फरीदाबाद में 350 किलो विस्फोटक, दो एके-47 राइफलें और भारी मात्रा में गोला-बारूद की बरामदगी सिर्फ एक पुलिस सफलता नहीं, बल्कि यह भारत की आंतरिक सुरक्षा पर मंडरा रहे नए खतरे का संकेत है। यह घटना दिल्ली-एनसीआर जैसे अत्यंत सुरक्षित और निगरानी में रहने वाले क्षेत्र में घटित हुई, जो अपने आप में चिंताजनक है।
हरियाणा के औद्योगिक शहर फरीदाबाद में सोमवार को सुरक्षा एजेंसियों ने एक बड़ी सफलता हासिल की। करीब 350 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री, दो AK-47 राइफलें, और भारी मात्रा में गोला-बारूद बरामद किया गया। यह कार्रवाई जम्मू-कश्मीर पुलिस और हरियाणा पुलिस की संयुक्त टीम द्वारा की गई। इस दौरान दो डॉक्टरों को भी गिरफ्तार किया गया है, जिन पर आतंकी संगठनों से जुड़े होने का संदेह है।
छापेमारी से उड़ी सुरक्षा एजेंसियों की नींद
सूत्रों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कुछ दिन पहले एक संदिग्ध डॉक्टर को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में उसने फरीदाबाद में छिपाए गए विस्फोटक के ठिकाने की जानकारी दी। इसी सूचना के आधार पर रविवार देर रात फरीदाबाद के सेक्टर-58 स्थित एक गोदाम और किराए के मकान में छापेमारी की गई। कार्रवाई के दौरान पुलिस टीम ने 14 थैले और कंटेनर पाए, जिनमें RDX और जिलेटिन जैसी उच्च क्षमता वाले विस्फोटक मिले। दो एके-47 राइफलें, सैकड़ों कारतूस और डेटोनेटर भी बरामद किए गए।
गिरफ्तार डॉक्टरों से पूछताछ जारी, फोरेंसिक जांच शुरू
गिरफ्तार किए गए दोनों डॉक्टरों की पहचान फिलहाल गुप्त रखी गई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, इनमें से एक डॉक्टर श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में कार्यरत रह चुका है, जबकि दूसरा दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में निजी प्रैक्टिस करता था। दोनों पर आरोप है कि वे आतंकी नेटवर्क के लिए धन और सामग्री की सप्लाई में सहयोग कर रहे थे। जांच एजेंसियां अब यह पता लगाने में जुटी हैं कि विस्फोटक यहां कैसे लाए गए और इन्हें किस उद्देश्य से संग्रहित किया गया ? बरामदगी के बाद फरीदाबाद पुलिस ने पूरे इलाके को सील कर दिया है। बम निरोधक दस्ता (BDDS) ने मौके पर पहुंचकर विस्फोटक सामग्री को सुरक्षित रूप से निष्क्रिय किया। फोरेंसिक टीम ने मौके से सैंपल लेकर RDX की शुद्धता और स्रोत की जांच शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार, बरामद सामग्री कई बड़े आतंकी हमलों के लिए पर्याप्त थी।
देशभर में हुई बड़ी बरामदगियां, सुरक्षा एजेंसियों की बढ़ी सतर्कता
यह कोई पहला मौका नहीं है जब इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक बरामद किया गया हो। इससे पहले भी देश के विभिन्न हिस्सों में आतंकियों और तस्करों से भारी मात्रा में बारूद और हथियार मिल चुके हैं —
1. पुलवामा (2019)– CRPF के काफिले पर हुए हमले में इस्तेमाल 80 किलो आरडीएक्स ने पूरे देश को झकझोर दिया था।
2. नालंदा, बिहार (2023) – पुलिस ने 200 किलो जिलेटिन और डेटोनेटर बरामद किए थे, जो अवैध खनन में इस्तेमाल हो रहे थे।
3. जयपुर, राजस्थान (2024) – एक ट्रक से 500 किलो विस्फोटक सामग्री पकड़ी गई थी, जो खनन लाइसेंस के नाम पर गलत उपयोग के लिए ले जाई जा रही थी।
