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नेशनल स्पोर्ट्स डे विशेष – हॉकी प्लेयर गुरजीत कौर और रेसलिंग कोच चंद्र विजय सिंह से ख़ास बातचीत  

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29 अगस्त यानी कि नेशनल स्पोर्ट्स डे। ये बेहद खास दिन होता है और इसी दिन मशहूर हॉकी प्लेयर मेजर ध्यानचंद जी की जयंती मनाई जाती है। इसी के उपलक्ष में पूरे देश भर में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। इस अवसर को The CSR Journal भी मना रहा है। इसके लिए हमारे साथ दो बेहद खास मेहमान जुड़ चुके हैं। हम उनका स्वागत करते हैं। सबसे पहले गुरजीत कौर, जो हॉकी प्लेयर है, आपका स्वागत है। हमारे दूसरे मेहमान है चंद्र विजय सिंह, जो भारतीय रेसलर टीम के कोच है, आपका भी बहुत बहुत स्वागत है। बातों का सिलसिला हम यहीं से शुरू करते हैं।

29 तारीख नेशनल स्पोर्ट्स डे होता है, खेल प्रेमी इस दिन को बहुत ही खास तरीके से मनाते हैं, आप लोग स्पोर्ट्समैन है, एक स्पिरिट पूरे देश भर में देखने को मिलती है इस दिन। सबसे पहले गुरजीत जी आपसे जानना चाहेंगे कि किस तरह से इस दिन को आप देख रही हैं, किस तरह से आप नेशनल स्पोर्ट्स डे को सेलिब्रेट कर रही हैं?

गुरजीत – सभी खेल प्रेमियों और खिलाड़ियों के लिए नेशनल स्पोर्ट्स डे बहुत बड़ा दिन होता है। मैं भी हॉकी प्लेयर हूं और मेजर ध्यानचंद भी हॉकी प्लेयर थे, मेजर ध्यानचंद जी का आज जन्म तिथि है। आज उनको और उनके योगदान को आज पूरा देश याद कर रहा है। लेकिन देश में जो आज माहौल है, जिस तरह कोरोना की महामारी फैली है ऐसे में बड़े पैमाने पर और बहुत अच्छी तरह से आज स्पोर्ट्स डे नहीं मना पाएंगे लेकिन जहां जहां स्पोर्ट्स क्लब हैं, एकेडमीज है, हर खिलाड़ी आज मेजर ध्यानचंद जी को याद कर रहा है। हम सबके प्रेरणा सोत्र रहे हैं। उनसे हम बहुत कुछ सीखते हैं, ऐसे में हम सभी से यही अपील करते हैं कि जो जहां हैं वहीं पर आज नेशनल स्पोर्ट्स डे मनाये।

चंद्र विजय जी आपसे भी जानना चाहेंगे कि आपके लिए किस तरह से ही महत्वपूर्ण है ये दिन?

चंद्र विजय – जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आज का दिन मेजर ध्यानचंद जी को याद करने का दिन है। लेकिन कोरोनावायरस ने के नाते उस बड़े पैमाने पर, उस बड़े स्तर पर इसे नहीं मनाया जा सकता। यह दिन उन खिलाड़ियों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है जो खेल दिवस के दिन पुरस्कारों से नवाजे जायेंगे। खेल में बड़े अचीवमेंट करनेवाले हमारे खिलाडियों को आज ही के दिन मेजर ध्यानचंद अवार्ड, द्रोणाचार्य अवॉर्ड, अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है। मैं उन सभी खिलाड़ियों को बहुत-बहुत बधाई देना चाहूंगा जो भी इन पुरस्कारों के लिए नामित हुए हैं, विशेष रूप से कुश्ती में इस बार साक्षी मलिक, राहुल आवारे, दिव्या काकरान यह सभी कुश्ती में अर्जुन अवार्ड के लिए नामित हुए हैं। ओपी दहिया जी द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए नामित हुए हैं। इन सभी अवॉर्डी को विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूं।

हम सब के लिए कोरोना महामारी का समय बहुत ही क्रूशियल रहा, अगर हम बात करें पोस्ट लॉक डाउन की तो अब तमाम चीजें धीरे-धीरे खुल रही है, अब आप लोगों के प्रैक्टिसेस भी शुरू हो रहे हैं, गुरजीत जी आप खुद बेंगलुरु में है और चंद्र विजय जी आप गोरखपुर में है तो यह पोस्ट लॉकडाउन स्पोर्ट्स के लिए किस तरह से मायने रखता है ?

