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July 2, 2025

केरल की साक्षरता भी नहीं रोक पाई किसानों की आत्महत्याएं 

देशभर में केरल को शिक्षा, विकास और मानव संसाधन का मॉडल माना जाता है, लेकिन आरटीआई में मिली जानकारी से एक चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि केरल में किसानों की आत्महत्याएं आज भी थमी नहीं हैं। Kerala Farmer Suicide

केरल के आत्महत्या के आंकड़े

RTI में मिले आंकड़ों के मुताबिक—
2004 से 2014 के बीच 10,678 किसानों ने आत्महत्या की।
2015 से 2022 के दौरान यह संख्या घटकर 1,893 रह गई।
यानी करीब 80% गिरावट, लेकिन “शून्य” नहीं।
इसका सीधा मतलब है कि केरल की ऊंची साक्षरता दर और विकास मॉडल होने के बावजूद, किसान आत्महत्या जैसी त्रासदी से बाहर नहीं निकल पाए हैं। Kerala News

बिहार और बंगाल से तुलना

आरटीआई की जानकारी निकालने वाले एक्टिविस्ट प्रफुल्ल सारडा ने बताया कि बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने 2015 से 2022 के बीच एक भी किसान आत्महत्या दर्ज नहीं की है। इसका मतलब यह नहीं कि वहां हालात आदर्श हैं, लेकिन यह भी तय है कि सही नीति, इच्छाशक्ति और ज़मीन पर काम से आत्महत्याएं रोकी जा सकती हैं। Literacy Rate of Kerala News

पढ़े-लिखे किसान भी कर रहे आत्महत्या — क्यों?

साक्षरता से सजगता आती है, लेकिन जब पढ़े-लिखे किसान भी आत्महत्या का रास्ता चुन रहे हैं, तो यह सवाल उठता है कि सरकारी नीतियां किसानों तक क्यों नहीं पहुंच पा रही हैं? प्रफुल्ल सारडा कहते हैं “अगर केरल जैसा राज्य, जहां शिक्षा व्यवस्था को ग्लोबल मॉडल माना जाता है, वहां भी किसान आत्महत्या को मजबूर हैं, तो यह बताता है कि समस्या कहीं गहरी है।”

क्या सिर्फ साक्षरता काफी है?

RTI कार्यकर्ता का साफ कहना है कि सिर्फ किताबें पढ़ाने से किसानों की जिंदगी नहीं बदलेगी। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो सीधे किसानों की जिंदगी से जुड़ी हों कर्ज राहत, बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी, सिंचाई सुविधाएं और आधुनिक कृषि तकनीक तक पहुंच। किसान की जान सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, वो पूरे देश की आत्मा है। अगर हम उसे नहीं बचा सके, तो शिक्षा, विज्ञान और विकास के हमारे सारे दावे खोखले हैं। किसानों की समस्याओं को लेकर सीधा संवाद और समाधान की जरूरत है। कृषि योजनाओं की गहराई से समीक्षा होनी चाहिए। कौन-सी योजनाएं कारगर हैं, कौन-सी नहीं इसका डेटा सार्वजनिक हो।

साक्षरता में आगे केरल लेकिन फिर भी हो रहे हैं किसान आत्महत्या

केरल में किसान आत्महत्याएं यह साफ करती हैं कि साक्षरता, तकनीक और शिक्षा के बावजूद अगर किसानों तक राहत नहीं पहुंची तो सरकार की नीतियों की गंभीर समीक्षा ज़रूरी है। अब वक्त आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें सिर्फ “विकास के नारों” से आगे बढ़ें और किसानों के जीवन की जमीनी सच्चाई को स्वीकार कर, स्थायी और ठोस कदम उठाएं। क्योंकि अगर किसान नहीं बचे, तो देश का भविष्य भी नहीं बचेगा।

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