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November 8, 2025

क्यों नहीं पहुंचा कोई आज तक कैलाश की ऊंचाई पर? एक रहस्य जो विज्ञान, धर्म और प्रकृति, सभी को चुनौती देता है

The CSR Journal Magazine
हिमालय की बर्फीली गोद में, जहां सांसें भी जम जाती हैं और समय जैसे ठहर जाता है, वहीं खड़ा है कैलाशपर्वत ! यह न सिर्फ पर्वत है, बल्कि सनातन विश्वासों के अनुसार भगवान शिव का धाम और ब्रह्मांड का आध्यात्मिक केंद्र भी है। चारों ओर से बर्फ से ढका, 6638 मीटर (21,778 फीट) ऊंचा यह पर्वत तिब्बत के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में, मानसरोवर झील के उत्तर में स्थित है। लेकिन सवाल यह है , कि इतनी आधुनिक तकनीक और साहसिक खोजों के युग में भी, आखिर क्यों आज तक कोई भी इंसान कैलाश पर्वत की चोटी तक नहीं पहुंच पाया?

भगवान शिव और कैलाश पर्वत का संबंध : आस्था, अध्यात्म और रहस्य का अनंत संगम

हिंदू धर्म की विशाल आस्थाओं में अगर कोई पर्वत सबसे पवित्र, सबसे रहस्यमय और सबसे अद्भुत माना गया है, तो वह है ‘कैलाश पर्वत’ ! और इस पर्वत से जुड़ा है सृष्टि के आदि देव, संहार और सृजन के प्रतीक, योगेश्वर भगवान शिव का अमिट और अनंत संबंध !  कैलाश सिर्फ एक पर्वत नहीं, बल्कि वह दिव्य केंद्र है जहां भौतिकता का अंत और अध्यात्म की शुरुआत मानी जाती है। यह वही स्थान है जहां स्वयं भगवान शिव नित्य समाधि में लीन रहते हैं, जहां समय, दिशा और मृत्यु तक की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं।

कैलाश- प्रकृति की अजेय दीवार, खतरनाक भौगोलिक स्थिति

कैलाश पर्वत गंगदिसे पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है, जो तिब्बत पठार में स्थित है। यहां का तापमान अधिकांश समय माइनस 20 से माइनस 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। हवा इतनी पतली है कि सांस लेना कठिन हो जाता है। ऊंचाई पर ऑक्सीजन स्तर 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है। इसके अलावा यह क्षेत्र लगातार तेज़ हवाओं, बर्फ़ीले तूफानों और ग्लेशियर फॉल्स से प्रभावित रहता है।

अस्थिर बर्फ और ग्लेशियर संरचना

कैलाश का ऊपरी भाग अत्यंत खड़ी और अस्थिर बर्फ से ढका हुआ है। पर्वतारोहियों के अनुसार, इसकी सतह “Sugar Ice” जैसी है। यानी पैर रखते ही फिसलने वाली महीन बर्फ! यहां कोई स्थिर रास्ता नहीं है। हर सीजन में ग्लेशियर का आकार और झुकाव बदल जाता है, जिससे किसी भी अभियान की योजना बनाना असंभव हो जाता है।

चुंबकीय और दिशात्मक विचलन

कुछ वैज्ञानिक यात्राओं में यह पाया गया कि कैलाश पर्वत के आसपास कंपास और GPS डिवाइस काम करना बंद कर देते हैं। कैलाश पर्वत के चुंबकीय क्षेत्र में अत्यधिक असामान्यता देखी गई है। रूसी वैज्ञानिकों का मानना है कि कैलाश का भौगोलिक ढांचा पिरामिड की तरह चार दिशाओं में सममित है , जो पृथ्वी की ऊर्जा रेखाओं (Earth’s Energy Lines) से जुड़ा हुआ है। इसी वजह से यह क्षेत्र “पृथ्वी का ऊर्जा केंद्र” माना जाता है।

