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April 16, 2025

National Safe Motherhood Day: ताकि स्वास्थ्य रहें मां और बच्चा

National Safe Motherhood Day: राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस हर साल 11 अप्रैल को मनाया जाता है। इस खास दिन का उद्देश्य है गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल, सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरी जागरूकता फैलाना । गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव के बाद की स्थितियों में मां और बच्चे दोनों का स्वस्थ रहना बेहद ज़रूरी होता है, और यही संदेश इस दिन के माध्यम से पूरे देश में दिया जाता है। यह दिवस 2003 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया, जो महात्मा गांधी की पत्नी और स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणादायक महिला नेता कस्तूरबा गांधी की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के बारे में

National Safe Motherhood Day: महिलाओं के जीवन में गर्भावस्था एक बेहद ही महत्वपूर्ण चरण है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को न केवल अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है, बल्कि अतिरिक्त सहायता की भी जरूरत होती है। लोगों की मान्यताओं के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को मिलने वाली देखभाल और सहायता का स्तर उनके मानसिक स्वास्थ्य और बच्चे के भावनात्मक विकास दोनों पर प्रभाव डालता है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोत्तर अवधि (Postpartum Care) के दौरान सुरक्षा और कल्याण के महत्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है। मातृ स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और उनके परिवारों को गर्भावस्था एवं प्रसव तकनीकों के बारे में जानकारी देने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है।

क्या कहते हैं आंकड़े

National Safe Motherhood Day: गर्भावस्था से पहले, इसके दौरान तथा प्रसव के बाद कई बार सावधानियों व देखभाल की कमी, या उनके कारण होने वाली ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं, जिन्हे इलाज से ठीक या नियंत्रित किया जा सकता था , कई बार उचित उपचार और देखभाल के अभाव में माता व गर्भस्थ शिशु को काफी मुश्किल में डाल देती हैं। वहीं कई बार अन्य कारणों से दोनों के लिए जान का जोखिम या कई अन्य गंभीर समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है। भारत में मातृत्व मृत्यु का आंकड़ा दूसरे देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है। यही नहीं, भारत को दुनिया में सबसे अधिक मातृत्व मृत्यु दर वाले देशों में से एक माना जाता है। आंकड़ों के मुताबिक,  भारत में 12 प्रतिशत महिलाओं की मौत गर्भावस्था, प्रसव और पोस्ट डिलीवरी के बाद होने वाली परेशानियों की वजह से होती है, जो कि लगभग 24 हजार महिलाओं था, जो दुनिया में मातृत्व मौतों का दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। वहीं कुछ वेबसाइट पर उपलब्ध हालिया आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल लगभग 35,000 से अधिक महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान उचित देखभाल न होने के चलते मौत हो जाती है।
भारत में हर साल जन्म देते समय तकरीबन 45000 महिलाएं प्रसव के दौरान अपनी जान गंवा देती हैं। देश में जन्म देते समय प्रति 100,000 महिलाओं में से 167 महिलाएं मौंत के मुंह में चली जाती हैं। वर्ष 2020 में आई संयुक्त राष्ट्र UN की एक रिपोर्ट के अनुसार, 20 सालों में मातृ मृत्यु दर में एक तिहाई की गिरावट के बावजूद गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं के कारण हर 2 मिनट में एक महिला की मौत दर्ज की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में वर्ष 2020 में लगभग 2.87 लाख मातृत्व मौतें हुईं थी।

