मानव इतिहास में ऐसे अनगिनत क्षण दर्ज हैं जब शारीरिक चुनौतियों (दिव्यांगता) को पार करके लोगों ने दुनिया को चकित कर दिया। चाहे फिल्में हों, खेल, राजनीति, चिकित्सा, आविष्कार या विश्व-रिकॉर्ड- दिव्यांग व्यक्तियों ने हर बार यह साबित किया है कि सीमाएं शरीर में नहीं, बल्कि सो
International Day of Persons with Disabilities-अंतरराष्ट्रीय विकलांगजन दिवस,बाधा नहीं, अवसर बनकर उभरे नायक !
अंतरराष्ट्रीय विकलांगजन दिवस हर वर्ष 3 दिसंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों, सम्मान, अवसरों और उनके सामाजिक योगदान को बढ़ावा देना है। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि दिव्यांगता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि विविधता का एक स्वरूप है, जो समाज को और समृद्ध बनाता है। इस दिन दुनिया भर में जागरूकता अभियान, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सम्मेलनों और विशेष गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, ताकि सभी लोगों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, परिवहन और तकनीक के समान अवसर मिल सकें। यह दिन उन महान व्यक्तियों की उपलब्धियों को भी सलाम करता है, जिन्होंने शारीरिक या मानसिक चुनौतियों के बावजूद विज्ञान, खेल, राजनीति, कला और समाजसेवा के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया है। अंतरराष्ट्रीय विकलांगजन दिवस का असली संदेश यही है कि एक समावेशी समाज तभी संभव है जब हर व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी क्षमता का हो, सम्मान, अवसर और गरिमा के साथ जीने का अधिकार मिले।
फिल्म, कला व साहित्य के दिव्यांग रचनाकार-जिन्होंने चुनौतियों को जीत में बदला
हेलेन केलर Helen Keller- बस नाम ही काफी है !
हेलेन केलर का बचपन अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से भरा था। बहुत छोटी उम्र में ही वे दृष्टि और श्रवण, दोनों क्षमताएं खो बैठीं, जिससे उनका सम्पूर्ण संसार अंधकार और मौन में डूब गया। लेकिन उनकी अध्यापिका ऐनी सुलिवन के मार्गदर्शन ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। हेलेन ने स्पर्श आधारित भाषा के माध्यम से दुनिया को समझना शुरू किया और धीरे-धीरे उच्च शिक्षा प्राप्त करते हुए वे कला, साहित्य और मानवाधिकार आंदोलनों का विशिष्ट चेहरा बन गईं।
वे पहली दिव्यांग महिला बनीं जिन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। उनकी आत्मकथा “The Story Of My Life” ने विश्वभर में करोड़ों लोगों को प्रेरित किया। उन्हें अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले और वे दिव्यांग अधिकारों की विश्व-प्रमुख आवाज बनीं। आज भी उनके जीवन को मानव दृढ़ता का सर्वोच्च उदाहरण माना जाता है।
सुधा चंद्रन Sudha Chandran- बिन पैर नृत्य साधना की छुई ऊंचाई
सुदा चन्द्रन भारतीय नृत्य जगत की सबसे प्रेरणादायक हस्तियों में हैं। एक दुर्घटना में उनका दायां पैर खो गया, लेकिन उन्होंने कृत्रिम ‘जयपुर फुट’ के सहारे फिर से चलना ही नहीं, बल्कि भरतनाट्यम का मंच भी जीत लिया। उनका संघर्ष भारतीय समाज में व्यापक रूप से प्रेरणा का प्रतीक बन चुका है। उन्होंने फिल्मों, टीवी धारावाहिकों और नृत्य प्रदर्शनियों में महत्वपूर्ण स्थान बनाया। उनकी फिल्म ‘नाचे मयूरी’ उनकी ही जीवन यात्रा पर आधारित थी जिसने लाखों लोगों को आत्मविश्वास दिया। नृत्य, अभिनय और साहस के लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले।
