युवाओं पर Social Media के नेगेटिव प्रभाव का सच छिपाने पर कोर्ट ने लगाई Meta को फटकार! अमेरिकी अदालत ने Meta कंपनी की याचिका खारिज की! अब Meta को सौं पने होंगे वे सारे आंतरिक दस्ता वेज, जो दिखाते हैं कि Instagram बच्चों के दिमाग पर क्या असर डालता है! किस तरह Social Media पर ‘Perfect Life’ दिखाने के चक्कर में युवा हो रहे मानसिक रोगी!
Meta की हार- किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी आंतरिक फाइलें छिपाने की कोशिश नाकाम
टेक दिग्गज Meta Platforms Inc. (Facebook, Instagram की मूल कंपनी) को बड़ा झटका लगा है। अमेरिकी अदालत ने कंपनी की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य (Teen Mental Health) से जुड़ी अपनी आंतरिक दस्तावेज़ों और ईमेल्स को सार्वजनिक करने से रोकने की मांग की थी। अदालत के इस फैसले ने Meta को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है, क्योंकि अब कंपनी को वे सभी आंतरिक दस्तावेज जांच एजेंसियों और न्यायालय को सौंपने होंगे, जिनमें यह दर्ज है कि Instagram और Facebook किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालते हैं और कंपनी इस बारे में कितनी जानकारी पहले से रखती थी।
अदालत का फैसला Meta के खिलाफ
अमेरिकी फेडरल जज यवॉन गोंजालेज रॉजर्स ने अपने आदेश में कहा, “सार्वजनिक सुरक्षा और पारदर्शिता किसी भी कॉर्पोरेट गोपनीयता से अधिक महत्वपूर्ण है। जब बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की बात हो, तो सच्चाई छिपाना अपराध की तरह है।” इस फैसले के बाद अब Meta को अपने कर्मचारियों के बीच हुई ईमेल चर्चाएं, आंतरिक रिसर्च रिपोर्ट्स और उपयोगकर्ता व्यवहार अध्ययन की फाइलें सौंपनी होंगी।
क्या है Meta के इस मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद तब शुरू हुआ जब 2021 में एक व्हिसलब्लोअर ने खुलासा किया था कि Meta के पास ऐसे शोध परिणाम मौजूद हैं जो दिखाते हैं कि Instagram का इस्तेमाल करने से किशोर लड़कियों में अवसाद, आत्महीनता और चिंता (Anxiety, Depression, Body Image Issues)बढ़ती है। हालांकि कंपनी ने तब इन रिपोर्टों को “भ्रामक” बताते हुए खारिज कर दिया था, लेकिन बाद में कई राज्य सरकारों और अभिभावकों ने Meta के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए।
किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने वाले किशोरों में नींद की कमी, तनाव, आत्म-संदेह और अवसाद की दर अधिक होती है। Instagram जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर “परफेक्ट लाइफ” दिखाने की प्रवृत्ति बच्चों के मन में हीनभावना और अवास्तविक अपेक्षाएं पैदा करती है। Meta के अपने शोधों में भी इस बात के संकेत मिले थे कि 13–19 वर्ष की उम्र के उपयोगकर्ताओं में मानसिक अस्थिरता और आत्मविश्वास की कमी के मामले सोशल मीडिया उपयोग के साथ बढ़े हैं। किशोरों पर सोशल मीडिया का असर सबसे ज़्यादा देखा गया है, जिसके चलते मानसिक तनाव और अवसाद के मामले बढ़े हैं। Like और Followers की दौड़ ने आत्ममूल्य को प्रभावित किया है।
Meta पर दायर सामूहिक मुकदमा
वर्तमान में अमेरिका के 40 से अधिक राज्यों ने Meta के खिलाफ सामूहिक मुकदमा (Class-Action Lawsuit) दायर किया है। इनमें आरोप है कि कंपनी ने जानबूझकर ऐसे एल्गोरिद्म बनाए जो बच्चों को अधिक देर तक प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए रखें। भले ही इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़े। यह मामला अब केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहा। यूरोपीय यूनियन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी इसी तरह की जांचें चल रही हैं। यूरोप में डेटा सुरक्षा नियामक पहले ही Meta पर जांच शुरू कर चुके हैं। भारत समेत कई देशों में सोशल मीडिया पर किशोरों की सुरक्षा के नए कानून बनाने पर विचार हो रहा है। अब अदालत का यह फैसला इस जांच को और गहराई तक ले जाएगा।
Meta का बयान
Meta ने बयान जारी कर कहा है, “हम बच्चों और युवाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं और हर उम्र के उपयोगकर्ताओं के लिए स्वस्थ ऑनलाइन अनुभव सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन अदालत का यह आदेश हमारे व्यावसायिक गोपनीयता अधिकारों को कमजोर करता है।” हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला टेक कंपनियों की जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।
अदालत के फैसले से बदलेगी Social Media की तस्वीर
