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September 22, 2025

जैसलमेर में स्थित तनोट माता मंदिर- आस्था और वीरता का संगम

The CSR Journal Magazine
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। देवी शैलपुत्री ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।

नवरात्रि के पहले दिन चलते हैं तनोट माता के मंदिर 

सीमावर्ती थार रेगिस्तान में बसे तनोट माता मंदिर ने सदियों से श्रद्धालुओं और सैनिकों, दोनों के दिलों में विशेष स्थान बनाया है। जैसलमेर से करीब 120 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारत-पाक युद्धों की वीरगाथा और अद्भुत घटनाओं का साक्षी भी है। राजस्थान के स्वर्ण नगरी जैसलमेर की धरती पर भारत-पाकिस्तान सीमा के समीप स्थित है एक ऐसा रहस्यमयी और अद्भुत मंदिर, जिसकी गाथा सुनकर हर कोई हैरान रह जाता है। यह मंदिर है तनोट माता का, जो केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि आस्था, चमत्कार और भारतीय सेना की अदम्य श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार तनोट माता देवी हिंगलाज माता का ही एक स्वरूप हैं। मंदिर के निर्माण को लेकर दो तरहके मत हैं। कोई कहता है कि 9वीं शताब्दी में राजा तानू राव भाटी द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। दूसरा मत है कि 12वीं शताब्दी में जैसलमेर के भाटी राजपूत शासक महारावल लोंकावत ने तनोट माता के इसमंदिर की नींव रखी। निर्माण चाहे जिसने भी करवाया हो, थार रेगिस्तान के भारत- पाकिस्तान पर बैठी माता तनोट आज भी श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। ग्रामीणों का मानना है कि तनोट माता अपने भक्तों को हर संकट से बचाती हैं।

थार की वैष्णो देवी, तनोट माता का शक्तिपीठ

जैसलमेर से करीब 120 किलोमीटर दूर थार मरुस्थल में स्थित तनोट माता का यह मंदिर ‘थार की वैष्णो देवी’ और ‘सैनिकों की देवी’ के रूप में प्रसिद्ध है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यह मंदिर न सिर्फ आम नागरिकों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवानों के लिए यह शक्ति और संरक्षण का प्रतीक बन चुका है। इस मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है, और स्थानीय कारीगरों की कुशल कारीगरी का एक उत्कृष्ठ उदाहरण है। दो मंज़िला इस मंदिर के शीर्ष पर एक केन्द्रीय गुंबद है। मंदिर की दीवारों पर रंग-बिरंगे चित्र और नक्काशी देखने लायक है। मंदिर में एक विशाल प्रांगण है, जहां श्रद्धालु आराम से बैठकर प्रार्थना करते हैं।

पाकिस्तान के साथ युद्ध में माता का चमत्कार

यह मंदिर भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान अनेक बार दुश्मन के निशाने पर आया, लेकिन माता की कृपा ऐसी रही कि न तो मंदिर को कोई नुकसान पहुंचा और न ही उसमें मौजूद भक्तों को। सन 1965 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना ने भारत की सरहदों को तोड़ते हुए तनोट क्षेत्र में भारी हमला बोला था। तीन अलग-अलग दिशाओं से पाकिस्तानी सेना ने तनोट माता मंदिर को निशाना बनाया। उनका उद्देश्य था इस पवित्र स्थल को नष्ट करना और भारत के सैनिकों का मनोबल तोड़ना। पाकिस्तान की एक पूरी ब्रिगेड के खिलाफ, मेजर जय सिंह की कमान में 13 ग्रेनेडियर्स की एक छोटी-सी कंपनी और सीमा सुरक्षा बल (BSF) की दो कंपनियां तनोट की रक्षा में डटी हुई थीं। युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने तनोट माता मंदिर पर करीब 3000 बम गिराए, लेकिन यह आस्था का किला डगमगाया नहीं। हैरानी की बात यह रही कि इन हज़ारों बमों में से कोई भी मंदिर को नुकसान नहीं पहुंचा सका। कई बम तो मंदिर परिसर में गिरे, लेकिन वे फटे ही नहीं। माता तनोट की शक्ति के बारे में जानकर पाकिस्तानी जनरल ने इस मंदिर को देखने का अनुरोध किया। अनुरोध स्वीकार कर लिया गया और पाकिस्तानी जनरल ने तनोट माता की अलौकिक शक्ति को स्वीकार करते हुए माता के चरणों में अपना मत्था टेका। यह घटना न केवल भारतीय सैनिकों के हौसले को बढ़ाने वाली थी, बल्कि इससे तनोट माता की शक्ति और चमत्कार पर लोगों की आस्था और भी गहरी हो गई।
1971 के लोंगेवाला युद्ध में भी जब पाकिस्तानी टैंक भारत की ओर बढ़े, तो रेगिस्तान की रेत में धंस गए और भारतीय सेना को निर्णायक बढ़त मिली। सैनिक इसे देवी की कृपा मानते हैं।

