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October 31, 2025

MDU रोहतक की घटना ने महिलाओं की गरिमा को किया शर्मसार, जब अधिकारी ने मांगा ‘पीरियड्स’ का सबूत !

The CSR Journal Magazine
महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय MDU रोहतक में एक शर्मनाक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक महिला कर्मचारी से छुट्टी के लिए आवेदन देने पर ‘पीरियड्स’ का सबूत मांगा गया और कथित तौर पर उससे कपड़े उतारकर जांच करवाने को कहा गया। इस घटना ने पूरे विश्वविद्यालय परिसर और शहर में आक्रोश की लहर फैला दी है।

महिला कर्मचारी से पीरियड्स में होने के सबूत मांगे

सूत्रों के अनुसार, MDU रोहतक की गैर-शैक्षणिक शाखा में कार्यरत एक महिला कर्मचारी ने स्वास्थ्य कारणों से दो दिन की छुट्टी के लिए आवेदन दिया था। उसने बताया कि वह “मासिक धर्म” के कारण अस्वस्थ महसूस कर रही थी। लेकिन वरिष्ठ अधिकारी ने उसकी बात पर भरोसा न करते हुए कथित तौर पर उससे “सबूत दिखाने” की बात कही। पीड़िता ने बताया कि अधिकारी ने इतना ही नहीं, बल्कि अपमानजनक तरीके से कहा, “अगर वाकई पीरियड्स हैं तो कपड़े उतारकर दिखाओ।” इस अमानवीय टिप्पणी से महिला कर्मचारी रो पड़ी और उसने तुरंत यूनिवर्सिटी प्रशासन में शिकायत दर्ज कराई।

महिला आयोग ने मामले को संज्ञान में लिया

घटना के बाद हरियाणा राज्य महिला आयोग ने मामले का संज्ञान लिया है। आयोग की अध्यक्ष ने कहा, ” यह अत्यंत शर्मनाक और संवेदनशील मामला है। किसी भी संस्था में इस तरह की मानसिक प्रताड़ना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जांच टीम रोहतक भेजी जा रही है।” विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी जांच समिति गठित करने की घोषणा की है। MDU रोहतक के कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने कहा, “यदि आरोप सत्य पाए जाते हैं तो दोषी अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

छात्रों और कर्मचारियों में आक्रोश

घटना के खुलासे के बाद MDU कैंपस में छात्र संगठनों और महिला कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया। नारेबाजी करते हुए उन्होंने कहा कि यह “कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न” का गंभीर मामला है और दोषियों को बर्खास्त किया जाना चाहिए। एक महिला प्रोफेसर ने कहा, “यह किसी भी महिला की गरिमा के खिलाफ है। पीरियड्स जैसी प्राकृतिक प्रक्रिया को शर्म या सबूत का विषय बनाना सभ्य समाज के लिए कलंक है।”
विशेषज्ञों के अनुसार, यह घटना न केवल कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (POSH Act 2013) के तहत आती है, बल्कि मानवाधिकारों का उल्लंघन भी मानी जा सकती है। यदि जांच में आरोप सही पाए जाते हैं तो संबंधित अधिकारी को निलंबन के साथ कानूनी दंड भी मिल सकता है।

जब महाराष्ट्र में छात्राओं से जबरन कपड़े उतरवाकर की गई ‘पीरियड्स’ की जांच

महाराष्ट्र के ठाणे जिले से फरवरी 2025 में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई थी, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया था। यहां एक छात्रावासिय विद्यालय में दर्जनों छात्राओं के कपड़े उतरवाकर यह जांच की गई थी कि क्या वे “पीरियड्स” में हैं। इस घटना ने समाज और प्रशासन, दोनों को गहरी शर्म में डाल दिया था।

दो घटनाएं, एक पीड़ा

रोहतक का MDU, जहां एक महिला कर्मचारी से छुट्टी मांगने पर “पीरियड्स का सबूत” मांगा गया और कथित रूप से कपड़े उतारने को कहा गया, और ठाणे का आवासीय छात्रावास, जहां नाबालिग बच्चियों को पीरियड्स की जांच के नाम पर कपड़े उतारकर शर्मसार किया गया, दोनों घटनाएं अलग-अलग राज्यों की हैं, लेकिन दोनों का दर्द एक जैसा है, महिलाओं की निजता और गरिमा पर गहरी चोट!

