भारत में रहस्यमय और प्राचीन मंदिरों की कोई कमी नहीं है। एक ऐसा ही मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहां हर दिन एक चमत्कार होता है, जिसे देखकर लोग हैरान हो जाते हैं। दरअसल, इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है। यह नजारा वाकई हैरान कर देने वाला होता है।
चार धाम और पहाड़ों की रक्षक मां धारी देवी
देश में देवी-देवताओं को समर्पित ऐसे कई मंदिर हैं, जो किसी रहस्य या फिर अन्य कारण से अधिक प्रसिद्ध हैं। एक ऐसा ही मंदिर उत्तराखंड में स्थित है, जिसका नाम धारी देवी मंदिर है। धार्मिक मान्यता है कि मां धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक देवी माना जाता है और मां धारी देवी चार धामों की रक्षा करती हैं। मां धारी देवी का यह मंदिर (Dhari Devi Mandir) देश में जगह जगह स्थापित 108 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर झील के ठीक बीचों-बीच स्थित है। देवी काली को समर्पित इस मंदिर में विराजमान धारी माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है।
उत्तराखंड के श्रीनगर क्षेत्र में, अलकनंदा नदी के तट पर मां धारी देवी का मंदिर स्थित है। यह सिद्धपीठ मां काली कल्याणी को समर्पित है। क्या आप जानते हैं कि मां धारी देवी को उत्तराखंड की 'रक्षक देवी' भी माना जाता है? #Uttarakhand #Dharidevi #Srinagar
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माता ने स्वयं आदेश दिया मूर्ति स्थापित करने का
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से मंदिर बह गया था। साथ ही उसमें मौजूद माता की मूर्ति भी बह गई और वह धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। कहते हैं कि उस मूर्ति से एक ईश्वरीय आवाज निकली, जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया। मंदिर में देवी धारी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग स्थित है, जबकि मूर्ति का निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहां उन्हें देवी काली के रूप में पूजा जाता है। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है।
माता का स्थान बदलते ही उत्तराखंड में आई प्रलय
कहते हैं कि मां धारी के मंदिर को साल 2013 में तोड़ दिया गया था और उनकी मूर्ति को उनके मूल स्थान से हटा दिया गया था, इसी वजह से उस साल केदारनाथ में ग्लेशियर टूटने और बादल फटने से भयानक बाढ़ आई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। दरअसल 16 जून, 2013 को अलकनंदा हाइड्रो पावर द्वारा निर्मित 330 मेगावाट अलकनंदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक बांध के निर्माण के लिए देवी के मूल मंदिर को हटा दिया गया और अलकनंदा नदी से लगभग 611 मीटर की ऊंचाई पर कंक्रीट के चबूतरे पर स्थानांतरित कर दिया गया। मूर्ति को स्थानांतरित करने के कुछ ही घंटों बाद, इस क्षेत्र को 2004 की सूनामी के बाद से देश की सबसे खराब प्राकृतिक आपदाओं में से एक का सामना करना पड़ा। बाद में उसी जगह पर फिर से मंदिर का निर्माण करवाया गया। उत्तराखंडवासी उस प्रलय को कभी भूल नहीं पाए जिसने शिव के धाम की रूपरेखा बदल दी। 1882 में एक स्थानीय राजा द्वारा इसी तरह के प्रयास के परिणामस्वरूप एक भूस्खलन हुआ था जिसने केदारनाथ को समतल कर दिया था।
नवरात्रों में होती है धूम
हर साल नवरात्रों के अवसर पर देवी कालीसौर को विशेष पूजा की जाती है। देवी काली के आशीर्वाद पाने के लिए दूर और नजदीक के लोग इस पवित्र दर्शन करने आते रहे हैं। मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी मौजूद है ।यह मंदिर दिल्ली-राष्ट्रीय राष्ट्रीय राजमार्ग 55 पर श्रीनगर से 15 किमी दूर है ।अलकनंदा नदी के किनारे पर मंदिर के पास तक 1 किमी-सीमेंट मार्ग जाता है। मंदिर नागर शैली में बना है, जिसमें शिखर, गढ़वाली संरचना और एक खुली छत है। अलकनंदा नदी पर एक स्टील के पुल से गुजर कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
धारी देवी मंदिर कैसे पहुंचे
धारी देवी मंदिर पहुंचने के लिए 145 किमी दूर देहरादून का जौलीग्रांट हवाई अड्डा है। इसके अलावा मंदिर से 115 किलोमीटर दूर ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। वहीं, हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून से मां धारी देवी मंदिर तक आसानी से छोटे-बडे़ वाहनों की मदद से पहुंच सकते हैं। धारी देवी मंदिर सुबह 06 बजे खुलता है और शाम को 07 बजे बंद होता है। उत्तराखंड आने पर आप धारी देवी मंदिर के साथ-साथ खिर्सू गांव, कंडोलिया मंदिर और रुद्रप्रयाग के दर्शन भी कर सकते हैं। इन सबसे पहले, उत्तराखंड को जिस वजह से देवभूमि कहा जाता है, वे चारों धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और पतित पावनी मां गंगा का उद्गम स्थल श्री गंगोत्री धाम के दर्शन करना न भूलें।
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