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September 30, 2025

उदयपुर का 450 साल पुराना मंदिर, जहां से 360° में दिखता है पूरा मेवाड़, यहां पूजनीय हैं चूहे

The CSR Journal Magazine
राजस्थान में एक ऐसा मंदिर है, जहां चूहों का जूठा प्रसाद श्रद्धालुओं में बांटा जाता है, जिसे माता करणी मंदिर (Karni Mata Temple) के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में हर जगह चूहे देखने को मिलते हैं। देवी करणी माता को समर्पित यह मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक शहर में है। बताया जाता है कि इस मंदिर में सफेद चूहे पाए जाते हैं, जिनका दर्शन करना बेहद शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, चूहे के दर्शन करने से भक्त की सभी मुरादें पूरी होती है।

15 शताब्दी का बीकानेर करणी माता मंदिर 

बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजपूत राजाओं के द्वारा 15वीं शताब्दी में हुआ था। बीकानेर के राजघराने की कुलदेवी करणी माता को माना जाता है। यहीं पर माता करणी जी ने नक्षत्र विद्या प्राप्त की थी। बीकानेर के देशनोक सरहद पर स्थित करणी माता मंदिर का इतिहास रोचक है, लेकिन क्या आप जानते हैं उदयपुर में भी करणी माता का मंदिर है? मेवाड़ के महाराणा ने बीकानेर से जोत लाकर उदयपुर में करणी माता मंदिर की स्थापना की थी। खास बात यह है कि शहर के बीच माछला मगरा पहाड़ी पर स्थित यही एक मात्र ऐसी जगह है जहां से 360° में पूरा मेवाड़ दिखाई देता है।

बीकानेर से करणी माता की ज्योत लाकर मेवाड़ में बना मंदिर

करणी माता मंदिर के पंडित गगन कुमावत का कहना है कि मेवाड़ के महाराणा कर्ण सिंह का विवाह बिकानेर राजघराने में हुआ तब मां करणी मेवाड़ छाबड़े पधारी थीं। 1621-1628 में महाराणा करण सिंह के शासन में मराठों की तरफ से हमले का डर बना रहता था। ऐसे में महाराणा के मंत्री अमरचन्द्र बड़वा ने एकलिगगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाकर उदयपुर शहर कोट बनवाया। उस समय करणी माता के मंदिर की इसी विश्वास के साथ स्थापना की गई कि बीकानेर और जोधपुर की तरह मां करणी की कृपा से मेवाड़ भी सुरक्षित रहेगा। इसके लिए बीकानेर से जोत लाई गई थी। दयामयी मां करणी माता ने मरूधर की तरह मेवाड़ पर भी कृपा रखी और मेवाड़ क्षेत्र को आक्रमणकारियों से सुरक्षित रखा। उदयपुर के मंदिर में भी काबा (सफेद चूहे) को करणी मां का वंशज कहा जाता है और करणी माता चारण समाज की कुल देवी है।

करणी माता कौन थीं

करणी माता 14वीं शताब्दी की एक संत मानी जाती हैं, जिन्हें स्थानीय लोग देवी दुर्गा का अवतार मानते हैं। वे चारण जाति से थीं और तपस्विनी जीवन जीते हुए उन्होंने बीकानेर और जोधपुर के किलों की नींव रखवाई। करणी माता अपने चमत्कारों और आशीर्वाद के लिए मशहूर रहीं और आज भी उन्हें ‘मां’ के रूप में पूजा जाता है। करणी माता का मंदिर भी भौगोलिक स्थिति के कारण एकाकी हो गया था। घने जंगलों से मंदिर वीरान हो गया था। लेकिन समय के साथ परिस्थितियां बदल गयी। सुबह सैर को आनेवालों ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। प्राचीन प्रतिमा को मौके पर रहने दिया गया और 1996 में दूसरी प्रतिमा की स्थापना की गई। मंदिर बनाने में पहाड़ पर बगैर सीढ़ियों के चढ़कर पानी, सीमेन्ट, ईंट ले जाना आसान नहीं होते हुए भी भक्तों ने बढ़चढ़कर मुश्किल काम को सरल कर दिखाया।

करणी माता मंदिर में क्यों पूजनीय हैं चूहे

कहा जाता है कि करणी माता के सौतेले पुत्र लक्ष्मण की डूबने से मृत्यु हो गई थी। मां ने यमराज से प्रार्थना की कि वे उनके पुत्र को जीवित करें। शुरुआत में यमराज ने इनकार किया लेकिन बाद में उन्होंने करणी माता के आग्रह पर न केवल लक्ष्मण, बल्कि उनके सभी वंशजों को चूहों के रूप में पुनर्जन्म देने का वरदान दिया। यही कारण है कि इस मंदिर में चूहों का खास महत्व है। ये चूहे मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से घूमते रहते हैं और इन्हें मां का रूप माना जाता है। सबसे खास बात यह है कि यहां चूहों को दिया गया प्रसाद बेहद पवित्र माना जाता है। भक्त बड़ी श्रद्धा से दूध और मिठाई इन चूहों को अर्पित करते हैं। इनमें से सफेद चूहे खासतौर से पवित्र होते हैं, क्योंकि उन्हें करणी माता और उनके पुत्रों का अवतार समझा जाता है। यदि किसी श्रद्धालु को सफेद चूहा दिखाई दे जाए तो इसे सौभाग्य की निशानी माना जाता है। यहां किसी चूहे को गलती से भी मारना गंभीर पाप समझा जाता है और अगर गलती से यह पाप हो जाए, तो प्रायश्चित के लिए भक्त को उस चूहे की जगह सोने का चूहा चढ़ाना पड़ता है।