समान पीड़ा- असंवेदनशील मानसिकता

दोनों घटनाएं यह बताती हैं कि भारत जैसे प्रगतिशील देश में भी मासिक धर्म को लेकर जागरूकता और सहानुभूति की कमी गहरी है। पीरियड्स को अब भी शर्म, अपवित्रता और झूठ से जोड़ा जाता है, जबकि यह महिला शरीर की एक सामान्य, जैविक प्रक्रिया है। महिलाओं को अपने दर्द, असुविधा या जरूरत के लिए सफाई क्यों देनी पड़े? क्यों छुट्टी या आराम के अधिकार को संदेह की नजर से देखा जाता है?

विशेषज्ञों की राय

महिला अधिकार कार्यकर्ता सुष्मिता घोष कहती हैं, “यह घटनाएं हमारे समाज की सोच पर सीधा प्रश्नचिह्न हैं। जब तक शिक्षा और प्रशासनिक ढांचे में संवेदनशीलता नहीं आएगी, महिलाएं अपने ही कार्यस्थल या विद्यालय में असुरक्षित महसूस करती रहेंगी।” मनोवैज्ञानिक डॉ. रचना शर्मा के अनुसार, “इस तरह की घटनाएं न केवल शारीरिक अपमान हैं, बल्कि मानसिक आघात भी देती हैं। यह किसी व्यक्ति की निजता और आत्मसम्मान का उल्लंघन है।” इनके अनुसार समाधान की दिशा में प्रयास करने होंगे-
1. जेंडर सेंसिटाइजेशन ट्रेनिंग- हर विद्यालय, कॉलेज और दफ्तर में अनिवार्य होनी चाहिए।
2. पीरियड्स अवेयरनेस प्रोग्राम्स- मासिक धर्म को लेकर मिथक और झिझक दूर करने के लिए।
3. POSH (कार्यस्थल यौन उत्पीड़न निवारण) समितियों को और अधिक सक्रिय व जवाबदेह बनाना।
4. मासिक धर्म अवकाश नीति को सभी सरकारी संस्थानों में लागू करने की दिशा में कदम।

ऐसी घटनाएं महिलाओं के सम्मान-सुरक्षा पर आघात

MDU जैसी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में घटी घटना महिलाओं के कार्यस्थल पर सम्मान और सुरक्षा से जुड़े बड़े प्रश्न उठाती है। यह मामला सिर्फ एक कर्मचारी का नहीं, बल्कि समाज में महिलाओं की गरिमा और समानता के प्रति हमारी सोच का भी आइना है। महाराष्ट्र की घटना की पूरे देश में तीखी निंदा हुई। महिला संगठनों ने कहा कि “मासिक धर्म एक प्राकृतिक और निजी प्रक्रिया है। इस पर शक करके या सार्वजनिक रूप से जांचकरवाना न केवल अमानवीय है बल्कि यह बालिका अधिकारों का गंभीर उल्लंघन भी है।” सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यह भी सवाल उठाया कि भारत में आज भी ‘पीरियड्स’ को शर्म, पाबंदी और अपमान से जोड़कर क्यों देखा जाता है, जबकि यह स्वास्थ्य और शिक्षा का विषय होना चाहिए। MDU की महिला कर्मचारी हो या महाराष्ट्र की मासूम छात्राएं, दोनों ने अपमान नहीं, सम्मान की मांग की थी। सरकार ने उस समय ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए विद्यालयों और आश्रमशालाओं में “संवेदनशीलता प्रशिक्षण” (Gender Sensitization Workshops) अनिवार्य करने की घोषणा की थी। हालांकि समय-समय पर ऐसे मामले फिर सामने आने से यह स्पष्ट होता है कि समाज में मासिक धर्म से जुड़ी रूढ़ियां और गलत धारणाएं अब भी गहराई तक मौजूद हैं। उनकी यह पीड़ा एक आवाज़ है जो कहती है कि, “मासिक धर्म कोई शर्म नहीं, यह जीवन का प्रतीक है। हमें सबूत नहीं, संवेदना चाहिए।”
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