पौराणिक और धार्मिक दृष्टि – जहां भगवान भोले स्वयं निवास करते हैं

हिंदू ग्रंथों में वर्णित है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपनी दिव्य पत्नी माता पार्वती के साथ निवास करते हैं। यह स्थान न केवल उनका भौतिक निवास है, बल्कि ध्यान, ज्ञान और तपस्या का प्रतीक भी है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि कैलाश पर शिव का दरबार है जहां गण, रिद्धि-सिद्धियां, योगिनी, और भूत-प्रेत सभी उनके आदेशानुसार कार्य करते हैं।शिव पुराण में उल्लेख है, “कैलासे परमं स्थानं शिवस्य नित्यमेव च।” अर्थात् — कैलाश पर्वत शिव का शाश्वत निवास है।

कैलाश का आध्यात्मिक अर्थ

कैलाश पर्वत का संबंध केवल बाहरी भौगोलिक पर्वत से नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के भीतर स्थित चेतना के शिखर का भी प्रतीक है। योगशास्त्र में कहा गया है कि, “कैलाश” उस स्थिति को कहते हैं जब साधक अपने भीतर के ‘शिव तत्व’ से एकाकार हो जाता है।” यानी, कैलाश बाहर भी है और भीतर भी। बाहर का कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास है, और भीतर का कैलाश मानव की आत्मा का सर्वोच्च बिंदु, जहां आत्मा शिव से मिलती है।

कैलाश और शिव की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो उसमें हलाहल विष निकला। यह विष इतना घातक था कि सृष्टि का विनाश सुनिश्चित था। तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। शिव ने करुणा स्वरूप वह विष पी लिया और उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। उसी से वे नीलकंठकहलाए। उसके बाद वे कैलाश पर्वत पर गए, जहां वे गहन समाधि में चले गए, ताकि विष का ताप शांत रहे। इस प्रकार, कैलाश शिव की तपस्या, ध्यान और त्याग का प्रतीक बन गया।

चार धर्मों का केंद्र

कैलाश पर्वत केवल हिंदू धर्म के लिए ही नहीं, बल्कि बौद्ध, जैन और बोन (तिब्बती लोक धर्म), इन चारों धर्मों के लिए भी पवित्र है। बौद्ध मान्यता के अनुसार, यह डेमचोग (Demchog) का निवास स्थान है। जैन धर्म में इसे अष्टापद पर्वत कहा गया है, जहां पहले तीर्थंकर ऋषभदेव ने मोक्ष प्राप्त किया। तिब्बती बोन धर्म में इसे “सिपोमेलिंग” कहा जाता है, जो विश्व की आत्मा का केंद्र है। ऐसे में धार्मिक मान्यता यह है कि कैलाश की चोटी इंसान के लिए नहीं, बल्कि देवत्व के लिए है।

मानसरोवर झील और शिव ऊर्जा

कैलाश पर्वत के निकट ही स्थित है मानसरोवर झील, जिसे “भगवान ब्रह्मा के मन से उत्पन्न” कहा गया है। यह झील चंद्रमा जैसी शांत, गहरी और पारदर्शी है। कहा जाता है कि रात्रि में जब चंद्रमा झील पर प्रतिबिंबित होता है, तब साधक को उसमें शिव का ध्यानमग्न स्वरूप दिखाई देता है। कई यात्रियों ने यहां ध्यान लगाकर दिव्य अनुभवों का वर्णन किया है।

शिव और कैलाश – प्रतीकात्मक दृष्टि से

यदि दार्शनिक दृष्टि से देखा जाए, तो भगवान शिव चेतना के सर्वोच्च स्तर का प्रतीक हैं और कैलाश उस चेतनाकी स्थिरता का। शिव का स्वरूप गहन, मौन और समाधिस्थ है। ठीक वैसे ही, जैसे हिम से आच्छादित कैलाश पर्वत। शिव अचल हैं, निर्विकार हैं, शून्य में स्थित हैं। ठीक उसी तरह, जैसे कैलाश समय के प्रवाह से परे स्थित है। योगदर्शन के अनुसार, जब साधक अपने भीतर के सभी विकारों, इच्छाओं और विचारों को शांत कर लेता है, तब वह ‘अंतः कैलाश’ में प्रवेश करता है, यानी अपने भीतर के शिव से मिल जाता है।

