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October 1, 2025

कारगिल युद्ध सेनानी की लेह प्रदर्शन में मौत, पिता का सवाल – क्या देशभक्तों के साथ यही सलूक होता है?

The CSR Journal Magazine
लद्दाख स्काउट्स में 1996 से 2017 तक हवलदार रहे कारगिल युद्ध के वीर Tsewang Tharchin  सेवानिवृत्ति के बाद लेह में कपड़ों की दुकान चला रहे थे। लेकिन 24 सितंबर को लेह में हुए हिंसक प्रदर्शनों में पुलिस की गोली से उनकी मौत हो गई। इस घटना से उनका परिवार सदमे में है और हालातों को समझ नहीं पा रहा है।

लेह-लद्दाख के हिंसक प्रदर्शन ने ली सिपाही की जान

लेह से करीब 8 किलोमीटर दूर सबू इलाके में पहाड़ी पर स्थित तीन कमरों के घर में परिवारजन  Tsewang Tharchin के शव के पास बैठे उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थनाएं कर रहे हैं। रिश्तेदार और दोस्त लगातार पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। 46 वर्षीय थारचिन की मौत एक गोली लगने से हुई, जो उनकी पीठ से होकर छाती से बाहर निकल गई। वे उन चार लोगों में शामिल थे जो पुलिस फायरिंग में मारे गए। यह फायरिंग उस समय हुई जब स्वतंत्र राज्य का दर्जा और लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन हिंसक हो गए। उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने चारों मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना जताते हुए कहा कि और जनहानि रोकने के लिए हर कदम उठाया जाएगा।

पाकिस्तान से जीता, अपनी सेना से हारा

थारचिन के 74 वर्षीय पिता स्तांजिन नमग्याल, जो खुद भी कारगिल युद्ध के सेनानी रहे हैं, कहते हैं, “मेरा बेटा देशभक्त था। उसने कारगिल युद्ध लड़ा और तीन महीने तक मोर्चे पर रहा। वह दाह टॉप और टोलोलिंग पर पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ा। पाकिस्तान उसे नहीं मार पाया, लेकिन हमारी ही फोर्स ने उसकी जान ले ली।” नमग्याल 2002 में सूबेदार मेजर और ऑनरेरी कैप्टन के पद से रिटायर हुए थे। उन्होंने बताया, “मैं और मेरा बेटा दोनों कारगिल युद्ध में साथ लड़े थे। मैं 3 इन्फैंट्री डिवीजन में था और थारचिन लद्दाख स्काउट्स में। थारचिन चार बार सियाचिन में भी तैनात रहा। मुझे चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ से प्रशस्ति पत्र मिला है। सेना में भर्ती होना हमारे खून में है। यहां तक कि थारचिन के बच्चे भी आर्मी स्कूल में पढ़ते हैं और वह चाहता था कि वे भी सेना में शामिल हों। लेकिन क्या सरकार देशभक्तों के साथ यही व्यवहार करती है?”

परिवार और पड़ोसियों ने की जांच की मांग

थारचिन अपने पीछे पत्नी और चार बच्चों को छोड़ गए हैं, जिसमें सबसे बड़ा बेटा केवल 16 साल का है। रिश्तेदार और पड़ोसी उन्हें मिलनसार और सभी से अच्छे संबंध रखने वाला इंसान बताते हैं। एक रिश्तेदार ने कहा, “वह सेना में हथियार प्रशिक्षक भी था और सबू तथा अपने पैतृक गांव स्कुर बुचन के युवाओं के लिए प्रेरणा था।”परिवार का आरोप है कि यह मौत हत्या है। उनका कहना है कि थारचिन के शरीर पर लाठीचार्ज के निशान भी हैं, जिससे पता चलता है कि उन्हें गोली लगने से पहले पीटा भी गया था। थारचिन की पत्नी ने पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। उन्होंने कहा, “जांच होनी चाहिए कि फायरिंग का आदेश किसने दिया? गोली किसने चलाई? भीड़ को आंसू गैस और रबर की गोलियों से क्यों नहीं काबू किया गया? हमें सदमा है कि हमारे ही लोगों ने उन्हें मार डाला।”

सोनम वांगचुक का किया समर्थन

थारचिन का छोटा भाई, जो इंजीनियर है, उसने कहा, “जब भी युद्ध होता है, हम लद्दाखी ही सेना को हर संभव सहयोग देते हैं। हम उनके पोर्टर और गाइड बनते हैं, अपने नौजवान सेना में भेजते हैं। हमारी महिलाएं सैनिकों के लिए खाना बनाकर खिलाती हैं। और अब हमें ही ‘देशविरोधी’ कहा जा रहा है।” उन्होंने सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा, “लोग आखिर मांग क्या रहे हैं? अपनी जमीन और अर्थव्यवस्था पर अधिकार? खुद प्रशासन चलाने की ताकत? अपनी अनोखी संस्कृति को बचाने का अधिकार? लेकिन सरकार ने इसका जवाब गोलियों से दिया और हमारी सबसे बड़ी आवाज सोनम वांगचुक को जेल में डाल दिया।”
थारचिन का अंतिम संस्कार रविवार को होने की संभावना है। उनके पिता नमग्याल ने कहा, “मेरा बेटा लद्दाख के लिए शहीद हुआ है। हमें उम्मीद है कि सरकार अब हमारी आवाज सुनेगी।”

लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग पर हो रहा प्रदर्शन

केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर लेह में हिंसक विरोध प्रदर्शन में चार लोगों की मौत हो गई। युवा प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पों में 80 से अधिक लोग घायल हुए हैं। घायलों में 40 पुलिसकर्मी शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों ने भाजपा एवं लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के दफ्तर और कई वाहनों में आग लगा दी। हालात बेकाबू होते देख सुरक्षाबलों ने आंसू गैस के गोले दागे, लाठीचार्ज किया व फायरिंग की। लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया और इंटरनेट सेवा रोक दी गई। आंदोलन के हिंसक रूप लेने के बाद सोनम वांगचुक ने 15 दिन से जारी अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी।

केंद्र का सोनम वांगचुक पर हिंसा भड़काने का आरोप

उधर केंद्र ने आरोप लगाया कि लद्दाख में कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के ‘‘भड़काऊ बयानों’’ की वजह से भीड़ की हिंसा भड़की और कुछ ‘‘राजनीति रूप से प्रेरित’’ लोग सरकार और लद्दाखी समूहों के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत में हुई प्रगति से खुश नहीं हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को छोड़कर, स्थिति पर काबू पा लिया गया और सभी से मीडिया और सोशल मीडिया में पुराने और भड़काऊ वीडियो प्रसारित नहीं करने को कहा गया। बयान में कहा गया है, “सरकार पर्याप्त संवैधानिक सुरक्षा उपाय प्रदान करके लद्दाख के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

लद्दाख में निषेधाज्ञा ज़ारी

गृह मंत्रालय ने कहा कि सोनम वांगचुक ने 10 सितंबर को भूख हड़ताल शुरू की थी, जिसमें लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और राज्य का दर्जा देने की मांग की गई थी। इस आंदोलन की शुरुआत लद्दाख की राजधानी में पूर्ण बंद के साथ हुई। सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। भाजपा कार्यालय में तोड़फोड़ की गई और कई वाहनों को आग लगा दी गई। लद्दाख की राजधानी में पूर्ण बंद के बीच आग की लपटें और काला धुआं देखा जा सकता था। प्रशासन ने लद्दाख के लेह जिले में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी। अधिकारियों ने बताया कि निषेधाज्ञा के तहत पांच या इससे अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
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