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November 7, 2025

मेघालय में गूंजी सौ ढोलों की थाप- गारो जनजाति के वांगला उत्सव ने बिखेरा संस्कृति, समृद्धि और संगीत का रंग

The CSR Journal Magazine
49वें वांगला उत्सव में हजारों लोगों की भागीदारी! Wangala, जिसे Hundred Drums Festival भी कहा जाता है, मुख्यतः Garo Hills, Meghalaya में रहने वाली गारो जनजाति द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार कृषि (खरीद एवं कटाई) के बाद आता है और सूर्य देवता Saljong को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है कि उन्होंने फसल-उत्पादन में कृपा की। गारो संस्कृति में यह सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण मौका है, न सिर्फ खेती के लिए, बल्कि समुदाय के एक साथ आने का, संगीत-नृत्य-परंपरा दिखाने का !

सौ ढोलों की थाप से गूंजा मेघालय, वांगला उत्सव की धूम

पूर्वोत्तर भारत के हरियाली से आच्छादित पहाड़ों में जब सौ ढोल एक साथ गूंजते हैं, महिलाएं पारंपरिक परिधानों में थिरकती हैं और हवा में चावल की मदिरा की सुगंध घुल जाती है, तो समझ लीजिए कि मेघालय का सबसे बड़ा पारंपरिक उत्सव वांगला (Wangala Festival) आरंभ हो चुका है। गारो जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला यह अनोखा उत्सव, जिसे “सौ ढोलों का त्योहार” भी कहा जाता है, न केवल खेती के मौसम के समापन का प्रतीक है बल्कि यह गारो समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, संगीत और सामाजिक एकता का सबसे बड़ा प्रदर्शन भी है।

कृषि और कृतज्ञता का पर्व- वांगला उत्सव

वांगला उत्सव असल में कृषि देवता मिसी सालजोंग (Misi Saljong) या सूर्यदेव को धन्यवाद देने का पर्व है। माना जाता है कि यह देवता वर्षभर गारो किसानों को उपजाऊ फसल, अच्छी बारिश और समृद्ध जीवन प्रदान करते हैं। जब खेतों की फसलें घरों तक पहुंच जाती हैं, तो किसान ढोल, बांसुरी और गीतों के साथ अपने देवता को धन्यवाद देते हैं। यह पर्व गारो समुदाय के लिए उतना ही पवित्र है जितना पंजाब में बैसाखी या असम में बिहू !

तीन दिन तक गूंजा संगीत और नृत्य

इस वर्ष का 49वां वांगला उत्सव 5 से 7 नवंबर तक पश्चिम गारो हिल्स के चिब्राग्रे (Chibragre) क्षेत्र में बड़े ही भव्य रूप में आयोजित किया जा रहा है। पहले दिन “रगुला (Rugala)” नामक पारंपरिक अनुष्ठान किया गया, जिसमें गांव के प्रमुख या “नोक्मा” (Nokma) के घर में फसल और चावल की मदिरा देवता को अर्पित की जाती है। दूसरे दिन “छा-छाट सोआ (Cha·chat So·a)” अनुष्ठान होता है, जिसमें धूपबत्ती जलाकर पूजा की जाती है। तीसरे और सबसे रोमांचक दिन, ढोल और बांसुरी की लय पर पुरुष और महिलाएं पारंपरिक नृत्य “दमा गोगट्टा (Dama Gogata)” प्रस्तुत करते हुए धरती को अपनी मेहनत और खुशहाली का आशीर्वाद देते नजर आते हैं।

सौ ढोलों का नृत्य मुख्य आकर्षण

वांगला उत्सव की सबसे बड़ी पहचान “Hundred Drums Dance” यानी सौ ढोलों का नृत्य है। जब सैकड़ों युवा पारंपरिक पोशाकों में ढोल बजाते हुए तालमेल बनाते हैं, तो वह दृश्य न केवल अद्भुत बल्कि ऊर्जा से भरपूर होता है। पुरुष कलाकार सिर पर पंखों से सजे मुकुट पहनते हैं, शरीर पर पारंपरिक वस्त्र “गंताप” लपेटते हैं, जबकि महिलाएं “डकमांडा” नामक कपड़े में सजी होती हैं। चमकीले मणियों वाले गहने, शंखों की मालाएं और पारंपरिक आभूषण इस नृत्य को रंगीन बना देते हैं। संगीत की लय के साथ जब सभी एक साथ थिरकते हैं, तो पहाड़ों की घाटियों में गूंजते ये ढोल मानो प्रकृति के साथ संवाद करते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने खींचा पर्यटकों का ध्यान

