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October 25, 2025

इटली में कैथोलिक पादरियों पर 4,000 से अधिक यौन शोषण के मामले नैतिक विफलता का परिणाम

The CSR Journal Magazine
इटली में कैथोलिक चर्च एक बार फिर गंभीर विवादों के घेरे में आ गया है। देश में बीते पांच वर्षों के दौरान करीब 4,400 से अधिक लोगों के साथ पादरियों द्वारा यौन शोषण के मामले सामने आए हैं। यह खुलासा पीड़ितों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन “Rete l’Abuso” की ताज़ा रिपोर्ट में हुआ है।

5 वर्ष में 4000 से ज़्यादा यौन शोषण के मामले दर्ज

इटली में हाल ही में उजागर हुआ यह खुलासा कि बीते पांच वर्षों में कैथोलिक पादरियों के ख़िलाफ़ 4,000 से अधिक यौन शोषण के मामले दर्ज हुए, केवल एक देश या संस्था का अपराध नहीं, बल्कि पूरी धार्मिक व्यवस्था की नैतिक विफलता का संकेत है। संगठन के अनुसार, अब तक 1,106 पादरियों के नाम संभावित अपराधियों की सूची में शामिल किए गए हैं। वहीं, पीड़ितों की संख्या 4,625 बताई गई है, जिनमें से अधिकतर 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 4,451 नाबालिगों और लगभग 4,108 पुरुषों ने शोषण झेलने की पुष्टि की है।

पादरियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही में देरी

हालांकि, इस चौंकाने वाले आंकड़ों के बावजूद चर्च की ओर से कार्रवाई बेहद सीमित रही है। अब तक केवल 76 पादरियों पर आंतरिक अनुशासनात्मक सुनवाई हुई है, जिनमें से मात्र 18 को पद से हटाया गया या उन्होंने त्यागपत्र दिया। शेष मामलों में या तो जांच अधूरी है या कार्रवाई लंबित है। कैथोलिक बिशप परिषद (CEI) की ओर से जारी ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2023-24 के दौरान 115 नए कथित पीड़ित और 69 आरोपित मामलों की पुष्टि हुई। इनमें सबसे अधिक पीड़ित बच्चे 10 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के थे। चर्च की इस रिपोर्ट को पीड़ितों के संगठनों ने “अपर्याप्त और अपमानजनक रूप से सीमित” बताया है। उनका कहना है कि चर्च केवल हाल के मामलों को दिखाकर अपने ऐतिहासिक अपराधों को छिपाने की कोशिश कर रहा है।

बच्चों की सुरक्षा को लेकर चर्च की लापरवाही सामने आई

Vatican Commission for Child Protection ने भी चिंता जताई है कि इटली के 226 में से केवल 81 डायोसेज़ ने अपने “सुरक्षा उपायों” से जुड़ी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इससे यह संकेत मिलता है कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर चर्च व्यवस्था अब भी लापरवाह है। Rete l’Abuso ने सरकार और वेटिकन दोनों से मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की स्वतंत्र और पारदर्शी न्यायिक जांच कराई जाए। संगठन का कहना है कि “अब छिपाने का दौर खत्म होना चाहिए। हर पीड़ित को न्याय मिलना ही चर्च की साख बचाने का एकमात्र रास्ता है।” इटली में यह खुलासा तब हुआ है जब दुनिया के कई देशों, फ्रांस, अमेरिका, आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी पादरियों द्वारा बाल यौन शोषण के बड़े मामले सामने आ चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह समस्या केवल किसी एक देश या संस्था की नहीं, बल्कि कैथोलिक संस्थागत ढांचे में मौजूद गहरे ढांचेगत दोषों का परिणाम है।

पीड़ितों का मौन सबसे बड़ी दीवार

चर्च के प्रति श्रद्धा इतनी गहरी है कि बहुत से पीड़ित वर्षों तक मौन रहने को मजबूर रहते हैं। परिवार और समुदाय अक्सर “चर्च की प्रतिष्ठा बचाने” के नाम पर शिकायत दर्ज कराने से हिचकिचाते हैं। यह सामाजिक मौन ही सबसे बड़ी दीवार बन गया है, जो अपराधियों को बचाता है और पीड़ितों को तोड़ देता है। कैथोलिक चर्च सदियों से श्रद्धा, अनुशासन और नैतिकता का प्रतीक माना जाता रहा है। पादरी समाज में “ईश्वर के प्रतिनिधि” की तरह देखे जाते हैं, जिनका शब्द अंतिम सत्य माना जाता है। लेकिन यही श्रद्धा तब एक ढाल बन जाती है, जब अपराधी अपने अपराध को पवित्रता के आवरण में छिपा लेता है।

आस्था की आड़ में अपराध

इटली से आई यह खबर पूरी दुनिया के धार्मिक तंत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह केवल कुछ “भटके हुए व्यक्तियों” की कहानी नहीं, बल्कि उस संस्थागत चुप्पी का परिणाम है जिसने अपराध को पवित्रता का वस्त्र ओढ़ा दिया। कैथोलिक चर्च, जो करुणा और नैतिकता का प्रतीक माना जाता है, आज उसी नैतिक संकट का शिकार है जिसे उसने रोकने की कसम खाई थी। पीड़ित बच्चों की चीखें वर्षों तक प्रार्थनाओं के स्वर में दबा दी गईं और यही इस व्यवस्था की सबसे गहरी विफलता है। वेटिकन ने हाल के वर्षों में सुधार के प्रयास किए हैं। जैसे “Listening Centres” (सुनवाई केंद्र) की स्थापना और “चाइल्ड प्रोटेक्शन कमीशन” का गठन। लेकिन इन संस्थाओं के पास कानूनी अधिकार नहीं, जिससे ये केवल सलाह देने वाली संस्थाएं बनकर रह गई हैं। वेटिकन के आधे-अधूरे सुधार और आंतरिक जांचें पर्याप्त नहीं हैं। जब अपराध संगठन के भीतर से निकलता है, तो न्याय बाहरी और स्वतंत्र होना चाहिए। आस्था का अर्थ यह नहीं कि उसे प्रश्नों से मुक्त कर दिया जाए। सच्ची आस्था वहीं टिकती है जहां पारदर्शिता और जवाबदेही हो।

आस्था की आड़ में अपराध

आज चर्च के सामने चुनौती केवल अपनी छवि बचाने की नहीं, बल्कि अपनी आत्मा को पुनः शुद्ध करने कीहै। जो संस्थान दूसरों को पाप से मुक्ति का संदेश देता है, उसे पहले अपने भीतर के पापों को स्वीकार करना होगा। तभी वह विश्वास के योग्य कहलाएगा। यह मामला केवल 4,000 आंकड़ों का नहीं है। यह उन हज़ारों ज़िंदगियों का दस्तावेज़ है जिन्हें “पवित्रता” की आड़ में अपवित्र किया गया। जब तक चर्च यह नहीं समझेगा कि “आस्था” का अर्थ “अंधविश्वास” नहीं, बल्कि जवाबदेही है, तब तक ये अपराध दोहराए जाते रहेंगे।
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