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June 26, 2025

रेगिस्तान का मेवा ‘पीलू’, जो गर्मी में दिलाए ठंडक का एहसास 

राजस्थान के जालौर जिले का नाम सुनते ही रेगिस्तान की तपती धूप और वहां की अनूठी संस्कृति की छवि मन में उभरती है। लेकिन इस जिले की पहचान एक ऐसे पेड़ से भी है, जो रेगिस्तानी जीवन का आधार है- जाल पेड़, जिसे स्थानीय भाषा में पीलू या मिसवाक के नाम से भी जाना जाता है। इस पेड़ की बहुतायत के कारण ही जालौर जिले को इसका नाम मिला। जाल पेड़ की दो प्रजातियां, मीठी जाल और खारी जाल, रेगिस्तान की कठोर परिस्थितियों में न केवल जीवित रहती हैं, बल्कि स्थानीय लोगों, जानवरों और पक्षियों के लिए जीवनदायी साबित होती है। पीलू का यह पेड़ न केवल घनी छांव देता है बल्कि इसके फल, दातुन और औषधीय गुण इसे रेगिस्तान का अनमोल रत्न बनाते हैं।

राजस्थान का AC-पीलू

लू के प्रभाव को कम करने के लिए पीलू फल एक रामबाण औषधि मानी जाती है। इसे खाने से शरीर में न केवल पानी की कमी पूरी हो जाती है बल्कि लू भी नहीं लगती है। इस पेड़ के पत्ते काफी मोटे होते हैं इसलिए ये धूप को नीचे तक आने से रोकते हैं। साथ ही पेड़ की वजह से गर्म हवा भी ठंडी हो जाती है। इस वजह से इसे रेगोस्तान का एयर कंडीशनर भी कहा जाता है। जाल पेड़ (Salvadora Persica) रेगिस्तान की सूखी और रेतीली मिट्टी में आसानी से उग जाता है। इसकी जड़ें पानी की तलाश में जमीन की गहराइयों तक जाती हैं, जिससे यह सूखे और 45-50 डिग्री तापमान में भी हरा-भरा रहता है। इसकी घनी शाखाएं और पत्तियां गर्मी में ठंडी छांव प्रदान करती हैं, जो रेगिस्तान में जानवरों और पक्षियों के लिए आश्रय स्थल का काम करती है। स्थानीय लोग इन घने पेड़ों को ढूआ कहते हैं, जो गर्मी की तपन से राहत दिलाते हैं।

प्रकृति के पास है हर समस्या का हाल

पश्चिमी रेगिस्तान की भूमि भले ही बंजर हो, लेकिन प्रकृति ने इस क्षेत्र बहुत अनमोल सौगातें प्रदान की हैं। गर्मियों की शुरुआत होते ही रेगिस्तान में विषम हालात पैदा हो जाते हैं और तापमान 45 डिग्री पार चला जाता है, जिसका असर सामान्य जनजीवन पर तो होता ही है, साथ ही वनस्पतियों को भी नुकसान हो जाता है। लेकिन ऐसी कठिन परिस्थिती में भी इंसान और जीव जंतुओं के ज़िंदा रहने के लिए प्रकृति ने इस क्षेत्र को कई प्रकार की बेशकीमती चीजें प्रदान की हैं। गर्मी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही यहां जाल (जाळ) नामक पौधे के पीलू फल लगने लग जाते हैं, जो स्वादिष्ट होने के साथ साथ अत्यधिक गर्मी से शरीर की रक्षा भी करता है।

Salvadora Persica या पीलू

सैल्वेडोरा पर्सिका (Salvadora persica) के पेड़ को हिंदी में ‘पीलू’ के नाम से जाना जाता है। इस पेड़ का फैलाव इतना बेतरतीब होता है कि कोई भी इसमें उलझ सकता है। इसके इसी गुण के चलते कहीं कहीं इसे ‘जाल’ भी कहते हैं, और मिसवाक, साल्टबुश या Toothbrush Tree ट्री भी कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ओरल हाइजीन के लिए इस वृक्ष का विशेष उल्लेख किया गया है। भारत, अरब और अफ्रीका के लोग इसकी पतली शाखाओं और जड़ों से बने दातून का उपयोग हजारों साल से कर रहे हैं। इसकी छाल और लकड़ी में कई ऐसे एंटी बैक्टिरियल तत्व होते है जो दंतक्षय (Dental Cavity) की रोकथाम में सहायक होते हैं। इसके पत्ते भी माउथ फ्रेशनर की तरह इस्तेमाल किए जाते हैं।

इंसान, पशु और पर्यावरण, सभी के लिए वरदान ‘पीलू’

पीलू रेगिस्तान की जीवन रेखा है। यहां की अत्यंत शुष्क परिस्थितियों में भी यह फलता फूलता रहता है। भीषण गर्मी में जब अधिकतर पेड़-पौधे सूख जाते है, पीलू हरा भरा रहता है। पालतू पशुओं के लिए यह एक बेहतरीन चारा है, जिसमे सूखारोग प्रतिरोधी गुण होते हैं। इस वृक्ष के फूल, पत्तियां, जड़ें, छाल, लकड़ी सभी उपयोगी होते हैं। पीलू के बीज का उपयोग डिटर्जेंट तेल निकालने के लिए किया जाता है। इसमें चने के आकार के रसदार, लाल, पीले या बैगनी रंग के मीठे फल लगते हैं, जो विटामिन सी और कॉर्बोहाइड्रेडस से भरपूर होते हैं। रेगिस्तान के इस मेवे के बारे में प्रसिद्ध है कि यह पौष्टिकता से भरपूर होता है और इसे खाने से लू नहीं लगती। पीलू में कई अन्य औषधीय गुण भी होते हैं, इसी लिए लोग इन्हें ऑफ सीजन में खाने के लिए सुखा लेते हैं। वैसे इसके एक एक फल को तोड़ना श्रम साध्य होता है।

साल में बस एक महीने ही मिलता है राजस्थानी मेवा

भारत के सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाक़े जैसलमेर के आस पास के गांवों पर प्रकृति की भी मेहरबानियां हैं। यहां जाल के पेड़ों की भरमार रहती है। इसी जाल के पेड़ पर छोटे छोटे रसीले पीलू के फल लगते हैं। यह फल मई व जून में लगते है। इसकी विशेषता यह है कि रेगिस्तान में जितनी अधिक गर्मी और तेज़ लू चलेगी पीलू उतने ही रसीले व मीठे होंगे। लू के प्रभाव को कम करने के लिए यह एक रामबाण औषधि मानी जाती है। इसे खाने से शरीर में न केवल पानी की कमी पूरी हो जाती है बल्कि लू भी नहीं लगती है। अत्यधिक मीठे और रस भरे इस फल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे अकेला खाते ही जीभ छिल जाती है, ऐसे में एक साथ आठ-दस दाने मुंह में डालने पड़ते हैं। रेगिस्तान के इस फल को मारवाड़ का मेवा भी कहा जाता है। ये फल सिर्फ 1 महीने के लिए होते है और ज्यादा आंधी और बारिश से झड़ जाते हैं। इनका बाजार में मिलना दुर्लभ होता है, इसलिए इनकी कीमत 300-500 रुपये प्रति किलो तक होती है।

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