4. नागपुर (2024) – रेलवे स्टेशन के पास से 250 किलो आरडीएक्स और तीन एके-47 जब्त की गई थीं।
5. फरीदाबाद (2025) – अब हालिया बरामदगी ने साबित कर दिया है कि दिल्ली-एनसीआर आतंकी संगठनों के नए ठिकाने के रूप में इस्तेमाल होने लगे हैं।
फरीदाबाद और दिल्ली में हाई अलर्ट
प्रारंभिक जांच में पता चला है कि यह विस्फोटक जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के बीच चल रहे एक गुप्त सप्लाई नेटवर्क के ज़रिए भेजा गया था। कुछ वित्तीय लेनदेन और फोन कॉल्स के रूट पाकिस्तान व नेपाल सीमा से जुड़े नंबरों से भी मिले हैं। NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) अब मामले में हस्तक्षेप कर रही है और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला मानते हुए केंद्र को विस्तृत रिपोर्ट भेजी जा रही है। इस बरामदगी के बाद दिल्ली, गुरुग्राम और नोएडा पुलिस को भी अलर्ट जारी कर दिया गया है। सभी रेलवे स्टेशन, मेट्रो, बस अड्डे और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में चेकिंग बढ़ा दी गई है। हरियाणा पुलिस के एडीजीपी (कानून-व्यवस्था) ने कहा, “हम किसी भी संभावित खतरे को लेकर पूरी तरह सतर्क हैं। बरामद विस्फोटक सामग्री की मात्रा देखकर यह साफ है कि कोई बड़ा हादसा टाल दिया गया है।”
जांच अब किन बिंदुओं पर केंद्रित
1. विस्फोटक की सप्लाई चेन और स्रोत की पहचान।
2. डॉक्टरों और नेटवर्क से जुड़े अन्य लोगों के बैंक लेनदेन की जांच।
3. क्या इस सामग्री का संबंध किसी विशेष आतंकी संगठन से है?
4. दिल्ली-एनसीआर में संभावित ठिकानों की तलाश।
फरीदाबाद की यह बरामदगी सिर्फ एक स्थानीय मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के लिए चेतावनी है। इतनी बड़ी मात्रा में आरडीएक्स और आधुनिक हथियार राजधानी के पास मिलना यह संकेत देता है कि आतंकी संगठन लगातार अपने ठिकाने और सप्लाई चैन भारत के मुख्य औद्योगिक क्षेत्रों तक बढ़ा रहे हैं। फिलहाल जांच जारी है, लेकिन यह निश्चित है कि अगर समय रहते यह विस्फोटक बरामद नहीं होता, तो देश को एक और बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ सकता था।
फरीदाबाद बरामदगी- राजधानी की देहरी पर आतंकी साजिश की दस्तक
फरीदाबाद में 350 किलो विस्फोटक, दो एके-47 राइफलें और भारी मात्रा में गोला-बारूद की बरामदगी सिर्फ एक पुलिस सफलता नहीं, बल्कि यह भारत की आंतरिक सुरक्षा पर मंडरा रहे नए खतरे का संकेत है। यह घटना दिल्ली-एनसीआर जैसे अत्यंत सुरक्षित और निगरानी में रहने वाले क्षेत्र में घटित हुई, जो अपने आप में चिंताजनक है।राजधानी क्षेत्र देश की प्रशासनिक, राजनीतिक और आर्थिक धुरी है। यहां सुरक्षा के लिए दर्जनों एजेंसियां सक्रिय रहती हैं, फिर भी विस्फोटक सामग्री की इतनी बड़ी खेप फरीदाबाद जैसे औद्योगिक शहर में पहुंचना कई सवाल खड़े करता है। क्या सुरक्षा एजेंसियां नेटवर्क के “स्लीपर सेल्स” की गतिविधियों पर नजर नहीं रख पा रहीं? क्या सीमा पार से आने वाले फंड और सामग्री की सप्लाई चेन अब अंदरूनी सहयोगियों के ज़रिए मजबूत हो चुकी है? यह बरामदगी इस ओर इशारा करती है कि आतंकवादी संगठन अब सीधे हमले नहीं, बल्कि स्थानीय सहायता तंत्र के सहारे देश के भीतर गहरी जड़ें जमाने की कोशिश में हैं।