आस्था और सुरक्षा का केंद्र, पुजारी भी BSF के जवान

तनोट माता मंदिर की एक अनोखी बात यह है कि इस शक्ति स्थल पर पुजारी भी BSF के जवान है। वर्ष 1965 और 1971 की लड़ाइयों में तनोट माता ने सेना के जवानों की रक्षा की थी तभी से लेकर आजतक इस मंदिर की देखरेख BSF के जवान करते है। ना केवल देखभाल, बल्कि मंदिर की साफ़-सफाई, पूजा-अर्चना और आरती तक BSF के जवान ही करते हैं। इस मंदिर से जुड़े चमत्कार इतने प्रसिद्ध हैं कि यहां देशभर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। तनोट माता के मंदिर परिसर में आज भी वो बम रखे गए हैं जो पाकिस्तान की ओर से दागे गए थे, लेकिन फटे नहीं। इन बमों को तनोट माता मंदिर के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है, जो देश की रक्षा में मां की चमत्कारिक भूमिका का जीवंत प्रमाण हैं।
तनोट माता मंदिर की देखरेख BSF के द्वारा की जाती है। यहां तैनात जवान नियमित रूप से माता की पूजा करते हैं और मंदिर की रक्षा करते हैं, जैसे वे देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं। हर दिन देश-विदेश से सैकड़ों श्रद्धालु यहां पहुंचकर माता के दर्शन करते हैं और सीमा पर तैनात जवानों की सलामती की प्रार्थना करते हैं।

नवरात्रों में लगता है विशाल मेला

अश्विन और चैत्र नवरात्रों के दौरान तनोट माता मंदिर में विशाल मेलों का आयोजन होता है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। भीड़ को नियंत्रित करने और व्यवस्थाएं सुचारु बनाए रखने के लिए सेना अपने संसाधन लगाकर सेवा में जुट जाती है। मंदिर में तैनात सैनिक पुजारी की भूमिका निभाते हैं और सुबह-शाम आरती संपन्न कराते हैं। यह अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है, जहां सैनिक धर्म और देश दोनों की सेवा कर रहे हैं।

पहलगाम हमले के बाद बंद किया गया था मंदिर

हाल ही में सीमा पर तनाव के कारण मंदिर कुछ समय के लिए आम पर्यटकों के लिए बंद किया गया था। अब स्थिति सामान्य होने पर इसे पुनः खोल दिया गया है। सुरक्षा के लिए सीसीटीवी और निगरानी व्यवस्था मजबूत की गई है। क्षेत्र सीमावर्ती होने के कारण सुरक्षा कवच मजबूत किया गया है, और मंदिर के आसपास सीसीटीवी, BSF आदि के निगरानी तंत्र सक्रिय हैं। आस्था एवं युद्ध की वीरगाथा के कारण मंदिर एवं उसके संग्रहालय को देखने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पर्यटन विभाग के अनुसार आने वाले समय में यहां सड़क और आवासीय सुविधाओं को और बेहतर बनाने की योजना है।