बांटा जाता है चूहों का जूठा प्रसाद

 बीकानेर मंदिर में माता करणी के भोग को चूहे भोग लगाते हैं, जिसके बाद भक्तों में चूहों के जूठे प्रसाद को बाटा जाता है। यह एक ऐसा मंदिर है, जहां खुलेआम चूहे घूमते हैं। जब किसी भक्त की कोई मनोकामना पूरी हो जाती है, तो तब वह इस मंदिर में प्रसाद बनाता है और लोगों में वितरण किया जाता है। इस मंदिर में देश-विदेश से भक्त आते हैं। मंदिर को चूहों का मंदिर और चूहों वाली माता के नाम से भी जाना जाता है।

यहां से दिखने वाला सूर्यास्त का नजारा बेहद खूबसूरत

मंदिर से पूरे उदयपुर शहर का शानदार नज़ारा दिखाई देता है,-खासकर पिछोला झील, फतेहसागर और अरावली की पहाड़ियों का! यहां से दिखने वाला सूर्यास्त भी काफी प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर में एक शांत और आध्यात्मिक माहौल रहता है। यहां आने वाले लोग माता के दर्शन करने के साथ-साथ प्रकृति की खूबसूरती का भी आनंद लेते हैं। मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियां सफेद संगमरमर से बनी हैं, जो रास्ते को और भी सुंदर बनाती हैं। तलाई के पास माछला मगरा (पहाड़ी) पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए 375 सीढ़ियां हैं। सीढ़ियों के अलावा रोप वे की भी व्यवस्था की गई है। रोप वे से जाने पर शहर, जंगल, झीलों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। वन विभाग की तरफ से पहाड़ी पर नगर वन बनाया जा रहा है। लोगों के लिए शुद्ध ऑक्सीजन लेने की व्यवस्था की जा रही है।

बीकानेर मंदिर की वास्तुकला

इस मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में करवाया था। पूरी इमारत संगमरमर से बनी है और इसमें मुगल शैली की झलक दिखाई देती है। प्रवेश द्वार पर लगे चांदी के दरवाजों पर देवी से जुड़ी कथाएं उकेरी गई हैं। गर्भगृह में करणी माता की प्रतिमा त्रिशूल और मुकुट के साथ स्थापित है, जिसके दोनों ओर उनकी बहनों की मूर्तियां भी विराजमान हैं।

बीकानेर करणी माता मंदिर कैसे पहुंचें

यह मंदिर बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित है। बीकानेर राजस्थान के प्रमुख शहरों से रेल और सड़क के रास्ते अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
रेलवे मार्ग से– देशनोक रेलवे स्टेशन मंदिर के बहुत पास है, वहीं बीकानेर जंक्शन प्रमुख स्टेशन है जहां से आप टैक्सी या बस के जरिए मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से– बीकानेर से नियमित बसें और टैक्सियां देशनोक के लिए उपलब्ध रहती हैं।
हवाई मार्ग से– निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर है, जो बीकानेर से लगभग 250 किमी दूर है। वहां से आप ट्रेन या बस से मंदिर पहुंच सकते हैं।

करणी माता मंदिर उदयपुर कैसे पहुंचे

उदयपुर का करणी माता मंदिर शहर के केंद्र में स्थित है, जिससे यहां पहुंचना काफी आसान है। यह उदयपुर हवाई अड्डे से लगभग 25 किमी और उदयपुर रेलवे स्टेशन व सिटी बस डिपो से लगभग 4 किमी की दूरी पर है। श्रद्धालु और पर्यटक यहां तक लोकल ऑटो, टैक्सी और रिक्शा की मदद से आसानी से पहुंच सकते हैं।
मंदिर तक पहुंचने के दो मुख्य रास्ते हैं। पहला रोपवे (केबल कार) का रास्ता, जो दूध तलाई झील से शुरू होता है। यह मात्र 5 मिनट में मंदिर तक पहुंचा देता है और यात्रा के दौरान पिछोला झील और उदयपुर शहर का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है। दूसरा रास्ता सीढ़ियों द्वारा पैदल चढ़ाई करने का है, जो माणिक्य लाल वर्मा पार्क से शुरू होता है। यह रास्ता प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है और ट्रेकिंग पसंद करने वालों के लिए एक शानदार अनुभव देता है।
यदि आप आरामदायक यात्रा चाहते हैं, तो रोपवे सबसे अच्छा विकल्प है, लेकिन अगर आप रोमांच और प्रकृति के साथ यात्रा का आनंद लेना चाहते हैं, तो पैदल रास्ता चुन सकते हैं। चाहे आप किसी भी रास्ते से जाएं, पहाड़ी की चोटी से मिलने वाला उदयपुर शहर का अद्भुत दृश्य आपकी यात्रा को अविस्मरणीय बना देगा।
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