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May 21, 2025

हुसैनीवाला: भारत का वो गांव, जिसके लिए दोबारा बंटवारे से गुज़रा मुल्क 

Hussainiwala: देश की आजादी के साथ अंग्रेज मुल्क छोड़कर तो चले गए लेकिन इसे दो हिस्सों में बांटकर जिंदगी भर का जख्म दे गए। कभी न भूलने वाले भारत विभाजन की रेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की थी। 18 जुलाई 1947 को इस बंटवारे को अंतिम रूप दिया गया। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान, और ठीक एक दिन बाद 15 अगस्त को भारत आजाद हो गया। और इस तरह रैडक्लिफ ने ‘सोने की चिड़िया’ के टुकड़े कर भारतीय विरासत को छिन्न-भिन्न कर दिया।

Hussainiwala के लिए हुआ दोबारा बंटवारा

Hussainiwala: बंटवारे के बाद एक ही देश के दो बॉर्डर बने और सीमाओं के दोनों ओर अपने पराये हो गए। सरहद के एक तरफ वही पुराना भारत,  जो सदियों से बाहें फैलाए ‘अतिथि देवो भव’ कहता आया और दूसरी तरफ नया नवेला पाकिस्तान। बंटवारा यहीं नहीं थमा, 1947 के ठीक 14 साल बाद भारत-पाकिस्तान के बीच एक ओर बंटवारा हुआ। लेकिन इस बार बंटवारे को रैडक्लिफ ने नहीं, बल्कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने किया। इसकी वजह बना एक गांव, जो मुस्लिम सूफी संत के नाम से था और 1947 के बंटवारे में पाकिस्तान के हिस्से चला गया था। यह गांव भारत लिए बड़ा अजीज था, क्योंकि यहां मौजूद थी देश के अमर वीर शहीदों की यादें!

Hussainiwala के लिए पाकिस्तान को दिए 12 गांव

Hussainiwala: नेहरु ने जिस गांव को पाकिस्तान से दोबारा बंटवारा कर वापस लिया, उसका नाम है ‘हुसैनीवाला’! इस एक गांव को लेने के लिए भारत ने पाकिस्तान को 12 गांव दिए। बंटवारे के बाद हुसैनीवाला गांव पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का हिस्सा था। वर्तमान में यह गांव भारत के पंजाब राज्य के फिरोजपुर जिले का हिस्सा है। यह गांव पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की सीमा को साझा करता है। सतलुज नदी के किनारे मौजूद Hussainiwala गांव के ठीक सामने पाकिस्तान के कसूर जिले का गांव गंदा सिंह वाला है। कभी यह गांव पाकिस्तान और भारत के बीच मुख्य सीमा क्रॉसिंग के रूप में काम करता था।

Hussainiwala में मौजूद हैं भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव की समाधि

Hussainiwala गांव गवाह है आजादी के नायकों की शहादत और अंग्रेजों की क्रूरता का। यहां देश पर अपने प्राण न्योछावर करने वाले आजादी के नायक भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव की समाधि हैं। देश के इन तीनो अमर शहीदों ने मुल्क की आजादी के लिए जंग का बिगुल फूंक दिया था। वतन पर मर मिटने का जज्बा लिए ये तीनों वीर कम उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ जंग में उतर गए थे। 1928 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। ब्रिटिश सिपाहियों ने इस जुर्म में तीनों को गिरफ्तार कर लिया था। उस वक्त भारत के वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इस मामले पर मुकदमे के लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल का गठन किया और तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी।

हुसैनीवाला में हुआ वीर शहीदों का अंतिम संस्कार

Hussainiwala: 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। लोगों में तीनों वीर जवानों के प्रति बड़ा लगाव था, ऐसे में अंग्रेजों को विद्रोह का डर सताने लगा। किसी को इसकी खबर न लगे इसके लिए ब्रिटिश सैनिक गुप्त तरीके से तीनों के शवों को हुसैनीवाला गांव में लाकर अंतिम संस्कार करने लगे। जब गांव के लोगों को इसकी भनक लगी तो वे श्मशान घाट पर इकट्ठा होने लगे। लोगों की आक्रोशित भीड़ को बढ़ते देख अंग्रेज़ सिपाही शवों को अधजली हालत में छोड़कर फरार हो गए। बाद में ग्रामीणों ने शवों का अंतिम संस्कार किया और तीनों वीर सपूतों की समाधि बनाई।

बंटवारे में पाकिस्तान के हिस्से में पहुंचा Hussainiwala

1947 के बंटवारे में Hussainiwala पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। आजादी के कुछ सालों बाद शहीदों के परिजनों और लोगों ने भारत सरकार से इसे वापस लेने की मांग की। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को चिट्ठियां भी लिखीं। साल 1961 में पंडित नेहरु ने पाकिस्तान सरकार से हुसैनीवाला गांव वापस देने की मांग की और इसके बदले में फजिल्का के करीब बॉर्डर से सटे 12 गांव देने की पेशकश की। इस डील पर पाकिस्तान राजी हो गया और 12 गांव के बदले पाकिस्तान ने हुसैनीवाला गांव भारत को दे दिया।