पर्वतारोहियों के प्रयास और रहस्यमय असफलताएं

1900 के दशक से अब तक कई पर्वतारोही, वैज्ञानिक और साहसिक यात्रियों ने कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन हर बार कुछ न कुछ विचित्र घटा। रूसी पर्वतारोही दल (1980s) ने चढ़ाई शुरू की थी, लेकिन कुछ ही घंटों में अचानक मौसम बेकाबू हो गया और दल को पीछे हटना पड़ा। कुछ दिनों बाद, उनके दो सदस्य रहस्यमय परिस्थितियों में बीमार पड़कर मारे गए।

चीन की अनुमति और प्रतिबंध

1950 के दशक में, जब तिब्बत चीन का हिस्सा बना, तब चीनी प्रशासन ने कैलाश क्षेत्र को ‘संवेदनशील धार्मिक क्षेत्र’ घोषित कर दिया। 1960 के दशक में चीन ने आधिकारिक रूप से पर्वतारोहण पर प्रतिबंध लगा दिया, ताकि धार्मिक भावनाएं आहत न हों। आज भी कोई भी विदेशी या भारतीय पर्वतारोही वहां पर्वतारोहण नहीं कर सकता, केवल कैलाश मानसरोवर परिक्रमा की अनुमति है। रूसी वैज्ञानिक अलेक्जेंडर रटेल ने दावा किया था कि उनके एक साथी ने कैलाश की चोटी तक पहुंचने की कोशिश की थी, लेकिन वापस लौटने पर कुछ ही दिनों में उसकी तेज़ी से वृद्धावस्था आ गई और वह मर गया। तिब्बती संत इस घटना को “दैवीय दंड” बताते हैं।

कैलाश का आध्यात्मिक रहस्य- ब्रह्मांड का केंद्रबिंदु

कई शोधकर्ता कैलाश पर्वत को “पृथ्वी का अक्षमंडल” (Axis Mundi) कहते हैं, यानी वह बिंदु जहां से पृथ्वी की आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित होती है। इसका आकार चारों दिशाओं में पिरामिड की तरह है, और यह 90 डिग्री के कोण पर अन्य पर्वत श्रृंखलाओं से जुड़ा है। रूसी वैज्ञानिकों ने कैलाश को “मानव निर्मित या ईश्वरीय संरचना” तक कहा है, जो शायद पृथ्वी का प्राचीन ऊर्जा स्रोत रहा हो।

कैलाश के चार नदियों से संबंध, रहस्यमय प्रकाश और ध्वनियां

कैलाश पर्वत से ही एशिया की चार प्रमुख नदियां — गंगा, ब्रह्मपुत्र, सतलज और सिंधु चारों दिशाओं में निकलती हैं। यह प्राकृतिक संरचना इतनी सटीक और संतुलित है कि इसे “पृथ्वी का हृदय” कहा जाता है। कई तीर्थयात्रियों ने यह दावा किया है कि अमावस्या या पूर्णिमा की रातों में कैलाश से अजीब चमकदार रोशनी और गूंजती ध्वनियां निकलती हैं। वैज्ञानिक इसे बर्फ़ और हवा की ध्वनि परावर्तन की प्रक्रिया बताते हैं, जबकि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह भगवान शिव की तांडव लय मानी जाती है।

विज्ञान बनाम आस्था — कौन सही, कौन नहीं?

वैज्ञानिकों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर चढ़ाई असंभव इसलिए नहीं है कि वहां कोई “दैवी शक्ति” है, बल्कि इसलिए, कि वहां की भू-संरचना और मौसम की स्थिति इंसान के लिए अनुकूल नहीं है। उच्च चुंबकीय क्षेत्र, अत्यधिक ठंड, और ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई भी अभियान तकनीकी रूप से सफल नहीं हो सकता। वहीं श्रद्धालुओं के अनुसार, कैलाश पर चढ़ाई का प्रयास ईश्वरीय मर्यादा का उल्लंघन है। जैसे कोई साधक समाधि में बैठे महायोगी को भंग नहीं कर सकता, वैसे ही कैलाश पर चढ़ना भी एक तरह से दिव्यता को चुनौती देना है। यही कारण है कि आज तक किसी ने भी सफलतापूर्वक इसकी चोटी पर पैर नहीं रखा।

