app-store-logo
play-store-logo
November 26, 2025

सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा में महाराष्ट्र सरकार की ऐतिहासिक पहल-भजन मंडलों को फंड मंज़ूरी

The CSR Journal Magazine
1800 मंडलों को 25–25 हज़ार रुपये, पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर खर्च की अनुमति! महाराष्ट्र सरकार ने प्रदेशभर के भजन/भजनी मंडलों को आर्थिक मज़बूती देने के उद्देश्य से 1800 मंडलों के लिए 4.5 करोड़ रुपये की अनुदान योजना को अंतिम मंज़ूरी दे दी है।

महाराष्ट्र सरकार ने भजन मंडलों के लिए 4.5 करोड़ की अनुदान योजना मंज़ूर की

महाराष्ट्र सरकार ने प्रदेशभर के 1,800 भजन मंडलों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के प्रस्ताव को औपचारिक मंज़ूरी दे दी है। सांस्कृतिक परंपराओं को बढ़ावा देने और स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से सरकार ने प्रत्येक मंडल को 25,000 रुपये की अनुदान राशि देने का फैसला किया है। इस योजना के तहत कुल लगभग 4.5 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

योजना का उद्देश्य: सांस्कृतिक धरोहर को आर्थिक आधार देना

राज्य सरकार का कहना है कि भजन मंडल महाराष्ट्र की लोक-सांस्कृतिक परंपरा की आत्मा हैं। गांव-गांव में धार्मिक और सामाजिक सद्भाव फैलाने में इन मंडलों की भूमिका दशकों से महत्वपूर्ण रही है। लेकिन कई मंडल सीमित संसाधनों के चलते हर्मोनियम, ढोलकी, मृदंग, पखावज, तालयंत्र जैसे वाद्ययंत्र खरीदने में कठिनाई महसूस कर रहे थे। सरकार का मानना है कि यह सहायता उनकी कला को संरक्षित करने में मदद करेगी।

20 सदस्य और 50 कार्यक्रम की अनिवार्यता

राज्य के सांस्कृतिक विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, अनुदान उन्हीं मंडलों को मिलेगा जो निश्चित शर्तें पूरी करते हैं-
मंडल में कम से कम 20 सक्रिय सदस्य होना अनिवार्य,
पिछले महीनों/वर्ष में 50 या अधिक भजन कार्यक्रमों का आयोजन,
सांस्कृतिक और लोकधर्मी गतिविधियों में निरंतर सक्रियता!
जिला-स्तरीय समितियां इन मंडलों की पात्रता की जांच करने के बाद सूची राज्य सरकार को भेजेंगी।

अनुदान के उपयोग की शर्तें

सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह राशि सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े वाद्ययंत्रों और आवश्यक उपकरणोंकी खरीद पर खर्च की जा सकती है। इसमें शामिल हैं- हर्मोनियम, मृदंग/पखावज, ढोलकी, झांझ, तालयंत्र और ध्वनि/ताल वाद्य से संबंधित अन्य सामग्री! उद्देश्य यह है कि भजन मंडल अपने कार्यक्रमों की गुणवत्ता को बेहतर बना सकें।

गणेशोत्सव और बड़े पर्वों के पहले बड़ा कदम

राज्य सरकार की यह पहल आगामी उत्सवों- विशेषकर गणेशोत्सव, शिवजयंती, और वार्षिक धार्मिक कार्यक्रमों के ठीक पहले आई है। इन अवसरों पर भजन मंडल बड़ी संख्या में सक्रिय रहते हैं। सरकार को उम्मीद है कि अनुदान मिलने से मंडलों की तैयारियों को गति मिलेगी और समारोहों में पारंपरिक संगीत की भागीदारी बढ़ेगी।