शहीदों की चिताओं पर लगते हैं हर बरस मेले

पंजाब के फिरोजपुर से मात्र 10 किमी दूर एक स्थान है Hussainiwala। यहां भारत-पाकिस्तान की सीमा भी है और यहीं से सतलुज नदी भारत से पाकिस्तान में चली जाती है। साल में दो बार यहां बड़ा मेला लगता है। 23 मार्च यानी शहीद दिवस वाले दिन और 14 अप्रैल यानी बैसाखी वाले दिन। 1947 से पहले फिरोजपुर से कसूर होते हुए एक रेलवे लाइन लाहौर तक जाती थी। वो रेलवे लाइन Hussainiwala में सतलुज नदी को पार करती थी। उस पर दिल्ली के पुराने लोहे के पुल की तरह एक पुल भी बना था। अब वो पुल नहीं है, लेकिन उसके अवशेष, पिलर आदि सतलुज में व इसके किनारे खेतों में आसानी से देखे जा सकते हैं। इसी रास्ते से पहले पंजाब मेल मुंबई से लाहौर होते हुए पेशावर तक जाया करती थी। आज वही पंजाब मेल मुंबई से फिरोजपुर तक चलती है।
हुसैनीवाला में भारत-पाक सीमा पर प्रतिदिन ‘Beating The Retreat Ceremony’ होती है। पंजाब में अमृतसर के अलावा हुसैनीवाला की सेरेमनी भी खूब प्रसिद्ध है। शहीद दिवस और बैसाखी वाले दिन यहां लाखों की संख्या में लोग आते हैं और शहीदों को नमन करने के साथ-साथ सेरेमनी भी देखते हैं।

साल में दो दिन चलने वाली ट्रेन

1947 में फिरोजपुर और कसूर का रेल कनेक्शन टूट गया। अब यहां रेल की लाइन तो है, लेकिन ट्रेनें नहीं चलतीं। 118 साल पुरानी पंजाब मेल भी अब फिरोजपुर तक ही जाती है। लेकिन शहीद दिवस व बैसाखी वाले दिन यानी साल में दो दिन इस ऐतिहासिक लाइन पर स्पेशल ट्रेनें चलाई जाती हैं। ये ट्रेनें फिरोजपुर छावनी स्टेशन से चलती हैं और Hussainiwala स्टेशन तक जाती हैं। बाकी पूरे साल हुसैनीवाला तक कोई ट्रेन नहीं जाती।
फिरोजपुर से 50 किमी दूर हरिके पत्तन है, जिसे हरिके वेटलैंड भी कहते हैं। यहां सतलुज व ब्यास नदियां मिलती हैं और हरिके डैम भी बना हुआ है। इसी स्थान से इंदिरा गांधी नहर निकलती है, जो पश्चिमी राजस्थान की जीवनरेखा भी कही जाती है। डैम और दोनों नदियों के मिलन स्थल पर अच्छी-खासी नम भूमि बन गई है, जो अनगिनत तरह के पक्षियों के अनुकूल है। वैसे तो सालभर यहां पक्षियों का जमावड़ा लगा रहता है, लेकिन सर्दियों में साइबेरियन, मंगोलियन व तिब्बती पक्षियों के आने से यह क्षेत्र पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग सरीखा हो जाता है।

Hussainiwala को नहीं मिली राष्ट्रीय प्रसिद्धि

हुसनीवाला पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले फिरोजपुर पहुंचना होगा। फिरोजपुर दिल्ली समेत उत्तर भारत के सभी शहरों से रेल व सड़क मार्ग से जुड़ा है। दिल्ली से नियमित रूप से फिरोजपुर के लिए ट्रेनें चलती हैं। फिरोजपुर से हुसैनीवाला के लिए बस व टैक्सी सर्वोत्तम साधन हैं। आप अपनी गाड़ी से भी जा सकते हैं। Hussainiwala कोई मशहूर पर्यटन स्थल नहीं है इसलिए यहां ठहरने की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। दरअसल इसे जिस स्तर की प्रसिद्धि मिलनी चाहिए थी, उतनी मिली नहीं। फिरोजपुर यहां से 10 किमी दूर है, जो पंजाब का एक बड़ा शहर है और हर बजट के होटल उपलब्ध हैं। वैसे दिल्ली से ओवरनाइट पंजाब मेल से जाकर हुसैनीवाला घूमकर इसी ट्रेन से वापस भी लौटा जा सकता है। गर्मियों में यहां बहुत गर्मी होती है और मानसून में सतलुज में बाढ़ भी आ जाती है। इसलिए यहां जाने का सर्वोत्तम समय सर्दियों का है। लेकिन हर साल 23 मार्च शहीद दिवस व 14 अप्रैल बैसाखी को यहां बड़े मेले लगते हैं जिसमे हज़ारों लोग शामिल होते हैं। देशभक्ति से ओतप्रोत इन मेलों में यहां अवश्य जाना चाहिए।

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