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July 12, 2025

कश्मीर की वुलर झील में 30 साल बाद खिला कमल, सैलानियों से घाटी हुई गुलजार

Wular Lake Kashmir: एक समय था जब कश्मीर की वुलर झील कमल के फूलों से गुलजार रहती थी, लेकिन 1992 की भयावह बाढ़ के बाद ये नजारा गायब हो गया था। अब, पूरे 30 साल बाद झील की सतह पर गुलाबी कमल फिर से लहराने लगे हैं जैसे प्रकृति ने पुराने जख्मों पर फूलों से मरहम रख दिया हो। दलदल व कचरे का डंपिंग ग्राउंड बनती जा रही वुलर में सरकारी प्रयासों, जागरूकता व लोगों के सहयोग से लगभग तीन दशक बाद फिर कमल खिला है।

Asia की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील वुलर

Jammu-Kashmir News: बांदीपुरा में एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील वुलर है। झील के अंदर जमा हुई मोटी-मोटी सिल्ट यानी कीचड़ को बाहर निकाला गया। ये सिल्ट 1992 की भीषण बाढ़ के दौरान झील में भर गई थी, और इसके नीचे कमल के बीज दबकर रह गए थे। उन्हें न तो हवा मिल पा रही थी, न सूरज की रोशनी, और न ही बढ़ने की जगह। लेकिन जैसे-जैसे झील से सिल्ट हटाई गई, वैसे-वैसे झील की जमीन को खुला आसमान मिला, और उसी जमीन में दबी उम्मीदों ने फिर से अंकुर फोड़ा। वो कमल के बीज, जो तीन दशक से छुपे बैठे थे, अब धीरे-धीरे ऊपर आकर फिर से फूल बनने लगे हैं। यह सिर्फ एक फूल का दोबारा खिलना नहीं है, यह कश्मीर की खोई हुई सांस्कृतिक परंपरा और प्राकृतिक खूबसूरती की वापसी है, जो अब दोबारा लोगों की आंखों में चमक बनकर दिख रही है।
30 साल बाद एक बार फिर जीवंत हो रही वुलर के आसपास बसे विभिन्न गांवों में ग्रामीणों के चेहरे भी इससे खिल उठे हैं, क्योंकि उनकी आजीविका का एक साधन फिर बहाल हो रहा है। वुलर के संरक्षण की मुहिम से तीन वर्ष में कमल के साथ खुशहाली भी लहलहाने लगी है। कश्मीर में कमल के साथ कमल ककड़ी (स्थानीय भाषा में नदरू) की काफी मांग है और प्रमुख कश्मीरी व्यंजन इससे बनते हैं। किसान इसे 250 से 400 रुपये प्रति किलो में बेच रहे हैं।

वुलर झील से हटाई गई गाद-WCAMA का प्रयास

वुलर झील में आया गुलाब कमल के फूलों का सैलाब, यह पूरा बदलाव अपने आप नहीं हुआ है बल्कि Wular Conservation And Management Authority  के संरक्षण की बदौलत आया है। अथॉरिटी ने बाढ़ से इकट्ठा हुई गाद को साफ करने के लिए झील से गाद निकालने का काम शुरू कर दिया था। वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी के जोनल ऑफिसर मुदासिर अहमद ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में जिन इलाकों से हमने गाद हटाई है, वहां कमल के फूल फिर से खिल रहे हैं। चूंकि कमल के बीज गाद और मिट्टी में गहरे दबे हुए थे, इसलिए वे उग नहीं पा रहे थे। अब जब गाद हटा दी गई है, तो कमल फिर से उग आए हैं।’

कश्मीरियों की आजीविका का साधन

बांदीपुरा और सोपोर कस्बों के बीच मौजूद और लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैली यह झील कभी कमलों से भरी रहती थी। कमल के स्टेम को स्थानीय नादरू के नाम से जाना जाता है। यह कश्मीर में एक स्वादिष्ट व्यंजन हैं। कमल घाटी की डल और मानसबल झील में भी उगता है। यहां इसके स्टेम की कटाई ही आजीविका का साधन है। इसकी कटाई का प्रोसेस काफी मुश्किल भरा है और किसान स्टेम को निकालने के लिए गर्दन तक पानी में उतरते हैं।

वुलर झील के इकोसिस्टम को बाढ़ से पहुंचा नुकसान

सितंबर 1992 में कश्मीर में विनाशकारी बाढ़ आई। इसकी वजह से वुलर झील के इकोसिस्टम को काफी नुकसान पहुंचा। यहां पर भारी मात्रा में गाद जमा हो गई। इसकी वजह से कमल के पौधे दब गए और झील के प्रवाह पर काफी असर हुआ। यहां के लोगों के लिए यह रोजी-रोटी का नुकसान था। वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी ने Ecosystem को बनाए रखने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया। इसका एक बहुत ही अहम् हिस्सा वुलर में जमी गाद को निकालना था। उनकी यह मेहनत काफी रंग लाई। पिछले साल कमल के फूलों में फिर से जान आने के संकेत मिलने लगे। वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी के जोनल ऑफिसर मुदासिर अहमद ने कहा कि इस साल अथॉरिटी ने झील में कमल के बीज बिखेरे। ड्रेजिंग ने सब कुछ बदल दिया। कई सालों तक गांव वाले कमल के बीज झील में डालते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।’