गुरजीत – स्पोर्ट्स बहुत अच्छी चीज है, जिसमें यह महत्वपूर्ण होता है कि हम अपने आप को फिट कैसे रखें। टीम गेम में डिस्टेंस बहुत कम होता है जो इंडिविजुअल होते हैं वह अकेले प्रैक्टिस तो कर सकते हैं, लेकिन अगर जो बात करें टीम की तो सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन करना थोड़ा मुश्किल होता है।  वही चीज है कि अपने आप को फिट भी रखना है और अपने आप को श्योर भी रखना है कि पोस्ट लॉकडाउन के बाद जब भी हम ग्राउंड पर जाएं तो हमें कोई ऐसी दिक्कत ना हो, या फिर हमें कोई प्रॉब्लम नहीं हो। पोस्ट लॉक डाउन के बाद टीम की जब भी प्रैक्टिस शुरू होगी तो हम लोग उसे अच्छी तरह से कर पाएं। लॉकडाउन में हम लोग व्यक्तिगत फिटनेस पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे ताकि लॉकडाउन खुलने के बाद हम देश की सेवा कर सकें।

हर खिलाड़ी लॉकडाउन के दरमियान अपने आपको पूरा समय दिया और पूरी तरह से फिट रहने की हर संभव कोशिश की। हाल फिलहाल में देश के प्रधानमंत्री जी ने एक नारा दिया था, खेलोगे कूदोगे तो बनोगे नवाब। पहले यह नारा हुआ करता था कि पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब, लेकिन अब इसके मायने बदल गए हैं। यानी कि अब आप खेलेंगे तो आपके लिए बहुत सारी अपॉर्चुनिटीज होंगी। चंद्र विजय जी आप से  जानना चाहूंगा कि अब खेलों के मायने, नजरिया, हर चीज क्या बदला है? अब मां-बाप क्या यह चाहते हैं कि अब उनका बेटा प्रशासनिक अधिकारी ना बन कर वह खेलों में ज्यादा रुचि रखे, वह क्रिकेटर बने, वह रेसलर बने, वह हॉकी प्लेयर बने?

चंद्र विजय – जिस तरह से आपने जिक्र किया वाकई में सच है। पहले यह कहावत थी कि खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब।  फिलहाल का जो दौर चल रहा है इसमें काफी हद तक बदलाव हुआ है। अभी जो अभिभावक है उनकी मानसिकता बिल्कुल बदल गई है। अगर कोई बच्चा खेल में रुचि रख रहा है तो जरूर उसको अभिभावक खेल में डालते हैं और यह जो मायने बदले हैं उसके पीछे हमारे खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत है। ओलंपिक में जो मेडल्स का सूखा था उसको खत्म करते हुए साक्षी मलिक, लिएंडर पेस, सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, साइना नेहवाल जैसे खिलाडी अब ओलंपिक में मेडल ला रहें हैं। इससे खिलाड़ियों को भी लोग जानने-समझने लगे हैं और इसको देखते हुए अभिभावक भी अब जागरूक हुए हैं कि खेल भी एक अच्छा करियर के रूप में चुना जा सकता है। पहले लोगों के दिमाग में डॉक्टर इंजीनियर यही एक अच्छा करियर ऑप्शन होता था। लेकिन उसके विपरीत खेल भी अब एक अच्छा करियर ऑप्शन बनकर आगे आया है। अभिभावक अपने बच्चों को खेल में ला रहे हैं, कुश्ती चूँकि गांव का खेल है उसमें ज्यादातर लड़के गांव से जुड़े हुए हैं और आज की तारीख में हमें लगता है कि सबसे ज्यादा बच्चे कुश्ती में आ रहे हैं। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश राजस्थान कहीं भी आप देखिए। कुश्ती की नई-नई एकेडमी हर जगह खुल रही है अब और प्रॉपर सिस्टमैटिक अपनी ट्रेनिंग ये बच्चें कर रहे हैं। तो अभिभावकों का, पेरेंट्स का बहुत बड़ा योगदान है इसमें, जो कि खेल की तरफ अब जागरूक हुए हैं।

हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी है, दूसरे खेल भी बहुत ही अहम होता है, कुश्ती हो या फिर कबड्डी हो, इन तमाम खेलो को उतना तवज्जो नहीं दिया जाता है जितना क्रिकेट को दिया जाता है। एक ही खेल लोगों में जुनून पैदा करता था, वह है क्रिकेट। क्रिकेट में ग्लैमर है, तड़क-भड़क है, पैसा है, रुतबा है, क्रिकेटर्स स्टार्स कहलाते हैं, लेकिन क्या इस सोच में बदलाव आया है? गुरजीत जी सबसे पहले आपसे जानना चाहेंगे कि क्या अब दूसरे खेलों के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है ?

गुरजीत – जी बिलकुल, परिस्थितियां पहले से बहुत बदल चुकी है। पहले सबसे ज्यादा लोग क्रिकेट को देखा करते थे। उसमें ज्यादा रुचि रखते थे।  ऑलमोस्ट सभी लोगों को पता था कि क्रिकेट के नियम क्या है, किस तरह से खेला जाता है, क्रिकेट को लोग अच्छी तरह से समझते थे। इसलिए दूसरे खेलों को बहुत ज्यादा ध्यान लोग नहीं देते थे। क्रिकेट पर लोग ज्यादा ध्यान देते थे और अन्य खेलों पर बहुत कम। लेकिन अब बहुत बदलाव हो गया है। अब हर एक स्पोर्ट्स को तवज्जो दिया जाता है, एक समान आंका जाता है। देश के खिलाड़ी देश के लिए खेलते हैं। देश के लिए मेडल लेकर आते हैं। ऐसे में अब हर खेल महत्वपूर्ण हो गया है।

चंद्र विजय जी आपसे जानना चाहेंगे कि पहले सिर्फ क्रिकेट का राष्ट्रीय प्रसारण होता था, तमाम लोग क्रिकेट के प्रति आकर्षित होते थे, लेकिन अब दूसरे खेलों के प्रति भी लोगों की रुचि बढ़ी है। चाहे वह कबड्डी हो, कुश्ती हो या फिर कोई अन्य गेम। अब हर खेल को एक ही नजरिए से देखा जाने लगा है। क्या यह खिलाड़ियों की जीत है? क्या यह सरकारी तंत्र की भी जीत है? क्या यह सामाजिक तंत्र की भी जीत है?

