समूचे देश में चुनावी सरगर्मियां तेज हो चुकी है। आरोप प्रत्यारोप का भी दौर शुरू हो गया है। दल बदल जारी है। जिसे टिकट मिला वो खुश, जिसे नहीं मिला वो नाराज। चुनाव को देखते हुए फिर से खुलेंगी वादों के पिटारे, फिर से सामाजिक सरोकारिता की खाई जाएंगी कसमें। फिर से नेता घर-घर जाकर, हाथ जोड़-जोड़ कर आपसे वोट मांगेंगे। विकास के नाम पर वोट, जातिवाद के नाम पर वोट, आपको अमीर बनाने, आपको नौकरी देने, आपको आत्मनिर्भर, सक्षम, आपको सशक्त बनाने के नाम पर वोट मांगे जाएंगे। लेकिन यहां हर एक वोटर को समझदारी से काम लेने की जरूरत है, हर एक वोटर को जरुरत है कि वो सही नेता चुने। सोच समझकर वोट करें, आम जनता के मुद्दों पर वो वोट करें, विकास, रोजगार, स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण जैसे मुद्दों पर वोट करें। सही नेता चुनने को लेकर आम जनता हमेशा से असमंजस में रहती है। आम जनता को नेताओं के वादों और उन वादों को कितना पूरा किया इसकी जानकारी का अभाव रहता है। ऐसे में The CSR Journal एक सोशियली रिस्पांसिबल न्यूज़ प्लेटफार्म होने के नाते सिटीजन सोशल रिस्पांसिबिलिटी को आगे रखते हुए हम आम जनता के लिए लोकसभा चुनाव को मद्देनज़र रखते हुए एक विशेष सीरीज शुरू किये है जिसमें हम आपके नेताओं से आपको रूबरू करवाएंगे ताकि आप उनको समझ सकें, जान सकें, पार्टी और नेताओं के कामों का आकलन करके इस निष्कर्ष पर पहुंच सकें कि वोट करने के लिए कौन सी पार्टी सही है और कौन नेता। (Farmers News) Bitter reality of Farmers Condition in India
देश में हर किसान गरीब क्यों? आत्महत्या करने पर मजबूर क्यों? (Farmers Suicide in India)
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यशस्वी रूप से 2 टर्म बतौर पीएम निकाल लिए, साल 2024 पीएम मोदी का ये तीसरा टर्म होगा। लेकिन पिछले चुनाव में बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र (Bhartiya Janta Party-BJP Sankalp Patra – Lokshabha Election 2019 Manifesto) में कई वादे किये इसमें से जो आम जनता से सीधे सरोकार रखती है उन 12 सूत्रीय कार्यक्रमों पर The CSR Journal एक पड़ताल करेगा कि इन 12 सूत्रीय विकास की परियोजाओं ने आम जनता की जिंदगी में कितना बदलाव लायी है। पार्टियां और नेता चुनाव में व्यस्त हैं, जनता नेताओं की राजनीति में मस्त, इन्ही जनता में से किसान अपनी परेशानी में पस्त है। किसान देश की जीवन रेखा हैं और किसी भी देश का विकास उसके कृषि क्षेत्र के विकास के बिना अधूरा है। भारत में सबसे अधिक गांव है, गांवों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति किसान हैं जो किसानी करते हैं इसलिए भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। लगभग 70 फीसदी भारतीय किसान हैं। यह वही किसान है जो खेतों में दिन-रात मेहनत करके हमारे और आपके लिए अन्नदाता के रूप में प्रसिद्ध है पर आज के किसान की दशा बद से बदतर होती जा रही है। आखिर किसान गरीब क्यों है। किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर क्यों है। (Why Farmers Suicide in Maharashtra) Maharashtra Farmers News
किसान समस्या का हल दशकों से तलाशा जा रहा है, नतीजा ठोस नहीं
ये ऐसे सवाल हैं जिनका दशकों से जवाब ढूंढा जा रहा है। बड़ी-बड़ी रिपोर्टें आ चुकी हैं। इनमें से कई लागू भी हुईं, तो कई दबा दी गईं लेकिन दुख की बात यह है कि किसानों की दशा सुधारने के लिए जो उपाय किए गए उनका अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। अगर हम देखें तो आज़ाद भारत से पहले और बाद के समय में भी भारतीय किसानों की दशा में बहुत मामूली अंतर दिखाई देता है। जिन अच्छे किसानों की बात की जाती है, उनकी गिनती उंगलियों पर ही की जा सकती है। बढ़ती आबादी, इंडस्ट्रियलाइजेशन एवं अर्बनाइजेशन के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है। अगर देखा जाए तो देश में किसानों की संख्या