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April 24, 2025

पहलगाम हमले के बाद भारत ने तोड़ी Indus Water Treaty-जानिए क्या है सिंधु जल संधि 

 Pahalgam Attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ Indus Water Treaty को रोक दिया है, यानी अब इस संधि के मुताबिक भारत पाकिस्तान के साथ कोई जानकारी साझा नहीं करेगा और न ही इससे जुड़ी किसी बैठक में हिस्सा लेगा। नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) की बैठक में ये फैसला लिया गया। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को चरमपंथी हमला हुआ था। इस हमले में 27 लोगों की मौत हुई है और कई लोग घायल हुए हैं। Pahalgam Attack की इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।

भारत के पलटवार से घबराया पाकिस्तान

Indus Water Treaty: पाकिस्तान ने भारत सरकार के इस फ़ैसले पर एतराज जताया है। पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ़ (PTI) के नेता और पाकिस्तान के पूर्व सूचना और तकनीकी मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत भारत ऐसा नहीं कर सकता है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट कर कहा, “अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत भारत इंडियन बेसिन संधि (Indus Water Treaty) पर रोक नहीं लगा सकता। ऐसा करना समझौते से जुड़े क़ानून का घोर उल्लंघन होगा।” पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने X पर पोस्ट किया, “भारत सरकार की ओर से आज शाम जारी किए गए बयान का जवाब देने के लिए गुरुवार सुबह प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने नेशनल सिक्योरिटी कमेटी की मीटिंग बुलाई है।”
इस बीच भारत में बुधवार को प्रधानमंत्री आवास पर हुई बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल सहित कई शीर्ष अधिकारी मौजूद थे। कैबिनेट की बैठक के बाद विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बयान जारी किया। इस बयान में उन्होंने कहा कि भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि को तुरंत प्रभाव से स्थगित करने का फ़ैसला किया है। उन्होंने कहा कि ये फ़ैसला तब तक लागू रहेगा, जब तक पाकिस्तान विश्वसनीय ढंग से सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं कर देता।

क्या है Indus Water Treaty

Pahalgam Attack: ब्रिटिश राज के दौरान ही दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर बड़ी नहर का निर्माण करवाया गया था। उस इलाक़े को इसका इतना लाभ मिला कि बाद में वो दक्षिण एशिया का एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बन गया। भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के दौरान जब पंजाब को विभाजित किया गया तो इसका पूर्वी भाग भारत के पास और पश्चिमी भाग पाकिस्तान के पास गया। बंटवारे के दौरान ही सिंधु नदी घाटी और इसकी विशाल नहरों को भी विभाजित किया गया। लेकिन इससे होकर मिलने वाले पानी के लिए पाकिस्तान पूरी तरह भारत पर निर्भर था। पानी के बहाव को बनाए रखने के उद्देश्य से पूर्व और पश्चिम पंजाब के चीफ़ इंजीनियरों के बीच 20 दिसंबर 1947 को एक समझौता हुआ। इसके तहत बंटवारे से पहले तय किया गया पानी का निश्चित हिस्सा भारत को 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को देते रहना तय हुआ। 1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा, तो भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन पर हालात ख़राब हो गए। भारत के इस क़दम के कई कारण बताए गए, जिसमें एक था कि भारत कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था।
बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राज़ी हो गया। 1951 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल Devid Lilienthal को भारत बुलाया। Lilienthal पाकिस्तान भी गए और वापस अमेरिका लौटकर उन्होंने सिंधु नदी घाटी जल बंटवारे पर एक लेख लिखा। ये लेख विश्व बैंक प्रमुख और Lilienthal के दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा और उन्होंने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से इस बारे में संपर्क किया, और फिर दोनों पक्षों के बीच बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ। ये बैठकें क़रीब एक दशक तक चलीं और आख़िरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी घाटी संधि पर भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए।

