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November 21, 2025

शहर में उगती उम्मीद की फसल: नितिन माली की ‘Feel Good Veggies’ से बदलता शहरी खेती का भविष्य

The CSR Journal Magazine
फिल्म निर्देशन की रचनात्मक दुनिया से निकलकर पर्यावरण-अनुकूल खेती की ओर कदम बढ़ाते हुए मुंबई के फ़िल्म निर्देशक नितिन माली ने शहर में एक प्रेरणादायक पहल शुरू की है। उन्होंने सीमित जगह में  हाइड्रोपोनिक खेती का एक सफल मॉडल तैयार किया है, जिसे उन्होंने नाम दिया है ‘Feel Good Veggies’!

कम जगह में आधुनिक खेती का सफल प्रयोग

मुंबई जैसे शहर में जहां जमीन बेहद महंगी और कम उपलब्ध है, नितिन माली ने लगभग एक हजार स्क्वेयर फीट के छोटे से स्थान में पाइप-आधारित हाइड्रोपोनिक सिस्टम तैयार किया। इस तकनीक में मिट्टी नहीं, बल्कि पौधों की जड़ें पोषक तत्वों से भरे पानी में पनपती हैं। उनकी इकाई में लेट्यूस, माइक्रोग्रीन्स, हर्ब्स, चेरी टमाटर और अन्य पत्तेदार सब्ज़ियां उगाई जाती हैं। मांग आने पर सब्ज़ियां तुरंत तोड़ी जाती हैं और सीधे ग्राहकों तक पहुंचाई जाती हैं। नितिन का मानना है कि इससे ताजगी और पोषण दोनों बरकरार रहते हैं।

‘Feel Good Veggies’- खेती और बिज़नेस का संतुलित मॉडल

नितिन माली की सोच साफ है। वे सिर्फ खेती नहीं कर रहे, बल्कि शहर में ताज़ा और केमिकल-फ्री सब्ज़ियों का विकल्प बना रहे हैं। यह मॉडल कम जगह में उच्च उत्पादन देता है। पानी की बचत होती है क्योंकि इसमें पानी लगातार पुनः उपयोग होता है। बिना कीटनाशकों के उत्पादन होने से स्वास्थ्य-जागरूक उपभोक्ताओं का भरोसा तेजी से बढ़ा है।

ऐसी पहल करने वाले और भी लोग आगे आ रहे हैं

नितिन माली की सफलता ने दूसरे लोगों को भी शहरी खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया है। कई युवा उद्यमी अब अपने घरों की छतों, गैलरियों और बंद पड़े कमरों में छोटे हाइड्रोपोनिक सेटअप लगा रहे हैं। कुछ लोग इसे पार्ट-टाइम आय का साधन बना रहे हैं, जबकि कई इसे पूर्ण व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। देश के कई शहरों, जैसे बेंगलुरु, पुणे, कोलकाता और दिल्ली में शहरी किसान माइक्रोग्रीन्स और पत्तेदार सब्ज़ियों की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। इन सभी प्रयासों का एक ही साझा लक्ष्य है- शहरों में स्वस्थ, ताज़ा और टिकाऊखेती को बढ़ावा देना।

क्यों ज़रूरी है ऐसी खेती?

शहरी क्षेत्रों में खेती की उपलब्ध जगह कम होती जा रही है। रासायनिक कीटनाशकों से स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ी हैं। ताज़ी सब्ज़ियां दूर के खेतों से आने में घंटों लगाती हैं, जिससे उनका पोषण और स्वाद कम हो जाता है। हाइड्रोपोनिक खेती इन सभी समस्याओं का प्रभावी समाधान दे रही है। हालांकि शुरुआती लागत अधिक होती है। हाइड्रोपोनिक सिस्टम को चलाने के लिए तकनीकी ज्ञान चाहिए। तापमान, पानी का pH और पोषक तत्वों की मात्रा लगातार मॉनिटर करनी होती है। फिर भी, एक बार सिस्टम स्थापित हो जाए तो उत्पादन स्थिर, साफ और गुणवत्तापूर्ण मिलता है।

