app-store-logo
play-store-logo
November 28, 2025

QS रैंकिंग्स 2026 में 294 शिक्षा संस्थानों की रिकार्ड उपस्थिति के साथ भारत ने विश्व में स्थापित की दमदार छवि

The CSR Journal Magazine

 

 पिछले एक दशक में भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था ने जो परिवर्तन देखा है, वह अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। QS एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2026 में इस वर्ष भारत के 294 संस्थानों को स्थान मिला है, जबकि 2016 में इनकी संख्या मात्र 24 थी। विशेषज्ञों के अनुसार यह वृद्धि न केवल संस्थानों की संख्या बताती है, बल्कि भारत की शिक्षा गुणवत्ता, शोध क्षमता और वैश्विक भागीदारी में आई मजबूती को भी दर्शाती है।

भारत की उच्च शिक्षा को मिली वैश्विक पहचान

पिछले एक दशक में भारतीय उच्च शिक्षा ने अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है। QS एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2026 में भारत की 294 संस्थाएं शामिल हुई हैं जो 2016 के सिर्फ 24 संस्थानों से एक अद्भुत बढ़ोतरी है। इनमें से सात संस्थान एशिया के शीर्ष 100 में और बीस शीर्ष 200 में जगह बनाने में सफल रहे हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली 59वें स्थान पर रहते हुए लगातार पांचवे वर्ष भारत का शीर्ष संस्थान बना हुआ है। इसके साथ ही भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बेंगलुरु, IIT मद्रास, IIT बॉम्बे, IIT कानपुर, IIT खड़गपुर और दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी शीर्ष 100 में जगह बनाई है। वैश्विक मंच पर भी भारत ने एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है। QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2026 में भारत के 54 उच्च शिक्षा संस्थानों ने प्रवेश किया है, जो अब तक का सबसे बड़ा अंक है।

IIT दिल्ली लगातार 5वीं बार Top 100 में शामिल

इस बार सात भारतीय संस्थान एशिया के शीर्ष 100 में शामिल हुए हैं। इनमें IIT दिल्ली, IISc बेंगलुरु, IIT मद्रास, IIT बॉम्बे, IIT कानपुर, IIT खड़गपुर और दिल्ली विश्वविद्यालय प्रमुख हैं। लगातार पांचवे वर्ष IIT दिल्ली 59वें स्थान पर रहते हुए भारत का शीर्ष संस्थान बना हुआ है। वैश्विक स्तर पर भी भारत के लिए यह वर्ष रिकॉर्ड रहा। QS World University Rankings 2026 में 54 भारतीय विश्वविद्यालयों को जगह मिली है जो अब तक की सर्वाधिक संख्या है। IIT दिल्ली ने 123वीं रैंक हासिल कर भारत का नेतृत्व किया है। शिक्षा विशेषज्ञ इसे “गुणवत्ता सुधार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा” का संकेत मानते हैं।

पीएम मोदी- ‘भारत की वैश्विक उपलब्धि’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन उपलब्धियों पर X पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे “रिकॉर्ड बढ़ोतरी” बताया और कहा कि यह सरकार की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, शोध और नवाचार को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता का परिणाम है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह प्रगति भारत की बढ़ती वैश्विक अकादमिक उपस्थिति को दर्शाती है। सरकार उच्च शिक्षा को राष्ट्रीय विकास रणनीति का केंद्रीय हिस्सा मान रही है। NEP 2020, HEFA फंडिंग, GIAN, SPARC जैसे कार्यक्रम और राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन (NRF) की योजना- इन सभी पहलों ने मिलकर शिक्षा सुधार की गति बढ़ाई है।

भारत की उच्च शिक्षा का बदलता चेहरा

एक दशक में 24 से 294- यह उछाल महत्वपूर्ण है। 2016 में QS Asia University Rankings में भारत के केवल 24 संस्थान थे। 2026 में यह संख्या 294 पहुंच गई। यानी 12 गुना से भी अधिक वृद्धि। इस बढ़त के कई कारण हैं-
उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या और विविधता में वृद्धि– पिछले दस वर्षों में देश में IITs, IIITs, IIMs, नए सेंट्रल और राज्य विश्वविद्यालयों तथा निजी विश्वविद्यालयों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। नतीजतन, अधिक संस्थानों ने खुद को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार तैयार किया।
शोध (Research Output) में उल्लेखनीय बढ़ोतरी– उच्च गुणवत्ता वाले शोधपत्रों, पेटेंट, लैब सुविधाओं और अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशनों की संख्या में बड़ा इजाफ़ा हुआ है।
ग्लोबल सहयोग और MoUs– भारत के विश्वविद्यालयों ने विदेशों के संस्थानों से रिकॉर्ड स्तर पर सहयोग बढ़ाया, जैसे छात्र विनिमय कार्यक्रम, संयुक्त शोध परियोजनाएं और फैकल्टी एक्सचेंज।
डिजिटल शिक्षा और नई टेक्नोलॉजी का प्रभा– NEP 2020 के बाद ऑनलाइन लर्निंग, वर्चुअल लैब्स, AI–आधारित शिक्षण और डिजिटल लाइब्रेरीज़ की पहुंच व्यापक हुई, जिससे गुणवत्ता में सुधार आया।

शीर्ष 100 में 7 भारतीय संस्थान- क्यों महत्वपूर्ण?