क्या हैं Indus Water Treaty के प्रावधान

Indus Water Treaty: नदियों के सिंधु प्रणाली का पानी मुख्य रूप से तिब्बत, अफगानिस्तान, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के हिमालय के पहाड़ों में शुरू होता है। सिंधु का पानी गुजरात के कराची और कोरी क्रीक के अरब सागर में समाहित होने से पहले पंजाब, बालोचितान, काबुल, कंधार, कुनार, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, सिंध आदि राज्यों से होकर बहता है। जहां कभी इन नदियों के द्वारा सिंचित होने वाली भूमि की केवल एक संकीर्ण पट्टी थी, पिछली सदी के घटनाक्रमों ने नहरों और भंडारण सुविधाओं का एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया है जो 2009 तक अकेले पाकिस्तान में 4.7 लाख एकड़ (190,000 किमी) से अधिक पानी प्रदान करता है जो किसी एक नदी प्रणाली द्वारा सिंचित होने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है। Indus Water Treaty के मुताबिक, सिंधु, झेलम और चिनाब को पश्चिमी नदियां बताते हुए इनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया। जबकि रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां बताते हुए इनका पानी भारत के हिस्से आया। अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे, जिनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी, कि नदियों का आधार (Basin) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।
इस संधि में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बातचीत करने और साइट के मुआयना आदि का प्रावधान भी था। इसी संधि में सिंधु आयोग भी स्थापित किया गया। इस आयोग के तहत दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था। संधि में दोनों कमिश्नरों के बीच किसी भी विवादित मुद्दे पर बातचीत का प्रावधान है। इसमें यह नियम भी था कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को उस पर कोई आपत्ति है तो पहला देश उसका जवाब देगा। इसके लिए दोनों पक्षों की बैठकें होंगी। बैठकों में भी अगर कोई हल नहीं निकल पाया तो दोनों देशों की सरकारों को इसे मिलकर सुलझाना होगा। साथ ही ऐसे किसी भी विवादित मुद्दे पर तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या Court Of Arbitration में जाने का प्रावधान भी रखा गया है।

संधि के बावज़ूद दोनों देशों में पानी को लेकर तनाव

Indus WaterTreaty: 1960 में हुए सिंधु जल समझौते के बाद से भारत और पाकिस्तान में कश्मीर मुद्दे को लेकर तनाव बना हुआ है। हर प्रकार के असहमति और विवादों का निपटारा संधि के ढांचे के भीतर प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया गया है। इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के केवल 20 प्रतिशत पानी का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है। जिस समय यह संधि हुई थी, उस समय पाकिस्तान के साथ भारत का कोई भी युद्ध नही हुआ था और दोनों देशों के बीच परिस्थिति बिल्कुल सामान्य थी। पर 1965 से पाकिस्तान लगातार भारत के साथ हिंसा के विकल्प तलाशने लगा, जिसके परिणामस्वरूप 1965 में दोनों देशों में युद्ध भी हुआ और पाकिस्तान को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा। फिर 1971 में पाकिस्तान ने भारत के साथ फिर युद्ध छेड़ा, जिस में उस को अपना एक हिस्सा खोना पड़ा जो अब Bangla Desh के नाम से जाना जाता है। तब से अब तक पाकिस्तान आतंकवाद और सेना दोनों का इस्तेमाल कर रहा है भारत के विरुद्ध, जिस की वजह से किसी भी समय Indus Water Treaty खत्म होने का अंदेशा पहले से ही था। जिस प्रकार ये नदियां भारत का हिस्सा हैं, तो स्वभाविक रूप से भारत इस समझौते को तोड़ कर पूरे पानी का इस्तेमाल सिंचाई विद्युत बनाने में जल संचय करने में कर सकता है। वर्तमान परिस्थिति इतनी तनावपूर्ण है कि यह समझौता रद्द कर दिया गया है, क्योंकि जो परिस्थिति 1960 में थी, वो अब नही रही है। जम्मू-कश्मीर में 2007 में शुरू हुई किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना के तहत Run Of The River बांध का निर्माण किया गया है। पाकिस्तान इस आधार पर इस परियोजना का विरोध कर रहा है कि सिंधु जल समझौते के तहत भारत को नदी का पानी डायवर्ट करने की अनुमति नहीं है। दरअसल, यह बांध किशनगंगा नदी का पानी, झेलम नदी पर वने पॉवर प्लांट की ओर डायवर्ट करता है। इसका इस्तेमाल सिंचाई के साथ ही बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है। यह प्लांट करीब 330 मेगावाट बिजली पैदा करता है।

