राजस्थान के भीलवाड़ा में एक चरवाहे को जंगल में पत्थरों के बीच 10 से 15 दिन की नवजात बच्ची मिली जिसकी उसकी स्थिति बहुत खराब थी। नवजात के मुंह में पत्थर डाले गए थे और होंठ फेविक्विक से चिपकाए गए थे ताकि उसके रोने की आवाज़ सुनाई ना दे। गनीमत रही कि चरवाहे ने समय पर उसे देख लिया और बच्चे को अस्पताल पहुंचाया।
राजस्थान में फिर हुई नवजात बच्ची के साथ क्रूरता
हर सांस उसके लिए संघर्ष बन गई थी। फेवी क्विक ने उसके पत्थरों से भरे छोटे से मुंह को पूरी तरह बंद कर दिया था। ऊपर से रखे भारी पत्थरों का दबाव उसकी नाजुक त्वचा पर था। फिर भी, उसके छोटे हृदय में जीवन की उम्मीद जिंदा थी। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया उपखंड के सीताकुंड जंगल में मंगलवार दोपहर एक ऐसी घटना सामने आई, जिसने मानवता को झकझोर कर रख दिया। एक दस से बारह दिन की नवजात बच्ची जंगल में पत्थरों के नीचे दबी पाई गई। उसकी चीखें दबाई गई थीं, रोने की आवाज को फेवी क्विक और पत्थरों के नीचे दबा दिया गया था।
नहीं बदले राजस्थान के हालत दशकों में भी
राजस्थान में बेटियों के साथ होने वाले भेदभाव के किस्से दशकों पुराने हैं। फिर चाहे वो सती प्रथा को लेकर हो, घूंघट प्रथा को लेकर, या शिक्षा को लेकर। देश में पिछले कई दशकों से समाज में बदलाव आया है, लेकिन भीलवाड़ा की हालिया घटना ने फिर से इसी सवाल को जिंदा कर दिया है कि क्या बेटियां यहां सुरक्षित हैं? इस सवाल के जवाब में आज और कल की इन दो घटनाओं का ज़िक्र ही काफ़ी है।
आज किशनगढ़ में उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी ने अपने हाथों किया अन्नप्राशन
किशनगढ़ नगर परिषद प्रांगण में बुधवार को आयोजित शहरी सेवा शिविर का निरीक्षण करते हुए उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी ने बच्चों और महिलाओं के साथ केक काटकर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ संदेश दिया। इस मौके पर उन्होंने 6 महीने के बच्चों का अन्नप्राशन संस्कार भी करवाया। शिविर में दीया कुमारी ने महिला पार्षदों से शहर की विभिन्न समस्याओं और सुधारों पर चर्चा की। कार्यक्रम के दौरान महिलाओं और बच्चों के साथ संवाद करते हुए उन्होंने बेटियों के संरक्षण और शिक्षा पर जोर दिया।
कल की विभत्स घटना ने किया शर्मसार
कल राजस्थान के भीलवाड़ा से मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई। यहां जंगल में पत्थरों के बीच एक नवजात बच्ची को फेंक दिया गया। इतनी ही नहीं, उसके मुंह से आवाज ना निकले इसके लिए उसके मुंह में पत्थर के टुकड़े भरे हुए थे और उसके होंठ को फेविक्विक से चिपका दिया गया था, ताकि वह चीख न पाए। रो-रो कर बच्ची की आंखे लाल हो गईं थी। नवजात केवल 10 से 15 दिन की बताई जा रही है।
पत्थरों के नीचे से आई रोने की आवाज
बिजौलियां थाना क्षेत्र के सिताकुंड जंगल में मंगलवार दोपहर को एक चरवाहा अपने मवेशी चरा रहा था। इसी दौरान उसको पास के पत्थरों से एक बच्चे के रोने की हल्की आवाज सुनाई दी। जिस पर उसने पास जाकर देखा तो पत्थरों के नीचे एक नवजात बच्ची पड़ी हुई थी। जंगल में मवेशी चरा रहे शख्स की नजर जैसे ही बच्ची पर पड़ी, उसके होश उड़ गए। उसने तुरंत बच्चे के मुंह से पत्थर को निकाला। पत्थर निकलते ही मासूम चीख-चीख कर रोने लगी। इस पर चरवाहे ने पास ही स्थित मंदिर में बैठे ग्रामीणों को सूचना दी। ग्रामीणों ने बिजौलियां थाना पुलिस को बताया। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर ग्रामीणों की मदद से बच्चे को बाहर निकाला।
ग्रामवासियों का उबला गुस्सा, जांच में जुटी पुलिस
मामला सामने आने के बाद से गांववालों में आक्रोश है। उन लोगों ने दोषियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। फिलहाल पुलिस ने भी घटनास्थल का निरीक्षण कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस बच्चे के माता-पिता की तलाश कर रही है। इसके साथ ही पुलिस अस्पतालों में पहुंचकर हाल ही में हुई डिलिवरी की रिपोर्ट को भी खंगाल रही है। आसपास के गांव में भी लोगों से बात की जा रही है और बच्चे के बारे में पता लगाने का प्रयास कर रही है।
अस्पताल में नन्ही जान
बच्चे को बिजौलिया अस्पताल में भर्ती कराया गया है। डॉक्टरों ने बताया कि उसकी हालत में सुधार हो रहा है, लेकिन पत्थरों की गर्मी के कारण शरीर का बायां हिस्सा झुलस गया है।
राजस्थान में बाल लिंगानुपात की स्थिति
बाल लिंगानुपात 0-6 वर्ष के बच्चों में प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या को दर्शाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान का बाल लिंगानुपात 888 है, जो 2001 में 946 था। राजस्थान का कुल लिंगानुपात 928 प्रति 1000 पुरुष है। इससे स्पष्ट है कि राजस्थान में बेटियों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और समाज में स्थिति सुधार के बावजूद अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रही हैं। भीलवाड़ा की घटनाओं ने इसे फिर से उजागर किया है।
समाज के लिए चेतावनी
यह घटना मानवता और सामाजिक संवेदनाओं के लिए चेतावनी है। एक दस दिन की नवजात को इतनी क्रूरता का सामना करना पड़ा। नाजुक बच्चों की रक्षा हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। यह घटना केवल एक क्रूरता का मामला नहीं है, बल्कि समाज में बच्चों की सुरक्षा और लोगों में संवेदनशीलता की कमी को दर्शाती है। बदलते समय के साथ पत्थरदिल होते समाज की झलक है भीलवाडा की घटना ! ऐसे मामले परिवार और सामाजिक संरचना की कमजोरी, बच्चों के प्रति उदासीनता और लापरवाही का परिणाम हैं।
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