कम, खेत मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिसका कारण हम यह भी कह सकते हैं कि आज का किसान लगातार गरीब होता जा रहा है। किसानों को लेकर एक पुरानी कहावत है कि अपने देश का किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में ही पूरा जीवन रहता है और कर्ज में ही मर जाता है। आज का किसान इतना लाचार है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी नहीं दिला पा रहा। हालात यहां तक आ गए हैं कि यदि फसल अच्छी न हो तो किसान आत्महत्या कर लेता है तथा यदि फसल अच्छी भी हो जाए तो मंडी में उपज का वह दाम नहीं मिलता जिस दाम की वह अपेक्षा रख कर मेहनत करता है। केवल फसलों का सही प्रकार से मुआवजा न मिलना किसान की आत्महत्या का कारण नहीं है। भूजल के स्तर में भारी गिरावट भी किसान की बदहाली का सबसे बड़ा कारण मानी जा सकती है। Loksabha Election Report Card
खराब मौसम, सूखा, सही कीमत नहीं मिलना जैसी समस्याओं से आज भी किसान जूझ रहा है
मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, कर्ज का अधिक बोझ जैसी समस्याएं के एक चक्र की शुरुआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्कर में फंसकर देश के अलग अलग हिस्सों के किसानों ने आत्महत्या की है। एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार 1990 के बाद भारत में हर साल 10000 से अधिक किसान आत्महत्या करते आ रहे हैं। देश में किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं इन्ही सब कारणों से लोग खेती छोड़कर अलग-अलग पेशा अपना रहे हैं। हालात इस हद तक बिगड़ चुके हैं कि किसानों को आए दिन आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। जब रोष-प्रदर्शन करने पर भी कुछ नहीं मिलता तो किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। अभी हाल ही में किसान आंदोलन इसका गवाह है।
किसानों की समस्या खत्म करने के लिए मोदी सरकार प्रयासरत, लेकिन सफलता कम
ऐसा भी नहीं है कि राज्य व केंद्र सरकार किसानों की ऐसी दशा देख कर परेशान नहीं है। राज्य सरकारों और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं कि किसानों की आत्महत्याओं में किसी तरह कमी लाई जा सके। किसानों की समस्याओं को खत्म किया जा सके। इस बारे में सोचते हुए सरकार अनेक योजनाएं भी बना रही है, जिनमें से मुख्य रूप से किसानों की दयनीय दशा को देखते हुए अनेक राज्य कृषि कर्ज को माफ करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं लेकिन ऐसा करना समस्या का दीर्घकालीन समाधान नहीं कहा जा सकता। किसानों की समस्या का एक ही समाधान है और वह है कि कृषि लागत पर नियंत्रण और कृषि उपज की सही कीमत सुनिश्चित करना। Farmers condition in India
किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य Doubling Farmers Income
सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। इस संदर्भ में फसल बीमा योजना अभूतपूर्व है। सभी मौसमों में प्रत्येक फसल के लिए बीमा योजना का लाभ उठाया जा सकता है। सभी फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया है। बिजली से वंचित गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए एक व्यापक योजना बनाई जा रही है। नई मोदी सरकार के लिए कृषि क्षेत्र की समस्याओं को दूर करना बड़ी प्राथमिकता है। सरकार बनते ही प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना के दायरे को बढ़ाया गया है। इसमें देश के हर किसान को शामिल करने की मंजूरी दी गई है। कहीं न कहीं सरकार भी समझती है कि क्षेत्र की समस्याओं को दूर किए बिना देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार नहीं दी जा सकती। आमतौर पर कोई सरकार या नेता किसानों की आय डबल करने पर बात ही नहीं करता था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 फरवरी 2016 को बरेली (उत्तर प्रदेश) की एक रैली के दौरान पहली बार किसानों