Indus Water Treaty इतनी महत्वपूर्ण क्यों है

Indus Water Treaty: छह दशकों से अधिक समय से सिंधु जल संधि (IWT) भारत और पाकिस्तान के बीच शांतिपूर्ण जल बंटवारे को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण रही है, यहां तक कि बढ़े हुए राजनीतिक और सैन्य तनाव के समय में भी। Indus Water Treaty एशिया में दो देशों के बीच एकमात्र सीमा पार जल-बंटवारे का समझौता है, जो क्षेत्रीय सहयोग का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। अनोखी बात यह है कि, यह संधि डाउनस्ट्रीम देश पाकिस्तान के पक्ष में है, जिससे उसे सिंधु नदी प्रणाली के लगभग 80 प्रतिशत पानी तक पहुंच मिलती है। यह आवंटन उल्लेखनीय रूप से सर्वोच्च है-अमेरिका के साथ 1944 की जल संधि के तहत मैक्सिको को मिलने वाले हिस्से से लगभग 90 गुना अधिक! भारत और पाकिस्तान के बीच पानी को लेकर विवादों को सुलझाने के लिए जिम्मेदार निकाय, स्थायी सिंधु आयोग ने 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान भी अपना कार्य जारी रखा, जिससे संधि के ढांचे के लचीलेपन का आकलन हुआ। Indus Water Treaty को लेकर भारत की प्रतिबद्धता इसी बात से ज़ाहिर होती है कि 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले और 2019 में पुलवामा हमले सहित कई आतंकी हमलों का सामना करने के बावजूद भारत ने संधि से खुद को नहीं हटाया है। इसने Vienna Convention on Diplomatic Relations (1961) का भी हवाला नहीं दिया है, जो अंतरराष्ट्रीय समझौतों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस संधि को अक्सर विश्व स्तर पर प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच जल सहयोग के लिए एक सफल मॉडल के रूप में उद्धृत किया जाता है, जो दर्शाता है कि कैसे संवाद और कानूनी ढांचे प्रभावी रूप से साझा प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कर सकते हैं।

क्या पानी को तरस जाएगा पाकिस्तान

Indus Water Treaty: विश्व बैंक की लंबी मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। इस समझौते के लागू होने से पहले 1अप्रैल 1948 को भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया था, जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ जमीन पानी को तरस गई थी। अब इस समझौते को पूरी तरह से रद्द करने के बाद भारत ने पाकिस्तान की कमर तोड़कर रख दी है। दरअसल, पाकिस्तान का पंजाब और सिंध प्रांत पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से चिनाब, झेलम और सिंधु जैसी नदियों के पानी पर निर्भर था, लेकिन अब पाकिस्तान को इन नदियों का पानी नहीं मिलेगा। यह पहला मौका है जब भारत ने सिंधु जल समझौते पर रोक लगाया है। मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ Indus Water Treaty को स्थगित करने का जो फैसला किया है वह पाकिस्तान की आर्थिक कमर तोड़ सकता है। दरअसल समझौता स्थगित होने का यह अर्थ नहीं है कि पाकिस्तान को तत्काल सिंधु नदी का पानी नहीं मिलेगा, बल्कि इसके तहत भारत पर से अब यह बाध्यता खत्म हो जाएगी कि वह पाकिस्तान को सिंधु के पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करे। भारत भविष्य में सिंधु नदी पर बांध बनाकर पानी रोकने के लिए स्वतंत्र होगा। ऐसा हुआ तो पाकिस्तान के लिए सही मायनों में संकट पैदा होगा। पाकिस्तान की करीब 80 प्रतिशत कृषि सिंचाई, सिंधु जल प्रणाली पर निर्भर है। सिंधु जल समझौते पर भारत के रोक लगाने से पाकिस्तान में जल संकट उत्पन्न होगा और इसका असर कृषि पर पड़ेगा। वहीं, सिंधु नदी से जुड़े कई Hydropower Projects पाकिस्तान में हैं। ऐसे में जल की कमी से इनका उत्पादन प्रभावित होगा और ऊर्जा संकट गहराएगा, जो पाकिस्तान में पहले से ही एक बड़ी समस्या है। वहीं, पाकिस्तान के पंजाब और सिंध क्षेत्रों में लाखों लोग इस नदी प्रणाली पर पीने के पानी के लिए निर्भर हैं, जो भारत के इस फैसले से प्रभावित होंगे। आम जनता प्रभावित होगी, तो इसका दबाव सरकार पर बनेगा।

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