कैलाश मानसरोवर यात्रा- आत्मिक अनुभव का मार्ग

हर साल हजारों श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाते हैं। यह यात्रा समुद्र तल से 16,500 फीट की ऊंचाई पर, चीन के तिब्बत क्षेत्र में स्थित है। यात्री यहां कैलाश पर्वत की परिक्रमा करते हैं, लगभग 52 किलोमीटर की कठिन यात्रा, जिसे “कैलाश परिक्रमा” कहा जाता है। मान्यता है कि एक बार परिक्रमा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं, जबकि 108 परिक्रमा करने वाला व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है।

शिव ही कैलाश हैं, और कैलाश ही शिव

कैलाश पर्वत और भगवान शिव का संबंध सृष्टि और चेतना के उस अनंत बंधन का प्रतीक है, जहां प्रकृति और पुरुष एकाकार होते हैं। यह पर्वत हमें यह सिखाता है कि, “शिव बाहरी जगत में नहीं, हमारे भीतर निवास करते हैं। जब मन शांत होता है, तब वही मन कैलाश बन जाता है।” कैलाश केवल हिमालय का एक भूभाग नहीं, बल्कि यह वह अनंत आकाशीय द्वार है जहां मनुष्य का सीमित अस्तित्व ब्रह्म से मिल जाता है। इसलिए हिंदू दर्शन कहता है, “कैलासं शिवलोकं च न पृथक् विद्यात् कदाचन।” अर्थात कैलाश और शिव में कोई भेद नहीं, दोनों एक ही सत्य के दो रूप हैं।

भगवान शिव और कैलाश पर्वत का संबंध न तो केवल धार्मिक है, न केवल भौगोलिक! यह संबंध हैआध्यात्मिक एकता, मौन की गहराई और चेतना की सर्वोच्च अवस्था का! जब तक मानव मन में विकार रहेंगे, वह कैलाश की चोटी तक नहीं पहुंच सकता। पर जब मन निर्विकार हो जाता है, तब हर साधक अपने भीतर कैलाश की चोटी पर बैठे शिव को पा लेता है, जहां सब समाप्त होता है, और वहीं से सृष्टि पुनः जन्म लेती है।

रहस्यों के बीच निष्कर्ष- अजेय पर्वत या दिव्य मर्यादा?

कैलाश पर्वत के रहस्य आज भी दुनिया के सबसे गूढ़ रहस्यों में से एक हैं। आधुनिक युग की तकनीक, उपग्रह चित्रण, और एरियल सर्वेक्षण होने के बावजूद इसकी चोटी तक किसी मनुष्य का पहुँचना आज भी असंभव है। शायद यह केवल भौतिक कारण नहीं, बल्कि आध्यात्मिक सच्चाई भी है कि कुछ स्थान केवल अनुभव करने के लिए होते हैं, जीतने के लिए नहीं। कैलाश पर्वत ऐसी ही एक अजेय, अलौकिक और दिव्य सत्ता का प्रतीक है जो हमें यह याद दिलाता है कि, “प्रकृति और ईश्वर, दोनों का अपना क्षेत्र है। वहां तक इंसान केवल झुक सकता है, पहुंच नहीं सकता।”

कैलाश पर्वत आज भी वहीं अडिग खड़ा है- हिम, हवा और श्रद्धा की गोद में। उसकी ऊंचाई शायद किसी ने मापी हो, पर उसकी गहराई, ऊर्जा और रहस्य मानव बुद्धि के परे हैं। कैलाश के बारे में जितना जाना गया है, उससे कहीं ज्यादा अब भी अनकहा है। और शायद यही कारण है कि आज तक कोई कैलाश की चोटी तक नहीं पहुंच पाया ! क्योंकि वहां पहुंचने का अर्थ है, ‘ईश्वर को छूना’!

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