महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई और अन्य जिलों में स्थित बीएमसी और सरकारी अस्पतालों के कई ब्लड बैंक अपनी सालाना खून इकट्ठा की न्यूनतम सीमा को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं। नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (NBTC) के तय मानकों के अनुसार हर ब्लड बैंक को वर्ष में कम से कम 2000 यूनिट रक्त संग्रह करना जरूरी है, लेकिन स्थिति यह है कि मुंबई के कई प्रमुख ब्लड बैंक इस आंकड़े तक नहीं पहुंच पा रहे। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (SBTC) ने ऐसे सभी ब्लड बैंकों को पत्र भेजकर रक्त संग्रह बढ़ाने और सेवाएं सुधारने के निर्देश दिए हैं।
Government Blood Bank: किन ब्लड बैंकों को भेजा गया है नोटिस?
SBTC की ओर से भेजे गए पत्रों में जिन ब्लड बैंकों का जिक्र हुआ है, उनमें प्रमुख रूप से कांदिवली का शताब्दी ब्लड बैंक, सांताक्रूज स्थित वीएन देसाई अस्पताल, बांद्रा का केबी भाभा अस्पताल, और राज्य सरकार के अधीन जीटी व कामा अस्पताल के ब्लड बैंक शामिल हैं। इन केंद्रों से कहा गया है कि वे सालाना 2000 यूनिट का मानक पूरा नहीं कर पा रहे, जो कि एनबीटीसी की गाइडलाइन के खिलाफ है। सूत्रों की मानें तो मुंबई के लगभग 7 से 10 ब्लड बैंक और राज्य भर में करीब 25 से 30 ब्लड बैंक ऐसे हैं, जिन्हें SBTC की ओर से नोटिस भेजा गया है। Blood Bank in Mumbai
ब्लड स्टोरेज सेंटर में तब्दील हो सकते हैं ब्लड बैंक
NBTC की गाइडलाइन के अनुसार जो ब्लड बैंक सालाना 2000 यूनिट रक्त नहीं जुटा पाते, उनका एनओसी रद्द किया जा सकता है और उन्हें ब्लड स्टोरेज यूनिट में बदला जा सकता है। इसका सीधा असर आम मरीजों पर पड़ेगा जिन्हें Blood Need पर तुरंत मदद नहीं मिल पाएगी। SBTC ने पत्र में स्पष्ट लिखा है कि “रक्तदान की व्यवस्था और पर्याप्त यूनिट का संकलन हमारी मुख्य जिम्मेदारी है। यदि रक्त संग्रह की स्थिति नहीं सुधरी, तो संबंधित केंद्रों पर कार्रवाई की जाएगी।”
Mumbai Blood Bank: कहां है खामियां?
ब्लड बैंकों की खराब स्थिति के पीछे कई वजहें सामने आ रही हैं। स्वैच्छिक रक्तदान शिविरों की कमी, सरकारी ब्लड बैंक नियमित रूप से रक्तदान शिविर आयोजित नहीं कर रहे। जनजागरूकता की कमी, आम जनता को प्रेरित करने के लिए कोई विशेष अभियान नहीं चलाए जा रहे। एक ही शिफ्ट में काम, शताब्दी, भाभा और वीएन देसाई जैसे अस्पतालों के ब्लड बैंक 24×7 काम नहीं कर रहे, जिससे आपातकालीन स्थिति में रक्त मिलना मुश्किल हो जाता है। ब्लड कम्पोनेंट सुविधा नहीं, कई ब्लड बैंकों में अब तक रक्त अवयव (ब्लड कम्पोनेंट) अलग करने की आधुनिक सुविधा नहीं है, जिससे एक यूनिट रक्त से कई मरीजों को लाभ पहुंचाना संभव नहीं हो पा रहा। आम मरीजों को प्राथमिकता नहीं, शिकायतें हैं कि सरकारी ब्लड बैंक आम जरूरतमंदों को रक्त देने में रुचि नहीं लेते।
करोड़ों की लागत, लेकिन सेवाओं में लापरवाही
ब्लड बैंक को चलाने के लिए सरकार द्वारा हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन जब रक्त संग्रह का स्तर न्यूनतम मानक से भी नीचे चला जाए, तो उसे चालू रखना नैतिक और व्यावसायिक रूप से सही नहीं माना जाता। राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण और सरकारी सिस्टम की उदासीनता को भी इस गिरते स्तर के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कई सामाजिक संगठनों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि “अगर सरकारी ब्लड बैंक ही लोगों को समय पर रक्त उपलब्ध नहीं करा सकते, तो यह सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की विफलता है।”
Mumbai Blood Bank: समाधान क्या हो सकता है?
SBTC ने अपने पत्र में ब्लड बैंकों को साफ निर्देश दिए हैं – रक्तदान शिविरों की संख्या बढ़ाई जाए, स्कूल, कॉलेज, एनजीओ और सामाजिक संस्थाओं के साथ सहयोग करें, मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए जनजागरूकता बढ़ाएं, ब्लड बैंक को 24×7 संचालित किया जाए, ब्लड कम्पोनेंट सेपरेशन यूनिट्स को सक्रिय किया जाए। मुंबई जैसे महानगर में जब अस्पतालों में समय पर रक्त नहीं मिल पाता, तो गरीब और आपातकालीन मरीजों के लिए यह स्थिति जीवन और मृत्यु का प्रश्न बन जाती है। ऐसे में SBTC का यह कदम समय पर चेतावनी देने वाला है। यदि ब्लड बैंक अपनी व्यवस्था नहीं सुधारते, तो इसका खामियाजा जरूरतमंद मरीजों और उनके परिवारों को उठाना पड़ेगा। रक्तदान महादान है, लेकिन व्यवस्था की लापरवाही इसे बेकार कर देती है। अब समय है कि सरकारी सिस्टम जिम्मेदारी समझे और तुरंत कार्रवाई करे।
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