Health Infrastructure सुधरा, हालात भी, लेकिन अब फिर बिगड़ रहे

National Safe Motherhood Day: प्रेग्‍नेंसी के दौरान हाई ब्‍लड प्रेशर की वजह से कई बार दिक्‍कतें आती हैं। इसके अलावा जन्‍म के बाद मां को इंजेक्‍शन देने से भी कई बार मौतें दर्ज की गई हैं। असुरक्षित गर्भपात भी मातृ मृत्‍यु दर का एक बड़ा फैक्‍टर है। सरकार ने यह सोचकर,  कि अच्‍छी स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं वाली जगह पर डिलीवरी होगी तो हालात सुधरेंगे, इसपर काफी पैस खर्च किया। 2004 में जहां अस्‍पतालों में 43 फीसदी डिलीवरी होती थीं, 2018 तक यह आंकड़ा 83 प्रतिशत तक पहुंच गया। शुरू में इसका प्रभाव दिखा, मगर अब कुछ राज्‍यों के आंकड़े डरा रहे हैं। कई राज्‍यों में अब भी मातृ मृत्‍यु दर कम नहीं हो रही। Assam का ही उदाहरण लीजिए। वहां पर लगभग 83 प्रतिशत डिलीवरी अस्‍पतालों में होती है, जबकि बिहार में 70 प्रतिशत और झारखंड-61.7 प्रतिशत से भी कम! लेकिन असम की मातृ मृत्‍यु दर 215 है जबकि बिहार की 149। झारखंड में मातृ मृत्‍यु दर नैशनल एवरेज से भी कम सिर्फ 71 है। कर्नाटक में 97.6 प्रतिशत डिलीवरी अस्‍पतालों में हो रही हैं जबकि वहां मातृ मृत्‍यु दर 92 है, जो कि हरियाणा (91) या तेलंगाना (63) से भी ज्‍यादा है जहां अस्‍पतालों में क्रमश 86 और 94 फ़ीसदी डिलीवरी होती हैं। हालांकि स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के मुताबिक भारत में मातृ मृत्‍यु दर में तेजी से कमी आ रही है। देश ने 1990 से 2011-13 की अवधि में 47 प्रतिशत की वैश्विक उपलब्धि की तुलना में मातृ मृत्‍यु दर को 65 प्रतिशत से ज्‍यादा घटाने में सफलता हासिल की है।

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस का इतिहास और उद्देश्य: National Safe Motherhood Day

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस हर साल 11 अप्रैल को मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य मातृ स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर, गुणवत्तापूर्ण मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाकर और महिलाओं और उनके परिवारों को सुरक्षित गर्भावस्था के बारे में शिक्षित करके भारत में मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करना है। व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (WRAI) ने भारत सरकार से कस्तूरबा गांधी के सम्मान और सुरक्षित मातृत्व को बढ़ावा देने के लिए 11 अप्रैल को एक विशेष दिन बनाने के लिए कहा, जिसके बाद 2003 से हर साल 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में जाना जाता है। पूरे देश में लोग हर साल एक विशिष्ट विषय पर ध्यान केंद्रित करते हुए, विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों के साथ इस दिन को मनाते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की Themes का चयन व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (WRAI) द्वारा किया जाता है, और वे मातृ स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस वर्ष 2025 की आधिकारिक थीम ‘मातृ स्वास्थ्य सेवा में समानता: किसी भी मां को पीछे न छोड़ना’ रखी गई है।

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस का महत्व

National Safe Motherhood Day: राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के लिए 11 अप्रैल तारीख के चयन का एक उद्देश्य वर्ष 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा शुरू की गई ‘सुरक्षित मातृत्व पहल योजना’ को याद करना व रखना भी था। इस योजना का उद्देश्य भी सुरक्षित और प्रभावी मातृ और नवजात देखभाल को बढ़ावा देकर दुनिया भर में मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करना था। National Safe Motherhood Day के अवसर पर केंद्र व राज्य सरकारों तथा सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा गर्भावस्था, प्रसव, पोस्ट-डिलीवरी तथा गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी बातों तथा अन्य जानकारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए गांव, कस्बों तथा शहरों में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। सुरक्षित मातृत्व को लेकर डफरिन अस्पताल में जननी सुरक्षा योजना का लाभ 95 फीसदी से अधिक महिलाओं को मिल रहा है। अस्पताल के प्रबंधक भूपेन्द्र सिंह ने बताया कि 2024-25 में 3140 महिलाओं ने जननी सुरक्षा का लाभ उठाया। इसमें ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को 1400 रुपये और शहरी महिलाओं को 1000 रुपये भुगतान किया गया। उन्होंने बताया कि जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से सुरक्षित मातृत्व को बढ़ावा देने, गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करना और मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना है। इस मौके पर शहर, गांव और कस्बों में मेडिकल टीमें जाकर महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जरूरी जांच, देखभाल व सावधानी, जरूरी पोषण, प्रसव से जुड़ी जरूरी बातें जैसे आपातकालीन प्रसूति देखभाल, प्रसवोत्तर यानी डिलीवरी के बाद देखभाल, परिवार नियोजन तथा असुरक्षित गर्भपात की रोकथाम और प्रबंधन जैसे मुद्दों के लेकर जानकारी देते हैं। इस अवसर पर स्वास्थ्य कर्मी गर्भावस्था के या प्रसव के दौरान तथा बाद में महिलाओं को अधिक देखभाल की जरूरत क्यों है,उनकी देखभाल कैसे की जा सकती है? महिलाओं को गर्भावस्था या प्रसव के दौरान किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है? तथा उनका प्रबंधन व इलाज कैसे किया जा सकता है ? सहित अन्य जरूरी बातों को लेकर लोगों को शिक्षित करने का प्रयास भी करते हैं। वहीं इस अवसर पर कई स्थानों पर जांच शिविर भी लगाये जाते हैं। गौरतलब है कि बाल विवाह, कम उम्र में असुरक्षित यौन संबंध, तथा बहुत कम उम्र में गर्भावस्था व प्रसव भी इस अवधि में महिला की मृत्यु का बड़ा कारण माना जाता है। इसलिए यह दिन बाल विवाह को रोकने के लिए भी बढ़ावा देता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बाल विवाह व कम उम्र में असुरक्षित यौन संबंधों के नुकसान तथा कम आयु में लड़की के मां बनने के खतरों को लेकर जागरूक किया जा सके। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के उद्देश्य निम्न प्रकार से है:
गर्भवती महिलाओं को समय पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना।
अस्पताल या प्रशिक्षित दाई की सहायता से सुरक्षित डिलीवरी के लिए प्रेरित करना।
प्रसवोत्तर देखभाल के महत्व को समझाना।
गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में मातृ मृत्यु दर को कम करना।
महिलाओं को उनके मातृत्व संबंधी अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना।
सरकारी योजनाओं और सुविधाओं की जानकारी देना।

