतराष्‍ट्रीय गुलाम व्‍यापार उन्‍मूलन दिवस के रूप में मान्‍यता दी। यूरोपीय देशों के साम्राज्यवादी शासन में दास व्यापार एक आम प्रथा थी। अफ्रीकी और एशियाई देशों के लोगों को हैती, कैरिबियन और दुनिया भर के अन्य स्थानों पर औपनिवेशिक शासन के दास बनाने के लिए व्यापार किया जाता था। अंतर्राष्ट्रीय दास व्यापार को पहली बार वर्ष 1807 में समाप्त किया गया था।

मानव सभ्यता का सबसे भयावह पन्ना- दास प्रथा

मानव समाज में जितनी भी संस्थाओं का अस्तित्व रहा है उनमें सबसे भयावह दासता की प्रथा है। मनुष्य के हाथों मनुष्य का ही बड़े पैमाने पर उत्पीड़न इस प्रथा के अंतर्गत हुआ है। दास प्रथा को संस्थात्मक शोषण की पराकाष्ठा कहा जा सकता है। दास प्रथा की उत्पत्ति का संबंध खेती के विकास से भी बताया जाता है। उसके लिए अतिरिक्त श्रम की आवश्यकता थी। इसलिए आरंभ में ताकत के बल पर लोगों को खेतों में काम करने के लिए बाध्य किया जाने लगा। कुछ लोग जो प्रकृति-आधारित खेती की अनिश्चितता के स्थान पर निश्चित आजीविका को पसंद करते थे, वे दूसरों को अपना गुलाम बना लेते थे और जम कर उनका शोषण करते थे।

युद्ध के बंदी होते थे दास प्रथा के शिकार

दास प्रथा के द्वारा प्राय: ऋणग्रस्त अथवा युद्धों में बंदी होने वाले व्यक्तियों को दास बनाया जाता था। फिर भी प्राचीन भारत में यूरोप की भांति दास प्रथा न तो व्यापक थी और न ही दासों के प्रति वैसा क्रूर व्यवहार होता था। भारत ब्रिटिश शासन के समय 1843 ई. में इस प्रथा को बंद करने के लिए एक अधिनियम पारित कर दिया गया था। दास प्रथा की शुरुआत कई सदियों पहले ही हो चुकी थी। माना जाता है कि चीन में 18वीं-12वीं शताब्दी ईसा पूर्व गुलामी प्रथा का जिक्र मिलता है। भारत के प्राचीन ग्रंथ मनुस्मृति में भी दास प्रथा का उल्लेख किया गया है। वर्ष 1867 में करीब छह करोड़ लोगों को बंधक बनाकर दूसरे देशों में गुलाम के तौर पर बेच दिया गया। भारत में मुस्लिमों के शासन काल में दास प्रथा में बहुत वृद्धि हुई। यह प्रथा भारत में ब्रिटिश शासन स्थापित हो जाने के उपरान्त भी बहुत दिनों तक चलती रही।

आज भी बदस्तूर जारी है दास प्रथा

भारत ब्रिटिश शासन के समय 1843 ई में इस प्रथा को बंद करने के लिए एक अधिनियम पारित कर दिया गया था। यद्यपि भारत में बंधुआ मजदूरी पर पाबंदी लग चुकी है, लेकिन फिर भी सच्चाई यह है कि आज भी यह अमानवीय प्रथा जारी है। बढ़ते औद्योगिकरण ने इसे बढ़ावा दिया है। साथ ही श्रम कानून के लचीलेपन के कारण भी मजदूरों के शोषण का सिलसिला जारी है। शिक्षित और जागरूक न होने के कारण इस तबके की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। संयुक्त राष्ट्र संघ को ऐसे श्रम कानून का सख्ती से पालन करवाना चाहिए, जिससे मजदूरों को शोषण से निजात मिल सके।