नितिन माली ने बदला ग्रामीण खेती का रुख़

नितिन माली की ‘Feel Good Veggies’ कहानी बताती है कि रचनात्मक सोच और आधुनिक तकनीकमिलकर शहरों में भी खेती को न केवल संभव, बल्कि लाभदायक बना सकती है। उनकी तरह कई लोग अब खेती को सिर्फ ग्रामीण काम नहीं, बल्कि भविष्य का शहरी व्यवसाय मान रहे हैं। यह पहल आने वाले समय में शहरों के भोजन-सुरक्षा मॉडल को बदलने की क्षमता रखती है।

निर्देशक नितिन माली और ‘Feel Good Veggies’ का बदलता शहरी भविष्य

भागदौड़, ट्रैफिक और सीमित जगह से घिरा मुंबई शहर अक्सर हमें यह मानने पर मजबूर कर देता है कि खेती सिर्फ गांवों में संभव है। लेकिन जब कोई कलाकार अपनी रचनात्मकता को खेतों की तरफ मोड़ दे, तो नतीजा सिर्फ सब्जियां नहीं, बल्कि एक नया सामाजिक संदेश बनकर सामने आता है। निर्देशक नितिन माली की हाइड्रोपोनिक पहल ‘Feel Good Veggies’ इसी बदलाव की गूंज है।आज शहरों में ताज़ी, केमिकल-रहित और पौष्टिक सब्ज़ियों की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन खेत शहरों से दूर चले गए हैं। सब्जियां सैकड़ों किलोमीटरों की दूरी तय करके हम तक पहुंचती हैं और इस सफर में न सिर्फ उनका पोषण घटता है, बल्कि कार्बन उत्सर्जन भी तेज़ी से बढ़ता है। ऐसे समय में नितिन माली का यह कदम बताता है कि खेती स्थान की मोहताज नहीं, बल्कि दृष्टिकोण की मोहताज है।

Hydroponic Farming– मिट्टी के बग़ैर खेती

हाइड्रोपोनिक खेती, यानी बिना मिट्टी के पौधों की जड़ों को पोषक घोल में उगाना ! शहरी जीवन के लिए एक आदर्श विकल्प बन सकता है। कम जगह, कम पानी और बिना कीटनाशकों के अधिक उत्पादन का यह मॉडल पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए वरदान है। नितिन का यह नवाचार न सिर्फ एक व्यवसाय है, बल्कि शहर की खाद्य-व्यवस्था के लिए एक नया समाधान भी है। यह खुशी की बात है कि मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, दिल्ली जैसे शहरों में कई युवा अब इसी तरह के प्रयोग कर रहे हैं। छतों, गैलरियों और छोटे कमरे, जहां कभी पौधे लगाने की कल्पना भी कठिन लगती थी, आज वहां माइक्रोग्रीन्स, लेट्यूस और हर्ब्स उगाए जा रहे हैं। यह केवल आर्थिक अवसर नहीं, बल्कि शहरों की बदलती खाद्य-संस्कृति का संकेत है।

कंक्रीट के जंगल से हरियाली तक का सफ़र

दरअसल, नितिन माली हमें यह बता रहे हैं कि शहर का भविष्य सिर्फ कंक्रीट और कांच की दीवारों में नहीं, बल्कि उन हरे पौधों में भी है जिन्हें हम उगाना भूल चुके थे। उनकी पहल केवल ताज़ी सब्जियां देने का माध्यम नहीं, बल्कि एक विचार है कि शहरी नागरिक भी खाद्य आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। आख़िर में, यह सवाल हम सबके सामने है- क्या हम अपने शहरों को केवल उपभोक्ता बनाकर रखेंगे, या उन्हें उत्पादक शहरों में बदलने का साहस दिखाएंगे? नितिन माली और Feel Good Veggies जैसे प्रयोग इस परिवर्तन की शुरुआती रोशनी हैं। यही रोशनी आने वाले शहरी भारत की दिशा बदल सकती है।
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