से उनकी इनकम डबल करने का वादा किया। उन्होंने कहा था कि 2022 में जब देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा तब किसानों की आय दोगुनी हो चुकी होगी। इसके बाद 1984 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. अशोक दलवई की अगुवाई में 13 अप्रैल 2016 को डबलिंग फार्मर्स इनकम कमेटी का गठन कर दिया गया। इसमें किसान प्रतिनिधि भी शामिल किए गए। दलवई कमेटी ने सितंबर 2018 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। आज पीएम किसान स्कीम के तौर पर जो 6000 रुपये मिल रहे हैं उनमें इस कमेटी की भी भूमिका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जून 2018 में राज्यपालों की हाई पावर कमेटी भी गठित की थी। यूपी के तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक इसके अध्यक्ष बनाए गए थे। कमेटी ने अक्टूबर 2018 में अपनी रिपोर्ट तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंप दी थी। रिपोर्ट में 21 सिफारिशें की गई थी। इसमें मनरेगा को कृषि से जोड़ने की बात भी थी, जिसकी किसान संगठन लंबे समय से मांग कर रहे हैं। साथ ही जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए विशेष कृषि जोन बनाकर वहां की जलवायु के मुताबिक खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया था। बताया गया है कि केंद्रीय योजनाओं में केंद्र की सहायता का अनुपात बढ़ाने और कुछ दूसरी फसलों को एमएसपी के दायरे में लाने की सिफारिश हुई थी। लेकिन यह रिपोर्ट अब तक लागू नहीं हुई। (Farmers need extra Income)
किसानों की दोगुनी आय के लिए सरकारी योजनाएं भी विफल (Government Schemes for Farmers)
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम को शुरू होने के बाद किसानों की आय पर कितना सकारात्मक असर पड़ा है इसका कोई सर्वे नहीं आया है। इससे छोटे किसानों को बड़ा सहारा मिला है। किसानों स्थिति और ज्यादा न खराब हो इसके लिए सरकार सचेत दिखाई दे रही है। इसलिए उर्वरकों पर किसानों का खर्च नहीं बढ़ने दिया है। हालांकि कीटनाशकों, बीजों और डीजल के दाम में बेतहाशा वृद्धि के हिसाब से कृषि उपज के दाम नहीं बढ़े हैं। ऐसे में आय को लेकर सरकार और किसानों दोनों के सामने चुनौती खड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टारगेट लिया था और दावा किया था कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना कर देंगे। इस दौरान किसानों के जीवन में बहुत सी उथल-पुथल हुईं। इसी बीच सरकार तीन कृषि क़ानून ले आई। जिनका देशभर के किसानों ने अद्भुत ढंग से प्रतिरोध किया और एक ऐतिहासिक किसान आंदोलन को देश ही नहीं पूरी दुनिया ने विटनेस किया। चुनाव के आस-पास अजीब दावे किए जाने लगे। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ ने तो दावा ही कर डाला कि यूपी में किसानों की आय कई गुणा बढ़ चुकी है। जबकि सच्चाई ये थी कि वर्ष 2015-16 और वर्ष 2021 की तुलना में किसानों की आय में मात्र तीन रुपये की वृद्धि हुई थी। प्रोपेगेंडा खूब किया गया लेकिन वास्तविक सच्चाई से जनता को अवगत नहीं कराया। ऐसे में ये जरूर कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम हो या फसल बीमा, सॉइल हेल्थ कार्ड हो या अन्य Welfare policies for Farmers हो कुछ भी Doubling Farmers Income में कारगर साबित नहीं हुआ है।
किसान देश की जीवन रेखा हैं और किसी भी देश का विकास उसके कृषि क्षेत्र के विकास के बिना अधूरा है। देश की खाद्य सुरक्षा को सतत आधार पर सुनिश्चित करने का श्रेय हमारे किसानों को ही जाता है। आज वस्तुस्तिथि यह है कि भारत न केवल बहुत से कृषि उत्पादों में आत्मनिर्भर व आत्म संपन्न है इसके साथ ही बहुत से उत्पादों का निर्यातक भी है इन सत्यो के साथ यह भी सच है कि किसान अपने उत्पादों का लाभकारी मूल्य नहीं पाते हैं। अत: सरकार का मानना है कि कृषि क्षेत्र में इस तरह का चहुमुखी विकास किया जाये की अन्न एवं कृषि उत्पादों के भंडारों के साथ साथ किसान की जेब भी भरे व् उनकी आय भी बढे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक महत्वाकांक्षी उद्देश्य है और इसके लिए सरकार द्वारा बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता है। ऐसे में इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 7 सूत्रीय कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। Farmers condition in Maharashtra
