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October 29, 2025

इंडोनेशिया सुलावेसी की तोराजन जनजाति- जहां मृत्यु एक उत्सव है! मृतक भी लौटते हैं घर!

The CSR Journal Magazine
सुलावेसी (इंडोनेशिया)- आधुनिकता और विज्ञान के युग में भी इंडोनेशिया के सुदूर पहाड़ी इलाके में बसी एक ऐसी जनजाति ऐसी है, जो मृत्यु को अंत नहीं, बल्कि जीवन का दूसरा रूप मानती है। इस जनजाति का नाम है, तोराजन (Torajan Tribe)। दक्षिण सुलावेसी के टाना तोराजा (Tana Toraja) क्षेत्र में रहने वाले इन लोगों की मृत्यु संबंधी परंपराएं पूरी दुनिया को हैरान कर देती हैं।

Torajan जनजाति के घर में रहते हैं मृतक

अलग-अलग देशों की अपनी अलग-अलग मान्यताएं, परंपराएं और प्रथाएं होती हैं। उनका रहन-सहन और जीवन जीने का तरीका भी बाकी देशों से काफी अलग होता है। कई देशों में तो अंतिम संस्कार के नियमों में भी भिन्नताएं देखी जाती हैं। आमतौर पर जब भी किसी व्यक्ति की मौत होती है तो या तो उसे अग्नि के हवाले किया जाता है या दफनाया जाता है। लेकिन इंडोनेशिया की तोराजन जनजाति के लोग जब किसी प्रियजन को खो देते हैं, तो उन्हें दफनाने या जलाने के बजाय घर में ही सहेजकर रखते हैं। मृतक के शरीर को “एम्बामिंग” (Embalming) प्रक्रिया से संरक्षित किया जाता है, जिससे वह सड़-गल न सके। परिवार वाले उस व्यक्ति को ‘मरा हुआ’ नहीं बल्कि ‘बीमार’ या ‘सोया हुआ’ मानते हैं। वे शव के पास रोज़ खाना रखते हैं, बात करते हैं, और उसे परिवार का हिस्सा बनाए रखते हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार, जब तक अंतिम संस्कार नहीं होता, मृत आत्मा घर में रहती है। इसलिए परिवार उसे सम्मानपूर्वक अपने बीच रखता है।

मृत्यु उत्सव- एक सामाजिक पर्व

कई महीनों या वर्षों बाद जब परिवार आर्थिक और मानसिक रूप से तैयार होता है, तो मृतक का भव्य अंतिम संस्कार समारोह (Funeral Ceremony) किया जाता है। इस कार्यक्रम में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। पारंपरिक नृत्य, गायन और भैंसों की बलि दी जाती है। समारोह कई दिनों तक चलता है और इसे एक उत्सव की तरह मनाया जाता है, न कि शोक की तरह। तोराजन मानते हैं कि मृत्यु आत्मा की यात्रा की शुरुआत है, इसलिए उसे खुशी और सम्मान के साथ विदा किया जाना चाहिए।

“मा’नेने”- मृतकों से पुनर्मिलन का त्योहार

तोराजन संस्कृति की सबसे अनोखी रस्म है “मा’नेने” (Ma’nene)। इस रस्म में हर कुछ वर्षों बाद परिवार अपने पूर्वजों की कब्रें खोलते हैं, शवों को साफ करते हैं, उन्हें नए कपड़े पहनाते हैं और परिवार के साथ “मिलन” करते हैं। इस दौरान शवों की तस्वीरें ली जाती हैं और परिवारजन उनके साथ समय बिताते हैं। यह उनके लिए पूर्वजों के प्रति सम्मान और जुड़ाव का प्रतीक होता है।

टोंगकोनन- नाव जैसी छत वाले घर

तोराजन लोगों के पारंपरिक घरों को टोंगकोनन (Tongkonan) कहा जाता है। ये लकड़ी से बने होते हैं और इनकी छतें नाव की तरह मुड़ी हुई होती हैं। यह घर परिवार की सामाजिक स्थिति और इतिहास का प्रतीक माने जाते हैं। हर टोंगकोनन घर के आगे भैंस के सींग लगाए जाते हैं, जो समृद्धि का प्रतीक हैं।

तोराजन जनजाति की धार्मिक मान्यताएं

भले ही अब अधिकतर तोराजन लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं, लेकिन उनकी आत्मा में आज भी पूर्वजों की पूजा (Aluk To Dolo) की परंपरा जीवित है। वे मानते हैं कि आत्माएं उनके जीवन का हिस्सा हैं और मृत्यु के बाद भी परिवार के साथ जुड़ी रहती हैं। अलुक तो डोलो’ (Aluk To Dolo) तोराजन जनजाति की पारंपरिक और सबसे प्राचीन धार्मिक मान्यता है, जो दक्षिण सुलावेसी (South Sulawesi), इंडोनेशिया में प्रचलित है। तोराजन भाषा में “अलुक तो डोलो” का अर्थ होता है “पूर्वजों का मार्ग” या “पुरखों का नियम” (The Way of the Ancestors)। यह केवल एक धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने की संहिता (Code Of Life) है, जो बताती है कि मनुष्य, प्रकृति और आत्मा के बीच संबंध कैसे संतुलित होना चाहिए।

मुख्य दर्शन और मान्यता

अलुक तो डोलो के अनुसार, जीवन, मृत्यु और आत्मा एक निरंतर चक्र का हिस्सा हैं। इस धर्म में माना जाता है कि मनुष्य, प्रकृति और आत्मा तीनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। मृत्यु अंत नहीं, बल्कि आत्मा की एक नई यात्रा की शुरुआत है। जीवन का उद्देश्य है पूर्वजों का सम्मान, प्रकृति का संतुलन बनाए रखना, और आत्मा को शुद्ध रखना।

