शनिवार की सुबह मुंबई ने खुशनुमा मौसम में आंखें खोलीं। आसमान बिल्कुल साफ, धूप चमकदार और हवा में हल्की ठंडक ! मौसम ने लोगों को राहत का एहसास कराया। लेकिन इसी साफ हवा के बीच एक अदृश्य खतरा मंडरा रहा है। रियल-टाइम मॉनिटरिंग के अनुसार शहर का AQI 250 तक पहुंच गया है, जो ‘अनहेल्दी’ श्रेणी में आता है।
महानगर के सुहाने मौसम में दूषित हवा ने घोला ज़हर
मुंबई ने शनिवार की सुबह साफ नीले आसमान और हल्की ठंडी हवा के साथ शुरुआत की। शहर में सूरज की रोशनी साफ चमक रही थी और तापमान भी सुहावना रहा। हालांकि, मौसम का ‘मूड’ भले ही अच्छा रहा हो, लेकिन हवा के ‘स्वास्थ्य’ ने चिंता बढ़ा दी है। शनिवार सुबह मुंबई का कुल एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 250 दर्ज किया गया, जो “अस्वस्थ स्तर” की श्रेणी में माना जाता है।
क्या है 250 का मतलब?
AQI का स्तर जब 200 से ऊपर पहुंचता है, तो यह हवा में मौजूद प्रदूषक कणों के खतरनाक स्तर का संकेत होता है। इस स्तर पर सामान्य लोगों को भी सांस लेने में समस्या हो सकती है। सबसे ज़्यादा खतरा अस्थमा और एलर्जी रोगी, दिल के मरीज़ों, छोटे बच्चे और बुजुर्गों को हो सकती है। इन वर्गों को बाहर निकलते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
मौसम विशेषज्ञों की चेतावनी
चिकित्सकों का कहना है कि लगातार ऐसे स्तर की हवा में रहने से फेफड़ों की क्षमता कम हो सकती है, दमा के दौरे और संक्रमण के खतरे बढ़ सकते हैं। भारी ट्रैफिक और वाहन उत्सर्जन, निर्माण परियोजनाएं, इंडस्ट्रियल धुआं, मौसमी बदलाव और हवा की धीमी गति मौसम को ख़राब बना सकती है। ऐसे में बाहर निकलते समय कुछ सावधानियां बरतें।
बाहर जाएं तो मास्क लगाएं,
घर में एयर-प्यूरिफायर या पौधे रखें,
सुबह-शाम बाहर वॉक करने से बचें,
बच्चों को धूल-धुएं वाले क्षेत्रों से दूर रखें ।
नीला आसमान देखकर मन भले ही खुश हो जाए, लेकिन हवा की ‘क्वालिटी’ यह याद दिला रही है कि मुंबई में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है और लोगों को इसकी कीमत सेहत से चुकानी पड़ेगी।
नीला आसमान, जहरीली हवा: मुंबई की सांसों पर मंडराता खतरा
मुंबई ने शनिवार की सुबह साफ आसमान, हल्की हवा और चमकदार धूप के साथ शुरुआत की। दृश्य सुहावना था, मौसम सुखद था, लेकिन हवा की गुणवत्ता ने इन सब पर एक अदृश्य विष की परत चढ़ा दी। शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 250 दर्ज किया गया, जो “अस्वस्थ” श्रेणी में आता है। यह स्तर वह है, जिससे सामान्य व्यक्ति भी प्रभावित होता है और खासकर बच्चे, बुजुर्ग तथा सांस या हृदय रोगी सीधे खतरे के घेरे में आते हैं।
लगातार बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय
यह स्थिति केवल एक दिन का अलर्ट नहीं, बल्कि मुंबई जैसे महानगर की लगातार बिगड़ती होती पर्यावरणीय सेहत का संकेत है। पिछले कुछ वर्षों में प्रदूषण अब दिल्ली जैसे शहरों की समस्या भर नहीं रह गया है। मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद जैसे शहर भी जहरीली हवा की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। मुंबई का समुद्री तट हमेशा से इसे शहरी धुएं से कुछ राहत देता रहा था, लेकिन यह सुरक्षा कवच अब कमजोर पड़ रहा है।
सबसे बड़ा सवाल- आखिर जिम्मेदार कौन है?
क्या यह केवल बढ़ते वाहन हैं या फिर बेतहाशा निर्माण कार्य? उद्योगों का धुआं, या सरकारों की मौन स्वीकृति? सच्चाई यह है कि इससे बचने के लिए सिर्फ एक विभाग नहीं, बल्कि शहरी शासन के ढांचे, नागरिक व्यवहार और नीति-निर्माण, सबको उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए। मुंबई में प्रतिदिन लाखों गाड़ियां चलती हैं। मेट्रो का विस्तार जारी है, लेकिन निजी वाहन कम नहीं हुए। निर्माण कार्य लगातार जारी है, लेकिन उनके लिए डस्ट कंट्रोल के नियम कितने लागू हो रहे हैं? सरकारें योजनाओं की घोषणा करती हैं, पर उनका क्रियान्वयन अक्सर कागज़ों तक सीमित रह जाता है।
प्रदूषण को हम केवल “सर्दियों की समस्या” समझकर भूल जाते हैं
जब AQI बढ़ता है, अखबार लिखते हैं, टीवी बहस करता है और फिर सामान्य जीवन वापस धुएं में घुल जाता है। लेकिन शहर की सांसें हर दिन धीमी हो रही हैं। हमारे बच्चे जिस हवा में बड़े हो रहे हैं, वह फेफड़ों की क्षमता कम कर रही है। डॉक्टर बताते हैं कि प्रदूषित हवा लंबे समय में कैंसर जैसी बीमारियों को जन्म दे सकती है। यह सिर्फ पर्यावरण की समस्या नहीं, यह जन स्वास्थ्य का संकट है। अब यह जरूरी हो गया है कि मुंबई जैसे शहरों में ‘क्लीन एयर पॉलिसी’ को प्राथमिकता दी जाए-
वाहनों पर प्रदूषण टैक्स हो,
निर्माण कार्यों पर नियम सख्ती से लागू हों,
हर इलाके में रीयल टाइम AQI डिस्प्ले लगे,
समुद्र और प्राकृतिक हरियाली को बचाया जाए,
नागरिकों में भी जागरूकता बढ़े, सिर्फ शिकायत नहीं, जिम्मेदारी भी !
आने वाली पीढ़ी के लिए ज़िम्मेदार बनें
भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य तय किया है। पर सवाल है- क्या हम आने वाले पांच सालों में भी अपने बच्चों को साफ हवा दे पाएंगे? मुंबई का साफ आसमान सुंदर है, लेकिन यदि उसके नीचे की हवा ज़हरीली है, तो यह सुंदरता सिर्फ भ्रम है ! यह समय है सरकार, उद्योग और नागरिक , तीनों अपने हिस्से का दायित्व निभाएं, वरना आने वाली पीढ़ियां हमसे पूछेंगी- “जब हवा जहर बन रही थी, तब आप चुप क्यों थे?”
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