छिंदवाड़ा के परासिया सिविल अस्पताल में टॉयलेट के कमोड से नवजात शिशु का शव मिलना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक संवेदना और स्वास्थ्य व्यवस्था पर करारा तमाचा है। जिस अस्पताल को जीवन बचाने का केंद्र होना चाहिए, वहीं जीवन को इस तरह ठिकाने लगाना भयावह सोच को उजागर करता है। साथ ही यह सवाल भी उठता है कि क्या हमारी व्यवस्था ऐसी मजबूरियों को समय रहते पहचान पा रही है? यह सिर्फ एक मामला नहीं, एक चेतावनी है। समाज, प्रशासन और स्वास्थ्य तंत्र, तीनों को मिलकर ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी। चुप्पी अब विकल्प नहीं।
छिंदवाड़ा- परासिया सिविल अस्पताल के टॉयलेट में नवजात शिशु का शव मिला
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परासिया सिविल अस्पताल में आज एक बेहद दर्दनाक और मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई है। अस्पताल के महिला शौचालय के कमोड (टॉयलेट सीट/पाइप) में एक नवजात शिशु का शव फंसा हुआ मिला, जिसने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी है। सोमवार दोपहर जब अस्पताल में ओपीडी चल रही थी, तब महिला सफाई कर्मचारी रोज की सफाई के लिए अस्पताल के महिला शौचालय में गईं। लेकिन कमोड से पानी फ्लश नहीं हो रहा था। जब उन्होंने ध्यान से देखा, तो कमोड के अंदर एक नवजात शिशु का हाथ और सिर दिखाई दिया। यह दृश्य देख पुलिस एवं अस्पताल प्रशासन समेत वहां मौजूद सभी लोग दंग रह गए।
तत्काल कार्रवाई और शव निकाला गया
सूचना मिलते ही अस्पताल प्रबंधन और परासिया पुलिस मौके पर पहुंची। नवजात का शव कमोड पाइप में बुरी तरह फंसा होने के कारण निकालना बेहद कठिन साबित हुआ। पुलिस, अस्पताल स्टाफ और नगर पालिका की टीम ने कई घंटों तक कोशिश के बाद आखिरकार कमोड को तोड़कर लगभग 7–8 घंटे बाद शव को बाहर निकाला।
क्रूर मंजर से पुलिस भी दहली
परासिया की प्रभारी BMO डॉ. सुधा बख्शी ने बताया कि शुरुआत में पानी की निकासी न होने की शिकायत पर जांच की गई, तब नवजात शिशु की स्थिति सामने आई। अस्पताल प्रशासन ने तुरंत पुलिस को लिखित तहरीर दी और मामले की गंभीरता के अनुसार जांच शुरू कर दी है। परासिया पुलिस ने बताया कि पूरी घटना की गहन जांच की जा रही है। मुकदमे के तहत यह पता लगाने की कोशिश चल रही है कि नवजात को यहां क्यों और किसने फेंका! पुलिस सीसीटीवी फुटेज, संभावित गवाहों, और अस्पताल में आने वाली महिलाओं के रिकॉर्ड की पड़ताल कर रही है। जांच में दोषी पाए जाने पर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
समाजिक और मानवीय चिंता
स्थानीय लोगों ने इस घटना को गंभीर सामाजिक समस्या और अमानवीय कृत्य बताया है। कुछ स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स में संदेह जताया जा रहा है कि संभवतः लिंग भेद या अन्य कारणों से नवजात को त्यागा गया हो, लेकिन मामले की पुलिस जांच जारी है। पुलिस के अनुसार यह मामला सामाजिक औरमानवीय दृष्टि से भी संवेदनशील है, इसलिए दोषियों के खिलाफ कठोर कानूनी प्रावधानों के तहत मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई जारी है।
संबंधित कानून- भारतीय दंड संहिता (IPC)
इस तरह के मामलों में भारतीय दंड संहिता के कुछ प्रावधान विशेष रूप से लागू हो सकते हैं। जैसे कि-
IPC धारा 317: बच्चे का अत्यधिक छोड़ना या त्याग देना- अगर कोई व्यक्ति अपने नियंत्रण में या देखभाल में बच्चा (12 वर्ष से कम उम्र का) कहीं छोड़ देता है या त्याग देता है और उसका पूर्ण रूप से परित्याग (Abandonment) करने का इरादा होता है, तो यह अपराध माना जाता है। इस धारा के तहत अपराध सिद्ध होने पर 7 साल तक की कारावास, जुर्माना, या दोनों की सजा हो सकती है। अगर इस परित्याग के परिणामस्वरूप बच्चे की मौत हो जाती है, तो यह हत्या/दोषपूर्ण हत्या के गंभीर आरोप में भी परिवर्तित हो सकता है। यह धारा Cognizable, Non-Compoundable Offence है।
IPC धारा 318: जन्म का गोपनीय निपटान / छुपाना
यदि कोई व्यक्ति बच्चे के मृत शरीर को गुप्त रूप से दफ़न या किसी अन्य तरीके से छुपाकर जन्म को छिपाने का प्रयास करता है, तो यह अपराध है। इसके तहत दोषी को 2 साल तक की सज़ा, जुर्माना, या दोनोंलगाया जा सकता है। इस धारा का उद्देश्य नवजात जन्म या उसके मृत शरीर को छुपाना है।अगर यह बच्चे के परित्याग या हत्या के इरादे से जुड़ा हो, तो यह और भी गंभीर धाराओं के साथ जोड़ा जा सकता है।
क्या और धाराएं लागू हो सकती हैं?
IPC धारा 302 / 304– अगर यह साबित होता है कि नवजात की जान ख़त्म करने का इरादा था तो हत्या या दोषपूर्ण हत्या के तहत आरोप बढ़ सकते हैं।
IPC धारा 201– अगर मामले को छुपाने के लिए कोई सक्रिय प्रयास किया गया हो (उदा. सबूत नष्ट करना)।
POCSO, JJ Act या अन्य बाल सुरक्षा कानून– अगर बच्चा ज़िंदा था और इस पर हिंसा/उपेक्षा की गई तो ये कानून भी लागू हो सकते हैं।
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