“डॉक्टर” का नाम क्यों चौंकाने वाला है
सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि इस मामले में शिक्षित और सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित व्यक्ति, डॉक्टर शामिल पाए गए। यह बताता है कि आतंकवाद अब सिर्फ सीमा पार के प्रशिक्षित युवकों तक सीमित नहीं, बल्कि विचारधारा और धन के प्रभाव से प्रेरित होकर समाज के भीतर भी प्रवेश कर चुका है। इस तरह की भागीदारी यह संकेत देती है कि रैडिकलाइज़ेशन (चरमपंथी सोच) अब नए वर्गों तक फैल चुका है। यह सिर्फ पुलिस या सेना का नहीं, बल्कि शिक्षा और समाजशास्त्र का भी सवाल है कि आखिर ऐसी मानसिकता जन्म क्यों ले रही है।
पुराने उदाहरणों से मिली सीख
फरीदाबाद की यह बरामदगी कोई पहली चेतावनी नहीं। पिछले कुछ वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़े पैमाने पर विस्फोटक मिलने की घटनाएं बार-बार सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलती रही हैं —
2024 में जयपुर में 500 किलो जिलेटिन स्टिक और डेटोनेटर बरामद हुए थे।
2023 में नागपुर में 250 किलो आरडीएक्स के साथ आतंकी मॉड्यूल पकड़ा गया था।
2022 में पंढरपुर (महाराष्ट्र) और पटना से भी हथियारों की खेप मिली थी।
हर बार यह कहा गया कि “जांच जारी है”, लेकिन ऐसी घटनाएं फिर होती रहीं। इसका अर्थ यह है कि केवल कार्रवाई पर्याप्त नहीं, प्रिवेंटिव इंटेलिजेंस और ग्राउंड-नेटवर्क की मजबूती जरूरी है।
सुरक्षा व्यवस्था को नए सिरे से देखने की जरूरत
भारत ने पिछले दशक में आतंकवाद के खिलाफ कई अहम कदम उठाए। NIA, ATS, IB जैसी एजेंसियां तकनीकी रूप से काफी सक्षम हुई हैं। लेकिन अब खतरे का स्वरूप बदल चुका है। जहां पहले सीमा पार से घुसपैठ होती थी, अब Digital Transfer, Dark Web, Crypto Funding और स्थानीय भर्ती जैसे आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है। इसलिए सुरक्षा की पारंपरिक रणनीति के साथ साइबर-सर्विलांस, फाइनेंशियल ट्रेसिंग और सामाजिक निगरानी को एकीकृत करना होगा।
सुरक्षा सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं
इतनी बड़ी बरामदगी से यह स्पष्ट है कि किसी न किसी स्तर पर स्थानीय लोगों की अनदेखी या चुप्पी ने भी इस साजिश को पनपने दिया। अगर नागरिक सतर्कता से काम लें, संदिग्ध गतिविधियों, नए किरायेदारों, या बिना लाइसेंस सामग्री के भंडारण की सूचना दें, तो ऐसे हादसों को रोका जा सकता है। सुरक्षा केवल पुलिस की जिम्मेदारी नहीं, यह नागरिक जिम्मेदारी भी है। फरीदाबाद बरामदगी हमें यह याद दिलाती है कि आतंकी नेटवर्क अब भौगोलिक सीमाओं से आगे बढ़कर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सीमाओं को तोड़ रहे हैं। अगर हमें सुरक्षित रहना है, तो सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि सूचना, शिक्षा और समाजिक एकता से इस जाल को तोड़ना होगा।
“पढ़े-लिखे आतंकी” डॉक्टर, इंजीनियर और आईटी प्रोफेशनल कैसे बन रहे हैं साजिश के हथियार