चुनौतियां और प्रस्तावित समाधान

तनोट माता मंदिर के रेतीले रास्ते, सीमावर्ती इलाका होने की वजह से यात्रा कठोर हो सकती है, विशेष रूप से गर्मियों में। अपेक्षित है कि सड़क और परिवहन सुविधाएं एवं आवासीय सुविधाएं सुधारी जाएं। हाल ही में इलाके में ड्रोन, मिसाइल या सीमा से संबंधित छोटे-छोटे घटनाएं हो रही हैं, जिससे सुरक्षा स्थिति पर नजर बनाए रखना जरूरी है। मंदिर और आसपास के इलाकों में पर्यटन को संतुलित तरीके से बढ़ाने की ज़रूरत है, ताकि संस्कृति, प्राकृतिक वातावरण और सुरक्षा तीनों की रक्षा हो सके।

तनोट माता मंदिर का समय और प्रवेश शुल्क

मंदिर पूरे सप्ताह सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में प्रवेश के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है।

तनोट माता मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

तनोट माता मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय नवंबर से जनवरी तक है क्योंकि उस समय यहां का मौसम सुहावना होता है। इस दौरान तापमान आरामदायक और हवा शुष्क होती है। यह समय दर्शनीय स्थलों की यात्रा और मंदिर परिसर की खोज के लिए आदर्श है। इसके अलावा, सर्दियों के महीनों में आसपास के रेगिस्तानी परिदृश्य के कुछ सबसे खूबसूरत दृश्य देखने को मिलते हैं।

तनोट माता मंदिर कैसे पहुंचें

तनोट माता मंदिर तक हवाई, रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

हवाई मार्ग: जैसलमेर का सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जहां से आप जैसलमेर पहुंचने के लिए कैब बुक कर सकते हैं। एक कैब से शहर पहुंचने में लगभग चार घंटे लगते हैं, और जैसलमेर के मुख्य शहर से आप तनोट माता मंदिर तक दो घंटे में पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग: जैसलमेर रेलवे स्टेशन और तनोट माता मंदिर के बीच 123.1 किमी की दूरी है। जैसलमेर तक रेल द्वारा पहुंचा जा सकता है और जैसलमेर की शीर्ष कार रेंटल कंपनियों की कैब द्वारा दो घंटे में पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग: जैसलमेर से तनोट माता मंदिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता सड़क मार्ग है। यात्रा में लगभग 1 घंटा 52 मिनट लगते हैं और यह जैसलमेर से 120 किमी दूर स्थित है।

आस्था, श्रद्धा और वीरता का केंद्र तनोट माता मंदिर

तनोट माता मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, यह भारत की सीमाओं, वीरता और आस्था का प्रतीक है। यह स्मारक 1965 के युद्ध में जीवित बचे जैसलमेरवासियों के साहस और विश्वास का प्रतीक है। मंदिर ने समय-समय पर जिस तरह से संघर्षों का सामना किया है और आश्चर्यजनक रूप से जीवित रहा है, वह इसकी आस्था और सदियों पुराने विश्वास को मजबूत करता है। तनोट माता मंदिर आज भी श्रद्धा और राष्ट्रीय भावना को जोड़ने का काम करता है, जहां श्रद्धालु देवी की पूजा करते हैं, सैनिक अपनी रक्षा के लिए प्रेरणा लेते हैं, और आम लोग इतिहास, वर्णन और आध्यात्म के बीच एक सेतु अनुभव करते हैं। तनोट माता मंदिर केवल पूजा-स्थल नहीं, बल्कि भारत की आस्था और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है। यहां की रेत, यहां की हवा और माता की छत्रछाया हर आगंतुक को यह एहसास कराती है कि जब तक श्रद्धा और साहस जिंदा है, तब तक देश की सीमाएं सुरक्षित हैं।
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