चंद्र विजय – जिस तरह से अभी आपने जिक्र किया कि राष्ट्रीय प्रसारण पर क्रिकेट को दिखाया जाता था। जो मेरा अपना मानना है अब से आप 15-20 साल पहले चले जाईये, कोई भी टीवी पर चैनल चलता हो तो सिर्फ क्रिकेट के अलावा कभी किसी दूसरे खेलों के बारे में नहीं बताया गया। उनके खिलाड़ियों के बारे में नहीं बताया गया। उनके खेल के बारे में टीवी पर दिखाया ही नहीं जाता था। टीवी में जो पहले दिखाया जाता था, बच्चे उसी को देखते थे। उसी खेल के प्रति आकर्षित होते थे, उन्हीं खिलाड़ियों को बच्चे जानते थे और उसी से वह मोटिवेट होते थे। हॉकी पर हम गोल्ड मेडलिस्ट है। कुश्ती में हम पहले भी अच्छे थे, एथलेटिक्स में हमारे अच्छे खिलाड़ी रहे हैं लेकिन कभी भी न्यूज़ में, टीवी में दूसरे खेलों को ज्यादा दिखाया ही नहीं गया। जो बच्चे खेल में आगे रुचि रखते थे, तो जो चीज उनको दिखाया जाता था, जैसे क्रिकेट, तो वह उसी के प्रति आकर्षित होते थे। टीवी में देख देखकर हर एक रूल हर एक ट्रिक देखकर बच्चें सीख गए थे। इसमें हम गवर्नमेंट का बहुत बड़ा रोल नहीं मानते क्योंकि क्रिकेट का उनका अपना मैनेजमेंट था। जहां पर प्राइवेट कंपनियों ने, चाहे वह सहारा हो, हीरो हौंडा हो, कोका कोला हो, हर कंपनियों ने क्रिकेट को स्पॉन्सर किया। दूसरे खेलों में कई बार यहां तक दिक्कत आती थी कि खिलाड़ी को खेलने जाना है और गवर्नमेंट द्वारा किट की भी व्यवस्था नहीं हो पा रही है। लेकिन क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए किट की लाइन लगी रहती थी। अभी जो ओलंपिक में मेडल आने शुरू हुए हैं, उससे ट्रेंड बदला है और महत्वपूर्ण यह भी हो जाता है कि अब लीग शुरू हो गए हैं। चाहे वह कबड्डी लीग हो, हॉकी लीग शुरू हुई, यह लीग शुरू होने से टीवी में खिलाड़ियों को दिखाया जाने लगा। उनके खेलों को दिखाया जाने लगा। प्रो कबड्डी लीग में खेलने वाले हर खिलाड़ी को गांव का हर एक बच्चा बच्चा उनको नाम से, उनके चेहरे से, खिलाड़ियों को जानने लगा है। कबड्डी के नियमों को जाने लगा है। जो चीज मीडिया में, न्यूज़ में दिखाया जाता है वह लोगों को आकर्षित करती हैं। जो भी खेल और जो भी खिलाड़ी रिजल्ट दे रहा है उसको लोग सम्मान दे रहे हैं, सरकार भी सम्मान दे रही है।

आपने जिस तरह से कंपनियों के बारे में बताया, चाहे वो हीरो हौंडा हो या फिर सहारा हो, तमाम ये कंपनियां अब स्पोर्ट्स को तवज्जो देने लगे हैं। यहां पर हम जिक्र करना चाहेंगे सीएसआर की यानी कि कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की। अब जितनी भी कॉरपोरेट कंपनियां है वह अपने सीएसआर फंड के तहत अच्छा खासा अमाउंट स्पोर्ट्स में भी देने लगी है। यह एक अच्छी पहल है, इसको लेकर गुरजीत जी आपसे जानना चाहेंगे क्या कहेंगी आप सीएसआर फंड को लेकर ?

गुरजीत – सीएसआर, कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी यह बेहद सराहनीय पहल है। जिसके तहत कंपनियां आगे आकर खेल और खिलाड़ियों की मदद कर रही है। अगर हम बात करें खेलो इंडिया खेलो की, तो खिलाड़ी अपना पूरा दमखम दिखाते हैं। लेकिन अगर कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा उनको मदद मिलती है तो यह उन्हें और निखारने में उत्साहित करती है। कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा मदद मिलने से प्लेयर्स मोटिवेट होते हैं और अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देते हैं। उनके दिमाग में होता है कि हमें कुछ अच्छा करना है। जिस तरह से कंपनी हमारी मदद कर रही हैं वैसे ही हमें देश के लिए खेलना है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन करना है। जिस तरह से अभी सीएसआर के तहत स्पोर्ट्स को बहुत इंपॉर्टेंट दिया जा रहा है, उम्मीद है कि आगे भी इसी तरह से कॉर्पोरेट कंपनियां खेलों के लिए मदद करती रहेंगी।

अपने देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बस जरूरत है उन्हें निखारने की। सीएसआर एक बहुत बढ़िया माध्यम है जिससे देश की प्रतिभाओं को निखारा जा रहा है। चंद्र विजय जी आपसे जानना चाहेंगे क्या कहेंगे आप छोटे-छोटे गांव से जो लोग निकल कर आ रहे हैं और बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन कर रहे हैं। ऐसे प्रतिभाओं को निखारने के लिए क्या कॉरपोरेट कंपनियों को बढ़ चढ़कर हिस्सा नहीं लेनी चाहिए?

