उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में एक निजी अस्पताल में चिकित्सकीय लापरवाही का मामला सामने आया है, जिसने जहां एक परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया है, वहीं चिकित्सा जवाबदेही और रोगी-सुरक्षा की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
टांके की बजाय चोट पर लगाया Feviquick
मामला जगृति विहार के भव्यास्री अस्पताल का है, जहां दो-साल के बच्चे ने घर में खेलते समय मेज के मोर पर सिर टकरा लिया। ब्लीडिंग बढ़ने पर माता-पिता घबराए और तुरंत अस्पताल ले गए। लेकिन उसके बाद जो हुआ, वह हर आम आदमी की समझ से बाहर है। डॉक्टर ने टांके (Stitches) लगाने के बजाय सिर्फ 5 रूपए की एक छोटी ट्यूब FeviQuick (एडहेसिव गोंद) लेने को कहा, उसे घाव पर लगाया और चिपका दिया। यह बताया गया है कि डॉक्टर ने माता-पिता की चिंताओं को “बच्चा नर्वस है, दर्द कुछ समय बाद ठीक हो जाएगा” कहकर ठुकरा दिया।
3 घंटे की मशक्कत के बाद साफ़ हुआ Feviquick
अस्पताल से आने के बाद रात भर बच्चे की बेचैनी बंद नहीं हुई। अगली सुबह परिवार उसे लोकप्रिय अस्पताल ले गया, जहां के डॉक्टरों ने तीन घंटे तक कड़ी मेहनत कर उस गड़े हुए गोंद को हटाया। साफ सफाई और सावधानी के बाद चार टांके डाले गए। परिवार ने आरोप लगाया कि अगर वह चिपकाया गया गोंद आंख के पास से रिसता, तो बच्चे की दृष्टि को बहुत बड़ा खतरा हो सकता था।
CMO मेरठ ने दिए जांच के आदेश
इस घटना के प्रकाश में, मेरठ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. अशोक कटारिया ने मामले की तहकीकात के आदेश दिए हैं। उन्होंने पुष्टि की है कि शिकायत दर्ज की गई है और एक जांच समिति गठित की जा रही है, ताकि यह तय किया जा सके कि चिकित्सा प्रोटोकॉल का उल्लंघन हुआ या नहीं, और दोषी डॉक्टर के खिलाफ अनुशासनात्मक/कानूनी कदम उठाए जाएं।
पिछली लापरवाहियों की मिसालें
यह मामला एकल-घटनात्मक नहीं है। हाल के वर्षों में भारत में कई बार डॉक्टरों और नर्सों की लापरवाही सामने आई है, जो चिकित्सा सुरक्षा और विश्वसनीयता की चिंताओं को और गहरा करती हैं।
कर्नाटक कांड
कर्नाटक के सरकारी अस्पताल में एक नर्स ने सात साल के बच्चे के गाल की गहरी चोंट पर टांके लगाने के बजाय FeviQuick लगा दिया। बाद में उस नर्स को निलंबित कर दिया गया क्योंकि यह एडहेसिव “चिकित्सीय उपयोग के लिए अनुमोदित नहीं” था।
बिहार में हुआ ग़लत ऑपरेशन
बिहार के मोतिहारी में एक निजी अस्पताल में डॉक्टर द्वारा कथित रूप से गलत ऑपरेशन किए जाने पर एक युवक की मौत हो गई थी। परिजनों ने आरोप लगाया कि ऑपरेशन की गुणवत्ता बहुत ख़राब थी और अस्पताल में मुनाफे के लिए जान का जोखिम उठाया गया।
UP में मरने के बाद भी चलता रहा मरीज़ का इलाज
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में एक अस्पताल पर यह गंभीर आरोप भी लगे कि मरीजों के मरने के बाद भी उनका “इलाज” किया जा रहा था, और इस बीच उनसे भारी राशि वसूली जा रही थी। एक निजी अस्पताल पर आरोप था कि उसने 22 दिन तक एक मृत दुधमुंहे बच्चे का इलाज करने का दिखावा किया और परिजनों से लाखों रुपये ठग लिए। यह स्वास्थ्य सेवा में नैतिक गिरावट की एक और गम्भीर कड़ी है।
चिकित्सा विभाग की लापरवाही या अज्ञानता ?
मेरठ की यह घटना चिकित्सा जगत में जवाबदेही (accountability) की कमी और रोगी-सुरक्षा की अनदेखी को उजागर करती है। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रुटि नहीं, बल्कि उस बड़े संकट का प्रतीक है जहां कुछ स्वास्थ्यकर्मी आसान, त्वरित और सस्ते उपायों का प्रयोग करते हैं, जबकि मानक चिकित्सा प्रोटोकॉल और नैतिक जिम्मेदारियाँ पीछे छूट जाती हैं।
प्रशिक्षण की ज़रूरत– जांच समितियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी चिकित्सा स्टाफ़ को आवश्यक प्रशिक्षण, संसाधन और निर्देश मिले, ताकि वे वास्तविक आपात स्थिति में सुरक्षित और सही उपचार निर्णय ले सकें।
पारदर्शिता की कमी– अस्पतालों को पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए। रोगी और उनके परिवारों को इलाज के विकल्पों, जोखिमों और उपयोग की जाने वाली सामग्री के बारे में पहले से पूरी जानकारी दी जानी चाहिए।
लापरवाही पर सख़्त कार्रवाई– चिकित्सा नियामक संस्थाओं को ऐसी घटनाओं पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए ताकि अन्य डॉक्टरों और नर्सों को यह साफ संदेश मिले कि लापरवाही को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
जागरूक बने जनता– जनता-जागरूकता भी महत्वपूर्ण है। मरीजों और उनके परिजनों को चिकित्सा अधिकारों, आपातकालीन प्रोटोकॉल और शिकायत कार्रवाई के तरीकों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे अपनी रक्षा कर सकें।
स्वास्थ्य प्रणाली ना बने शर्मिंदगी
मेरठ का ये मामला सिर्फ एक डॉक्टर-गुमराह की गलती नहीं है, बल्कि भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में मौजूदा कमजोरियों का अलार्म है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि चिकित्सा सेवा सिर्फ ज्ञान या कौशल तक सीमित नहीं। वह ज़िम्मेदारी, नैतिकता और मरी ज की कदर की भी मांग करती है। अगर जांच निष्पक्ष और सख्त हो, और सुधारात्मक कदम समय पर उठाए जाएं, तो यह घटना एक संकट से सीख में बदल सकती है, न कि सिर्फ एक शर्मिंदगी।
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