फ्रिडा काहलो Frida Kahlo- कला बनी पहचान
फ्रिडा काहलो का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। बचपन में पोलियो और युवावस्था में हुई भीषण बस दुर्घटना ने उनकी रीढ़ को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया। महीनों तक बिस्तर पर रहने के दौरान उन्होंने चित्रकारी को आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। यह कला आगे चलकर उनकी पहचान बन गई। उनकी पेंटिंग्स में उनके दर्द, संघर्ष और गहरी भावनाएं सजीव रूप में झलकती हैं। वे विश्व की सबसे प्रभावशाली महिला चित्रकारों में शामिल हैं। उनकी कला को कई देशों में विशेष सम्मान मिला, और वे मेक्सिको के सांस्कृतिक इतिहास की धरोहर बन गईं।
रवींद्र जैन Ravindra Jain- संगीत की दुनिया के लेजन्ड
नेत्रहीन पैदा हुए रवींद्र जैन संगीत की दुनिया में धुनों के जादूगर बनकर उभरे। बचपन से ही संगीत में उनकी रुचि अद्भुत थी। शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त करते हुए उन्होंने अपनी दृष्टिहीनता को कभी बाधा नहीं बनने दिया। बॉलीवुड में उन्होंने अनगिनत अमर गीतों और भजनों की रचना की। “रामायण” सीरियल का संगीत आज भी लोगों को भाव-विभोर कर देता है। उन्हें पद्मश्री सहित कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। संगीत में उनकी रचनात्मकता को दिव्यांगता पर जीत का प्रतीक माना जाता है।
जॉन मिल्टन John Milton-नेत्रहीन ने लिखा महाकाव्य
जॉन मिल्टन अंग्रेजी साहित्य की अमर कृतियों के लेखक माने जाते हैं। जीवन के अंतिम वर्षों में वे पूर्णतः दृष्टिहीन हो गए, लेकिन उनकी रचनात्मकता कम नहीं हुई। उन्होंने अपनी कल्पना और स्मृति के सहारे विश्व-प्रसिद्ध महाकाव्य “Paradise Lost” का सृजन किया। उनकी कविताएं और विचार आज भी अंग्रेजी साहित्य की नींव मानी जाती हैं। उनका कार्य इस बात का उज्ज्वल उदाहरण है कि रचनात्मकता शारीरिक सीमाओं से कहीं अधिक शक्तिशाली होती है।
खेल जगत के अदम्य दिव्यांग चैम्पियन
मिल्खा सिंह की बेटी अलीसा सिंह- Alisa Singh-हवा की गति से सुनी संतुलन की आवाज
अलीसा सिंह ने सुनने की क्षमता कम होने के बावजूद अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से एथलेटिक्स में अनोखी पहचान बनाई। दौड़ में उनकी गति और संतुलन ने उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सफलता दिलाई। वे युवा श्रवण-बाधित खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। खेलों में उनके योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए हैं और वे स्पोर्ट्स एडवोकेसी में भी सक्रिय हैं।
शीतल देवी Sheetal Devi-पैरों से तीर चलाकर जीती दुनिया
शीतल देवी का जन्म बिना हाथों के हुआ, लेकिन पहाड़ी जीवन और कठिन परिस्थितियों ने उनके मनोबल को और मजबूत किया। जम्मू-कश्मीर के छोटे से गांव में पली-बढ़ी शीतल ने पैरों से काम करने की कला बचपन में ही सीख ली थी। जब कोच ने उनके शरीर का लचीलापन और संतुलन देखा, तो उन्होंने तीरंदाजी में उनकी संभावनाओं को पहचाना। पैरों की सहायता से धनुष खींचने और निशाना लगाने की तकनीक सीखना आसान नहीं था, लेकिन शीतल ने इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया।
