प्राचीन कथाओं में, राजा विक्रम अपनी प्रतिज्ञा के कारण वेताल नामक एक भूत को अपने कंधे पर बिठाकर ले जाते थे। लेकिन कटिहार में कहानी बिल्कुल उलटी हो गई। यहां जनता रूपी ‘भूत’ ने अपने ‘राजा’ को कंधे पर बिठाकर कीचड़ और पानी से भरे रास्ते से निकाला। यह घटना दिखाती है कि जनता की समस्याओं का जायजा लेने के लिए नेता खुद ज़मीन पर नहीं उतरते, बल्कि जनता ही उन्हें अपने कंधों पर उठाकर ले जाती है।
‘राजकीय’ दौरा या ‘प्रदर्शन’?
सांसद तारिक अनवर के इस वायरल वीडियो ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह वाकई बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का जायजा लेने का एक ईमानदार प्रयास था, या फिर कैमरे के सामने सहानुभूति बटोरने का एक नाटकीय प्रदर्शन? जिस तरह वेताल हर बार राजा विक्रम से एक कहानी का हल पूछता था, उसी तरह जनता भी अपने नेता से सवाल पूछ रही है: क्या वे वास्तव में उनकी परेशानियों को समझेंगे, या फिर इस घटना को एक दिखावे के रूप में इस्तेमाल करेंगे?
‘विक्रम’ के कंधों पर ‘वेताल’ का बोझ
वीडियो में देखा जा सकता है कि सांसद तारिक अनवर एक युवक के कंधे पर बैठे हैं और अन्य लोग उन्हें सहारा दे रहे हैं। यह दृश्य बताता है कि बाढ़ की असली पीड़ा तो लोगों को ही झेलनी पड़ती है, जबकि नेता केवल उसका जायजा लेने आते हैं। ऐसा लगता है कि जनता के दुख का बोझ, जिसे नेताओं को उठाना चाहिए, वह आज भी जनता के ही कंधों पर है।
‘राजधर्म’ का मजाक
विक्रम की कहानी में जहां राजा विक्रम हर परिस्थिति में अपना ‘राजधर्म’ निभाते थे, वहीं इस घटना ने ‘राजधर्म’ पर ही सवाल उठा दिया है। कटावग्रस्त क्षेत्र में पैदल चलना संभव नहीं था, तो क्या यह नेताओं की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे अपने दौरे के लिए पर्याप्त इंतज़ाम करें, बजाय इसके कि वे जनता के श्रम का उपयोग करें? यह घटना दिखाती है कि नेताओं के लिए जनता की सेवा सिर्फ एक दिखावा बनकर रह गई है, और वे अपनी सुविधा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।