इंसानों की होती है खरीद-फरोख्त

ये सच है कि दास प्रथा को बहुत पहले से ही अवैध घोषित किया जा चुका है मगर पूरी दुनिया में आज भी दास प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा जारी है और जानवरों की तरह इंसानों की खरीद -फरोख्त की जाती है। इन गुलामों से कारखानों और बागानों में काम कराया जाता है। उनसे घरेलू काम भी लिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार मादक पदार्थ और हथियारों के बाद तीसरे स्थान पर मानव तस्करी है। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में करीब पौने तीन करोड़ गुलाम हैं। वस्तुओं की तरह ऐसे इंसानों से काम लिया जाता है जिसपर अविलंब कड़े कानून लाकर रोक लगाने की आवश्यकता है।

दुनियाभर में जिंदा है दास प्रथा

दास प्रथा को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया था, लेकिन इसकी विरासत नस्लीय असमानताओं में बनी हुई है जो पीढ़ियों तक फैली हुई है। आप सभी ने राजा-महाराजाओं की कहानियां सुनी होंगी, जिनके दरबार में मंत्री, दरबान के अलावा बहुत से दास और दासियां भी हुआ करते थे। हीरे-जवाहरात के रूप में राजा-रानी उन्हें काम से खुश होकर इनाम भी दिया करते थे। उनसे जो काम लिया जाता था, उनके बदले सैलरी का सिस्टम तब नहीं होता था। मगर उसके बदले जो चाहे राजा-महाराजा उनसे कराते थे। उस दौर में दासियों का शोषण करने वाले राजाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं था, मगर आज के दौर में दास प्रथा पूरी तरह से प्रतिबंधित है। मगर एक सच्चाई यह भी है कि दास प्रथा भले ही प्रतिबंधित हो, लेकिन दुनिया भर में इसके उदाहरण आज भी देखने को मिल जाते हैं। नए जमाने की गुलामी शांत और छिपी हुई होती है, जिसके बारे में हमें पता भी नहीं चलता।

दुनियाभर में फैला गुलामी का कारोबार

आज के आधुनिक युग में गुलामी अलग-अलग तरीके की होती है। मसलन, मानव तस्करी, कर्ज का दबाव या जबरन कराई गई शादी आदि में इसके उदाहरण देखे जा सकते हैं। लीबिया, कतर और लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो जैसे देशों से गुलामी की खबरें अक्सर आती रहती हैं। यूरोप के काउंसिल ने आगाह किया था कि यूरोप में भी मानव तस्करी और जबरन मजदूरी कराने के मामले बढ़े हैं। जर्मनी में 1.64 लाख लोग नई गुलामी के शिकार हैं। फेडरल क्रिमिनल पुलिस ऑफिस (BKA) के मुताबिक, जर्मनी में आप्रवासियों में गुलामी के मामले अधिक पाए गए हैं। घरेलू कामकाज, केटरिंग इंडस्ट्री या कृषि में इनकी संख्या अधिक देखी गई है। पिछले साल पूर्वी यूरोप में 11 जांचें हुईं जिनमें 180 ऐसे मजदूरों की पहचान हुई जिनसे जबरन काम कराया जा रहा था।

किशोरियों को बहलाकर कराते हैं जिस्म का धंधा

रिसर्चर्स कहते हैं कि जर्मनी में यौन उत्पीड़न कहीं ज्यादा फैला हुआ है। यह यूरोप में कानूनन देह व्यापार के गढ़ सा है। BKA के आंकड़ों की मानें तो 2017 में जबरन देह व्यापार के 327 मामले सामने आए। इनमें से ज्यादातर महिलाएं थीं जो मुख्य तौर पर बुल्गारिया, रोमानिया और जर्मनी की रहने वाली थीं। बीकेए की रिपोर्ट में नाइजीरिया के पीड़ितों में इजाफा होने का भी जिक्र है। बीकेए ने पता लगाया है कि इनमें से ज्यादातर महिलाओं को देह व्यापार से जुड़ी कोई जानकारी नहीं थी और वे वहां से भाग पाने में असमर्थ थीं। ऐसे मामलों में दलालों की बड़ी भूमिका होती है। भोलीभाली किशोरियों और युवतियों से ये दलाल पहले अफेयर चलाते हैं और फिर उन्हें फुसलाकर देह व्यापार की अंधेरी दुनिया में धकेल देते हैं। ज्यादातर मामलों में वे खुद को कर्ज से दबा बताते हैं और युवतियों को भरोसा दिलवाते हैं कि कर्ज चुकाने के लिए यह धंधा जरूरी है।