कम समय में ही शीतल देवी विश्व स्तरीय तीरंदाज बन गईं। एशियाई पैरा खेलों और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उन्होंने कई पदक जीते और दुनिया भर में एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया। वे दुनिया की बेहद कम फुट आर्चर्स में से एक हैं। उनकी सफलता ने भारत को गर्वान्वित किया और देशभर में दिव्यांग खेलों के प्रति नई जागरूकता पैदा की। शीतल देवी आज साहस, अनोखी तकनीक और आत्मविश्वास का जीवंत प्रतीक हैं।
पद्मश्री अवनी लेखरा Avani Lekhara-पैरालिंपिक में पहला गोल्ड मेडल पाने वाली पहली भारतीय
अवनी लेखरा का जीवन एक दुर्घटना के बाद अचानक बदल गया, जब उनकी रीढ़ की हड्डी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई और वे व्हीलचेयर पर निर्भर हो गईं। शुरुआती समय बेहद कठिन था, लेकिन परिवार के सहयोग और अपनी इच्छाशक्ति के दम पर उन्होंने जीवन को नए दृष्टिकोण से देखना शुरू किया। बाद में उन्होंने शूटिंग को करियर के रूप में अपनाया और अत्याधुनिक राइफल तकनीकों में निपुणता हासिल की।
टोक्यो 2020 पैरालिंपिक में अवनी लेखरा ने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। वे पैरालिंपिक में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उन्होंने एक रजत पदक भी जीता और विश्व शूटिंग में अपनी श्रेष्ठता साबित की। अवनी को अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न और पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से नवाज़ा गया। उनका संयम, फोकस और प्रतिस्पर्धात्मक मानसिकता करोड़ों युवाओं को प्रेरित करती है कि विपरीत परिस्थितियां भी जीवन के लक्ष्य को नहीं रोक सकतीं।
दीपा मलिक Deepa Malik-बैठे बैठे पद्मश्री-अर्जुन पुरस्कार पर दावा
दीपा मलिक भारतीय पैरालिंपिक इतिहास की सबसे प्रेरक हस्तियों में हैं। रीढ़ की हड्डी की जटिल समस्या के कारण वे व्हीलचेयर पर निर्भर हो गईं, लेकिन उन्होंने उदासी को नहीं अपनाया। उन्होंने शॉटपुट, तैराकी और बाइकिंग जैसे चुनौतीपूर्ण खेलों में नए आयाम स्थापित किए। 2016 रियो पैरालिंपिक में उन्होंने भारत के लिए रजत पदक जीता। कई राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाए और एशियाई स्तर पर भी पदक जीते। उन्हें पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मार्ला रनियन Marla Runyan- नेत्रहीन ने बनाई राह
मार्ला रनियन नेत्रहीन होते हुए भी ओलंपिक स्तर की धाविका बनीं। उन्होंने 1500 मीटर दौड़ में विश्व स्तरीय प्रदर्शन किया। उनकी दृष्टिहीनता ने कभी उनकी गति में बाधा नहीं डाली। वे अनेक विश्व चैंपियनशिप और पैरालिंपिक प्रतियोगिताओं में पदक जीत चुकी हैं। उन्हें खेलों में दृढ़ संकल्प और साहस की मिसाल माना जाता है।
ऑस्कर पिस्टोरियस Oscar Pistorius- बिन पैरों के सर्वश्रेष्ठ धावक
दोनों पैरों के कटे होने के बावजूद पिस्टोरियस ने कृत्रिम ब्लेड पैरों के सहारे अपना नाम दुनिया के तेज धावकों में दर्ज कराया। उन्होंने 2004 और 2008 पैरालिंपिक में कई स्वर्ण पदक जीते। हालांकि बाद के वर्षों में उनके निजी जीवन में विवाद आए, लेकिन खेल इतिहास में वे तकनीकी नवाचार और दिव्यांगता पर विजय के प्रतीक माने जाते हैं।
भावना पटेल Bhavina Patel-पोलिओ भी हरा न पाया
