Twin Babies: महाराष्ट्र का बीड ज़िला इन दिनों एक अनोखी वजह से चर्चा में है। यहां के सिविल सरकारी अस्पताल (Beed Civil Hospital) ने बीते नौ महीनों में 42 जुड़वां बच्चों के जन्म के साथ एक नया रिकॉर्ड बना दिया है। आम तौर पर जुड़वां बच्चों का जन्म एक दुर्लभ घटना मानी जाती है, लेकिन इस अस्पताल के लिए अब यह “कॉमन” बन गया है। इस अद्भुत उपलब्धि ने न सिर्फ अस्पताल के चिकित्सा कर्मचारियों को गर्व से भर दिया है, बल्कि पूरे जिले का नाम भी रोशन कर दिया है।
9 महीनों में 42 ट्विन डिलीवरी, बीड बना चर्चा का केंद्र
बीड सिविल अस्पताल के आरएमओ (RMO) डॉ. एल.आर. तांडाले ने बताया कि सिर्फ नौ महीनों में 42 जुड़वां जोड़ों का जन्म होना अपने आप में एक मेडिकल रिकॉर्ड है। हमारी NICU (Neonatal Intensive Care Unit) पूरी तरह तैयार है, ताकि हर नवजात को बेहतर सुविधा दी जा सके। अस्पताल के मेटरनिटी वार्ड (Maternity Ward) में रोजाना औसतन 10–12 डिलीवरी होती हैं, जिनमें से कई मामलों में जुड़वां बच्चे सामने आ रहे हैं। यह सभी डिलीवरी सामान्य और सिजेरियन (C-Section) दोनों तरीकों से हुई हैं।
मां और नवजात की ‘स्पेशल केयर’ से बना भरोसा
अस्पताल प्रशासन ने बताया कि जुड़वां बच्चों के जन्म के साथ मेडिकल स्टाफ की जिम्मेदारी भी दोगुनी हो जाती है। डॉ. तांडाले ने कहा कि हमारे पास एक स्पेशल मेडिकल टीम है जो हर डिलीवरी के दौरान और बाद में मां और नवजात की देखभाल करती है। नवजात शिशुओं को संक्रमण से बचाने, सही तापमान और पर्याप्त स्तनपान देने के लिए हर जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। टीम ने यह भी बताया कि समय से पहले जन्मे जुड़वां बच्चों को NICU में विशेष निगरानी (Special Monitoring) के तहत रखा जाता है ताकि उन्हें संक्रमण या वजन की कमी जैसी जटिलताओं से बचाया जा सके।
क्या वजह है बढ़ती जुड़वां जन्म दर के पीछे?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर बीड जैसे जिले में अचानक जुड़वां बच्चों के जन्म की संख्या क्यों बढ़ गई? डॉक्टरों के अनुसार, इसके पीछे कई Medical और Biological कारण हैं। डॉ. तांडाले बताते हैं कि आजकल महिलाओं में ‘इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF)’ और ‘Assisted Reproductive Technology (ART)’ के प्रयोग बढ़े हैं। इन तकनीकों से गर्भधारण की संभावना अधिक होती है, और कई मामलों में जुड़वां या तिड़वा बच्चों का जन्म होता है। इसके अलावा, पारिवारिक इतिहास (Genetic Factor) भी एक अहम कारण है। अगर परिवार में पहले किसी ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया है, तो अगली पीढ़ी में भी इसकी संभावना बढ़ जाती है। एक और दिलचस्प पहलू यह है कि 30 वर्ष से अधिक आयु की महिलाएं (Older Mothers), जो गर्भधारण में देर करती हैं, उनमें जुड़वां बच्चों की संभावना अपेक्षाकृत अधिक होती है।
आधुनिक जीवनशैली और पोषण भी बड़ा कारण
विशेषज्ञ बताते हैं कि आधुनिक जीवनशैली, बढ़ी हुई Nutrition Awareness, और बेहतर मेडिकल सुविधाएं भी जुड़वां बच्चों की बढ़ती संख्या में भूमिका निभा रही हैं। कई महिलाएं अब फर्टिलिटी ट्रीटमेंट (Fertility Treatment) के ज़रिए गर्भधारण कर रही हैं, जहां कई बार एक से अधिक भ्रूण (Embryo) गर्भ में स्थापित किए जाते हैं। इससे जुड़वां बच्चों की संभावना स्वतः बढ़ जाती है। इसके अलावा, अब ग्रामीण इलाकों में भी Prenatal Care और Maternal Nutrition पर पहले से अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जिससे गर्भधारण के जटिल मामलों को संभालना आसान हुआ है।
गांव की महिलाएं भी समझ रहीं ‘सेफ डिलीवरी’ का महत्व
बीड के ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली महिलाओं में भी अब जागरूकता बढ़ी है। वे सरकारी अस्पतालों में प्रसव को प्राथमिकता दे रही हैं क्योंकि यहां उन्हें फ्री मेडिकल चेकअप, सुरक्षित प्रसव (Safe Delivery) और NICU सुविधा मिलती है। डॉक्टरों के अनुसार, इस ट्रेंड से मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) और नवजात मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) दोनों में गिरावट दर्ज की गई है।
अस्पताल के लिए गौरव, परिवारों के लिए आशीर्वाद
अस्पताल के कर्मचारियों के मुताबिक, जुड़वां बच्चों के जन्म से हर बार अस्पताल का माहौल खुशी और जश्न से भर जाता है। नर्स सीमा कदम कहती हैं कि हर डिलीवरी अपने आप में एक कहानी होती है, लेकिन जब जुड़वां बच्चे जन्म लेते हैं, तो यह खुशी दोगुनी हो जाती है। परिवारों के चेहरों पर जो मुस्कान होती है, वही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है। बीड के लिए यह आंकड़ा न सिर्फ मेडिकल प्रगति का संकेत है, बल्कि यह भी बताता है कि सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं और भरोसे का स्तर अब पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गया है।
आगे की दिशा और मजबूत होगी मातृ-शिशु देखभाल प्रणाली
बीड सिविल अस्पताल अब मातृ-शिशु देखभाल (Mother & Child Care System) को और मजबूत करने पर काम कर रहा है। डॉ. तांडाले के अनुसार, हम जल्द ही एक ‘ट्विन बर्थ ट्रैकिंग सिस्टम’ शुरू करने की योजना बना रहे हैं, जिससे जन्मे जुड़वां बच्चों की स्वास्थ्य स्थिति पर लगातार नजर रखी जा सकेगी। यह न सिर्फ एक मेडिकल रिकॉर्ड होगा बल्कि एक सामाजिक अध्ययन का हिस्सा भी बनेगा। बीड का यह सिविल अस्पताल आज महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन गया है कि अगर सरकारी व्यवस्था और डॉक्टरों की टीम एकजुट होकर काम करें, तो ग्रामीण इलाकों में भी मेडिकल “चमत्कार” संभव है। 9 महीनों में 42 जुड़वां बच्चों का जन्म सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि ‘हेल्थ इन इंडिया’ की नई उम्मीद है।
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