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September 1, 2025

RTI: सूचना का अधिकार नहीं, हताशा का अधिकार, महाराष्ट्र सूचना आयोग में 74 हजार अपीलें लंबित

The CSR Journal Magazine
महाराष्ट्र, जिसे कभी Right to Information (RTI) Movement in India की जन्मभूमि कहा जाता था, आज उसी राज्य में RTI अपीलें सालों से धूल खा रही हैं। जुलाई 2025 तक राज्य सूचना आयोग की वेबसाइट पर 74,639 दूसरी अपीलें लंबित दर्ज हैं। इनमें सबसे ज्यादा मामले राज्य मुख्यालय (15,945), नाशिक (13,297) और अमरावती (12,725) में अटके हुए हैं।

सूचना का अधिकार के मामले में मुंबई में सबसे खराब हालात

मुंबई की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। विवादास्पद फैसले के चलते अब BMC (Brihanmumbai Municipal Corporation) RTI Appeals सीधे राज्य आयोग द्वारा सुनी जा रही हैं। नतीजतन, यहां फिलहाल 2022 की अपीलें सुनी जा रही हैं, यानी तीन साल की देरी। सामाजिक कार्यकर्ता जीतेन्द्र घाडगे ने बताया कि उनकी दिसंबर 2021 में दाखिल अपील आज तक नहीं सुनी गई। The CSR Journal से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि जब तक अपील का निपटारा होता है, जानकारी अप्रासंगिक हो जाती है। इसका फायदा उन्हीं को मिलता है जो भ्रष्टाचार और गड़बड़ी छिपाना चाहते हैं।

सूचना का अधिकार आयोग की कार्यशैली पर सवाल

हालांकि नए मुख्य सूचना आयुक्त राहुल पांडे ने जुलाई में 3,542 मामलों का निपटारा किया, लेकिन अलग-अलग डिवीजनों का प्रदर्शन असमान है। उदाहरण के लिए, अमरावती आयुक्त रविंद्र ठाकरे ने केवल 166 मामले निपटाए, जबकि उनके पास सबसे ज्यादा लंबित अपीलें हैं। इसके अलावा, आयोग ने यह जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की कि जुलाई 2023 से जून 2024 तक कितने Public Information Officers (PIOs) पर जुर्माना लगाया गया। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि आयुक्त जुर्माना लगाने से बचते हैं, जिससे विभागों को RTI खारिज करने का और हौसला मिलता है।

सेवानिवृत्त अफसरों का दबदबा

आयोग की संरचना भी सवालों के घेरे में है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक 96% आयुक्त पुरुष और सिर्फ 4% महिलाएं रही हैं। 86% आयुक्त सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी, जबकि सिर्फ 11% वकील और 4% पत्रकार बने। वरिष्ठ RTI उपयोगकर्ता राजेश रूपारेल का कहना है कि जब सेवानिवृत्त अधिकारी मौजूदा अधिकारियों पर फैसले करते हैं, तो जवाबदेही पीछे छूट जाती है। सरकार को पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आयुक्त पदों पर प्राथमिकता देनी चाहिए।

सूचना का अधिकार के पारदर्शिता का भविष्य अधर में

महाराष्ट्र, जिसने कभी RTI Act in India को मजबूत बनाने में नेतृत्व किया था, अब अपने ही सूचना आयोग की निष्क्रियता और अपारदर्शिता से जूझ रहा है। लंबित अपीलों और जुर्माने के आंकड़े छिपाने से नागरिकों का भरोसा कमजोर हो रहा है। आखिरकार, सवाल यही है कि जब सूचना आयोग ही पारदर्शिता में फेल हो रहा है, तो आम नागरिक सरकार से जवाबदेही की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?
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