पॉलियो के कारण चलने में कठिनाई होने के बावजूद भावना पटेल टेबल टेनिस की विश्व-प्रसिद्ध खिलाड़ी बनीं। उन्होंने लगातार अभ्यास और अनुभव से अपना खेल उत्कृष्ट बनाया। 2020 टोक्यो पैरालिंपिक में उन्होंने भारत के लिए ऐतिहासिक रजत पदक जीता और देशभर में नई प्रेरणा जगाई। उन्हें कई राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुए।
दिव्यांग नेता जिन्होंने समाज को दिशा दी
फ्रेंकलिन डी. रूज़वेल्ट (अमेरिका के राष्ट्रपति) Franklin D. Roosevelt
FDR इतिहास के सबसे प्रभावशाली विश्व नेताओं में से एक हैं। पोलियो के कारण वे चल नहीं सकते थे, लेकिन व्हीलचेयर पर रहकर उन्होंने अमेरिका को महामंदी और द्वितीय विश्वयुद्ध से पार कराया। वे चार बार राष्ट्रपति चुने गए। उनकी नीतियां आज भी आधुनिक राजनीतिक इतिहास का आधार मानी जाती हैं। वे दिव्यांग नेतृत्व का वैश्विक प्रतीक हैं।
निक वुजिसिक Nick Vujicic-हाथ-पैर नहीं, लाखों को दी प्रेरणा
निक वुजिसिक बिना हाथ और पैरों के जन्मे, लेकिन उनका जीवन संघर्ष और सकारात्मकता का उदाहरण है। उन्होंने जीवन का मूल्य समझते हुए लोगों को प्रेरित करना अपना मिशन बना लिया। आज वे दुनिया के सबसे प्रभावशाली मोटिवेशनल स्पीकरों में शामिल हैं। उनकी किताबें और व्याख्यान करोड़ों लोगों को जीतने का संदेश देते हैं।
डॉ. जय प्रकाश नारायण Dr. J. P. Narayan-बिन देखे बदली राजनीतिक दिशा
दृष्टिबाधित होने के बावजूद उन्होंने भारतीय सामाजिक परिवर्तन, सुशासन और राजनीतिक सुधारों की दिशा में बड़ा योगदान दिया। शिक्षा, पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों के क्षेत्र में उनका कार्य ऐतिहासिक है। उन्हें अनेक राष्ट्रीय सम्मान मिले और वे भारत में जन-जागरूकता अभियानों के सशक्त चेहरा बने।
विज्ञान, आविष्कार, तकनीक व शोध के दिव्यांग प्रतिभावान
स्टीफन हॉकिंग Stephen Hawking-क्रांतिकारी आविष्कारक
विश्व के महानतम भौतिक वैज्ञानिकों में शामिल स्टीफन हॉकिंग ALS नामक बीमारी से ग्रसित थे, जिसने धीरे-धीरे उनके शरीर को पूरी तरह निष्क्रिय कर दिया। वे बोलने और चलने में अक्षम हो गए, लेकिन उनका मस्तिष्क अद्भुत रूप से सक्रिय रहा।उन्होंने Black Hole Theory, कॉस्मोलॉजी, यूनिवर्स के सिद्धांतों पर क्रांतिकारी अवधारणाएं विकसित कीं। “A Brief History Of Time” जैसी पुस्तकें उनकी प्रतिभा का प्रमाण हैं। विज्ञान में उनके योगदान अमर हैं।
टॉम एडिसन Thomas Edison-कम सुनना बना वरदान
टॉम एडिसन कम सुन पाते थे, लेकिन उनकी जिज्ञासा और अविष्कार क्षमता दुनिया के लिए वरदान बनी। गरीब परिवार से आने के बावजूद वे बचपन से ही मशीनों के प्रति अत्यधिक उत्सुक थे।उन्होंने बल्ब, ग्रामोफोन, मूवी कैमरा सहित हज़ारों आविष्कार किए। उनका श्रवण दोष उनके प्रयोगों का आधार बना क्योंकि वे कहते थे, “कम सुनने से मैं ध्यान भटकने से बच गया।” वे विज्ञान में दृढ़ता का प्रतीक हैं।
बारबरा मैकक्लिंटॉक Barbara McClintock- सुन नहीं पाई नोबेल पाने की घोषणा
जेनेटिक ट्रांसपोज़न की खोज करने वाली बारबरा मैकक्लिंटॉक सुनने में कठिनाई से जूझती थीं, लेकिन इसका असर उनके शोध पर नहीं पड़ा। वे घंटों प्रयोगशाला में काम करके अनोखी खोजें करती थीं। उनके शोध ने जीवविज्ञान की दुनिया बदल दी और उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। वे विज्ञान में महिलाओं और दिव्यांगों के लिए प्रेरक मिसाल बनीं।
दिव्यांग जिनके नाम हैं अनोखे विश्व रिकॉर्ड !