चंद्र विजय – सीएसआर के तहत अब बड़ी-बड़ी कंपनियां खेलों में लोगों की मदद के लिए आ रही है। खेलों को स्पॉन्सर कर रही हैं। खिलाड़ियों को स्पॉन्सर कर रही है। हमारी जो कुश्ती फेडरेशन है उसको पिछले 2 सालों से टाटा मोटर्स ने स्पॉन्सर करना शुरू किया है। जो भी हमारे खिलाड़ी हैं सीनियर-जूनियर अगर वह नेशनल टीम में सिलेक्ट हो रहे हैं, अगर वह मेडल दे रहे हैं तो उनको यह स्पॉन्सर कर रही हैं। उनके डाइट के लिए हर महीने उनको स्कॉलरशिप देती है। ज्यादातर लड़के चाहे कबड्डी हो, कुश्ती हो, वह गांव से आते हैं और जो कंपनियां अपना योगदान दे रही हैं वह बड़े शहरों में दे रही हैं। जो मैंने अभी तक देखा है वह हमेशा बड़े लेवल पर कंपनियां स्पॉन्सर करती हैं, चाहे वह दिल्ली हो, मुंबई हो, कोलकाता हो जहां बड़े स्टेडियम हो, जहां पर बड़े एकेडमी होता है। जो नेशनल लेवल का खिलाड़ी है उनको तो सुविधाएं दी जाती है। लेकिन जो हमारा ग्रास रूट है, हमारे गांव, जहां से बच्चें आते हैं, उन तक यह सुविधाएं मिलनी चाहिए। मैं मूल रूप से गोरखपुर का रहने वाला हूं और हमारे गांव में जो प्रैक्टिस कर रहे हैं उन तक यह मदद नहीं पहुंच पाती। उनकी जिंदगी में कोई सुधार नहीं है। 15 साल पहले जो ट्रेनिंग की व्यवस्था थी वही आज भी है। हर जगह कुश्ती में अब ट्रेनिंग मैट पर होने लगी है लेकिन अभी भी लोग जमीन पर प्रैक्टिस करते हैं। कम से कम बुनियादी सुविधाओं का ख्याल रखते हुए यह कंपनियां थोड़ा ग्रामीण इलाकों में भी झांकना चाहिए।

अगर हम आप दोनों की निजी जिंदगी में झांके, तो बहुत ही संघर्षपूर्ण जिंदगी रहा है आप दोनों की। एक प्रेरणा जरूर आने वाली पीढ़ी आप दोनों की जिंदगियों से लेगी, तो हम जानना चाहेंगे बारी-बारी से, गुरजीत जी पहले आपसे जानना चाहूंगा कि आप प्रेक्टिस करने के लिए हर दिन 150 किलोमीटर की यात्रा करती थी और अपने गांव से शहर की ओर आती थी ?