तीन दिनों तक चले उत्सव में पारंपरिक नृत्यों के अलावा लोकगीत, पारंपरिक हथियार प्रदर्शन, हस्तशिल्प प्रदर्शनी और स्थानीय व्यंजन मेलों का भी आयोजन किया गया। स्थानीय महिलाओं द्वारा तैयार की गई चावल की मदिरा, सूखी मछली, बांस की सब्जी और धान की मिठाई ने लोगों को खूब लुभाया। देश-विदेश से आए पर्यटक इन तीन दिनों में गारो संस्कृति के इस अनूठे संगम में खोते नजर आए। कई विदेशी पर्यटक पारंपरिक वेशभूषा पहनकर ढोलकियों के साथ नृत्य करते भी दिखे।

पर्यटन और अर्थव्यवस्था को मिला बल

वांगला उत्सव अब केवल एक स्थानीय आयोजन नहीं रहा, बल्कि यह मेघालय की पर्यटन पहचान बन चुका है। इस दौरान हजारों पर्यटक पश्चिम गारो हिल्स पहुंचते हैं, जिससे स्थानीय होम-स्टे, हस्तशिल्प बाजार और परिवहन सेवाओं को सीधा लाभ होता है। राज्य पर्यटन विभाग के अनुसार, इस वर्ष वांगला के दौरान लगभग 35,000 से अधिक पर्यटक टूरा और आसपास के इलाकों में पहुंचे।

सुरक्षा और पर्यावरण पर जोर

इस बार के आयोजन में पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिया गया। प्लास्टिक पर प्रतिबंध, बायोडिग्रेडेबल कप-प्लेट का उपयोग और स्थानीय युवाओं द्वारा बनाए गए कचरा प्रबंधन समूहों ने उत्सव को “ग्रीन फेस्टिवल” बनाने में अहम भूमिका निभाई। सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन, पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाओं ने मिलकर व्यापक इंतजाम किए।

संस्कृति संरक्षण की चुनौती

हालांकि वांगला की लोकप्रियता बढ़ रही है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आधुनिकता की तेज़ रफ्तार के कारण पारंपरिक स्वरूप खतरे में है। कई स्थानों पर पारंपरिक अनुष्ठानों की जगह केवल “सांस्कृतिक शो” रह गए हैं। गारो समुदाय के बुजुर्गों का कहना है कि युवाओं को अपने पारंपरिक गीत, भाषा और धर्म सोंगसारेक (Songsarek) से जोड़ने की आवश्यकता है, ताकि यह परंपरा जीवित रह सके।

वांगला उत्सव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

वांगला उत्सव का आरंभ औपचारिक रूप से वर्ष 1976 में आसनांग (Asanang) गांव से हुआ था, जो टूरा से लगभग 18 किलोमीटर दूर है। उस समय इस उत्सव को “Hundred Drums Festival” नाम दिया गया था ताकि गारो समुदाय की पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया जा सके। आज यह आयोजन न केवल मेघालय बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत का सांस्कृतिक प्रतीक बन गया है। गारो जनजाति के बुजुर्ग कहते हैं, “वांगला हमारे लिए केवल त्योहार नहीं, यह हमारी आत्मा है। इसमें हमारी धरती, हमारी फसल और हमारे पूर्वजों की यादें बसती हैं।” यह उत्सव गारो समाज को एक सूत्र में जोड़ता है। दूर-दूर बसे परिवार इस मौके पर अपने गांव लौटते हैं। बच्चे अपने बुजुर्गों से पारंपरिक गीत सीखते हैं, और महिलाएं नए वस्त्र तैयार करती हैं।

वांगला उत्सव में शामिल होना चाहते हैं? ऐसे पहुंचें

वर्ष 2025 में Wangala Festival मुख्य रूप से 5 से 7 नवंबर 2025 के बीच मनाया जा रहा है, और मुख्य दिन 7 नवंबर 2025 (शुक्रवार) निर्धारित किया गया है। वांगला जाने के लिए यात्रा मार्ग- निकटतम हवाई अड्डा: गुवाहाटी (असम) – टूरा तक सड़क मार्ग से लगभग 220 किमी।
निकटतम रेलवे स्टेशन: गुवाहाटी या मेंदीपाथर (North Garo Hills)।
सड़क मार्ग: शिलांग या गुवाहाटी से टूरा तक बसें व निजी टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं।
रुकने की व्यवस्था: टूरा व आसनांग क्षेत्र में कई होम-स्टे, इको-कॉटेज व गेस्टहाउस उपलब्ध हैं।
वांगला उत्सव मेघालय के हरे-भरे पर्वतीय अंचलों में जीवन, कृतज्ञता और संस्कृति का महा-उत्सव है। यह केवल ढोल और नृत्य का नहीं, बल्कि कृषि, प्रकृति और मानवता के प्रति आदर का प्रतीक है। जब सैकड़ों ढोल एक साथ बजते हैं, तो वह सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि एक संदेश होता है कि इंसान और प्रकृति के बीच सामंजस्य ही असली खुशहाली है।
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