National Safe Motherhood Day: ताकि मां-बच्चा दोनों रहें स्वस्थ

अमूमन महिलाओं की डिलीवरी 9 महीने में होती है। गर्भावस्था का संपूर्ण काल केयरिंग के हिसाब से 3-3 महीने की अवधि में बंटा होता है। प्रत्येक 3 महीने प्रेग्नेंट महिलाओं के स्वास्थ्य के लिहाज से महत्वपूर्ण होते हैं। महिलाएं वैसे ही बहुत अधिक सेंसटिव होती हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान यह संवेदनशीलता बहुत अधिक बढ़ जाती है। पहले 3 महीने इसलिए जरूरी-पहले 3 महीने को फर्स्ट ट्राइमेस्टर कहा जाता है। ये आखिरी पीरियड से लेकर 12 वें सप्ताह तक का समय होता है। ये पहले तीन महीने महिलाओं के लिए बड़े नाजुक होते हैं। इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है। मिनरल्स और प्रोटीन से भरपूर डाइट का सवेन करें। ऐसी चीज़ें खाएं, जिनमे फोलिक एसिड, आयरन, कैल्शियम और फोलेट भरपूर हों। थोड़े थोड़े समय पर भोजन करते रहें। डेली रूटीन एक्टिविटी करते रहें, जबतक डॉक्टर मना न करें। घर पर थोड़ा बहुत टहलते रहें, इसे लेग्स एक्सरसाइज होती रहती है, जोकि बहुत जरूरी है। आराम पर विशेष फोकस रखें और अनावश्यक तनाव न लें। कैफीन युक्त कोई भी लिक्विड फूड आइटम न लें। Digestive System बिगड़े, ऐसी कोई भी चीज न खाएं। यदि किसी भी तरह की परेशानी हो रही है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
दूसरी और तीसरी तिमाही ऐसे ध्यान रखें-पूरे नौ महीने को 3-3 महीने में बांटा गया है। दूसरा ट्राइमेस्टर 13 वें सप्ताह से लेकर 26 वें सप्ताह तक होता है। यह चरण सुरक्षित माना जाता है। वहीं, तीसरा ट्राइमेस्टर 27 सप्ताह से Delivery वाले दिन तक माना जाता है। इसमें Delivery Pain, सूजन और कुछ समस्याएं देखने को मिल सकती हैं। इस दौरान सावधानी बरतने की जरूरत होती है। इस दौरान दूध, प्रोटीन, फाइबर युक्त खाने की मात्रा बढ़ा दें, मगर भोजन संतुलित हो, ये ध्यान रखें। अनाप शनाप कुछ भी बिल्कुल न खाएं। वजन न बढ़े इस बात का भी विशेष ख्याल रखें। Dehydration बिल्कुल न हो, इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखें। योग या हल्की फुल्की एक्सरसाइज करते रहें। शराब, स्मोकिंग और कैफीन का सेवन करने से बचें। ढीले ढाले और आरामदायक कपड़े पहनें।