दुनिया आज़ाद हुई मगर कुछ देश अब तक गुलाम

पूरी दुनिया में अब 200 से ज्‍यादा स्‍वतंत्र देश हैं। मगर, क्‍या आप जानते हैं कि कई देश ऐसे हैं, जहां लोग आज भी आजादी (Independency) के लिए तरस रहे हैं! उन देशों में लोगों पर हुकूमत ने या कट्टरपंथी संगठनों ने अनेक पाबंदियां थोपी हुई हैं। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच सालों में आधुनिक गुलामी (Modern Slavery) में रहने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है।

क्या है यह आधुनिक गुलामी

आधुनिक गुलामी या आधुनिक दासता को मानवाधिकार संगठन “जबरन श्रम, कर्ज देकर चंगुल में फंसाने, जबरन विवाह, दासता और गुलामी जैसी प्रथाओं और मानव तस्करी सहित विशिष्ट कानूनी अवधारणाओं के रूप में वर्णित करते हैं। उनके मुताबिक, “आधुनिक दासता प्रत्यक्ष रूप से छिपी हुई है और दुनिया के हर कोने में लोगों की जिंदगी के साथ गहराई से जुड़ी हुई है, जिसमें हर दिन, लोगों को बरगलाया जाता है, मजबूर किया जाता है, या शोषणकारी स्थितियों में इस तरह मजबूर किया जाता है जिसे वे नकार या छोड़ नहीं सकते।”
उत्तर कोरिया, इरीट्रिया और मॉरिटानिया में आधुनिक गुलामी का प्रचलन सबसे अधिक है। लंदन में एक स्‍टडी में यह सामने आया है कि हाल के वर्षों में आधुनिक गुलामी के शिकार लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।

5 करोड़ लोग आधुनिक गुलामी के शिकार

लंदन के Walk Free Foundation द्वारा जारी Global Slavery Index के अनुसार, 2021 में लगभग 5 करोड़ लोग “आधुनिक गुलामी” में रह रहे थे। पांच साल पहले के अनुमान से इस आंकड़े में अब ऐसे 1 करोड़ लोगों के बढ़ जाने के अनुमान है। ताजा सूचकांक के मुताबिक उत्तर कोरिया, इरीट्रिया और मॉरिटानिया में दुनिया में आधुनिक दासता की दर सबसे अधिक है।

अफ्रीकी देश लीबिया में यौन गुलामी

Walk Free की रिपोर्ट ने 5 साल पहले अपने पिछले सर्वेक्षण के बाद से वैश्विक स्तर पर “बिगड़ती” स्थिति का उल्लेख किया है। कुछ साल पहले UN को अफ्रीकी देश लीबिया में यातना और यौन गुलामी के सबूत मिले थे। इस तरह की गुलामी के कई कारण हैं, लेकिन अन्य कारकों के बीच बढ़ते और जटिल सशस्त्र संघर्षों, पर्यावरणीय मुद्दों और कोरोना महामारी के व्यापक प्रभाव की पृष्ठभूमि में ये स्थिति बदतर होती जा रही है।

सबसे ज्यादा गुलामी कहां होती है

शोध रिपोर्ट के मुताबिक, आधुनिक गुलामी में 2.76 करोड़ लोग जबरन श्रम करते हैं, जबकि 2.2 करोड़ लोग जबरन शादी के शिकार हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर कोरिया (प्रति 1,000 लोगों में से 104.6 लोग), इरिट्रिया (90.3) और मॉरिटानिया (32) में आधुनिक गुलामी के शिकार लोगों की संख्या सबसे अधिक है। इन देशों के अलावा सऊदी अरब, तुर्किये, UAE और कुवैत भी टॉप-10 देशों में शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, “ये देश अपनी कुछ राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं को भी साझा करते हैं, जिनमें नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिए सीमित सुरक्षा शामिल है।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में, सरकारें अपने नागरिकों को विभिन्न क्षेत्रों में, निजी जेलों में, या जबरन भरती के माध्यम से काम करने के लिए मजबूर करती हैं। इनके अलावा काफी लोग ऐसे भी हैं जिनका G-20 देशों में भी शोषण होता है।