प्रति बूंद अधिक फसल के सिद्धांत पर प्रयाप्त संसाधनों के साथ सिंचाई पर विशेष बल
प्रत्येक खेत की मिटटी गुणवत्ता के अनुसार गुणवान बीज एवं पोषक तत्वों का प्रावधान।
कटाई के बाद फसल नुक्सान को रोकने के लिए गोदामों और कोल्डचेन में बड़ा निवेश।
खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहन ।
राष्ट्रीय कृषि बाज़ार का क्रियान्वन एवं सभी 585 केन्द्रों पर विकृतियों को दूर करते हुए ई – प्लेटफार्म की शुरुआत।
जोखिम को कम करने के लिए कम कीमत पर फसल बीमा योजना की शुरुआत।
डेयरी-पशुपालन, मुर्गी-पालन, मधुमक्खी–पालन, मेढ़ पर पेड़, बागवानी व मछली पालन जैसी सहायक गतिविधियों को बढ़ावा देना।
लेकिन इनका भी असर अभी तक किसानों की आय को दोगुना नहीं कर पायी।
सिंचाई को लेकर कई योजनाएं लेकिन फिर भी किसान खेलता है सूखे की मार
बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो (BJP Sankalp Patra – Lokshabha Election 2019 Manifesto) में किसानों की आय बढ़ने के साथ-साथ किसानों को सुविधाएं और सहूलियतें देंने की बात कही है। किसानों को खेती के लिए सिंचाई बहुत महत्वपूर्ण होता है। दिन रात किसान किसानी कर अपने फसल को उगाता है लेकिन अगर समय रहते फसल को पानी नहीं मिले तो फसल बर्बाद हो जाती है। ऐसे में किसानों को सिंचाई के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana लायी गयी है। पीएमकेएसवाई यानी Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana वर्ष 2015-16 के दौरान खेत में पानी की भौतिक पहुंच बढ़ाने और सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करने, खेत में पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार करने, स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं को शुरू करने आदि के लिए शुरू की गई थी। लेकिन कई ऐसे राज्य है जहां छोटे किसानों को पानी नहीं मिल पाता और उनकी फसल सूख जाती है। इसलिए हर किसान को सिंचाई के लिए पानी मिल रहा है ये नहीं कहा जा सकता है।
कृषि में आधुनिक तकनीक को अपनाना कितना सफल हुआ है (Advanced Technology for Farmers in India)
किसानी करने के दौरान आधुनिक तकनीक को अपनाने से ना सिर्फ किसानी करना आसान हुआ है बल्कि उपज भी ज्यादा हुई है। कृषि में आधुनिक तकनीक ने क्रांति लायी है। इसका सीधा फायदा किसान को हो रहा है। किसान अपने खेत में बीज डालने से लेकर फसल की कटाई तक तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। भारत सरकार भी कृषि में तकनीक को लेकर बढ़ावा दे रही है। साल 2021 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा इंडिया डिजिटल इकोसिस्टम ऑफ एग्रीकल्चर पर एक परामर्श पत्र जारी किया गया गया, जो कृषि क्षेत्र में डिजिटल क्रांति की बात करता है। तकनीक को अपनाना विभिन्न कारकों जैसे- सामाजिक-आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थिति, उगाई गई फसल, सिंचाई सुविधा आदि पर निर्भर करता है। वर्तमान में किसान तकनीक की मदद से उन क्षेत्रों में फसल उगाने में सक्षम हैं, जिन क्षेत्रों में पहले वे फसल उगाने में अक्षम थे, लेकिन यह कृषि जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से ही संभव हुआ है। उदाहरण के लिये जेनेटिक इंजीनियरिंग ने एक पौधे या जीव को दूसरे पौधे या जीव या इसके विपरीत स्थानांतरित करने में सक्षम बना दिया है।
प्रौद्योगिकी का उपयोग कृषि में कैसे लाभकारी हो सकता है?