प्रेगनेंसी में भूलकर ना करें ये गलतियां

गर्भवती महिलाओं को कॉफी और अन्य Caffeine पीना छोड़ने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे उनके बच्चे बेचैन और चिड़चिड़े होने लगते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान ऊंची हील्स नहीं पहननी चाहिए। जब आपका पेट बढ़ता है तो सेंटर ऑफ ग्रैविटी भी बदल जाता है। इस वजह से आपको अपने पैरों पर खड़े होने में दिक्कत आती है। कोई भी दवाई लेने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें और उचित सलाह लें। पेट या कमर में दर्द हो तो Hot Bath या सिकाई ना करें। बढ़े तापमान की वजह से पहली तिमाही के दौरान बर्थ डिफेक्ट की समस्या आ सकती है। कच्चे या अधपके समुद्री भोजन, Unpasteurised डेयरी उत्पाद, डेली मीट और सॉफ्ट चीज़ (cheese) से दूर रहें, क्योंकि इनमें Listeria या जैसे Salmonella जैसे हानिकारक बैक्टीरिया हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त शार्क, स्वोर्डफ़िश, किंग मैकेरल और टाइलफ़िश जैसी मछलियों के सेवन से बचें क्यूंकि इनमे मरक्यूरी की मात्रा अधिक होती है। घरेलू रसायनों, कीटनाशकों, लेड (lead) और Solvent सहित पर्यावरणीय टॉक्सिन्स और प्रदूषकों के संपर्क से सावधान रहें। हानिकारक पदार्थों के संपर्क को सीमित करें, और सफाई उत्पादों का उपयोग करते समय दस्ताने और मास्क पहने।

खुश रहें, स्वस्थ रहें

एक कहावत है ‘Laughter Is The Best Medicine’, यानी हंसना या खुश रहना सबसे अच्‍छी दवाई है। हमारा मन क‍िसी कंप्‍यूटर से कम नहीं है। आप जैसे उसे प्रोग्राम करेंगे, वह वैसे ही चलेगा। ये बात भी सच है क‍ि आपका द‍िमाग, शरीर से जुड़ा है। जो भी आप सोचेंगे, उसका अच्‍छा या बुरा असर आपके शरीर पर पड़ता है। ऐसा माना जाता है क‍ि गर्भवती मह‍िलाओं को हमेशा खुश रहना चाह‍िए। इस तरह उनका मूड अच्‍छा रहेगा और वह शारीर‍िक कष्‍ट को सहने के ल‍िए खुद को तैयार कर पाएंगी। तनाव लेने का बुरा असर गर्भस्‍थ शिशु के स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ता है, इसल‍िए मह‍िलाओं को तन और मन से हेल्‍दी रहने की सलाह दी जाती है। प्रेग्नेंसी में खुश रहने से Immunity बढ़ती है और तनाव कम होता है। इम्‍यून‍िटी बढ़ने से आप बीमार‍ियों से खुद को बचा सकती हैं। प्रेग्नेंसी में खुश रहकर आप High BP की समस्‍या से बच सकते हैं। High BP के कारण प्रीमेच्‍योर ड‍िलीवरी का खतरा बढ़ जाता है। प्रेग्नेंसी में खुश रहेंगी, तो मॉर्निंग सिकनेस और स‍िर में दर्द जैसी समस्‍याओं से बच सकती हैं। ऐसा माना जाता है क‍ि जब हम खुश होते हैं, तो हमारे शरीर में र‍िलीज होने वाले Hormones, Pain Killer का काम करते हैं। इसल‍िए प्रेग्नेंसी में होने वाले दर्द को कम करने के ल‍िए मह‍िला को द‍िल से खुश होना चाह‍िए। इस तरह दर्द को सहने की ह‍िम्‍मत भी म‍िलती है। प्रेग्नेंसी में खुश रहने से ड‍िप्रेशन को कम क‍िया जा सकता है और मानस‍िक व‍िकारों से बचाव हो सकता है।

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