देवता और ब्रह्मांड की रचना

अलुक तो डोलो में सर्वोच्च देवता हैं “Puang Matua” (पुआंग मतुआ), जो सृष्टि के रचयिता और सर्वोच्च शक्ति माने जाते हैं। माना जाता है कि ब्रह्मांड का निर्माण तीन स्तरों में हुआ। ऊपरी संसार (Langi’)- देवताओं और आत्माओं का निवास। मध्य संसार (Lino)- मनुष्यों का संसार। नीचे का संसार (Tangngana Langi’) – मृत्यु और आत्माओं की यात्रा का स्थान। हर स्तर के बीच संतुलन बनाए रखना ही अलुक तो डोलो का मूल सिद्धांत है।

मृत्यु और आत्मा का सिद्धांत

अलुक तो डोलो के अनुसार, मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा अपने पूर्वजों की आत्माओं से मिलने के लिए जाती है। लेकिन आत्मा तब तक शांति नहीं पाती जब तक परिवार उसका सम्मानजनक अंतिम संस्कार (Rambu Solo) न कर दे। इसी कारण तोराजन लोग अपने मृतकों को वर्षों तक घर में रखते हैं और बाद में बड़े उत्सव के साथ विदा करते हैं। मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा दो भागों में होती है-
Pa’kandoran – आत्मा घर छोड़कर परलोक की यात्रा शुरू करती है।
Puya (पुया) – आत्मा पूर्वजों की भूमि में पहुंचती है और वहां शांति पाती है।

अनुष्ठान और पर्व

अलुक तो डोलो के दो प्रमुख धार्मिक उत्सव हैं-Rambu Solo’- मृत्यु और अंतिम संस्कार से जुड़ा पर्व। Rambu Tuka’- जीवन, विवाह और समृद्धि से जुड़ा उत्सव। इन दोनों को संतुलित रूप में मनाना जरूरी है, क्योंकि एक मृत्यु का सम्मान है तो दूसरा जीवन का उत्सव। अलुक तो डोलो में समाज को तीन वर्गों में बांटा गया है-
  1. राजघराने या श्रेष्ठ वर्ग (Nobles)
  2. सामान्य लोग (Commoners)
  3. दास या सेवक (Slaves)
हर वर्ग के लोगों के अनुष्ठान और अंतिम अलग-अलग देशों की अपनी अलग-अलग मान्यताएं, परंपराएं और प्रथाएं होती हैं। उनका रहन-सहन और जीवन जीने का तरीका भी बाकी देशों से काफी अलग होता है। उच्च वर्ग के लोगों के लिए अंतिम संस्कार सबसे भव्य और लंबा होता है।

भैंस का प्रतीकात्मक महत्व

अलुक तो डोलो में भैंस (Buffalo) पवित्र मानी जाती है। विश्वास है कि भैंस मृत आत्मा को स्वर्ग (Puya) तक पहुंचाने में मदद करती है। इसी कारण अंतिम संस्कार में भैंसों की बलि दी जाती है, जो आत्मा की यात्रा का प्रतीक है।

तोराजन का प्रकृति और कृषि से जुड़ाव

तोराजन के अलुक तो डोलो का धर्म कृषि आधारित जीवनशैली से गहराई से जुड़ा हुआ है। कृषि, मौसम, और फसल से जुड़े हर कार्य के पहले विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि देवता और आत्माएं मौसम और उपज को प्रभावित करती हैं।

आधुनिक दौर में तोराजन की स्थिति

इंडोनेशिया में अब अधिकांश तोराजन लोग ईसाई (Christian) बन चुके हैं, लेकिन “अलुक तो डोलो” को आज भी एक सांस्कृतिक विरासत और जीवन-दर्शन के रूप में सम्मान दिया जाता है। सरकार ने इसे “Agama Aluk To Dolo” (एक मान्यता प्राप्त स्थानीय धर्म) के रूप में स्वीकार किया है। कई परिवार आज भी मृत्यु अनुष्ठान, मा’नेने (Ma’nene) और टोंगकोनन घर के निर्माण में इस धर्म की परंपराओं का पालन करते हैं। अलुक तो डोलो सिखाता है कि जीवन और मृत्यु विरोधी नहीं, बल्कि एक ही चक्र के दो छोर हैं। यह धर्म हमें बताता है कि पूर्वजों का सम्मान, प्रकृति का संतुलन और आत्मा की शुद्धता ही सच्चा धर्म है।

दुनिया भर के पर्यटकों का आकर्षण तोराजन का अलुक तो डोलो

आज टाना तोराजा इंडोनेशिया का एक प्रमुख संस्कृतिक पर्यटन स्थल बन चुका है। दुनिया भर से लोग यहां आते हैं। न केवल तोराजन के मृत्यु उत्सवों को देखने, बल्कि उनकी गहरी सांस्कृतिक जड़ों और जीवन-दर्शनको समझने के लिए। यह जनजाति सिखाती है कि मृत्यु भय नहीं, बल्कि आत्मा की अमर यात्रा का उत्सव है। तोराजन जनजाति आज भी हमें याद दिलाती है कि जीवन और मृत्यु के बीच की रेखा उतनी कठोर नहीं, जितनी हम समझते हैं। जहां दुनिया मृत्यु से डरती है, वहीं सुलावेसी के पहाड़ों में लोग अपने मृतकों से फिरमिलते हैं, मुस्कुराते हुए!
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