गुलामी की जद में भारत के 1.1 करोड़ लोग

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1.1 करोड़ गुलामी की प्रथा के शिकार हैं। इसमें आम तौर पर बंधुआ मजदूरी, बाल श्रम, जबरन विवाह, मानव तस्करी, जबरन भीख मांगना और यौन गुलामी जैसे जबरन श्रम के प्रकार शामिल होते हैं। चीन में 50 लाख और रूस में 18 लाख लोग गुलामी से शोषित हैं।

अप्रत्यक्ष रूप से कई तरह के दास

दुनिया में कई लोग अप्रत्यक्ष रूप से गुलामी को समर्थन दे रहे हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो अर्थशास्त्री एवी हार्टमन ने 2016 में लिखी किताब ‘आपके पास कितने गुलाम हैं’ में जिक्र किया है कि औसतन एक जर्मन अप्रत्यक्ष रूप से 60 गुलामों से जुड़ा हुआ है। रिसर्चर्स कहते हैं कि चाहे वह कपड़े खरीदना हो या कोई सामान खरीदना, हम कहीं न कहीं दुनिया में मौजूद गुलामी की प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। इसका एक उदाहरण थाईलैंड की मछलियां खरीदना है जहां के मजदूरों से जबरन काम कराया जाता है।

महिलाओं के साथ बच्चे भी पीड़ित

महिलाओं के साथ ही इस मामले में बच्चे सबसे ज्यादा दास प्रथा के शिकार हैं। इस काम में अपने परिवार के सदस्यों को भी लोग धकेल रहे हैं। हाल ही में एक जर्मन महिला द्वारा अपने नौ साल के बेटे को देह व्यापार में धकेलने का मामला सामने आया था। इसमें उसका बॉयफ्रेंड भी शामिल रहा जो पहले भी बच्चों की तस्करी के मामले में शामिल रहा था। इस केस को लेकर चर्चा रही कि कहीं महिला मजबूरी में तो ऐसा नहीं कर रही थी? पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, हर साल जर्मनी में 50 से 60 मामले जबरन शादी करने के आते हैं। रिसर्चर्स का मानना है कि आधुनिक गुलामी और इसे बढ़ाने वाले संस्थानों के खिलाफ जल्द कार्रवाई की जरूरत है। रास्ता अभी लंबा है और दुनियाभर में काफी काम किया जाना है। वह आगे कहते हैं कि एशिया और अफ्रीका में भी नई गुलामी फैलती जा रही है और पीड़ितों को न्यायायिक सहायता नहीं मिल पाती है। सबसे बड़ी मुश्किल पैसों की है जिसे दुरुस्त किए जाने की जरूरत है।

ग़लत है, मगर व्यापक है गुलामी की प्रथा

रिपोर्ट्स के मुताबिक Global Slavery Index और Walk Free Foundation के आंकड़ें बताते हैं कि दुनिया भर में 4 करोड़ लोग नए जमाने की गुलामी प्रथा की चपेट में हैं। हमने इतिहास की किताबों में दास प्रथा के बारे में पढ़ा है, जिसमें एक ताकतवर शख्स या समुदाय अपने से कमजोर तबके को गुलाम बनाता है। नए जमाने में गुलामी कानूनी तौर पर अपराध है, लेकिन यह समाज में मौजूद है। मानव तस्करी के खिलाफ मुहिम चलाने वाले संगठन इंटरनेशनल जस्टिस मिशन के जर्मन ऑफिस के चेयरमैन कहना है कि आज के दौर में दास प्रथा उस गिरगिट की तरह है जो छिप कर रहता है। वॉक फ्री फाउंडेशन के मुताबिक, नए जमाने की गुलामी का मतलब है कि किसी शख्स ने दूसरे की आजादी छीन ली हो। दूसरे इंसान का अपने शरीर, काम करने या न करने पर अधिकार खत्म हो जाए और उसे प्रताड़ित किया जाए। इस आजादी को डर, हिंसा, दबाव या ताकत के जरिए खत्म किया जाता है।

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