अगस्त में घोषणा, नवंबर में मंज़ूरी

इस योजना की घोषणा पहली बार अगस्त 2025 में हुई, जब सांस्कृतिक मंत्री ने बताया कि प्रदेश के भजन मंडलों को अनुदान देने की योजना तैयार है और सरकार इसे लागू करने की दिशा में काम कर रही है। इसके बाद नवंबर 2025 में अंतिम अपडेट आया, जिसमें बताया गया कि योजना को औपचारिक मंज़ूरी दे दी गई है और कुल ₹4.5 करोड़ का बजट जारी कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि अब अनुदान वितरण के लिए ज़मीनी स्तर पर प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और कार्यान्वयन की तैयारियां तेज़ हैं।

स्थानीय कलाकारों में उत्साह

यह योजना विशेष रूप से ग्रामीण महाराष्ट्र के भजन मंडलों के लिए उपयोगी मानी जा रही है। यहां कला-संस्थाओं के पास आम तौर पर सीमित स्रोत होते हैं। मंडलों के सदस्यों का मानना है कि सरकार ने पहली बार इस स्तर पर उनकी जरूरतों को समझा है।

सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में कदम

राज्य सरकार का कहना है कि महाराष्ट्र में भजनी परंपरा एक महत्वपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत है। गांवों से लेकर शहरों तक, भजन मंडल सामुदायिक सद्भाव और आध्यात्मिक संस्कृति का अहम हिस्सा रहे हैं। इसलिए इनकी आर्थिक मज़बूती राज्य की सांस्कृतिक निरंतरता के लिए आवश्यक है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा 1800 भजन मंडलों को 25-25 हजार रुपये की सहायता देने का निर्णय सांस्कृतिक दृष्टि से स्वागत योग्य है। भजन मंडल सिर्फ धार्मिक गायन की संस्था नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, लोककला और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का माध्यम भी हैं। ग्रामीण महाराष्ट्र की सांस्कृतिक धड़कन इन्हीं मंडलों से चलती है। ऐसे में आर्थिक सहायता निश्चित ही उनके लिए राहत लेकर आएगी।

भजन मंडलों को सहायता: परंपरा को संरक्षित करने का प्रयास या चुनावी राजनीति?

लेकिन किसी भी सरकारी योजना की तरह, इस निर्णय के पीछे कुछ आवश्यक सवाल भी छुपे हुए हैं। क्या यह कदम केवल सांस्कृतिक संरक्षण की दृष्टि से उठाया गया है या फिर यह उत्सवों और चुनावी मौसम को मद्देनज़र रखते हुए लिया गया एक लोकप्रिय निर्णय है? भजन मंडलों की सक्रियता धार्मिक आयोजनों, जैसे गणेशोत्सव से सीधे जुड़ी होती है। ऐसे में सरकार का अनुदान त्योहारों से ठीक पहले जारी होना संयोग जितना भी लगे, राजनीतिक नज़र से देखा जाए तो यह समय काफी महत्वपूर्ण है।

अनुदान का सही हाथों तक पहुंचना ज़रूरी 

यह सच है कि अधिकांश भजन मंडल सीमित संसाधनों से काम चलाते हैं। वाद्ययंत्र महंगे होते हैं, और गांव के कलाकारों के पास आर्थिक मजबूती नहीं होती। अगर सरकारी सहायता से उनके कार्यक्रम मज़बूत होते हैं, तो यह लोक-संस्कृति में निवेश ही माना जाएगा। हालांकि, निगरानी और पारदर्शिता जरूरी है, क्योंकि ऐसी योजनाएं तभी सफल होती हैं जब धन सही हाथों तक पहुंचे और उसका सही उपयोग हो। इसलिए यह निर्णय न तो पूरी तरह राजनीतिक कहा जा सकता है, न ही इसे सिर्फ धार्मिक प्रोत्साहन के रूप में देखा जाना चाहिए। यह एक ऐसा कदम है जिसमें सांस्कृतिक संरक्षण, सामाजिक सहभागिता और प्रशासनिक इच्छा, तीनों का मिश्रण है।
अब देखने की बात यह है कि क्या यह योजना भजन मंडलों की वास्तविक जरूरतों को पूरा करेगी या फिर केवल अनुदान वितरण की एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी !
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!

Latest News

Popular Videos