फरीदाबाद में 350 किलो विस्फोटक की बरामदगी ने सुरक्षा एजेंसियों को जितना चौंकाया, उतना ही डराया भी, क्योंकि इस बार हथियार किसी सीमावर्ती इलाक़े या पहाड़ी इलाके से नहीं, बल्कि शहर के डॉक्टरों और प्रोफेशनल्स से जुड़े ठिकानों से मिले। यह एक नई हकीकत है। आतंकवाद अब गरीब और अशिक्षित वर्ग का खेल नहीं रहा, बल्कि पढ़े-लिखे और तकनीकी रूप से दक्ष लोग भी इसकी जद में आ रहे हैं। पिछले पांच वर्षों की जांच रिपोर्टों पर नजर डालें तो साफ होता है कि अब “आतंकी” की परिभाषा बदल चुकी है। डॉक्टर, जो जान बचाने की कसम खाते हैं, अब कुछ मामलों में हथियार छिपाने और फंडिंग ट्रांसफर करने तक में शामिल पाए गए। इंजीनियर और आईटी एक्सपर्ट, जो सॉफ्टवेयर डेवलप करते हैं, वही अब “डिजिटल जिहाद” के कोड लिख रहे हैं। स्टूडेंट्स, जो स्कॉलरशिप के लिए विदेश जाते हैं, कुछ मामलों में वहां से कट्टरपंथी विचारधारा लेकर लौटते हैं। जम्मू-कश्मीर, केरल, दिल्ली, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में ऐसे कई मॉड्यूल हाल के वर्षों में पकड़े गए हैं, जहां आरोपी उच्च शिक्षित और पेशेवर थे।
हालिया उदाहरण जो चौंकाते हैं
1. केरल (2024): एक मेडिकल छात्रा को आतंकी संगठन ISIS के ऑनलाइन सेल से जुड़ने और फंडिंग में मदद के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
2. मुंबई (2023): एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने “डार्क वेब” के माध्यम से बम बनाने की कोडिंग सीखी और तीन युवकों को प्रशिक्षण दिया।
3. दिल्ली (2022): AIIMS के एक जूनियर डॉक्टर पर “रैडिकलाइजेशन ग्रुप” को Shelter देने का आरोप लगा।
4. बेंगलुरु (2021): आईटी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी ने ऑनलाइन विदेशी फंडिंग के जरिए दो लाख डॉलर की क्रिप्टो राशि आतंक समर्थक संगठनों को ट्रांसफर की।
खतरनाक है यह बदलाव
आतंकवाद की यह नई प्रवृत्ति इसलिए अधिक खतरनाक है क्योंकि शिक्षित लोग तकनीक और नेटवर्किंग की समझ रखते हैं। वे निगरानी से बचने के तरीके जानते हैं, जैसे VPN, Dark Web और Crypto Transactions। इनके पास सामाजिक सम्मान और भरोसे की ढाल होती है, जिससे शक कम होता है। सुरक्षा एजेंसियों के एक वरिष्ठ अधिकारी के शब्दों में, “अब बंदूक चलाने वाले नहीं, लैपटॉप चलाने वाले आतंकी ज्यादा खतरनाक हैं।”
सोशल मीडिया और डार्क वेब: नया प्रशिक्षण शिविर
अब आतंकवादी संगठन अपने कैडर तैयार करने के लिए डिजिटल प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल करते हैं। टेलीग्राम, सिग्नल और डार्क वेब पर गुप्त चैट ग्रुपों में “भाई” और “शहीद” नामों से नए सदस्य जोड़े जाते हैं। “मिशन”, “जन्नत” या “काज” जैसे धार्मिक भावनाओं से भरे संदेशों से युवाओं को मानसिक रूप से प्रभावित किया जाता है। कुछ को हैकिंग, कोडिंग या डिजिटल पेमेंट के जरिए नेटवर्क में जोड़ा जाता है, ताकि वे बिना मैदान में उतरे आतंक के औजार बन सकें।
मनोवैज्ञानिक कारण — बुद्धिमत्ता और असंतोष का संगम
विशेषज्ञों के अनुसार, पढ़े-लिखे वर्ग के रैडिकलाइजेशन के पीछे सिर्फ धर्म नहीं, बल्कि मानसिक असंतोष, सामाजिक अलगाव और पहचान की खोज भी बड़ी वजह है। कई मामलों में ऐसे लोग “सामाजिक सुधार” या “न्याय” के नाम पर शुरुआत करते हैं, जो धीरे-धीरे कट्टर विचारधारा में बदल जाती है। दिल्ली विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री डॉ. अनिता रंजन कहती हैं, “इन मामलों में दिमाग से ज़्यादा दिल काम करता है। जब कोई खुद को हाशिए पर महसूस करता है, तो वह वैचारिक अंधेरे की ओर मुड़ सकता है।”
