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July 16, 2025

बिहार में नागपंचमी पर एक ऐसा मेला लगता है, जिसे देखकर सामान्य लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएं।

The CSR Journal Magazine
बिहार के समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर प्रखंड के सिंघिया घाट में नागपंचमी के अवसर पर सांपों का अनोखा और अद्भुत मेला लगता है, जो दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। नागपंचमी के अवसर पर बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी लोग सांपों के साथ खेलते हुए नजर आते हैं, जो उनके गले और शरीर में लिपटे रहते हैं। यह मेला अपनी विशेषता के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध है और लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। मेले की शुरुआत सिंघिया बाजार स्थित मां भगवती मंदिर से पूजा-अर्चना के साथ होती है। इसके बाद लोग सिंघिया घाट पर सांपों के साथ जुटते हैं।

सांपो के मेले को देखने दूसरे अन्य राज्यों से पहुंचते लोग

समस्तीपुर से करीब 23 किलोमीटर दूर सिंधिया घाट पर नागपंचमी के दिन ये अनोखा मेला लगता है। इस मेले को देखने के लिए दूसरे राज्यों से काफी संख्या में लोग पहुंचते है। ऐसी मान्यताएं है कि इस मेले में मांगी गई मुरादें पूरी होती है। विगत तीन सौ वर्षों से परंपरागत तरीके से बिहार के इस जिले में सांपों के मेले का आयोजन होता आ रहा है।

सांपों को मुंह में पकड़कर करतब दिखाते हैं लोग

नागपंचमी के अवसर पर भगत राम कुमार महतो सहित अन्य भक्त माता विषहरी का नाम लेकर विषैले सांपों को मुंह में पकड़कर अद्भुत करतब दिखाते हैं। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में लोग हाथ में सांप लिए बूढ़ी गंडक नदी के सिंघिया घाट पुल पर पहुंचते हैं और नदी में प्रवेश करने के बाद माता का नाम लेते हुए दर्जनों सांप निकालते हैं. भक्त विषहरी की पूजा करते हैं और उनके नाम का जयकारा लगाते हैं। पूजा के बाद सांपों को जंगल में छोड़ दिया जाता है।

मिथिला का यह प्रसिद्ध मेला

ग्रामीणों ने बताया कि यह मेला मिथिला का प्रसिद्ध मेला है. यहां नाग देवता की पूजा सैकड़ों साल से चली आ रही है. यह परंपरा विभूतिपुर में आज भी जीवंत है. यहां मूलत: गहवरों में बिषहरी की पूजा होती है. महिलाएं अपने वंश वृद्धि की कामना नाग देवता से करती है. मन्नत पूरी होने पर नाग पंचमी के दिन गहवर में झाप और प्रसाद चढ़ाती है।

यहां पूजा करने के लिए समस्तीपुर जिले के अलावा खगड़िया, सहरसा, बेगूसराय और मुजफ्फरपुर जिले के भी लोग भरी संख्या में आते हैं. यहां की मान्यता के अनुसार, विषहरी माता सभी की इच्छाएं पूरी करती हैं।

नागपंचमी के दिन किसी को नहीं काटता विषधर सांप कोबरा और अन्य

ऐसी मान्यता है कि बरसों पहले ऋषि-मुनि कुश का सांप बनाकर पूजा-अर्चना करते थे। लेकिन अब लोग असली सांप पकड़कर पूजा करते हैं। वहीं स्थानीय लोगों का दावा है कि बरसों से चले आ रहे इस मेले में आज तक किसी को भी सांप ने नहीं काटा। मृदंग बजाते हुए पुजारी भजन गाते हैं। लोग गले में और हाथों में सांपों को लेकर झूमते रहते हैं। महीनों पहले सांपों के पकड़ने का जो सिलसिला शुरू होता है, वो नागपंचमी तक चलता है। सांपों को पकड़कर टोकरी में रखा जाता है। हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने के बाद सांपों का करतब देखते हैं।

 

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