गुरजीत – मुझे पहले स्पोर्ट्स का जरा भी नॉलेज नहीं था, मेरा स्कूल घर से बहुत दूर था, मुझे मेरे पेरेंट्स घर से स्कूल छोड़ने जाते थे और वहां से मुझे लेकर भी आते थे। 20 किलोमीटर जाना, फिर 20 किलोमीटर आना। स्कूली दिनों में भी हमें हर दिन 40 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी और यह बहुत मुश्किल भरा दौड़ रहा। उसके बाद परिवार वालों ने तय किया कि मुझे और मेरी सिस्टर को हॉस्टल में डालने के लिए। जब हम हॉस्टल में स्टडी के लिए गए थे, तो वहां पर हमने स्पोर्ट्स के बारे में जानना सीखा, समझना सीखा और वही पर मेरी स्पोर्ट्स को लेकर रुचि जागी और मुझे लगा कि मुझे भी खेलना चाहिए। मैंने और मेरे सिस्टर ने डिसाइड किया खेलने को और फिर मैंने हॉकी चूज किया। स्टार्टिंग में बहुत ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा। हमें हॉकी स्टिक भी पकड़ना नहीं आता था, बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। वह दौर बहुत ही मुश्किल भरा रहा। धीरे-धीरे खेल को हम निखारते गए, प्रैक्टिस हम करते गए। हर प्लेयर हर दिन कुछ न कुछ नया सीखता है। जैसे जैसे हमारा नॉलेज बढ़ता गया, हमारा ऐम भी बढ़ता गया। मैंने मेरा टारगेट सेट किया कि मुझे हॉकी प्लेयर बनना है। जिद थी कि मुझे देश के लिए खेलना है, देश का नाम रोशन करना है। मेरे गांव में कोई भी स्पोर्ट्समैन नहीं है। कोई भी खेल का मैदान नहीं है। संघर्षों के बाद में जूनियर में सिलेक्ट हो गई। फिर सीनियर टीम में सिलेक्ट हुई। उसके बाद और भी नॉलेज बढ़ता गया, संघर्षों का दौर जारी ही था और हमने संघर्षों के बाद आज यह मुकाम हासिल किया और हमें गर्व है कि हम आज देश के लिए खेल रहें है।

चंद्र विजय जी आपसे जानना चाहेंगे कि गोरखपुर में एक छोटा सा गांव है बड़हलगंज आप वहां से बिलॉन्ग करते हैं, आपके पिताजी मिलिट्री में थे, एक छोटे से गांव से शुरू होकर एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन कर रहे हैं। आप अपनी भी कहानी हमारे दर्शको को बताएं ताकि वह प्रेरित हो सकें।

चंद्र विजय – बड़हलगंज के पास डेरवा मेरा गांव है। वह कछार है, मेरा गांव काफी पिछड़ा है, सरयू किनारे मेरा गांव है। मेरे गांव के आसपास कुश्ती बहुत लोकप्रिय है। जब से मैंने होश संभाला है तब से मैं कुश्ती देख रहा हूं। हमारे गांव में कुश्ती का अखाड़ा है। हमारे घर में खुशी का माहौल था। हमारे पिताजी आर्मी में कुश्ती के कोच थे। हमारे बड़े चाचा भी कुश्ती में थे। शुरू में एक माहौल बन गया तो हम भी रेसलर बनेंगे ऐसा ठान लिया। बेसिक ट्रेनिंग अपने गांव में करने के बाद यूपी गवर्नमेंट की एक योजना के तहत गोरखपुर में स्पोर्ट्स कॉलेज में मैंने एडमिशन ले ली। 1988-89 में उस समय मैंने दाखिला लिया और 5 सालों तक मैंने स्पोर्ट्स कॉलेज में ट्रेनिंग की। उसके बाद मेरठ के स्पोर्ट्स हॉस्टल में मेरा सिलेक्शन हुआ। 1995 में पहली बार मेरा जूनियर में सिलेक्शन हुआ। 1995 में ही मैंने पोलैंड में मेडल जीता। उसके बाद मैंने रेलवे ज्वाइन किया। क्योंकि रेलवे खिलाड़ियों के लिए बहुत बड़ा  योगदान है। रेलवे एक ऐसी संस्था है जो भी देश के अच्छे खिलाड़ी है उनको एक मुकाम देती है, उनको एक जगह देती है, उनको एक रोजी रोटी देती।

चंद्र विजय जी आप नॉर्थ ईस्ट रेलवे से ताल्लुक रखतें हैं और गुरजीत कौर नॉर्थ सेंट्रल रेलवे से बिलॉन्ग करती है।

चंद्र विजय – 2010 में मैं जूनियर टीम के लिए कोच बना। उसके बाद से मैं सीनियर रेसलिंग टीम का कोच बना, फिलहाल देश की सेवा कर रहा हूं।