पर्यटन स्थल ही नहीं, मछुआरों की रोजी-रोटी है वुलर झील

वुलर झील उत्तरी कश्मीर के बांदीपुर जिले में स्थित एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है। यह अपनी अद्भुत सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है और घाटी के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। वुलर झील मछलियों के उत्पादन का भी एक प्रमुख स्रोत है। घाटी में मछलियों के उत्पादन का 60 प्रतिशत इसी झील से पूरा होता है। ये झील दुनिया की मशहूर तरीन झीलों में शुमार की जाती है। 19 किलोमीटर लंबी और तकरीबन 13 किलोमीटर चौड़ी ये खूबसूरत झील श्रीनगर से 40 कि.मि. दूर मौजूद है। पूर्व में बांदीपोर की पहाड़ियों के बीच और पश्चिम में बाबा शुक्रुद्दीन रहमतुल्लाह ज़ियारत गाह के दामन में मौजूद ये झील दूर तक फैली दिखती है।

वुलर का कहलाती थी महापद्मसर

वुलर झील का प्राचीन नाम महापद्मसर था। कुछ साल पहले तक यह एशिया की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील हुआ करती थी, लेकिन अब यह मात्र हरित क्षेत्र रह गयी है। वुलर नाम संस्कृत शब्द वोला से लिया गया है, जिसका अर्थ है अशांत। साल के कुछ महीनों के दौरान झील पार करते समय ऊंची लहरों का सामना करना पड़ता है।
उत्तरी कश्मीर के बांदीपुर जिले में हरमुख पहाड़ियों की तलहट्टी में 200 वर्ग किलोमीटर में फैली वुलर झील से घाटी में मछलियों के उत्पादन का 60 प्रतिशत मिलता है। इस झील की बदौलत हजारों मछुआरों के घरों के चूल्हे जलते हैं। हालांकि, बीते कुछ वर्षों से रहने वाली मौसमी परिस्थितियों के चलते बाकी जलस्रोतों की तरह इस झील के जलस्तर में भी कमी आई, लेकिन इसके बावजूद झील में पनपने वाली मछलियों के उत्पादन में कोई कमी नहीं आई।

वुलर झील से चलता है घाटी का जीवन

मत्स्य पालन विभाग के सहायक निदेशक शौकत अहमद भट ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि बीते कुछ वर्षों के साथ-साथ इस वर्ष के दौरान भी झेलम, डल झील व घाटी के अन्य जलस्रोतों की तरह इस झील में भी मौसम की बेरुखी का प्रभाव झेलना पड़ा।
झील में पानी के स्तर में भी कमी आ गई, लेकिन इसके बावजूद झील में पनपने वाली मछलियों के उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भट ने कहा कि गत वर्ष यानी 2024 में झील से 60 हजार मछलियों का उत्पादन हुआ है। उन्होंने कहा कि झील में मछलियों के उत्पादन में बढ़ोतरी लाने के लिए विभाग प्रयास कर रहा है। झील का पानी दूषित न हो, इसके लिए उपाय किए जा रहे हैं ताकि इसमें मछलियां आसानी से पनप सकें। भट ने कहा कि झील में मछलियां पकड़ने के लिए 12 हजार से अधिक मछुआरे पंजीकृत हैं। मछलियां पकड़कर उन्हें बाजारों में बेचकर अपनी रोटी रोजी कमाते हैं।

मछुआरों के लिए सरकारी केंद्रीय योजनाएं

उन्होंने कहा कि वुलर के मछुआरों को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए कई केंद्रीय योजनाओं के साथ-साथ इनको प्रतिमाह 3 हजार की वित्तीय सहयता भी दी जाती है और प्रशासन ने इन मछुआरों के लिए 2 दर्जन से अधिक ऑटो रिक्शा भी उपलब्ध किए हैं, ताकि यह मछुआरे आराम से अपना माल बाजारों तक पहुंचा सके।भट ने कहा कि विभाग समय-समय पर मछुआरों को झील के वातावरण को हानि पहुंचाए बगैर मछलियां पकड़ने के गुर तथा इनकी मार्केट वैल्यू बढ़ाने संबंधित जानकारी भी उपलब्ध कराती है।

सैलानियों की मुस्कुराहट से मुस्कुराई वुलर

अब जब झील गुलाबी कमल से जगमगाने लगी है, तो स्थानीय लोग और सैलानी दोनों वहां खिंचे चले आ रहे हैं। झील के किनारे बच्चे फोटो खिंचवा रहे हैं, शिकारे वाले मुस्कुरा रहे हैं और दुकानदारों को फिर से उम्मीद दिख रही है। सितंबर से मार्च तक जब घाटी में काम की कमी होती है, तब नद्रू की खेती यहां के लोगों के लिए आय का एकमात्र स्रोत बनती है। कमल का लौटना सिर्फ प्रकृति की जीत नहीं, बल्कि उस संस्कृति, आत्मनिर्भरता और परंपरा की वापसी भी है, जो कश्मीर की झीलों से जुड़ी है। 30 साल बाद वुलर झील में खिले ये कमल, सिर्फ फूल नहीं, यहां के लोगों के लिए एक नई सुबह का नाम हैं।

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