एरॉन फोथरिंघम Eron Fothringham-व्हीलचेयर को बनाया हथियार
एरॉन ने व्हीलचेयर को खेल की अत्याधुनिक सीमा तक पहुंचाया। वे व्हीलचेयर पर BMX स्टंट करते हैं, जिनमें फ्लिप, रोटेशन और बड़े जंप शामिल हैं। उन्होंने कई विश्व रिकॉर्ड बनाए और “व्हीलचेयर स्केट स्पोर्ट” के अग्रदूत माने जाते हैं। उनका आत्मविश्वास युवाओं के लिए प्रेरणा है।
जेसिका कॉक्स Jessica Cox- बिना हाथों के चीरा आसमां का सीना
जेसिका बिना हाथों के पैदा हुईं, लेकिन उन्होंने पैरों से लिखना, कार चलाना और उपकरण संचालित करना सीख लिया। उनका आत्मबल अद्भुत है। वे दुनिया की पहली बिना हाथों वाली लाइसेंस प्राप्त पायलट बनीं। यह उपलब्धि उन्हें वैश्विक प्रेरक स्तंभ बनाती है।
जेरोम गुट्स Jerom Gutts- बिना देखे फतह की पर्वतों की ऊंचाइयां
अपनी दृष्टि खोने के बावजूद जेरोम ने पर्वतारोहण में असंभव को संभव किया। उन्होंने अल्पस पर्वत श्रृंखला से लेकर विश्व के कई शिखरों को फतह किया। उनकी यात्राएं अनगिनत दिव्यांग पर्वतारोहियों के लिए प्रेरक मार्ग बनीं। वे बताते हैं कि “दृढ़ इच्छाशक्ति ऊँचाइयों से भी ऊंची होती है।”
भारतेंदु विजय Bhartendu Vijay- सुन नहीं सकते, आवाज बनी पहचान
भारतेंदु विजय बचपन से श्रवण बाधित हैं, लेकिन उन्होंने अपनी इस चुनौती को कभी कमजोरी नहीं बनने दिया। वे होंठ पढ़ने, संकेत भाषा और अभिव्यक्ति की शक्ति के सहारे संवाद की कला में पारंगत हो गए। धीरे-धीरे उन्होंने आत्मविकास, सकारात्मक सोच और दिव्यांगता पर अपनी अनोखी समझ विकसित की। उनकी बातों में जीवन के वास्तविक अनुभवों की गहराई होती है, जिसके कारण वे भारतीय संकेत-भाषा आधारित प्रेरक वक्ताओं की अग्रणी आवाज़ बने।
उन्होंने कई पुस्तकों और व्याख्यान कार्यक्रमों के माध्यम से भारत और विदेशों में हजारों युवाओं को प्रेरित किया है। वे दिव्यांग अधिकारों, शिक्षा के अधिकार और सामाजिक समावेश पर सक्रिय रूप से काम करते हैं। उनके संघर्ष और उपलब्धियों ने संकेत भाषा की गरिमा बढ़ाई और यह सिद्ध किया कि भाषा की बाधाएं मन की अभिव्यक्ति को सीमित नहीं कर सकतीं। भारतेंदु विजय आज भारत के गौरव और दिव्यांग समुदाय के सशक्त प्रतीक माने जाते हैं।
श्रीकांत बोला Bollant Industries के संस्थापक Srikant Bolla
श्रीकांत बोला का जन्म दृष्टिबाधित अवस्था में आंध्र प्रदेश के एक साधारण किसान परिवार में हुआ। बचपन से ही उनके सामने सामाजिक पूर्वाग्रहों और सीमाओं की लंबी श्रृंखला थी। विद्यालय में उन्हें विज्ञान पढ़ने से रोका गया, कॉलेज प्रवेश में बाधाएं आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी दृढ़ता के बल पर वे MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) तक पहुंचे जो किसी नेत्रहीन भारतीय छात्र के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि थी। शिक्षा के दौरान उन्होंने महसूस किया कि दिव्यांग युवाओं को सिर्फ सहानुभूति नहीं, अवसर और मंच चाहिए।
भारत लौटकर उन्होंने Bollant Industries की स्थापना की, जो पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद बनाती है और बड़ी संख्या में दिव्यांग युवाओं को रोजगार देती है। उनकी कंपनी का उद्देश्य यह साबित करना है कि दिव्यांग युवा सिर्फ सक्षम ही नहीं, बल्कि उद्योग जगत में नेतृत्व भी कर सकते हैं। श्रीकांत बोला को कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं, और वे आधुनिक भारत के सबसे प्रेरक उद्योगपतियों में गिने जाते हैं। उनकी कहानी आज के युवाओं को यह सिखाती है कि असली दृष्टि आंखों में नहीं, सपनों में होती है।
दिव्यांगता के पार: वो जीवन जिन्होंने संभावनाओं को नया अर्थ दिया
दिव्यांगता कमजोरी नहीं, हटकर काबिलियत होती है। दिव्यांगता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो व्यक्ति को भीतर से पुनः गढ़ती है। इन सभी महान व्यक्तियों ने सिद्ध किया है कि मनुष्य की सीमाएं शरीर में नहीं रहतीं, सीमाएं केवल मन में जन्म लेती हैं।
आज वे दुनिया के लिए जीवित प्रेरणा हैं- कला में फ्रिडा काहलो, साहित्य में हेलेन केलर, विज्ञान में हॉकिंग, खेलों में दीपा मलिक, और नेतृत्व में FDR जैसे व्यक्तित्व मानव-गौरव के अमर प्रतीक बन चुके हैं।