यह कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है।
साइल इरोजन को रोकती है।
फसल उत्पादन में रासायनिकों के अनुप्रयोग को कम करती है।
जल संसाधनों का कुशल उपयोग।
गुणवत्ता, मात्रा और उत्पादन की कम लागत के लिये आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार करती है।
किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव लाती है।
लेकिन अत्याधुनिक तकनीक में भी चुनौतियां है। अगर किसान गरीब है और वो शिक्षित और प्रशिक्षित नहीं है तो वो कृषि तकनीकों का इस्तेमाल नहीं कर पायेगा।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
एग्रीस्टैक, डिजिटल कृषि मिशन, एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP), कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A), कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (SMAM) ये कुछ भारत सरकार द्वारा योजनाएं और कदम है जिससे कृषि में तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रौद्योगिकी के उपयोग ने 21वीं सदी को परिभाषित किया है। जैसे-जैसे दुनिया क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बिग डेटा और अन्य नई तकनीकों की ओर बढ़ रही है, भारत के पास आईटी दिग्गज होने का लाभ उठाने और कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने का एक ज़बरदस्त अवसर है।
खेती के अलावा किसानों की आय का अन्य सोर्स (Other source of Income for Farmers)
कृषि के अतिरिक्त किसान के अन्य आय के साधनों जैसे पशुपालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन एवं डेयरी के विकास की विभिन्न योजनाओं पर भी सरकार निरंतर कार्य कर रही है। किसान की आय में वृद्धि के लिए इन अतिरिक्त आय स्रोतों के विकास से किसानों का भला होगा और उनकी आय बढ़ेगी। इसके लिए Modi Government ने राष्ट्रीय पशुधन मिशन, गोकुल मिशन, नीली क्रांति, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन आदि बहुत सी योजनाएं शुरू की हैं जिनके कारण पिछले कुछ सालों में डेयरी, पोल्ट्री, मधु मक्खी, मत्स्य पालन क्षेत्र में काफी वृद्धि दर्ज हुई है। राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) जिसको वर्ष 2014-15 में शुरू किया गया था और इसमें सभी राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को कवर किया गया है, पशुधन उत्पादन पद्धति, हितधारकों की क्षमता निर्माण, पशुधन उत्पादन और परियोजना में सहायता और सुधार से जुड़े सभी पहलू कवर किए गए हैं। इस मिशन का उद्देश्य पशुधन क्षेत्र का सतत विकास करना और गुणवत्ताप्रद आहार व चारे की उपलब्धता में सुधार करना है। पुरानी दूध प्रसंस्करण इकाइयों के उत्थान, दूध प्रशीतन अवसंरचना एवं इलेक्ट्रानिक दूध मिलावट परीक्षण किट हेतू डेरी प्रसंस्करण एवं अवसंरचना निधि रू. 10,881 करोड़ की राशि से स्थापना की जा रही है।
नीली क्रांति योजना बेरोजगारों को रोजगार स्थापित करने का बनी जरिया (What is Blue Revolution)
मत्स्य पालन व्यवसाय बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के तौर पर उभर कर सामने आ रहा है. खास कर पढ़े लिखे और तकनीकी क्षेत्र में जानकारी रखने वाले आगे आकर अपना स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं। देश में मछली पालन एक वृहद उद्योग है। देशभर में लाखों लोग आजीविका के लिए मछली पालन और इससे संबंधित कार्यों पर निर्भर हैं। इसलिए भारत सरकार ने देश में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने और ‘नीली क्रांति’ (Blue Revolution) द्वारा, आर्थिक क्रांति लाने की एक महत्वपूर्ण योजना को क्रियान्वित किया है, ताकि मछली उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि, गुणवत्ता में सुधार और अपशिष्ट पदार्थों में कमी लाने के साथ किसानों की आय को बढ़ाया जा सके।
भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश
हालिया आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया में मत्स्य का तीसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है, जबकि विश्व का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। विश्व मत्स्य उत्पादन में भारत 7.7 प्रतिशत योगदान देता है। साल 2017-18 तक भारत की मछली के कुल निर्यात लगभग 10% और कृषि निर्यात की करीब 20% हिस्सेदारी थी। मत्स्य पालन और जलीय कृषि उत्पादन भारत के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 1% और कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 5% से अधिक का योगदान देता है, साथ ही बता दें कि भारत में करीब 28 मिलियन लोग मत्स्य पालन क्षेत्र के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
ग्राम स्वराज अभियान (Gram Swaraj Abhiyan) से किसानों की आय को दोगुनी करने का लक्ष्य
जैसा नाम वैसा काम यानी कि ग्राम स्वराज अभियान ग्राम विकास के लिए प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी ताकि हमारे गांव खुद सक्षम हो सके। “सबका साथ, सबका गांव, सबका विकास”, के नाम से शुरू किए गए इस अभियान का उद्देश्य सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देना, सरकार की गरीब समर्थक पहलों के बारे में जागरूकता फैलाना, गरीब परिवारों तक पहुंचना ताकि वे अपना नामांकन करा सकें और साथ ही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं पर उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त करना है। राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (आरजीएसए) पंचायती राज मंत्रालय की एक प्रमुख योजना है। इसे 24 अप्रैल 2018 को प्रधानमंत्री ने ‘राष्ट्रीय पंचायत दिवस’ पर लॉन्च किया था। इस अभियान का मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज प्रणाली को मजबूत करना और विकसित करना है। इस योजना के तहत, देश के स्थानीय निकायों के 60 लाख से ज़्यादा निर्वाचित प्रतिनिधियों और अधिकारियों को फायदा मिलेगा। यह योजना 1 अप्रैल 2022 से 31 मार्च 2026 तक चलेगी। इस योजना का कुल वित्तीय परिव्यय 5,911 करोड़ रुपये है. इसमें केंद्र का हिस्सा 3,700 करोड़ रुपये और राज्य का हिस्सा 2,211 करोड़ रुपये है। इस अभियान का मकसद सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देना, सरकार की गरीब समर्थक पहलों के बारे में जागरूकता फैलाना, और गरीब परिवारों तक पहुंचना है।
सार (Conclusion)
किसानों की आय बढ़ने के मामले में केंद्र सरकार और प्रदेश की राज्य सरकारें लगातार हर संभव प्रयास कर रही है। किसान सम्मान निधि हो या सिंचाई परियोजना, नीली क्रांति तो या ग्राम स्वराज ये अभियान किसानों के काम तो आ रही है लेकिन इनकी पहुंच उस स्केल पर नहीं हो पा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि किसानों की आय में इजाफा नहीं हुआ है लेकिन बात दुगुने की करें तो ये लॉन्ग टेकिंग प्रोसेस है जिसमे वक़्त जरूर लगेगा। फिलहाल हर पहलू पर बदलाव तो आ रहा है लेकिन किसानों के लिए इन सभी कल्याणकारी योजनाओं को और भी प्रभावी तरीके से लागू करने की जरूरत है।