महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर एक बार फिर से राजनीति गरमा गई है। इस बार मराठी अस्मिता के मुद्दे पर दो चचेरे भाई, राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे, करीब 18 साल बाद एकजुट होकर मैदान में उतरने वाले हैं। दोनों नेताओं ने 5 जुलाई को सरकार के खिलाफ एक बड़े ‘महामोर्चे’ की घोषणा की है। इस आंदोलन को मराठी भाषा पर कथित खतरे और हिंदी के ‘थोपे’ जाने के विरोध में संगठित किया जा रहा है।
मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए एक साथ आए ठाकरे बंधु
मनसे प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता उद्धव ठाकरे ने इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस और एनसीपी जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टियों को भी आंदोलन में शामिल होने का न्योता दिया है। यह पहला मौका है जब 2006 में अलगाव के बाद दोनों नेता एक सार्वजनिक मुद्दे पर खुले मंच पर साथ आ रहे हैं। हाल ही में दादर के एक रेस्तरां में मनसे नेता संदीप देशपांडे और उद्धव खेमे के वरुण सरदेसाई को एक साथ बैठकर चर्चा करते देखा गया, जिसने इस राजनीतिक गठजोड़ की पुष्टि कर दी।
क्या है विवाद की जड़?
राज ठाकरे का आरोप है कि बीजेपी सरकार महाराष्ट्र में हिंदी को जबरन थोप रही है, जिससे मराठी भाषा और उसकी सांस्कृतिक पहचान को खतरा है। राज्य सरकार ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि मराठी ही महाराष्ट्र की प्रथम भाषा थी, है और रहेगी। सरकार का कहना है कि विपक्ष गलत प्रचार कर रहा है।
सभी स्कूलों में मराठी अनिवार्य भाषा है
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुसार राज्य सरकारें अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता दे सकती हैं। 2 से 8 साल के बच्चों के लिए मातृभाषा में पढ़ाई अधिक प्रभावी मानी गई है। अगर कोई छात्र तीसरी भाषा पढ़ना चाहता है, तो सरकार शिक्षक उपलब्ध कराएगी।
शरद पवार गुट ने भी किया समर्थन
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) ने भी 5 जुलाई को मराठी भाषा के समर्थन में होने वाले आंदोलन का खुला समर्थन किया है। पार्टी प्रदेशाध्यक्ष जयंतराव पाटील ने कहा कि “जब महाराष्ट्र हित की बात आती है, तब हमारी पार्टी हमेशा राज्य के साथ खड़ी रहती है, और जब राष्ट्रहित की बात होती है, तब राष्ट्र के साथ।” पाटील ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आंदोलन पार्टी से ऊपर उठकर मराठी अस्मिता की लड़ाई है।
आंकड़ों की नजर से समझिए शिक्षा में भाषाओं का हाल
महाराष्ट्र में कुल स्कूल: 1,60,057
कुल छात्र: 2.66 करोड़
अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल: 15,000 स्कूलों में 66 लाख छात्र
हिंदी माध्यम स्कूल: 5,096
उर्दू शिक्षक: लगभग 37,000
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मराठी माध्यम स्कूलों की संख्या में कमी और अंग्रेज़ी/हिंदी माध्यम की बढ़ती हिस्सेदारी भी मराठी समर्थकों की चिंता की एक बड़ी वजह है।
राजनीतिक समीकरणों में नई हलचल
5 जुलाई को होने वाला यह ‘महामोर्चा’ सिर्फ एक भाषाई आंदोलन नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए समीकरण का संकेत भी माना जा रहा है। अगर राज और उद्धव लंबे समय तक साथ आते हैं, तो यह भाजपा के लिए एक नई चुनौती बन सकता है। कांग्रेस और एनसीपी जैसे दलों का समर्थन इस आंदोलन को राजनीतिक ताकत भी देगा।
मराठी भाषा या राजनीतिक मोर्चा?
5 जुलाई को मुंबई की सड़कों पर उतरने जा रहा यह महामोर्चा केवल भाषा की रक्षा का आह्वान नहीं, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों के पहले एक राजनीतिक लिटमस टेस्ट भी बन सकता है। क्या यह आंदोलन मराठी भाषा की गरिमा बचाने में सफल होगा? या फिर यह महज एक राजनीतिक स्टंट साबित होगा? सवाल कई हैं, जवाब 5 जुलाई को जनता देगी।