IIT दिल्ली, IISc और अन्य छह संस्थानों का एशिया के शीर्ष 100 में आना यह दर्शाता है कि भारत केवल संख्या नहीं बढ़ा रहा, बल्कि गुणवत्ता में भी सुधार कर रहा है। आमतौर पर शीर्ष 100 में पहुंचने के लिए एक संस्थान को उच्च स्तर का शोध, मजबूत फैकल्टी, उद्योग–शिक्षा सहयोग, अंतरराष्ट्रीय छात्र व शिक्षकों की भागीदारी, अच्छी प्रतिष्ठा (Academic Reputation) की ज़रूरत होती है। इन मानकों पर भारतीय संस्थानों का प्रदर्शन बेहतर हुआ है।

3. वैश्विक उपलब्धि: 54 भारतीय संस्थानों का वर्ल्ड रैंकिंग में प्रवेश

पहली बार QS World University Rankings 2026 में 54 भारतीय संस्थानों ने जगह पाई है। यह दर्शाता है कि भारत अब केवल एशिया में ही नहीं, बल्कि वैश्विक शिक्षा क्षेत्र में भी उभर रहा है। इसका सकारात्मक प्रभाव देश की शिक्षा प्रणाली पर पड़ेगा। भारत में पढ़ाई करने के लिए अधिक विदेशी छात्र आएंगे। भारतीय डिग्रियों की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता बढ़ेगी। वैश्विक कंपनियों के साथ शोध और नवाचार में बड़ा सहयोग होगा। भारत का “शिक्षा बाज़ार” (Education Market) अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत होगा।

4. IIT दिल्ली- भारत का निरंतर नंबर 1 संस्थान

IIT दिल्ली का लगातार पांच वर्षों से भारत का शीर्ष संस्थान बने रहना दर्शाता है कि इसकी शोध गुणवत्ता उत्कृष्ट है, उद्योगों के साथ साझेदारी मजबूत है, स्टार्टअप इकोसिस्टम ज़बरदस्त गति से बढ़ रहा है और अंतरराष्ट्रीय छात्रों और फैकल्टी की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। 123वें स्थान पर इसकी वैश्विक रैंकिंग भारत के लिए भी एक प्रतीकात्मक उपलब्धि है।

क्या यह सब केवल रैंकिंग का खेल है?

नहीं, अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग्स सिर्फ़ प्रतिष्ठा नहीं देतीं। वे कई व्यावहारिक बदलाव लाती हैं-
अधिक फंडिंग और शोध अनुदान (Research Grants)– बेहतर रैंक मिलने पर भारतीय विश्वविद्यालयों को सरकार, उद्योग और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से अधिक धन मिलता है।
बेहतर फैकल्टी की नियुक्ति– उच्च रैंकिंग वाले संस्थान दुनिया भर से श्रेष्ठ प्रोफेसरों को आकर्षित कर पाते हैं।
छात्रों को सीधे फायदा– ग्लोबल एक्सपोज़र, बेहतर प्लेसमेंट, अंतरराष्ट्रीय छात्र विनिमय और उच्च गुणवत्ता की शिक्षा का सीधा फायदा छात्रों को मिलता है।
भारत की वैश्विक साख– जब भारतीय संस्थान विश्व रैंकिंग में ऊपर आते हैं, तो यह भारत की “शिक्षा शक्ति” (Education Power) को नई पहचान देता है। भारतीय डिग्री को वैश्विक मान्यता प्राप्त करने में सहायक होता है।

वैश्विक मानकों पर खड़ी उतरती भारतीय शिक्षा प्रणाली

शिक्षाविदों का मानना है कि बेहतर रैंकिंग्स से भारतीय विश्वविद्यालयों की अंतरराष्ट्रीय साख बढ़ती है, जिससे विदेशी छात्रों की संख्या, वैश्विक सहयोग, संयुक्त शोध परियोजनाएं और औद्योगिक साझेदारियां मजबूत होती हैं। छात्रों के लिए यह उपलब्धि गर्व का विषय है, क्योंकि इससे भारतीय डिग्री की वैश्विक मान्यता में वृद्धि होती है।
हालांकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि भारत को अभी कई चुनौतियों से गुजरना है- जैसे शोध में निरंतरता, ग्रामीण संस्थानों की प्रगति, फैकल्टी की कमी और उद्योग–शिक्षा सहयोग का विस्तार। इसके बावजूद मौजूदा रुझान इस बात का संकेत है कि देश की उच्च शिक्षा प्रणाली तेज गति से वैश्विक मानकों की ओर बढ़ रही है।

छात्रों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं की वर्षों की साधना

निश्चित रूप से, ऐसी मान्यता का मूल्य होता है- अंतरराष्ट्रीय सहयोग, छात्रों की गतिशीलता, शोध साझेदारियां और संस्थागत प्रतिस्पर्धा कई बार रैंकिंग पर निर्भर करती है। छात्रों के लिए, अपने संस्थानों को इन सीढ़ियों पर चढ़ते देखना वर्षों की मेहनत का सही सम्मान जैसा महसूस होता है। एक ऐसे देश में, जहां उच्च शिक्षा अक्सर अन्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के पीछे छूट जाती है, यह उर्ध्वगामी रुझान गति भी देता है और एक तरह का गर्व भी।
भारतीय विश्वविद्यालयों की यह सफलता उन छात्रों, शोधकर्ताओं और शिक्षकों की वर्षों की मेहनत का परिणाम मानी जा रही है, जिन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद गुणवत्तापूर्ण कार्य किया। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यही रफ्तार बनी रही तो आने वाले वर्षों में भारत का स्थान वैश्विक शिक्षा मानचित्र पर और मजबूत होगा।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!

Latest News

Popular Videos