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समाज सुधार के लिए कोर्ट के “सुप्रीम” फैसले

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Supreme Court Of India
 
जब भी अन्याय की आंधी से किसी के उम्मीद का दीया बुझता है तो उसे सिर्फ एक ही आस होती है, न्याय की आस, उम्मीद फैसले की, शायद यही वजह है कि जब भी अन्याय के बादल मंडराते है जनता की जुबान पर एक ही बात होती है, “सुप्रीम कोर्ट तक लड़ूंगा”, और न्याय के मंदिर में साक्ष्यों के बलबूते आखिरकार न्याय मिल ही जाता है, भले ही कोई मामला सुर्खियों में हो, भले ही किसी आरोपी को मीडिया ट्रायल में दोषी करार कर दिया जाय लेकिन जब कोर्ट का फैसला आता है तो कई बुराईयां खत्म हो जाती है। ऐसा ही कुछ देखने को मिला हाल ही के दिनों में जहां सुप्रीम कोर्ट में एक के बाद एक ताबड़तोड़ फैसले लिए गए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रिटायर हो गए लेकिन इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने इतिहास रच दिया खासकर आम आदमी की निजी स्वतंत्रता को लेकर।
एक के बाद एक आये फैसलों की बात करें तो सबसे पहले जो फैसला आया वह सबसे ऐतिहासिक था जिसमें कहा गया कि समलैंगिकता गैरकानूनी नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शन 377 अतार्किक, मनमाना और समझ से परे है और सामाजिक नैतिकता व्यक्ति के अधिकार में बाधा नहीं है। इस फैसले ने समाज में एक ऐसी बेड़ी को तोड़ा जो अभी तक चहारदीवारों या घरों के अंदर तक सीमित थी।समलैंगिक लोग अभी तक समाज में जिल्लत और तिरस्कार की जिंदगी झेलते थे, परिवार भी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होता था कि उनके घर में कोई समलैंगिक है। इस फैसले ने समाज के एक तबके को आवाज दी और उन्हें समाज में सम्मान से जीने का हक दिया, अब समलैंगिकता अपराध नही रहा।
दूसरा फैसला भी बेहद महत्वपूर्ण रहा, अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण पर 2006 में दिए अपने फैसले पर दोबारा विचार करने से इनकार कर दिया। यह फैसला एम नागराज के मामले में दिया गया था। इसमें कहा गया था कि राज्य सरकारें कुछ शर्तों के साथ प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें संबंधित समुदाय के पिछड़ होने के आंकड़े देने होंगे। केंद्र का कहना था कि इसमें शर्तें बेवजह लगाई गई हैं। ऐसे में इसे सात जजों की बेंच के पास दोबारा विचार के लिए भेजा जाना चाहिए।
फिर एक बड़ा फैसला आया आधार कार्ड का जिसमें किसी भी निजी कंपनी को आधार मांगने पर रोक लगा दी गई, बैंक खातों से आधार जोड़ना जरूरी नहीं कर दिया गया लेकिन पैन नंबर के लिए आधार जरूरी रहेगा, सिम कार्ड के लिए आधार जरूरी नही, बैंक भी अकाउंट खोलने के लिए आधार नंबर की मांग नहीं कर सकते हैं। कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार जरूरी रहेगा, मगर उसके चलते किसी का हक नहीं मारा जा सकता है।
फिर एक और महत्वपूर्ण फैसला आया अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर, जिसमें नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद का होना जरूरी नहीं माना गया और 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ा, इस फैसले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा गया।
एक और बड़ा फैसला आया जिसमें एडल्ट्री यानि व्याभिचार को अपराध नहीं माना गया, एडल्ट्री कानून को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि महिला की गरिमा सबसे ऊपर है। पति उसका मालिक नहीं है। धारा 497 पुरुष को मनमानी का अधिकार देने वाली है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विवाहेतर संबंधों पर फैसला सुनाते हुए कहा कि एडल्ट्री यानी व्याभिचार अपराध नहीं हो सकता। एडल्ट्री कानून असंवैधानिक है।
उसके बाद सबसे ताजा फैसला है कि केरल के सबरीमाला मंदिर के दरवाजे महिलाओं के लिए भी खोल दिए गए, यह महिला अधिकार और समानता के लिए एक बहुत बड़ा कदम है, यह समाज में पितृसत्तात्मक नियम के खिलाफ है, परंपरा धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं हो सकती और पूजा से इनकार करना महिला की गरिमा को इनकार करना माना जाएगा। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आये फैसले समाज की बुराईयों में सुधार लाने का अथक प्रयास है। सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से यही बात स्पष्ट होती है कि जब भी समाज में असमानता, असुरक्षा निर्माण होगी सुप्रीम कोर्ट सबसे आगे खड़ा होकर देश के हर नागरिक के हक़ की रक्षा करेगा।