एजेंसियों की चुनौती – दिखता कम, फैलता ज्यादा
सुरक्षा एजेंसियों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि इन प्रोफेशनल्स का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता। वे बैंकिंग, टेक्नोलॉजी और कानूनी ढांचे का इस्तेमाल स्मार्ट तरीके से करते हैं। इसलिए जांच के पारंपरिक तरीकों से इन्हें पकड़ पाना मुश्किल है। अब NIA और IB जैसी एजेंसियां “Behavioral AI Surveillance” और Digital Footprint Mapping जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल शुरू कर रही हैं, ताकि इस नए तरह के आतंकी प्रोफाइल को समझा जा सके।
अब “डॉक्टर” और “डेवलपर” दोनों पर निगरानी जरूरी
फरीदाबाद की बरामदगी सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि एक संकेत है कि आतंक अब पढ़े-लिखे दिमागों के जरिये अपनी जड़ें फैला रहा है। सरकार को सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों और कॉरपोरेट सेक्टर को भी जागरूक बनाना होगा। क्योंकि अब युद्ध का मैदान बदल चुका है। जहां पहले बारूद होता था, अब ब्रॉडबैंड है। जहां पहले हथियार मिलते थे, अब कोड और कॉन्टैक्ट लिस्ट मिल रही हैं।
औद्योगिक शहर बन रहे आतंकियों के नए ठिकाने
फरीदाबाद में 350 किलो विस्फोटक बरामद होने की घटना ने यह साबित कर दिया कि आतंकवाद अब सीमाओं तक सीमित नहीं रहा। जहां कभी पहाड़ी इलाकों, सीमा-रेखाओं और घने जंगलों को आतंकियों का गढ़ माना जाता था, अब वही जाल भारत के औद्योगिक शहरों फरीदाबाद, गाज़ियाबाद, पुणे, सूरत और हैदराबाद तक फैल चुका है। इन शहरों में उद्योग, किराए के मकान, और विशाल प्रवासी आबादी ने आतंकियों के लिए “स्लीपर सेल” (Sleepers Cells) चलाने का अनुकूल माहौल तैयार कर दिया है। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आधुनिक औद्योगिक शहर आतंकियों के लिए तीन कारणों से सबसे मुफ़ीद हैं:
1. जनसंख्या का घनत्व और गुमनामी – बड़ी आबादी के बीच पहचान छिपाना आसान होता है।
2. किराये के मकान और नकली आईडी – बिना पूछताछ के रहने या गोदाम किराये पर लेने की सुविधा।
3. लॉजिस्टिक नेटवर्क – हाईवे, गोदाम, ई-कॉमर्स ट्रांसपोर्ट और कोरियर सुविधाओं से बारूद या सामग्री की आवाजाही सरल हो जाती है। फरीदाबाद, गाज़ियाबाद और सूरत जैसे औद्योगिक शहरों में हजारों बिना सत्यापित किराये के घर और छोटे वेयरहाउस हैं, जो आतंकियों को छिपने और विस्फोटक स्टोर करने के लिए उपयुक्त जगहें प्रदान करते हैं।
फरीदाबाद से सूरत तक “स्लीपर सेल” का नक्शा
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) की रिपोर्टों में पिछले पांच वर्षों में दर्ज कई औद्योगिक शहरों का नाम सामने आया है:
फरीदाबाद (हरियाणा) – 2025 में 350 किलो विस्फोटक और दो डॉक्टर गिरफ्तार।
गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश) – 2024 में एक हाउसिंग सोसाइटी से 12 संदिग्ध गिरफ्तार, जिनके पास विदेशी सिम और क्रिप्टो वॉलेट मिले।
पुणे (महाराष्ट्र) – 2023 में एक प्राइवेट लैब के वैज्ञानिक पर आतंकी फंडिंग के आरोप।
