पाकिस्तान गए एक सिख जत्थे में शामिल होने वाली पंजाब की 52 वर्षीय तीर्थयात्री सरबजीत कौर के गायब होने के बाद एक नया मोड़ सामने आया है। रिपोर्टों के मुताबिक, उन्होंने पाकिस्तान में इस्लाम धर्म अपनायाऔर एक स्थानीय मुस्लिम व्यक्ति से निकाह (शादी) कर ली, जिसका एक उर्दू निकाहनामा भी सामने आया है।
पाकिस्तान में गायब हुई सरबजीत कौर
सरबजीत कौर अमनपुर (कपूरथला) की रहने वाली हैं और 4 नवंबर को लगभग 1,932 श्रद्धालुओं के जत्थे के साथ अटारी-वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुंचीं। जत्थे ने पाकिस्तान में लगभग दस दिन गुजारे और गुरुद्वारा ननकाना साहिब समेत अन्य पवित्र स्थानों का दर्शन किया। जब जत्था भारत लौटा, तो 1,922 यात्री वापस आए, लेकिन सरबजीत कौर उनमें शामिल नहीं थीं। उनके इमिग्रेशन रिकॉर्ड में न तो पाकिस्तान से निकलने का एंट्री दिखा और न भारत में पुनः प्रवेश का रिकॉर्ड, जिससे उनकी स्थिति और संदिग्ध हो गई।
धर्मयात्रा से “नूर हुसैन” तक- एक रहस्य, एक चिंता
भारत-पाकिस्तान के बीच धार्मिक यात्राएं केवल श्रद्धा का पुल नहीं, बल्कि भरोसे की इमारत भी हैं। गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर हर वर्ष हजारों श्रद्धालु पाकिस्तान के ऐतिहासिक गुरुद्वारों में माथा टेकने जाते हैं। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है, लेकिन कपूरथला की तीर्थयात्री सरबजीत कौर का मामला आज इस व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। एक साधारण तीर्थयात्री पाकिस्तान जाती है, फिर वापस नहीं आती। अचानक खबर मिलती है, उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है, नया नाम रख लिया है “नूर हुसैन”, और एक स्थानीय मुस्लिम व्यक्ति से निकाह कर लिया है। दस्तावेज़ भी सामने आ जाता है।
क्या यह प्रेम की कहानी है?
क्या यह “स्वैच्छिक धर्म परिवर्तन” है?
या यह मामला संगठित धर्मांतरण और मानव नियंत्रण से जुड़ा है?
इन सवालों के स्पष्ट उत्तर अभी तक किसी के पास नहीं हैं, लेकिन चिंता हर जगह है।
सुरक्षा और निगरानी की विफलता पर गंभीर सवाल
यदि 1932 श्रद्धालु पाकिस्तान गए और 1922 लौटे, तो बाकी 10 का हिसाब पहले दिन से क्यों नहीं पूछा गया?
इमिग्रेशन रिकॉर्ड में पासपोर्ट नंबर और नागरिकता का कॉलम खाली कैसे रह गया?
क्या दोनों देशों की एजेंसियाँ केवल “कागज़ों पर भरोसा” कर रही हैं?
यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, यह राष्ट्रीय सुरक्षा की चूक है।
धर्म परिवर्तन और निकाह- सच या सेट किया हुआ सच?
एक 52 वर्षीय महिला, जो तीन आपराधिक मामलों में नामज़द है, दो बेटों की मां है, अचानक विदेशी भूमि पर धर्म बदलती है और विवाह कर लेती है। क्या यह उसका व्यक्तिगत निर्णय था? या क्या यह “पाकिस्तान में लुभाकर, दबाव डालकर, भावनात्मक रूप से प्रभावित कर” कराया गया धर्म परिवर्तन है?यह प्रश्न सिर्फ सरबजीत कौर के लिए नहीं, उन सभी यात्राओं के लिए है जो ‘धर्म और सीमा’ के बीच होती हैं।
परिवार और राज्य की जिम्मेदारी
परिवार कहता है- वह भटक गई होगी।
पुलिस कहती है- वह संदिग्ध पृष्ठभूमि वाली महिला थी।
पाकिस्तान कहता है- उसने स्वेच्छा से निकाह किया।
भारत कहता है- हमें पूरी जांच चाहिए। इन बयानों को जोड़कर देखें, तो एक बात स्पष्ट है, कोई भी जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं ले रहा।
गंभीर और असुविधाजनक सत्य
सच्चाई यह है कि सीमापार धर्मांतरण कोई नई कहानी नहीं ! सच यह भी है कि धार्मिक यात्राएं उसी भावना से सुरक्षित नहीं रहीं, जिससे वे शुरू हुई थीं। और दुखद वास्तविकता यह है कि सत्य हमेशा कानूनी दस्तावेज़ों में नहीं होता, कई बार उन दस्तावेज़ों को बनाया जाता है।
अब क्या होना चाहिए?
हर तीर्थयात्री का डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम बने – GPS आधारित, पासपोर्ट लिंक्ड हो,
यात्रा आयोजकों को कानूनी जवाबदेही सौंपी जाए,
पाकिस्तान में भारतीय श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए औपचारिक सुरक्षा प्रोटोकॉल तैयार हो,
सभी सीमापार निकाह और धर्म परिवर्तन की घटनाएं संयुक्त जांच के दायरे में लाई जाएं,
धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति का वीडियो बयान भारत-पाक संयुक्त प्राधिकरण की निगरानी में दर्ज हो
आस्था-सुरक्षा का प्रतीक बन गया पूरा सवाल
सरबजीत कौर का मामला एक व्यक्ति का मामला नहीं- यह आस्था और सुरक्षा के संघर्ष का प्रतीक बन गया है। क्या वह मजबूरी में बदली? क्या वह प्रेम में बदली? क्या वह योजना का हिस्सा बनी? या क्या यह खबर ही आधी सच्ची है? जब तक जांच पूरी न हो, इस घटना का हर पक्ष अधूरा है। पर चिंताएं पूरी तरह वास्तविक हैं।
भारत और पाकिस्तान दोनों को यह समझना होगा कि तीर्थयात्री सिर्फ श्रद्धालु नहीं होते ! वे भरोसे के राजदूत होते हैं। यदि उनका संरक्षण नहीं हो सकता, तो धार्मिक कूटनीति केवल राजनीतिक भाषण बनकर रह जाएगी।पुल टूटते देर नहीं लगती, और भरोसे का पुल सबसे नाज़ुक होता है।
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