Meta के लिए यह मामला साख और कानूनी दोनों स्तरों पर बड़ा झटका है। अब कंपनी को अदालत के आदेश का पालन करते हुए सभी आंतरिक रिकॉर्ड सौंपने होंगे जो संभवतः यह उजागर कर सकते हैं कि “Meta को पता था कि उसके प्लेटफ़ॉर्म बच्चों के दिमाग पर क्या असर डाल रहे हैं, फिर भी उसने कदम नहीं उठाए।” यह फैसला आने वाले वर्षों में सोशल मीडिया कंपनियों की जवाबदेही और बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए एक नया मानक तय कर सकता है। यह फैसला केवल Meta के लिए नहीं, बल्कि पूरी सोशल मीडिया इंडस्ट्री के लिए चेतावनी है कि, “किशोरों की मानसिक सुरक्षा से बड़ा कोई व्यापार नहीं।”
Meta और सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव
आज की दुनिया में Meta (Facebook, Instagram, WhatsApp और Threads की मूल कंपनी) केवल एक टेक कंपनी नहीं रही, बल्कि यह लोगों के विचार, रिश्ते, चुनाव और सोच तक को प्रभावित करने वाली शक्ति बन गई है। सोशल मीडिया अब मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति को आकार देने वाला वैश्विक मंच बन चुका है। दुनिया भर में 3.8 अरब से अधिक लोग Meta के किसी न किसी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। भारत, अमेरिका, ब्राज़ील और इंडोनेशिया जैसे देशों में इसका सबसे बड़ा यूज़र बेस है। औसतन हर व्यक्ति प्रतिदिन 2–3 घंटे सोशल मीडिया पर बिताता है, जिसमें सबसे ज्यादा समय Instagram और WhatsApp पर जाता है।
मानसिक और भावनात्मक प्रभाव
सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग का असर सीधे तौर पर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। लगातार ‘लाइक्स’ और ‘फॉलोअर्स’ की होड़ आत्मसम्मान को प्रभावित करती है। किशोरों और युवाओं में तनाव, चिंता और अवसाद की दरें बढ़ रही हैं। डिजिटल तुलना (Digital Comparison) के कारण लोग अवास्तविक जीवनशैली की अपेक्षा करने लगे हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह एक “डिजिटल दबाव संस्कृति (Pressure Culture)” पैदा कर चुका है, जहां व्यक्ति खुद की तुलना हमेशा दूसरों की ऑनलाइन सफलता से करता है।
राजनीति और जनमत पर प्रभाव
Meta और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स अब जनमत निर्माण (Public Opinion Making) का सबसे शक्तिशाली माध्यम बन गए हैं। चुनावी अभियानों में राजनीतिक दल अब सोशल मीडिया रणनीतियों पर निर्भर हैं। झूठी खबरें (Fake News) और भ्रामक सूचनाएं मतदाताओं को प्रभावित करने लगी हैं। कई देशों में यह आरोप लगे हैं कि Facebook या WhatsApp के जरिए राजनीतिक ध्रुवीकरण फैलाया गया। 2016 के अमेरिकी चुनावों और भारत के कई राज्यों में यह देखा गया कि सोशल मीडिया ट्रेंड्स ही जनता की सोच का रुख बदल सकते हैं।
अर्थव्यवस्था और व्यापार में भूमिका
Meta के प्लेटफ़ॉर्म अब केवल सोशल नेटवर्क नहीं, बल्कि डिजिटल बाज़ार (Digital Marketplace) बन चुके हैं। लाखों छोटे व्यवसाय Facebook और Instagram पर अपने उत्पाद बेच रहे हैं। WhatsApp Business ने छोटे दुकानदारों और उद्यमियों को ग्राहकों से सीधे जोड़ दिया है। Meta अब AI आधारित विज्ञापन तकनीक से अरबों डॉलर की कमाई कर रहा है। इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था में क्रांति आई है, लेकिन साथ ही डेटा गोपनीयता (Data Privacy) पर सवाल भी उठे हैं।
समाज में व्यवहारिक बदलाव
सोशल मीडिया ने लोगों के संवाद, सोचने और खुद को प्रस्तुत करने का तरीका बदल दिया है। अब अधिकांश रिश्ते ऑनलाइन जुड़ाव पर आधारित हैं। लोग अपनी भावनाएं, राय और निजी जीवन खुले मंचों पर साझा करते हैं। उन्हें बात करने के लिए किसी के साथ होने की ज़रूरत नहीं रही। एक ओर इसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताको नया आयाम दिया है, वहीं दूसरी ओर फेक पहचान और साइबर बुलिंग जैसी समस्याएं भी बढ़ी हैं। इसके साथ ही बढ़े खतरे और चुनौतियां !
डेटा लीक और निगरानी: Meta पर उपयोगकर्ताओं के निजी डेटा के दुरुपयोग के कई आरोप लगे हैं। भ्रामक जानकारी: झूठे ट्रेंड्स और गलत सूचनाएं समाज में तनाव पैदा करती हैं।
लत (Addiction) : लगातार नोटिफिकेशन और कंटेंट की बाढ़ ने लोगों को सोशल मीडिया पर निर्भर बना दिया है।
Meta और भविष्य की तस्वीर
Meta अब वर्चुअल रियलिटी (VR) और मेटावर्स (Metaverse) के ज़रिए एक नई डिजिटल दुनिया बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जहां लोग काम, शिक्षा, मनोरंजन और खरीदारी, सब कुछ वर्चुअल दुनिया में कर सकेंगे। हालांकि विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यह मानव सामाजिकता को और अलगाववादी (Isolated)बना सकता है। सोशल मीडिया, खासकर Meta के प्लेटफ़ॉर्म्स, ने दुनिया को जोड़ा भी है और बदल भी दिया है। यह एक ऐसा माध्यम बन चुका है जो नई पीढ़ी को मज़बूत भी बना सकता है और कमज़ोर भी! इसलिए अब सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी उपयोगकर्ताओं और सरकारों दोनों पर है, कि तकनीक का उपयोग मानवता के हित में हो, न कि उसके नुकसान में।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!