सूरत (गुजरात) – 2022 में 200 किलो अमोनियम नाइट्रेट पकड़ा गया, जिसका संबंध दक्षिण भारत के मॉड्यूल से था।
हैदराबाद (तेलंगाना) – 2021 में चार आईटी कर्मचारियों को ISIS से जुड़े ऑनलाइन चैट ग्रुप में सक्रिय पाया गया। हर मामले में एक समानता दिखी – उच्च शिक्षित, तकनीकी रूप से सक्षम और शहर के बीच बसे लोग, जिनकी गतिविधियां लंबे समय तक किसी की नजर में नहीं आईं।
कैसे काम करता है स्लीपर सेल का नेटवर्क
स्लीपर सेल यानी ऐसा गुप्त आतंकी नेटवर्क, जो सालों तक निष्क्रिय रहता है, लेकिन आदेश मिलने पर अचानक सक्रिय होकर हमला या लॉजिस्टिक सहायता देता है। ये सदस्य सामान्य जीवन जीते हैं , नौकरी करते हैं, पढ़ाई करते हैं या कारोबार। ये अपने नेटवर्क से एन्क्रिप्टेड डिजिटल माध्यमों से जुड़े रहते हैं। ज़रूरत पड़ने पर एक “कॉल” या “कोडेड मैसेज” से सक्रिय हो जाते हैं। भारत में ऐसे कई “स्लीपर सेल्स” को डिजिटल जिहाद यूनिट्स भी कहा जाने लगा है, क्योंकि वे इंटरनेट, क्रिप्टो और ऑनलाइन लेन-देन का इस्तेमाल करते हैं।
1. स्थानीय भर्ती: कोई शिक्षित या असंतुष्ट युवक सोशल मीडिया पर कट्टर विचारधारा से प्रभावित होकर भर्ती होता है।
2. कानूनी आवरण: उसे किसी छोटे व्यवसाय या नौकरी से जोड़ दिया जाता है ताकि उसकी पहचान सामान्य दिखे।
3. टेक्नोलॉजी के ज़रिए संपर्क: आदेश और प्रशिक्षण ऑनलाइन दिए जाते हैं- कभी-कभी वीडियो ट्यूटोरियल के रूप में।
4. अचानक सक्रियता: जब ऊपर से आदेश मिलता है, तो ये “सोए हुए” सदस्य एक झटके में सक्रिय होकर हथियार या विस्फोटक पहुंचाते हैं।
सुरक्षा एजेंसियों की चुनौती
औद्योगिक शहरों में सुरक्षा एजेंसियों की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वहां हर दिन लाखों लोग आते-जाते हैं, मजदूर, ट्रक ड्राइवर, छात्र और कर्मचारी। इतने बड़े प्रवाह में संदिग्ध व्यक्ति की पहचान करना सूई को भूसे के ढेर में ढूंढने जैसा काम है। पुलिस की जांच अक्सर सूचना पर आधारित होती है, और जब तक सुराग मिलता है, नेटवर्क जगह बदल चुका होता है। फरीदाबाद मामले के बाद अब दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, सूरत और पुणे पुलिस को “Industrial Intelligence Unit” बनाने की सलाह दी गई है, जो औद्योगिक क्षेत्रों में असामान्य गतिविधियों की निगरानी करे।
समाज की भूमिका- “अजनबी पर नज़र, मगर बिना डर”
स्लीपर सेल्स की पहचान केवल पुलिस नहीं कर सकती। किराएदार, मकान मालिक, सुरक्षा गार्ड, स्थानीय लोग अगर सतर्क रहें और समय पर सूचना दें तो कई बड़ी साजिशें रोकी जा सकती हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने हाल ही में “Report Suspicious Activity” हेल्पलाइन भी सक्रिय की है, ताकि आम नागरिक भी सहयोग कर सकें। फरीदाबाद बरामदगी ने जो रास्ता दिखाया है, वह डराने वाला भी है और चेतावनी भी। औद्योगिक विकास के साथ-साथ सुरक्षा और पहचान सत्यापन को भी प्राथमिकता देनी होगी। क्योंकि आतंकवाद अब जंगलों या सीमाओं में नहीं छिपा ! वह हमारे शहरों की फैक्ट्रियों, फ्लैटों और डेटा सर्वर के बीच पनप रहा है।
हर साल 10 नवंबर को विश्व सार्वजनिक परिवहन दिवस (Public Transport Day) मनाया जाता है ताकि लोगों को साझा परिवहन (Public Mobility) के महत्व, पर्यावरणीय...